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वसुधैव कुटुम्बकम् पर आधारित अपनी सांस्कृतिक विरासत के साथ भारत को इस अवसर का इस्तेमाल अधिक प्रभावी शांति निर्माण और शांति रक्षा के कार्यक्रमों के लिए करना चाहिए.
संयुक्त राष्ट्र (UN) की स्थापना के समय से दुनिया ने शांति की संस्कृति को सुगम बनाने, जटिल वैश्विक संघर्षों के समाधान और आवश्यक शांति रक्षा एवं शांति निर्माण में समर्थन प्रदान करने में निर्णायक भूमिका निभाने के लिए इसकी तरफ देखा है.
इज़रायल और ईरान के बीच मध्य पूर्व में जारी तनाव उन उदाहरणों की लंबी सूची में बढ़ोतरी करता है जो तनाव फैलने और इस तरह की कार्रवाई को प्रभावी ढंग से रोकने में वैश्विक नेताओं और संस्थानों की अयोग्यता को दिखाते हैं. इनमें यूक्रेन-रूस, इज़रायल-हमास के बीच मौजूदा युद्ध और सूडान, म्यांमार, यमन और साहेल क्षेत्र में संघर्ष शामिल हैं.
नए विचार वाले नेतृत्व की तत्काल आवश्यकता है जो एक साझा दृष्टिकोण का निर्माण कर सके और शांति एवं सद्भावना को बढ़ावा दे.
भारत एक आगे बढ़ती प्राचीन सभ्यता है जिसके प्रवासी दुनिया भर में फैले हुए हैं और वसुधैव कुटुम्बकम् (एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य) में उसका हमेशा विश्वास रहा है. भारत को इस अवसर का लाभ अवश्य उठाना चाहिए और अधिक प्रभावी शांति निर्माण और शांति रक्षा कार्यक्रमों को तैयार करने में अपने वैचारिक नेतृत्व की पेशकश करनी चाहिए.
भारत ने कभी युद्ध की शुरुआत नहीं की. इसके विपरीत भारत ने संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा मिशन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और किसी भी दूसरे देश की तुलना में ज़्यादा सैनिकों का योगदान किया है. 1948 से UN के 72 मिशन में से 49 में 2,53,000 कर्मियों ने अपनी सेवाएं दी हैं. जनवरी 2024 के आंकड़ों के मुताबिक लगभग 5,900 भारतीय सैनिक 12 UN शांति स्थापना मिशन में तैनात हैं. भारतीय सेना के जवानों ने महत्वपूर्ण बलिदान दिया है और कर्तव्य की राह में 160 से ज़्यादा जवानों ने वीरगति प्राप्त की है जो संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा के प्रति भारत की लगातार भागीदारी और प्रतिबद्धता को दिखाती है. ये विश्वसनीयता भारत को अवसर प्रदान करती है कि वो संयुक्त राष्ट्र की शांति स्थापना के एजेंडे को आगे बढ़ाने में अपना वैचारिक नेतृत्व पेश करे.
इस लेख में संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा और संयुक्त राष्ट्र शांति निर्माण मिशन के उद्देश्यों को बढ़ाने के मकसद से भारत के लिए उन व्यावहारिक तरीकों पर ध्यान दिया जाएगा.
UN शांति रक्षा अभियान (PKO) की स्थापना संघर्षों को कम करने और स्थिर समाज की तरफ बदलाव सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से की गई थी. नेक इरादों और समर्पित प्रयासों के बावजूद शांति मिशन का असर अक्सर उम्मीद से कम रहता है और वो अनसुलझे संघर्षों और नाज़ुक शांति को पीछे छोड़ जाते हैं. UN PKO की अपनी महत्वपूर्ण समीक्षा में मेजर जनरल बरदलई कहते हैं कि ज़्यादातर नाकाम PKO की विशेषता रही है देर से तैनाती, कमज़ोर निर्देश, अपर्याप्त संसाधन और अकुशल एवं अप्रशिक्षित शांति रक्षक सैनिक.
नीचे के विशेष उदाहरण हिंसक संघर्षों के बहुमुखी स्वरूप की व्याख्या करते हैं जहां संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा मिशन ने स्थायी शांति हासिल करने के लिए संघर्ष किया है. ये तर्क भी दिया जा सकता है कि वर्चस्व वाली शांति रक्षा के दृष्टिकोण ने शायद बुनियादी सामाजिक एवं आर्थिक शिकायतों को नज़रअंदाज़ किया होगा. ये शांति रक्षा और शांति निर्माण के लिए एक नए इनोवेटिव और व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता को उजागर करता है जो आधारभूत शिकायतों एवं आघात को ठीक करने की ज़रूरत का समाधान करेगा, समावेशी संवाद को बढ़ावा देगा और भीतर से शांति निर्माण के लिए स्थानीय लोगों को सशक्त करेगा.
