यह लेख व्यापक ऊर्जा मॉनिटर: भारत और विश्व श्रृंखला का हिस्सा है
भारत में, तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) को मुख्य रूप से घरेलू खाना पकाने के ईंधन के रूप में जाना जाता है. लेकिन एलपीजी औद्योगिक प्रक्रियाओं और सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला को सहारा देती है जिसके लिए प्रक्रिया तापमान (प्रोसेस टेंपरेचर का मतलब किसी ऐसे क्रिया-कलाप या ऑपरेशन से है जिसके लिए किसी वस्तु का तापमान एक निश्चित सीमा के भीतर बनाए रखने की आवश्यकता होती है) में उच्च स्तर की सटीकता और लचीलेपन की आवश्यकता होती है, साथ ही तेज़ लौ की भी ज़रूरत होती है. अंतरिक्ष, पानी को गर्म और संसाधित करना, धातु प्रसंस्करण, सुखाने, खाद्य उत्पादन, पेट्रोकेमिकल उत्पादन के साथ-साथ औद्योगिक ओवन, भट्टों और भट्टियों को चलाने वाली औद्योगिक गतिविधियों में एलपीजी का उपयोग किया जाता है. इसकी अत्यधिक नियंत्रित तापमान, सजातीय सामग्री, प्रदूषकों के कम उत्सर्जन (नगण्य NOx [नाइट्रस ऑक्साइड], SOx [सल्फर के ऑक्साइड] और पीएम [पार्टिकुलेट मैटर] उत्सर्जन) और आसान उपलब्धता की वजह से उद्योग इसे महत्व देते हैं. एलपीजी का कैलोरी मान अधिक होता है और इसलिए यह प्राकृतिक गैस की तुलना में जलने पर ‘गर्मी ज़्यादा’ देती है. एलपीजी विशेष रूप से कांच/सिरेमिक उत्पादों के निर्माण में उपयोगी है जिनमें कई तरह की रासायनिक प्रतिक्रियाएं शामिल होती हैं. एलपीजी जैसे स्वच्छ ईंधन का उपयोग उत्पाद की गुणवत्ता को बढ़ाता है और विनिर्माण गतिविधि से संबंधित तकनीकी समस्याओं को कम करता है. एलपीजी का उपयोग बिटुमेन को गर्म करने, सड़कों की मरम्मत और निर्माण करने, सड़क के चिन्हों (रोड साइन्स) और फ़्लडलाइट को रोशन करने के लिए किया जाता है. एरोसोल उत्पादों के निर्माता भी घरेलू उत्पादों के लिए प्रणोदक (प्रोपेलेंट सॉल्वेंट के आधार वाली गोंद) के रूप में शुद्ध फ़ील्ड-ग्रेड एलपीजी का उपयोग करते हैं.
एलपीजी की शीतलन क्षमता अन्य विकल्पों से 10 प्रतिशत अधिक है और इसके उत्कृष्ट थर्मोडायनामिक गुणों के परिणामस्वरूप 10-20 प्रतिशत की ऊर्जा दक्षता प्राप्त होती है.
क्लोरोफ़्लोरोकार्बन (सीएफ़सी) सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले रेफ़्रिजरेंट (ठंडा करने वाला पदार्थ) हैं, लेकिन सीएफ़सी ओज़ोन परत, जो सूर्य से पराबैंगनी विकिरण के मार्ग को सीमित करती है, को नष्ट करने के लिए जाने जाते हैं. एलपीजी, जिसमें शून्य ओज़ोन क्षरण क्षमता (ओडीपी) है, औद्योगिक और घरेलू प्रशीतन में सीएफ़सी के एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में उभर रही है. हालांकि एलपीजी की विभिन्न किस्मों का प्रशीतन में अनुप्रयोग होता है, आइसोब्यूटेन सबसे अधिक घरेलू फ़्रिजों और फ़्रीजरों में पाया जाता है, जबकि प्रोपेन का इस्तेमाल वाणिज्यिक हीट पंपों, एयर कंडीशनिंग, प्रशीतन और फ़्रीजर में आम है. एलपीजी की शीतलन क्षमता अन्य विकल्पों से 10 प्रतिशत अधिक है और इसके उत्कृष्ट थर्मोडायनामिक गुणों के परिणामस्वरूप 10-20 प्रतिशत की ऊर्जा दक्षता प्राप्त होती है. एलपीजी अन्य मुख्य रेफ़्रिजरेंट की तुलना में थोड़ा कम दबाव पर संचालित होता है, जबकि एक समान आयतनी (वॉल्यूमेट्रिक) रेफ़्रिजरेटिंग प्रभाव बनाए रखता है. एलपीजी एसिड नहीं बनाता है और इस तरह अवरुद्ध कोशिकाओं की समस्या को समाप्त करता है.
