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ये लेख व्यापक ऊर्जा निगरानी: भारत और विश्व श्रृंखला का हिस्सा है.
ऊर्जा उद्योग की ओर से बजट के लिए मांगों की जो सूची बनाई गई थी, उसमें नवीकरणीय ऊर्जा सेक्टर (renewable energy sector) का बोलबाला था. इलेक्ट्रिक व्हीकल (ईवी) उद्योग ने हाइब्रिड स्टोरेज उत्पादों के आयात पर कस्टम शुल्क को पूरी तरह ख़त्म करने की मांग की. सौर ऊर्जा उद्योग के प्रोजेक्ट डेवलपर्स ने बैटरी के लिए कम आयात शुल्क की मांग को दोहराया. सरकार के प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) कार्यक्रम में भागीदारी करने वाली सौर ऊर्जा कंपनियों ने तैयार उपकरणों पर ज़्यादा आयात शुल्क लगाने और कल-पुर्जों पर आयात शुल्क कम करने की मांग की थी. इसका ये मतलब है कि सौर ऊर्जा कंपनियां तैयार सामान की जगह कल-पुर्जे मंगवाकर ख़ुद सामान बनाना चाहती हैं. सौर और पवन ऊर्जा उद्योग चाहता था कि ब्याज में छूट पर 30 प्रतिशत की सीमा को बढ़ाया जाए ताकि वो न सिर्फ़ जलवायु परिवर्तन को लेकर भारत की कॉप 26 प्रतिबद्धता को पूरा करने में मदद कर सकें बल्कि भारत की ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग को भी सुधार सकें. वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के तहत बैटरी के लिए टैक्स की दर में कमी और हाइब्रिड नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए कर में राहत जैसी कुछ और मांगें थीं जिन्हें कई नवीकरणीय ऊर्जा कंपनियों ने दोहराया. ट्रांसमिशन के लिए बजट आवंटन में बढ़ोतरी और सौर ऊर्जा मॉड्यूल के अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) और बैटरी उत्पादन के लिए वित्तीय प्रोत्साहन भी नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग के प्रमुख लोगों की तरफ़ से एक सामान्य मांग थी. टैक्स में छूट, संपत्ति के मूल्य में तेज़ी से कमी, ब्याज में हस्तक्षेप, नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी- ये ऐसी मांगें थीं जो नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग की तरफ़ से सौंपी गई लगभग हर सूची में शामिल थीं. नवीकरणीय ऊर्जा सेक्टर में सबसे नये संगठन इंडिया हाइड्रोजन अलायंस () चाहता था कि इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को जो कर लाभ मिला हुआ है, उसे बढ़ाकर हरित गतिविधियों में शामिल सेक्टर पर भी लागू किया जाए. इन लाभों में हरित हाइड्रोजन तकनीकों में नये निवेश पर संपत्ति के मूल्य में तेज़ी से कमी के लाभ के अलावा हरित हाइड्रोजन उत्पादन करने वाली कंपनियों की आमदनी और लाभ पर टैक्स कटौती शामिल हैं. इंडिया हाइड्रोजन अलायंस ये भी चाहता था कि इलेक्ट्रोलाइज़र के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले कल-पुर्जों के आयात पर कम-से-कम शुल्क और कर लगे. साथ ही इलेक्ट्रोलाइज़र की ख़रीद की गारंटी मिले और हरित हाइड्रोजन सिस्टम की स्थापना और उत्पादन की सुविधा के लिए कम ब्याज पर कर्ज़ मिले.
सौर और पवन ऊर्जा उद्योग चाहता था कि ब्याज में छूट पर 30 प्रतिशत की सीमा को बढ़ाया जाए ताकि वो न सिर्फ़ जलवायु परिवर्तन को लेकर भारत की कॉप 26 प्रतिबद्धता को पूरा करने में मदद कर सकें बल्कि भारत की ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग को भी सुधार सकें.