देश/क्षेत्र |
संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशन का नाम |
नाकामी का कारण |
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC) |
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में संयुक्त राष्ट्र संगठन स्थिरीकरण मिशन |
मौजूदा सशस्त्र संघर्ष, राजनीतिक अस्थिरता, कई हथियारबंद समूहों की मौजूदगी. |
दक्षिण सूडान |
लगातार जातीय हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता जिसने आम लोगों की सुरक्षा और सुलह की कोशिशों को सफल नहीं होने दिया. |
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साइप्रस |
तुर्की मूल के साइप्रस के नागरिकों (मुसलमान) और ग्रीक मूल के साइप्रस के नागरिकों (ईसाई) के बीच छिटपुट तनाव और अनसुलझे मुद्दे. |
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सोमालिया |
अल-शबाब के उग्रवादियों और कबीलाई हिंसा से पैदा सुरक्षा ख़तरों के कारण लगातार संघर्ष, आतंकवाद और शासन से जुड़ी चुनौतियां. |
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सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक |
सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में संयुक्त राष्ट्र बहुआयामी एकीकृत स्थिरीकरण मिशन |
दो संप्रदायों के बीच हिंसा, राजनीतिक अस्थिरता का समाधान करने में मुश्किल और अल-क़ायदा इन दी इस्लामिक मग़रेब (AQIM) जैसे आतंकवादी संगठनों का विस्तार. |
मौजूदा शांति निर्माण का दृष्टिकोण काफी हद तक पश्चिमी देशों के मॉडल पर आधारित है जो सांस्कृतिक एवं संरचनात्मक हिंसा, अच्छी तरह से काम करने वाले नागरिक संस्थानों, भ्रष्टाचार के कम स्तर और समान मात्रा में संसाधनों के वितरण पर आधारित है. लेकिन स्थायी शांति हासिल करने के लिए किसी व्यक्ति एवं समुदायों पर संघर्ष के मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक असर का समाधान करने की भी ज़रूरत होती है. अगर हिंसा एवं संघर्ष से मिलने वाले सदमे का निपटारा नहीं किया जाता है तो ये हताशा और गुस्से की ओर ले जाता है जिसका नतीजा और अधिक हिंसा के रूप में निकल सकता है.
इसे स्वीकार करते हुए संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने संघर्ष के समाधान और शांति निर्माण के प्रयासों में मानसिक स्वास्थ्य एवं मनोवैज्ञानिक समर्थन (MHPSS) को शामिल करने की वकालत शुरू की है. इसमें काउंसलिंग, सामूहिक इलाज और व्यक्तिगत एवं सामूहिक सदमे का समाधान करने, भावनाओं को नियंत्रित करने और सामर्थ्य एवं अहिंसक संचार कौशल को बढ़ावा देने के हिसाब से तैयार कार्यक्रम जैसी पहल शामिल हैं.
इस ‘अंदरुनी विकास’ पर ज़ोर मौजूदा शांति निर्माण की रणनीतियों के असर को बढ़ाने के लिए योग, प्राणायाम और ध्यान जैसी पद्धतियों के माध्यम से भारत की अंदरुनी शांति के पुराने ज्ञान को शामिल करने की आवश्यकता को उजागर करता है. भारतीय दृष्टिकोण को जोड़कर हम संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा और शांति निर्माण मिशन के उद्देश्यों को दो विशेष तरीकों से महत्वपूर्ण रूप से बदल सकते हैं:
पश्चिमी देशों पर केंद्रित अपने दृष्टिकोणों की वजह से संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा मिशन को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. इन दृष्टिकोणों को अक्सर ऊपर से नीचे तक दखल देने वाले उदाहरण को बनाए रखने के रूप में देखा जाता है. इसके उलट व्यक्ति को बदलने पर ध्यान देने वाला भारतीय ढांचा अहिंसा और करुणा पर आधारित सांस्कृतिक रूप से एक संवेदनशील दृष्टिकोण प्रदान करता है. भारतीय ढांचा समुदाय की भागीदारी को प्राथमिकता देता है और स्थानीय किरदारों के अधिकारों को स्वीकार करता है. इस तरह अधिक विश्वास और सहयोग को बढ़ावा देता है. योग और ध्यान जैसी पद्धतियों को ट्रेनिंग कार्यक्रमों में शामिल करने से सदमे के मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक आयामों का समाधान किया जा सकता है, लचीलापन एवं सुलह के प्रयासों को बढ़ाया जा सकता है. ये दृष्टिकोण संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा के मिशन के जल्द बाहर निकलने की सुविधा भी मुहैया करा सकता है. इस प्रकार पैसे की बचत होगी और गैर-पारंपरिक किरदारों जैसे कि डॉक्टर, नर्स और शिक्षकों को शांति निर्माण की पहल का नेतृत्व करने के लिए सशक्त किया जा सकता है. इससे ये प्रक्रिया तेज़ होगी और उसमें स्थिरता सुनिश्चित होगी. साइप्रस में संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा बल के साथ किया गया काम स्थानीय शांति निर्माताओं को सशक्त करने के इस दृष्टिकोण के असर का उदाहरण पेश करता है.
