Author : Kajari Kamal

Published on Oct 13, 2023 Updated 0 Hours ago
कौटिल्य की प्राचीन गुप्तचर विधा की विरासत में छिपा है भारत-कनाडा राजनयिक विवाद का समाधान!

हाल के दिनों में भारत ने पूरी दुनिया में ख़ासी सुर्खियां हासिल की हैंफिर चाहे वो अभूतपूर्व सफलता के साथ G20 समिट का आयोजन हो और उसमें अलगअलग विचारधारा वाले देशों के बीच विभिन्न मुद्दों पर अपने कूटनीतिक कौशल से विश्वास एवं सर्वसम्मति का माहौल बनाना होया फिर कनाडा में एक खालिस्तानी अलगाववादी नेता की हत्या में भारत के एजेंटों की कथित संलिप्तता का मामला हो. हालांकिखालिस्तानी अलगाववादी नेता की हत्या में भारत का हाथ होने के आरोप बेबुनियाद हैं और “मनगढ़ंत  प्रेरित” महसूस होते हैंऐसे में भारत की ख़ुफ़िया जानकारी एकत्र करने एवं जासूसी की पुराने समय से चली  रही परंपरा पर चर्चा करना लाज़िमी हो जाता हैजैसा कि भारत द्वारा G20 सम्मेलन के दौरान सदियों पुरानी ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा को आगे बढ़ाया गयातो फिर ऐसे में भारत की प्राचीन गुप्तचर विधा की विरासत यानी जासूसों द्वारा अपनाए जाने वाले तौरतरीक़ों की विरासत को आगे क्यों नहीं बढ़ाया जा सकता है?

“किसी देश की ख़ुशहाली और समृद्धि (उसकी वर्तमान सीमाओं के भीतर किसी राष्ट्र की सुरक्षा को सुनिश्चित करना एवं नए इलाक़ों का अधिग्रहण कर सीमाओं को बढ़ाना) तटस्थता का रास्ता चुनने या फिर सीधे तौर पर कार्रवाई करने की नीति अपनाने पर निर्भर करती है. आख़िर यही वो नीति है, जो कहीं न कहीं विदेश नीति की बुनियाद बनाती है.”

ख़ुफ़िया तंत्र और अर्थशास्त्र

कौटिल्य का अर्थशास्त्र एक ऐसा ग्रंथ हैजिसमें देश पर शासन करने की कला और राज्यव्यवस्था का विस्तार से बखान किया गया हैमाना जाता है कि यह ग्रंथ मौर्य काल (321 BCE-185 BCE) का हैयह ग्रंथ अंतिम राजनीतिक लक्ष्य (योगक्षेममें आंतरिक सुरक्षा के विचार को गूंथने का और इसके महत्व को बताने का काम करता हैइस विचार को इस प्रकार से परिभाषित किया गया है, “किसी देश की ख़ुशहाली और समृद्धि (उसकी वर्तमान सीमाओं के भीतर किसी राष्ट्र की सुरक्षा को सुनिश्चित करना एवं नए इलाक़ों का अधिग्रहण कर सीमाओं को बढ़ानातटस्थता का रास्ता चुनने या फिर सीधे तौर पर कार्रवाई करने की नीति अपनाने पर निर्भर करती हैआख़िर यही वो नीति हैजो कहीं  कहीं विदेश नीति की बुनियाद बनाती है.”

बाहरी सुरक्षा हो या फिर आंतरिक सुरक्षादोनों का ही आधार मज़बूत और सटीक ख़ुफ़िया जानकारी पर टिका हैज़ाहिर है कि विकसित इंटेलिजेंस ही किसी राष्ट्र पर शासन करने की नींव है. “ख़ुफ़िया जानकारी एवं (राजनीतिककौशल के साथ कोई शासक” अपने विरोधी शासकों पर जीत हासिल कर सकता हैफिर चाहे विरोधी के पास कितनी भी आर्थिक और सैन्य ताक़त क्यों  होया वो कितना ही साहसी क्यों  होकौटिल्य ने तीन तरह की गुप्तचर गतिविधियों पर बल दिया हैयानी कि जानकारी एकत्र करने पर केंद्रित गतिविधि (जासूस या गुप्तचरडबल एजेंटमुख़बिर और एजेंटों की भर्ती); ज्ञान और समझबूझ पर केंद्रित गतिविधि (घटनाक्रमों और विभिन्न गतिविधियों के विश्लेषण एवं मूल्यांकन से जानकारी जुटाना); और कार्रवाई पर केंद्रित गतिविधि (गोपनीय कार्रवाईसक्रिय उपायमनोवैज्ञानिक युद्ध और अस्थिरता पैदा करना).