इन फ़ायदों के बावजूद, भारत में कुल एलपीजी खपत में से सेवा और औद्योगिक क्षेत्रों द्वारा एलपीजी की खपत 10 प्रतिशत से कम है. राजनीतिक और पर्यावरणीय लक्ष्यों से प्रेरित घरों में खाना पकाने के लिए ईंधन के रूप में एलपीजी के उपयोग के लिए मजबूत नीति समर्थन ने अन्य क्षेत्रों में एलपीजी की खपत को हाशिए पर डाल दिया है. मॉड्यूलर पैकेजिंग और परिवहन सुविधाओं के साथ एक अपेक्षाकृत स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन, एलपीजी के औद्योगिक उपयोग को बढ़ावा देने से भारत के आर्थिक और पर्यावरणीय लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद मिल सकती है.
स्थिति
भारत में, 2022-23 में कुल एलपीजी खपत में थोक एलपीजी खपत का हिस्सा लगभग 1.4 प्रतिशत और गैर-घरेलू एलपीजी खपत का हिस्सा लगभग 9.1 प्रतिशत था. थोक और गैर-घरेलू एलपीजी खपत बढ़ रही है, हालांकि घरेलू और परिवहन क्षेत्रों में खपत की वृद्धि घटने लगी है. 2010-11 और 2022-23 के बीच, गैर-घरेलू एलपीजी खपत में 8.4 प्रतिशत से अधिक की वार्षिक औसत दर से वृद्धि हुई है, जबकि थोक खपत में लगभग 1.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. कुल मिलाकर इस अवधि में एलपीजी की खपत में लगभग 6.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई. थोक एलपीजी खपत की हिस्सेदारी 2010-11 में लगभग 2.3 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में लगभग 1.4 प्रतिशत हो गई, जबकि गैर-घरेलू खपत की हिस्सेदारी 2010-11 में लगभग 7 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में लगभग 9 प्रतिशत हो गई. 2022-23 में, भारत ने 18.3 मिलियन टन (एमटी) एलपीजी का आयात किया, जो खपत का लगभग 64 प्रतिशत है, 2016-17 के 49 प्रतिशत के मुकाबले यह आयात निर्भरता में उल्लेखनीय वृद्धि है. 2009-10 के बाद से खपत में वृद्धि के बावजूद, भारतीय रिफ़ाइनरियों ने एलपीजी उत्पादन क्षमता को नहीं बढ़ाया है. भारतीय रिफ़ाइनरियों द्वारा उत्पादित एलपीजी 2022-23 में उनकी कच्चे तेल की प्रसंस्करण कुल क्षमता का केवल 4.2 प्रतिशत था. भारतीय रिफ़ाइनरियों को पेट्रोल और डीज़ल उत्पादन के लिए अधिक बेहतर ढंग से डिज़ाइन किया गया है और इनमें एलपीजी की उत्पादन कम होती है, जिसकी वजह से घरेलू एलपीजी उत्पादन सीमित हो जाता है.
मुद्दे
उद्योगों द्वारा एलपीजी को व्यापक रूप से अपनाने में एक बड़ी बाधा प्राकृतिक गैस से प्रतिस्पर्धा भी है. एलपीजी उपभोग करने वाले सभी तीन क्षेत्रों (घरेलू, परिवहन और उद्योग) में नियंत्रित कीमतों पर पाइप से पहुंचने वाली प्राकृतिक गैस (पाइप्ड नेचुरल गैस- पीएनजी) की उपलब्धता एलपीजी को अधिक महंगा विकल्प बना देती है. प्राकृतिक गैस की खपत को बढ़ाकर भारत की प्राथमिक ऊर्जा टोकरी के लगभग 15 प्रतिशत तक बढ़ाने के लिए नीति समर्थन ने प्राकृतिक गैस के लिए परिवहन अवसंरचना में निवेश बढ़ाया है जैसे कि पाइपलाइनें. इसके अलावा, अनुकूल मूल्य निर्धारण जटिल और कठिन अपतटीय क्षेत्रों से प्राकृतिक गैस के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करता है.
इस अवधि में एलपीजी की खपत में लगभग 6.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई. थोक एलपीजी खपत की हिस्सेदारी 2010-11 में लगभग 2.3 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में लगभग 1.4 प्रतिशत हो गई, जबकि गैर-घरेलू खपत की हिस्सेदारी 2010-11 में लगभग 7 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में लगभग 9 प्रतिशत हो गई.