संघर्ष के क्षेत्रों में शांति बनाए रखना मुश्किल है और ये शांति रक्षकों के मानसिक सामर्थ्य पर दबाव डाल सकता है. योग और ध्यान जैसी भारतीय पद्धतियां इससे जुड़े सदमे का समाधान करने के लिए प्रमाणित तरीका पेश करती हैं. शांति रक्षा के ट्रेनिंग कार्यक्रमों में इन प्रमाणित पद्धतियों को शामिल करके सैनिक चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में अधिक सामर्थ्य, सहानुभूति और शांति- ऐसे गुण जो संघर्ष के क्षेत्रों में मुश्किलों का सामना करने के लिए आवश्यक हैं - पैदा कर सकते हैं. ये पद्धतियां संयुक्त राष्ट्र के शांति रक्षकों को अधिक सहानुभूति और समझ विकसित करने की सुविधा देंगी जो कि हिंसा से टूट चुके समुदायों के भीतर विश्वास बनाने और सुलह को बढ़ावा देने के लिए ज़रूरी गुण हैं. शांति रक्षा के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में इस भारतीय ज्ञान को जोड़कर सैनिकों को स्थानीय समुदायों के साथ विश्वस्त रूप से भागीदारी करने के लिए आवश्यक जानकारी और साधन से लैस किया जा सकता है जिससे हिंसा से प्रभावित लोगों का घाव भरने, सुलह और सामाजिक एकजुटता में तेज़ी आएगी. इस प्रकार ऐसी ट्रेनिंग संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा में कायापलट के लिए मूलभूत बदलाव का काम कर सकती है, उसे केवल सुरक्षा को लागू करने वाले बल की जगह शांति निर्माण का सशक्त प्रतिनिधि बना सकती है. क्षमता निर्माण के इस अनूठे दृष्टिकोण को लॉस एंजलिस पुलिस डिपार्टमेंट जैसी कानून लागू करने वाली एजेंसियों के साथ प्रदर्शित किया जा चुका है.
भारत हाल के दिनों में वैश्विक चुनौतियों से निपटने और आर्थिक अवसरों को आगे बढ़ाने के लिए कई सामरिक प्रयासों जैसे कि भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर, क्वॉड के साथ-साथ I2U2 साझेदारी में एक कीमती भागीदार बन गया है. भारतीय प्रवासी पूरी दुनिया में फल-फूल रहे हैं. भारतीय कंपनियां संवेदनशील संघर्ष के क्षेत्रों समेत पूरी दुनिया में व्यवसाय कर रही हैं.
शांति और समृद्धि एक-दूसरे पर निर्भर हैं. हिंसा, संघर्ष और अस्थिरता भारतीय प्रवासियों के साथ-साथ भारत के व्यवसायों और भू-राजनीतिक हितों को सीधे ढंग से प्रभावित करेंगी.
इसलिए वसुधैव कुटुम्बकम् पर आधारित अपनी सांस्कृतिक विरासत के साथ भारत को दुनिया भर में अधिक शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने का नेतृत्व करना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा और संयुक्त राष्ट्र शांति निर्माण के अभियानों में भारतीय ढांचे और पद्धतियों की वकालत करके भारत शांति और सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व के द्वारा परिभाषित भविष्य को सक्षम बनाने में सार्थक रूप से योगदान कर सकता है. इससे भारत के विश्व गुरु बनने के आकांक्षा से भरे दृष्टिकोण को साकार करने में भी मदद मिल सकती हैं.
विश्व व्यवस्था में अराजकता हावी होने के साथ कदम उठाने का यही समय है.
मंदार आप्टे वर्तमान में Cities4Peace इनिशिएटिव के प्रमुख हैं. इससे पहले मंदार जॉर्ज मैसन यूनिवर्सिटी के स्कूल फॉर कन्फ्लिक्ट एनेलिसिस एंड रेज़ोल्यूशन में विज़िटिंग स्कॉलर थे.
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Mandar Apte currently manages the Cities4Peace initiative. Prior to this Mandar was a visiting scholar at George Mason University School for Conflict Analysis &: Resolution ...
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