कौटिल्य के उपाय अर्थात सूक्ष्म हथियार

कौटिल्य द्वारा अर्थशास्त्र में आंतरिक सुरक्षा के क्षेत्र में चार प्रकार के ख़तरों की चर्चा की गई हैये ख़तरे भड़काने वाली कार्रवाई और उनका जवाब देने की वजह से उत्पन्न होते हैंयह ख़तरे हैं बाहरीआंतरिकआंतरिकबाहरीबाहरीबाहरी और आंतरिकआंतरिकअर्थशास्त्र में लक्षित लोगों के आधार पर इन ख़तरों का मुक़ाबला करने वाले उपायों के बारे में बताया गया हैइनमें दो प्रकार के ख़तरों के बीच संबंध के लिएअर्थात बाहरीआंतरिक और आंतरिकबाहरी ख़तरों के बीच संबंध के बारे में बताया गया है कि इसमें जो पहले प्रतिक्रिया देता हैवो फायदे में रहता हैक्योंकि प्रतिक्रिया देने वाला छलकपट और मक्कारी से भरा हुआ होता हैजब विश्वासघात और छलकपट व्यापक स्तर पर फैला होतो राजद्रोहीगद्दार और भड़काने वाले को प्रभावहीन करके असंतोष या नाराज़गी को समाप्त नहीं किया जा सकता हैक्योंकि यह असंतोष कहीं  कहीं दोबारा से सिर उठाने लगता हैइसके लिए कौटिल्य द्वारा सामदामदंड और भेद जैसे चार उपयों के बारे में बताया गया हैयानी कि अगर भड़काने वाला शख्स आंतरिक क्षेत्र से हैअर्थात अपने ही देश का हैतो उससे सुलह करके (सामऔर उसे कुछ लेदेकर (दाममाहौल के शांत करना चाहिएइसके साथ ही अगर भड़काने वाला बाहरी होतो फूट डालकर (भेदऔर ताक़त का इस्तेमाल कर (दंडउसे काबू में करना उपयुक्त होता हैकौटिल्य का स्पष्ट तौर पर यह मानना है कि अगर व्यापक स्तर पर जनमानस में नारज़गी का भाव पैदा होता हैतो निश्चित तौर पर उसके लिए ग़लत नीतियां ज़िम्मेदार होती हैंऐसी नीतियों की वजह से ही लोगों में ग़रीबीलालच और वैमनस्यता पैदा होती हैऐसे हालातों में शासक को तत्काल प्रभाव से इन्हें दूर करने के लिए क़दम उठाने चाहिए.

कौटिल्य ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि अगर देश की जनता नाराज़ है और विद्रोह पर उतर आई है, तो इस स्थित पर काबू पाने के लिए कभी ताक़त का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, हालांकि बाक़ी उपायों को अमल में लाया जा सकता है.

सिर्फ़ बाहरीबाहरी और आंतरिकआंतरिक ख़तरे की स्थिति में भड़काने वाले के साथ सख़्ती से पेश आना अधिक फायदेमंद हैक्योंकि ऐसे मामलों में जो विद्रोह को भड़काने वाले होते हैंवे ही कपटी और मक्कार किस्म के होते हैंऐसे में जब ऐसे धूर्त विद्रोहियों पर काबू पा लिया जाता हैतो विद्रोह भी अपने आप समाप्त हो जाता हैयहां भीदेश के बाहर के गद्दारों के साथ एकएक कर निपटा जाना चाहिए और इसके लिए फूट डालनाताक़त का इस्तेमाल करना और गुपचुप तरीक़े से उन्हें दंड देने जैसे उपायों को अमल में लाना चाहिएइसके साथ ही आंतरिक क्षेत्र में ऐसे लोगों से निपटने के लिए जो जैसा है उसके साथ वैसा ही सलूक करना चाहिएजैसे कि नाराज़ और असंतुष्टों से सुलहसमझौता करना चाहिएउनकी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा की तारीफ़ करते हुए उनका सम्मान करना चाहिए और जो लोग ज़्यादा दुष्ट प्रकृति के होंउनसे फूट डालकर एवं शक्ति का उपयोग कर गुप्त तरीक़े से सज़ा देकर निपटना चाहिए.

कुल मिलाकर कौटिल्य ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि अगर देश की जनता नाराज़ है और विद्रोह पर उतर आई हैतो इस स्थित पर काबू पाने के लिए कभी ताक़त का इस्तेमाल नहीं करना चाहिएहालांकि बाक़ी उपायों को अमल में लाया जा सकता है. जबकि जनता के बीच विद्रोह का नेतृत्व करने वालों के ख़िलाफ़ बलपूर्वक कार्रवाई करना चाहिए और उन्हें गुप्त तरीक़े से सज़ा भी देना चाहिएस्पष्ट है कि विपरीत हालातों पर काबू पाने के लिए दमनकारी नीति अपनानी है या फिर हल्केफुल्के उपायों से उस पर नियंत्रण पाना हैयह सब देश की अत्यधिक पेशेवर ख़ुफिया सेवा और उसके गुप्तचरों द्वारा एकत्र की गई सूचनाओं पर निर्भर करता है.

