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कर्नाटक के लिए चुनाव प्रचार एक तरह से पिछले साल से ही शुरू हो गया था जब बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं ने अपना प्रचार शुरू कर दिया था।
१५ मई बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए ही बेहद अहम साबित होने वाली है। दक्षिणी राज्य कर्नाटक में चल रहे चुनावी घमासान के नतीजों का ऐलान इसी दिन होगा। और नतीजा जो भी आये वो आने वाले आम चुनाव के मूड और समय पर बड़ा असर डालेगा।
चुनाव १२ मई को होंगे। चुनावी जंग में २,६५५ उम्मीदवार हैं जिस में २,४३६ पुरुष और २१० महिला उम्मीदवार हैं। इस में से २२४ उम्मीवार बीजेपी से हैं, २२२ कांग्रेस से और २०१ जनता दल सेक्युलर से। इस चुनावी घमासान में दुसरे खिलाडी हैं बसपा जिसके १८ उम्मीदवार हैं, सीपीआई २, सीपीएम १९, एनसीपी १४, ८०० पार्टियाँ जो पंजीकृत नहीं हैं और ११५५ निर्दलीय उम्मीदवार।
कर्नाटक की लड़ाई दरअसल त्रिकोणीय है जिस में कांग्रेस और बीजेपी दो मुख्य खिलाडी हैं जो सत्ता के लिए टकरा रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री और पूर्व मुख्य मंत्री एच. डी. देवेगोड़ा की पार्टी जनता दल सेक्युलर तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। इसका चुनाव में प्रदर्शन इसकी सार्थकता को तय करेगा।
कर्नाटक में मुकाबला त्रिकोणीय है, सत्ता की असल लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी के बीच है।
२०१३ के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को १२२ सीटें मिली थीं जबकि बीजेपी और जद(स) को कुल २२४ सीटों में ४० सीट मिली थी। बाक़ी की २२ सीटें छोटी पार्टियों औए निर्दलीय उम्मीदवारों को मिली थीं। तब कुल २,९४८ उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे।
चुनावी गणित के मुताबिक सिर्फ ३ प्रकार के नतीजे सामने आ सकते हैं। पहली तस्वीर ये है कि सिद्धारमैया की सरकार पिछले साढ़े ३ दशक यानी ३० सालों से ज्यादा से चले आ रहे राजनीतिक चलन को पलट कर सत्ता में वापसी कर ले जहाँ कोई भी पार्टी सत्ताविरोधी लहर को हरा कर वापस नहीं आयी है। दूसरी सूरत ये है कि बीजेपी ५ सालों के बाद सत्ता फिर अपने हाथ में ले ले। और तीसरी स्थिति एक त्रिशंकु विधानसभा जहाँ न कांग्रेस न बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिले और ऐसे में JD(S) किंगमेकर के रोल में हो जिसे दोनों बड़ी पार्टियाँ अपने साथ लाने कि कोशिश में हैं।
कर्नाटक में दलित वोट १८ फीसदी हैं। दलित वोट बैंक पर क़ब्ज़ा करने के लिए देवेगौडा की पार्टी जनता दल सेक्युलर ने बसपा से हाथ मिला लिया है। कुल २२४ असेंबली सीटों में, ३६ आरक्षित सीटें हैं जो अनुसूचित जाती के लिए आरक्षित हैं।
हालाँकि कई पार्टियाँ जैसे की जनता दल यूनाइटेड और NCP भी चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रही हैं लेकिन ये खेल बिगड़ने के अलावा चुनाव पर कोई बड़ा असर नहीं डाल पाएंगी।
कर्नाटक के लिए चुनाव प्रचार एक तरह से पिछले साल से ही शुरू हो गया था जब बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं ने अपना प्रचार शुरू कर दिया था। अब ये अपने पुरे शबाब पर है। प्रधानमंत्री मोदी ने अब तक कई रैलियां की हैं। मई कि पहली तारिख से ही प्रधानमंत्री का लगभग १५ रैलियों को संबोधित करने का कार्यक्रम है। बीजेपी हर बार कि तरह इस बार भी वोटरों को लुभाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के करिश्मे के भरोसे है।