ऐतिहासिक रूप से, प्राकृतिक गैस का कारोबार तेल और तेल उत्पादों की तुलना में छूट पर होता है. हालांकि, आयातित प्राकृतिक गैस की कीमतों में वर्तमान अस्थिरता, लागत को नियंत्रित करने के लिए प्राकृतिक गैस के लिए एलपीजी सहित अन्य तेल उत्पादों को विकल्प के रूप में स्थापित करने की संभावना खोलती है. महंगी प्राकृतिक गैस की आवश्यकता को कम करने के लिए प्रोसेसिंग ईंधन के रूप में रिफाइनरियां प्रोपेन की आंतरिक खपत बढ़ा सकती हैं. उद्योग भी प्राकृतिक गैस के लिए एलपीजी का विकल्प चुन सकते हैं, लेकिन यह नियामक प्रतिबंधों पर निर्भर करता है. चीन में कई औद्योगिक संयंत्रों ने अतीत में स्थानीय बिजली उत्पादन और/या प्रक्रिया ईंधन के लिए अपने प्राथमिक ईंधन स्रोत के रूप में एलपीजी का उपयोग किया था. जैसे-जैसे प्राकृतिक गैस की आपूर्ति बढ़ी, इनमें से कई संयंत्रों को गैस वितरण नेटवर्क से जोड़ दिया गया, लेकिन फिर भी एलपीजी भंडारण टैंक और आवश्यकता पड़ने पर वापस एलपीजी का इस्तेमाल करने की क्षमता को बनाए रखा गया. भारत के मामले में जैसा कि, चीन के अधिकांश राज्य-स्वामित्व वाले औद्योगिक संयंत्र घरेलू गैस आपूर्ति से जुड़े हुए हैं, जो मूल्य नियंत्रण के अधीन है, जबकि अधिकांश निजी क्षेत्र के गैस उपयोगकर्ता आयातित री-गैसीफ़ाइड एलएनजी (लिक्विफाइड नेचुरल गैस) ख़रीद रहे थे. इस प्रकार निजी क्षेत्र के गैस उपयोगकर्ता एलएनजी-आधारित प्राकृतिक गैस में मूल्य अस्थिरता के खतरे से जूझ रहे थे, जो मूल्य विनियमन के अधीन नहीं आती है. जब वैश्विक रूप से कारोबार की जाने वाले प्राकृतिक गैस की कीमत बढ़ी, तो आयातित एलएनजी की तुलना में एलपीजी सस्ती हो गई और इससे गैस से एलपीजी में ‘रिवर्स स्विचिंग’ हुई और इससे चीन की एलपीजी की आयात मांग बढ़ी. चीन के वर्तमान नियमों के अनुसार, ईंधन स्विचिंग (अदला-बदली) की अनुमति नहीं है. एक बार जब कोई औद्योगिक उपयोगकर्ता प्राकृतिक गैस ग्रिड से जुड़ जाता है, तो सिस्टम में से एलपीजी को समाप्त करना पड़ता है.
जब वैश्विक रूप से कारोबार की जाने वाले प्राकृतिक गैस की कीमत बढ़ी, तो आयातित एलएनजी की तुलना में एलपीजी सस्ती हो गई और इससे गैस से एलपीजी में ‘रिवर्स स्विचिंग’ हुई और इससे चीन की एलपीजी की आयात मांग बढ़ी.
भारत में एलपीजी की घरेलू खपत 2021-22 में 2,55,02,000 टन से घटकर 2022-23 में 2,53,82,000 टन हो गई. परिवहन क्षेत्र द्वारा एलपीजी की खपत भी 2021-22 में 1,22,000 टन से घटकर 2022-23 में 107 टन रह गई. हालांकि, गैर-घरेलू और थोक एलपीजी की खपत 2021-22 में 26,30,000 टन से बढ़कर 2022-23 में 30,15,000 टन हो गई. जो उद्योग गैस ग्रिड से जुड़े नहीं हैं, उनके लिए एलपीजी को बिजली उत्पादन और प्रक्रिया ताप (प्रोसेस हीट) के स्रोत के रूप में बढ़ावा दिया जा सकता है. ईंधन के रूप में एलपीजी की विकेंद्रीकृत प्रकृति ग्रामीण क्षेत्रों के औद्योगिकीकरण को सुविधाजनक बना सकती है. जो उद्योग प्राकृतिक गैस ग्रिड से जुड़े हैं, उनके लिए भारत में उद्योगों द्वारा एलपीजी और प्राकृतिक गैस के बीच स्विच करने के लिए नीति प्रावधान न केवल खपत वृद्धि में गति को बनाए रखेगा बल्कि प्राकृतिक गैस की कीमतों में अस्थिरता के ख़तरे को कम करके उद्योगों पर लागत दबाव को भी कम करेगा.
यहाँ चित्र है…
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