बजट प्रावधान
काफ़ी हद तक नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग की विशेष मांगों को बजट भाषण, जिसे अब तक का सबसे छोटा कहा गया, में पूरा नहीं किया गया. बजट में व्यापक नीतिगत समर्थन के अलावा नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग को वित्तीय प्रोत्साहन में काफ़ी बढ़ोतरी की गई. पीएलआई कार्यक्रम को 195 अरब रुपये (2.6 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा) की अतिरिक्त फंडिंग संभवत: ज़्यादा दक्षता वाले सौर ऊर्जा मॉड्यूल के घरेलू उत्पादन को आसान बना सकती है जिससे कि साल 2030 तक 230 गीगावॉट सौर ऊर्जा की स्थापित क्षमता के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा किया जा सके. 2022-23 में बाज़ार से कर्ज़ लेने के सरकार के अभियान के रूप में ग्रीन बॉन्ड को जारी किया जाएगा जिससे हरित बुनियादी ढांचे के लिए संसाधन का इंतज़ाम होगा. अध्ययनों से पता चला है कि निवेशक ग्रीन बॉन्ड से कम फ़ायदे को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं और ये बात ग्रीन बॉन्ड जारी करने वालों (इस मामले में भारत सरकार) की हरित महत्वाकांक्षा को बढ़ाने का काम करती है. इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए माहौल बेहतर करने की कोशिश के तहत सरकार ने बयान दिया कि वो प्राइवेट सेक्टर को प्रोत्साहित करेगी कि बैटरियों की अदलाबदली (डिस्चार्ज हो चुकी बैटरी को चार्ज की गई बैटरी से बदलना) के लिए एक टिकाऊ और इनोवेटिव बिज़नेस मॉडल को विकसित करे. बैटरियों की अदलाबदली की ज़रूरत इसलिए भी है क्योंकि भारत के शहरी क्षेत्रों में चार्जिंग स्टेशन के लिए जगह की कमी है. बैटरियों की अदलाबदली को लेकर मिला-जुला अनुभव रहा है. वर्ष 2010 के आसपास उत्तरी अमेरिका में टेस्ला की तरफ़ से बैटरियों की अदलाबदली का प्रयोग सफल नहीं रहा और अंत में उसे छोड़ दिया गया लेकिन चीन में बैटरियों की अदलाबदली काफ़ी सफल है. भारत चीन की सफलता को दोहरा सकता है. विशेष आवागमन और शून्य जीवाश्म ईंधन ज़ोन के साथ शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने का सरकार का लक्ष्य कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन घटाने में इलेक्ट्रिक गाड़ियों का साथ देगा. पराली जलाने की समस्या का समाधान करने के लिए बजट में ये प्रस्ताव दिया गया है कि थर्मल पावर प्लांट में 5-7 प्रतिशत जैव ईंधन जलाया जाए. थर्मल पावर प्लांट से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 38 मिलियन टन कमी आने की उम्मीद है या 2020 में भारत के सालाना उत्सर्जन का 1.6 प्रतिशत. बजट में कोयले को गैस और रसायन में तब्दील करने, जो उद्योग के लिए आवश्यक है, के लिए चार पायलट प्रोजेक्ट का प्रस्ताव रखा गया है. जलवायु परिवर्तन को लेकर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के द्वारा इस क़दम की तारीफ़ करने की उम्मीद नहीं है क्योंकि वो मूल रूप से जीवाश्म ईंधन के ख़िलाफ़ हैं लेकिन कार्बन कैप्चर और स्टोरेज के साथ कोल-बायोएनर्जी गैसिफिकेशन सिस्टम को तैनात करने से भारत में एक साथ कार्बन में कटौती और शहरों में स्वच्छ हवा से जुड़ी समस्या का समाधान करने के अलावा घरेलू ईंधन में बढ़ोतरी के ज़रिए भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने का अवसर मिलेगा. ज़्यादा सक्षम ट्रेनों का वादा कुल ऊर्जा दक्षता में योगदान करेगा. नवीकरणीय ऊर्जा सेक्टर में बड़ी कंपनियों और उससे भी ज़्यादा बजट से पहले अपनी मांगों को बढ़ावा देने की उनकी कोशिश को देखते हुए विकासशील हाइड्रोजन उद्योग के लिए बजट में किसी रियायत की ग़ैर-मौजूदगी हैरान करने वाली है.