 

बाहरीबाहरी ख़तरा है कनाडा में सिख एक्टिविज़्म और भारत का मामला 

भारत और कनाडा के बीच मौज़ूदा राजनयिक विवाद को निश्चित तौर पर बाहरीबाहरी परिदृश्य के लिहाज़ से बखूबी समझा जा सकता हैज़ाहिर है कि दोनों देशों के बीच यह विवादबढ़ते सिख अलगाववाद एवं ख़ास तौर पर सिख आतंकवादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के चलते पैदा हुआ हैप्राचीन समय में जो साम्राज्य होते थेउनमें ग्रामीण इलाक़ोंसरहद से लगे क्षेत्रोंजंगलों और जागीरदारी को ‘बाहरी’ कहा जाता थाध्यान देने वाली बात यह है कि इस समस्या (पैट्रिक ओवेल द्वारा ‘dosa’ को विश्वासघात और धोखा बताया गया हैकी पहचान विद्रोह को भड़काने वाली जगह पर रहने वाले सिर्फ व्यक्ति के रूप में की गई हैवहां रहने वाली आम जनता के रूप में नहीं की गई है.

मौज़ूद परिस्थितियों में यह कहना उचित होगा कि फिलहाल भारत के भीतर सिखों में कोई विद्रोह नहीं है और देश के सिखों को पंजाबी एवं भारतीय होने पर गर्व हैहालांकि, 1970 और 1980 के दशक में भारत में सिख अलगाववादी आंदोलन फैला हुआ थालेकिन आज ज़मीनी हालत एकदम जुदा हैंज़ाहिर है कि उस दौरान सिख अलगाववादी आंदोलनों के पीछे नस्लीयधार्मिकसामाजिकआर्थिक और राजनीतिक कारण थेलेकिन हमेशा से एक बात देखने को मिली हैवो है ऐसे आंदोलनों को विदेशों में रहने वाले सिख प्रवासियों द्वारा मिलने वाला वैचारिकआर्थिक और लॉजिस्टिकल समर्थनहालांकि इस समर्थन का स्तर अलगअलग रहा हैलेकिन इस समर्थन में अक्सर प्रवासी सिखों को आश्रय देने वाले देश के घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय हितों की छाप ज़रूर रही हैअमेरिका के ख़ुफ़िया निदेशालय द्वारा वर्ष 1987 में जारी किए गए डिक्लासिफाइड रिसर्च पेपर में वहां 1,50,000 सिखों की मौज़ूदगी को लेकर गंभीर चिंता जताई गई थीइस रिसर्च पेपर के मुताबिक़ ये सिख भारत में चरमपंथी संगठनों को पैसा भेजते हैंजो कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षी संबंधों को संभावित रूप से बिगाड़ने वाला हैइसी रिसर्च पेपर में दिल्ली और वाशिंगटन के सुधरते रिश्तों के बीच भारत में राजीव गांधी के सिख एसेसिनेशन के ख़तरे का भी उल्लेख किया गया थाजो कि अमेरिकी हितों को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता था.

कनाडा की सरकार लंबे समय से अपनी ज़मीन पर पैर पसार रहे सिख उग्रवाद, आतंकवाद और अलगाववाद को राजनीतिक तौर पर प्रश्रय देती रही है, इतना ही नहीं कनाडा ने भारत सरकार द्वारा इस पर कार्रवाई करने की मांग को भी अनसुना कर दिया है

भारत के बाहर सिखों की सबसे बड़ी आबादी कनाडा में निवास करती हैकनाडा में रहने वाले सिख शायद राजनीतिक तौर पर भी सबसे अधिक प्रभावशाली हैंकुछ अरसे से कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के राजनीतिक सितारे गर्दिश में हैं और उनके लिए खालिस्तानी अलगाववादी सिखों का समर्थन बेहद अहम हैट्रूडो वर्ष 2019 और 2021 के कनाडाई संघीय चुनावों में चीनी दख़ल को लेकर भी विवादों में घिरे हुए हैंकनाडा की सरकार लंबे समय से अपनी ज़मीन पर पैर पसार रहे सिख उग्रवादआतंकवाद और अलगाववाद को राजनीतिक तौर पर प्रश्रय देती रही हैइतना ही नहीं कनाडा ने भारत सरकार द्वारा इस पर कार्रवाई करने की मांग को भी अनसुना कर दिया है. प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने जिस प्रकार से वर्ष 2020 में भारत में किसानों के विरोधप्रदर्शन को लेकर चिंता जताई थीजिस प्रकार से हाल ही में सिख प्रदर्शनकारियों द्वारा लंदन में भारतीय उच्चायोग और सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास में घुसकर हिंसक प्रदर्शन किया गया और जिस तरह से कनाडा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सिखों के अलगाववादी आंदोलन को बढ़ावा मिला हैयह सब देखा जाए तो बहुत ही भयानक घटनाक्रम रहा हैइस घटनाओं को लेकर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई और आख़िरकार हालात बद से बदतर होते चले गएइसके साथ ही कनाडा की घरेलू राजनीतिक परिस्थियों की वजह से ओटावा की मज़बूरी है कि वो क्षेत्रीय एकजुटता की दिल्ली की चिंताओं की अनदेखी करे और उनका विरोध करे.