दरअसल राज्य के लिए चुनाव प्रचार एक तरह से पिछले साल ही शुरू हो गया था जब बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं ने अपना चुनाव प्रचार शुरू किया। अब ये प्रचार अपने पुरे शबाब पर है।
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कई बार राज्य के दौरे पर गए हैं और अब चुनाव तक वहीँ रुके हुए हैं बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कई बार राज्य के दौरे पर गए हैं और अब चुनाव तक वहीँ रुके हुए हैं वो रोड शो कर रहे हैं, रैलियां और मीटिंग भी।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी भी लगभग डेढ़ महीने पहले से राज्य का दौरा करने लगे थे। दौरे कि शुरआत उन्होंने बेल्लारी से की जहाँ से सोनिया गाँधी १९९९ में लोकसभा में चुनी गयी थीं। यहीं इसी बेल्लारी में १६,००० करोड़ के उस घोटाले कि भी जड़ है जिस से २००८-१३ में तब कि बीजेपी सरकार कि बदनामी हुई थी। कर्नाटक में कुल ३० जिले हैं जिन में से राहुल गाँधी २७ का दौरा कर चुके हैं। वो सभी क्षेत्र और अहम सीटों का दौरा कर चुके हैं। राहुल गाँधी के कर्नाटका के चुनावी दौरे का सबसे चर्चित पहलु रहा है उनके धार्मिक स्थलों और मंदिरों के दौरे।
देवे गौड़ा और उनके बेटे एच. डी. कुमारस्वामी भी राज्य के दौरे में जुटे हैं ख़ास तौर पर मैसूरू के पुराने इलाके। देवे गौड़ा ने बसपा सुप्रीमो मायावती के साथ दो साझा रैलियां भी की हैं।
इस चुनाव के नतीजे दोनों ही राजनितिक पार्टियों यानी कांग्रेस और बीजेपी और साथ ही JD (S) के लिए बहुत महत्त्व रखते हैं। इसलिए तीनो ही पार्टियाँ जी जान लगा कर हर कोशिश कर रही है वोटरों का भरोसा जीतने का।
सारे विश्लेषण और ओपिनियन पोल बताते हैं कि मुकाबला बहुत कड़ा है। कई ओपिनियन पोल त्रिशंकु विधानसभी कि भविष्यवाणी कर रहे हैं यानी किसी को भी बहुमत नहीं हासिल होगा। और इसी तरह चुनावी विशेषज्ञों कि राय भी बीजेपी या कांग्रेस के पक्ष में बंटी हुई है।
सर्वे और ओपिनियन पोल जो भी कहें कांग्रेस को सत्ताविरोधी लहर से लड़ना है। लेकिन उसके पक्ष में भी कई बातें हैं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने चुनावी पत्ते काफी चालाकी से फेंके हैं वो कांग्रेस को कमज़ोर, दलित और अल्पसंख्यकों की पार्टी के तौर पर पेश करते रहे हैं। लिंगायत को अल्पसंख्यक दर्जा देने कि सिफारिश कर के उन्हों ने कर्नाटक के दबंग लिंगायत समाज को बाँट दिया है जो कुल आबादी का १७ फीसदी हैं। लिंगायत एक बड़ा वोट बैंक हैं और पिछले दो दशक से बीजेपी को वोट देते रहे हैं।
बीजेपी यहाँ चुनाव जीतने के लिए कितनी बेचैन है ये इस बात से भी साफ़ हो गया जब बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येद्द्य्रुप्पा को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया, जिन्हें पहले भ्रष्टाचार के आरोपों में हटाया गया था। इस से भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी की छवि को झटका लगा है।
बीजेपी कांग्रेस से सत्ता छीनने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रही है। उसकी बेचैनी तभी साफ़ हो गयी थी जब बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येद्द्य्रुप्पा को अपने मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया। इन्हें पहले भ्रष्टाचार के आरोपों में हटाया गया था। उनको मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश कर मोदी के भ्रष्टाचार विरोधी होने को झटका लगा है।