बैटरियों की अदलाबदली को लेकर मिला-जुला अनुभव रहा है. वर्ष 2010 के आसपास उत्तरी अमेरिका में टेस्ला की तरफ़ से बैटरियों की अदलाबदली का प्रयोग सफल नहीं रहा और अंत में उसे छोड़ दिया गया लेकिन चीन में बैटरियों की अदलाबदली काफ़ी सफल है.
प्रमुख मुद्दे
कई समीक्षकों ने बजट की तारीफ़ इस तरह से की है कि इसके केंद्र में ऊर्जा के इस्तेमाल में परिवर्तन है. इसकी वजह शायद ये है कि ऊर्जा के इस्तेमाल में बदलाव से जुड़े शब्द जैसे कि स्वच्छ ऊर्जा, स्टोरेज, बैटरी और स्वच्छ आवागमन का इस्तेमाल पूरे बजट भाषण के दौरान किया गया. इसे जलवायु परिवर्तन या निरंतरता पर एक हिस्से तक सीमित नहीं रखा गया. लेकिन ये बजट एक ऊर्जा परिवर्तन बजट के नाम के साथ न्याय नहीं करता है. वैसे तो बजट में नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग के लिए कई प्रोत्साहनों का एलान किया गया है लेकिन इससे देश में स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल की तरफ़ स्पष्ट ध्यान का पता नहीं चलता है. जैसा कि बजट भाषण में बताया गया, बजट जिस ‘समानांतर पटरी’ पर भारत को रखने का लक्ष्य रखता है, वो हैं: (i) कमज़ोर और बेरोज़गारों लोगों के लिए संभावनाओं में सुधार और (ii) आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर (गतिशक्ति) में निवेश को बढ़ाना ताकि भारत को स्वतंत्रता की 100वीं सालगिरह के लिए तैयार किया जा सके. दूसरा लक्ष्य यानी भविष्य के लिए चमकते भारत के निर्माण पर ज़्यादा ज़ोर है. 2047 में चमकते भारत का लक्ष्य हासिल करने के कई साधनों में स्वच्छ ऊर्जा की तरफ़ बदलाव भी एक साधन है. गतिशक्ति में छोटी लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका रखने वाले और आत्मनिर्भर भारत अभियान में मदद करने वाले के तौर पर स्वच्छ ऊर्जा की तरफ़ बदलाव अनुमान से कम हासिल कर सकता है. ये समझा जा सकता है कि प्राइवेट सेक्टर के दबदबे वाला नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग सप्लाई के छोर पर सस्ते सामानों के लिए ज़्यादा आयात शुल्क के साथ संरक्षण और मांग के छोर पर सुनिश्चित बाज़ार जैसे कि पीएलआई कार्यक्रम के ज़रिए संरक्षण से इन प्रमुख विचारों का फ़ायदा उठा रहा है. नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग समृद्ध होगा लेकिन ये अनिश्चित है कि इससे जलवायु के मामले में बेहतर भारत की तरफ़ योगदान होगा या नहीं. आत्मनिर्भरता को अपनाने से स्वच्छ ऊर्जा की लागत में बढ़ोतरी हो सकती है और जैसा कि अर्थशास्त्रियों ने बताया है इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को औसत दर्जे का भी घोषित किया जा सकता है. स्वच्छ ऊर्जा की तरफ़ बदलाव के ज़रिए कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था भारत के लिए कई उद्देश्यों में से एक है. औसत दर्जे का विकास निश्चित रूप से उन उद्देश्यों में शामिल नहीं है भले ही इसका मतलब कम कार्बन उत्सर्जन क्यों न हो. कोविड-19 महामारी की वजह से साल 2020 में ये पता चल चुका है.
Source: Climate Bonds Initiative
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