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में अगर आधुनिक और आज़ाद भारत के लिए कोई सबक है, तो वो यह है कि आंतरिक सुरक्षा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है और इससे कभी समझौता नहीं करना चाहिए.

ऐसे हालातों में कौटिल्य की युक्तियों के लिहाज़ से सोचा जाएतो विद्रोह या असंतोष फैलाने वालों के नेताओं की पहचान करना और गोपनीय तरीक़े से उन्हें चुपचाप दंड देना सर्वथा उचित हैहालांकि कौटिल्य ने दूसरे पक्ष को भी सावधानी बरतने की सलाह दी है: “…शासक को अपने क्षेत्र में शत्रुओं के गुप्त उकसावे से उन लोगों का बचाव करना चाहिएजिन्हें भड़काया जा सकता है और उनका भी बचाव करना चाहिएजिन्हें भड़काया नहीं जा सकता हैफिर चाहे वो कोई रसूखदार व्यक्ति होया फिर आम लोग.” ज़ाहिर है कि अगर आज कौटिल्य होतेतो वे नई दिल्ली को यही सलाह देते कि वो देश के भीतर सिखों के बीच किसी भी नाराज़गी को कम करने की यथासंभव कोशिश करेंसाथ ही संदिग्ध देशद्रोहियों के बारे में पता लगाने के गंभीर प्रयास करे.

साम्राज्यों से लेकर राष्ट्र और राज्यों तक

उल्लेखनीय है कि आज के दौर में एक मॉर्डन नेशनस्टेट व्यवस्था (modern nation-state system) में वैश्विक शांति एवं स्थिरता के लिए जहां क़ानून का शासन बुनियादी तौर पर बहुत ज़रूरी होता हैवहीं राष्ट्रों के बीच पारस्परिक संबंध जवाबदेहीपारदर्शिता और निष्पक्षता पर आधारित होते हैंहालांकि इस सबके साथ ही इस नेशनस्टेट सिस्टम को और सशक्त बनाने के लिए कौटिल्य की युक्तियों को ठीक से समझने एवं उन्हें अपनाने की आवश्यकता हैदुनिया के किसी भी कोने में अगर भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय एकजुटता के ख़िलाफ़ किसी आतंकवादी या कट्टरपंथी संगठन द्वारा कोई भी राजनीतिकवैचारिक या भौतिक समर्थन दिया जा रहा हैतो भारत को पूरी शक्ति के साथ उसका विरोध करना चाहिएभारत और कनाडा के बीच जो मौज़ूदा विवाद चल रहा हैदेखा जाए तो उसने भारत को एक ऐसा अवसर उपलब्ध कराया है कि वो  केवल कनाडा को माकूल जवाब देबल्कि इसके ज़रिए दुनियाभर में भारत के विरोधियों और साझीदारों को भी कड़ा संदेश दे कि अगर उनकी ज़मीन का इस्तेमाल भारत के ख़िलाफ़ भड़काने वाली साज़िशों के लिए किया जाएगावो इसे बर्दाश्त नहीं करेगाभारत जिस तरह से दूसरे देशों के साथ रक्षा एवं प्रौद्योगिकी से जुड़े समझौते करने या पारस्परिक सहयोग से इकोनॉमिक कॉरिडोर स्थापित करने में पूरी ताक़त झोंक देता हैउसी प्रकार से भारत को दूसरे देशों में मौज़ूद राष्ट्र विरोधी चरमपंथियों के सुरक्षित ठिकानों का ख़ात्मा करने में भी अपनी पूरी भूराजनीतिक ताक़त का उपयोग करने की आवश्यकता हैआख़िर में कौटिल्य के अर्थशास्त्र में अगर आधुनिक और आज़ाद भारत के लिए कोई सबक हैतो वो यह है कि आंतरिक सुरक्षा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है और इससे कभी समझौता नहीं करना चाहिए.


डॉ. कजरी कमल तक्षशिला संस्थानबेंगलुरु में एसोसिएट प्रोफेसर हैं और कौटिल्य के अर्थशास्त्र को पढ़ाती हैं.

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