बीजेपी ने विवादों में घिरे खनन माफिया जनार्धन रेड्डी के भाई को भी टिकट दिया है। रेड्डी बंधुओं को टिकट दे कर बीजेपी को शर्मिंदगी तो झेलनी ही पड़ी इसलिए अमित शाह को रेड्डी बंधुओं के चुनाव क्षेत्र में चुनावी रैली रद्द करनी पड़ी। कर्नाटक प्रभारी केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर को ये कहना पड़ा कि जनार्धन रेड्डी अपने व्यक्तिगत तौर पर प्रचार कर रहे हैं जिस पर विपक्ष कि तरफ से उनकी काफी फजीहत हुई।
बीजेपी और आरएसएस ने पूरी कोशिश की है कि समाज में पूरा बंटवारा हो सके और करीब १ साल से हिंदुत्व कार्ड पूरी तरह खेल रहे हैं। ख़ास कर के तटीय इलाके में बीजेपी काफी सक्रिय रही है इस उम्मीद में कि वो मुसलमानों का डर दिखा कर ज़्यादातर सीटें जीत लेगी। यहाँ करीब २ दर्जन सीटों की लड़ाई है और पिछले चुनाव में कांग्रेस ने इसमें से ज़्यादातर जीती थीं इस बार बीजेपी को उम्मीद है कि वो पांसा पलट सकती है।
अगर बीजेपी कांग्रेस से सत्ता छीन लेने में कामयाब होती है, तो ये कांग्रेस के लिए बड़ा झटका होगा साथ ही पूरे विपक्ष के लिए। इस हार के साथ कांग्रेस के लोक सभा चुनाव की उम्मीद और धुंधली हो जाएगी। मोदी और शाह की अजेय जोड़ी पर भरोसा और बढेगा और साथ ही मोदी की विश्वसनीयता पर जो भी सवाल खड़े हुए वो सब ख़त्म हो जायेंगे। २०१९ के लिए वो फिर से अकेले स्टार प्रचारक होंगे.. यानि २०१९ का चुनाव फिर पूरा मोदी के नाम पर ही लड़ा जाएगा।
अगर कांग्रेस यहाँ सत्ता बचा पाई तो ये देश के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ होगा। ये कांग्रेस के लिए एक तरह से फिर से उबरने और खड़े होने का मौक़ा होगा और मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में इसी साल नवम्बर दिसम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत कि उम्मीद बढ़ेगी।
बीजेपी की हार और कांग्रेस की जीत विपक्षी एकता को बढ़ावा देगी और बीजेपी की मुश्किल बढ़ाएगी। कई राज्यों में बीजेपी उम्मीदवारों के लिए चुनाव अपने आप जीतना मुश्किल है। और हार के बाद मोदीजी का करिश्मा या उनकी खासियत भी कम हो जायेगी। चुनावी रणनीतिकार के तौर पर अमित शाह की छवि को भी नुकसान पहुंचेगा।
सबसे बड़ी बात कर्नाटक की जीत कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के खाते में जाएगी, इस जीत से उनकी एक नेता के तौर पर छवि मज़बूत होगी, विश्वसनीयता बढ़ेगी और उनके दोस्त और दुश्मन दोनों ही उन्हें पूरी तरह से नेता के तौर पर स्वीकार करेंगे। कर्नाटक कि जीत राहुल गाँधी को वो आत्मविश्वास देगी जिस से वो २०१९ की जंग में बीजेपी और मोदी से टक्कर ले पाने की बेहतर स्थिति में होंगे।
दूसरी तरफ कर्नाटक में बीजेपी की हार मोदी की विशेषताओं को नुकसान पहुंचाएगी और लोकसभा चुनाव की जंग बीजेपी के लिए और कठिन हो जायेगा।
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Satish Misra was Senior Fellow at ORF. He has been a journalist for many years. He has a PhD in International Affairs from Humboldt University ...
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