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आज जब क्षेत्रीय ख़तरों में इज़ाफ़ा हो रहा है, तो जापान ख़ुद को चीन द्वारा पेश की जा रही चुनौतियों के मुक़ाबिल खड़ा करने की कोशिश में जुटा है.
जापान और चीन के रिश्तों के बारे में अक्सर कहा जाता है कि इसमें ‘आर्थिक संबंद ज़्यादा और राजनीति कम’ है. इस वक़्त पूरी दुनिया (जिसका मतलब पश्चिमी देश हैं) का ध्यान यूक्रेन संकट पर लगा हुआ है. इसी दौरान हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन द्वारा आक्रामक गतिविधियों और इकतरफ़ा क़दम उठाने से एक बार फिर इस क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित हो रहा है. पूर्वी चीन सागर में जापान और चीन के बीच सेनकाकू/ डियाओयू द्वीप समूहों को लेकर विवाद लंबे समय से चला आ रहा है और दोनों ही देश इन द्वीप समूहों पर अपना अपना हक़ जताते रहे हैं. इस वक़्त ये द्वीप समूह जापान के नियंत्रण में हैं और उसका कहना है कि अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत ये द्वीप, उसके अधिकार क्षेत्र का अटूट हिस्सा हैं. जापान के मछुआरों को इन द्वीप समूहों के इर्द–गिर्द मछली पकड़ने का अधिकार बिना किसी बाधा के मिला हुआ है. वहीं, चीन के जहाज़ अक्सर इस इलाक़े में गश्त लगाने आते हैं. हालांकि, हाल के वर्षों में चीन ने इन द्वीपों के इर्द–गिर्द अपनी गतिविधियां काफ़ी बढ़ा दी हैं. जापान टाइम्स की एक रिपोर्ट कहती है कि 15 जनवरी को, चीन के चार तटरक्षक जहाज़ों ने सेनकाकू द्वीपों के पास जापान की समुद्री सीमा में घुसपैठ की थी. ये इस साल सेनकाकू के आस–पास चीन की पहली घुसपैठ थी. इस घटना के बाद, सीएनएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल महीने में तोपों से लैस चीनी तटरक्षक जहाज़ों ने सेनकाकू द्वीपों के पास मछली मार रहे जापानी मछुआरों को डरा–धमकाकर भगा दिया था.
पूर्वी चीन सागर में जापान और चीन के बीच सेनकाकू/ डियाओयू द्वीप समूहों को लेकर विवाद लंबे समय से चला आ रहा है और दोनों ही देश इन द्वीप समूहों पर अपना अपना हक़ जताते रहे हैं.
24 मई को जब अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के नेता, टोक्यो में क्वाड शिखर सम्मेलन में हिस्सा ले रहे थे, तब चीन और रूस के छह सामरिक बमवर्षक जहाज़ों ने अपनी ताक़त की नुमाइश करते हुए जापान सागर के ऊपर से उड़ान भरी थी. क्वाड के बारे में अक्सर ये कहा जाता है कि ये चीन पर लगाम लगाने के लिए बना है और चीन के साथ साथ रूस भी क्वाड का कट्टर आलोचक है. चीन तो चार देशों के इस समूह को ‘एशियाई नेटो’ कहकर इसकी आलोचना करता रहा है. चीन के रक्षा मंत्री नोबुओ किशी ने शांग्री–ला डायलॉग के दौरान, चीन के रक्षा मंत्री वेई फेंघे के साथ मुलाक़ात में इस घटना को लेकर ‘गंभीर चिंता’ ज़ाहिर की थी और इसे ‘जापान को डराने के लिए उठाया गया भड़काऊ और आक्रामक कदम’ क़रार दिया था. जापान के रक्षा मंत्री ने चीन से कहा था कि चूंकि चीन, सुरक्षा परिषद का एक स्थायी सदस्य है, तो उसे ज़िम्मेदारी भरा बर्ताव करना चाहिए. नोबुओ किशी ने चीन के रक्षा मंत्री से ये भी कहा कि, ‘चीन को बहुत संयमित बर्ताव करना चाहिए और सुरक्षा के क्षेत्रीय ढांचे की स्थिति में इकतरफ़ा बदलाव की कोशिश नहीं करनी चाहिए’. जापानी रक्षा मंत्री का ये बयान सेनकाकू द्वीप समूह के इर्द–गिर्द चीन की घुसपैठ के हवाले से दिया गया था. इत्तिफ़ाक़ से 2019 के बाद, जापान और चीन के रक्षा मंत्रियों की ये पहली आमने–सामने की मुलाक़ात थी.
लेकिन हिंद प्रशांत में चीन और जापान के बीच इस वक़्त टकराव का सबसे बड़ा मुद्दा शायद ताइवान का विवाद है. ख़ास तौर से तब और जब यूक्रेन पर रूस ने हमला किया है. जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने शांग्री–ला डायलॉग में मुख्य भाषण देते हुए रूस की हरकतों के वैश्विक सुरक्षा पर प्रभाव के बारे में विस्तार से चर्चा की थी. जापान के प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके देश के आस–पास सुरक्षा का माहौल ‘दिनों–दिन गंभीर’ होता जा रहा है. फुमियो किशिदा ने चेतावनी दी कि ‘आज जो स्थिति यूक्रेन की है, कल वही पूर्वी एशिया में भी पैदा हो सकती है.’ मई महीने में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बयान दिया था कि अगर चीन, ताइवान पर हमला करके उस पर ज़बरदस्ती क़ब्ज़ा करने की कोशिश करता है, तो अमेरिका, ताइवान की हिफ़ाज़त के लिए वचनबद्ध है. बाइडेन के इस बयान को लेकर काफ़ी विवाद हुआ था. चीन ने अमेरिका को चेतावनी भी दी थी कि वो ताइवान के मसले में दख़लंदाज़ी की कोशिश न करे, ‘वरना उसे गंभीर अंजाम भुगतना पड़ सकता है’. चीन ने ये भी कहा था कि अगर ताइवान ने आज़ाद होने की कोशिश की, तो चीन इसके ख़िलाफ़ जंग के लिए भी तैयार है. ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच किसी भी संभावित युद्ध की सूरत में जापान अपने आप शामिल हो जाएगा, क्योंकि वो पूर्वी एशिया में अमेरिका का अहम साझीदार है और उसके ताइवान से भी गहरे ताल्लुक़ हैं.
जापान के उप प्रधानमंत्री ने पांच जुलाई 2021 को कहा था कि, ‘अगर चीन, ताइवान पर हमला करता है तो जापान उसकी रक्षा करेगा’. जापान के उप-प्रधानमंत्री का ये बयान दिखाता है कि ताइवान को लेकर जापान के रुख़ में सख़्ती आ रही है.
आधिकारिक रूप से, जापान ने कभी भी ताइवान की रक्षा के लिए खुलकर प्रतिबद्धता नहीं जताई है और न ही कभी ये कहा है कि संघर्ष की सूरत में ताइवान को लेकर किसी सैन्य अभियान में वो अमेरिका की मदद करेगा. हालांकि, असामान्य रूप से एक सख़्त बयान में जापान के उप प्रधानमंत्री ने पांच जुलाई 2021 को कहा था कि, ‘अगर चीन, ताइवान पर हमला करता है तो जापान उसकी रक्षा करेगा’. जापान के उप-प्रधानमंत्री का ये बयान दिखाता है कि ताइवान को लेकर जापान के रुख़ में सख़्ती आ रही है. लेकिन हो सकता है कि दुनिया के हालिया भू-राजनीतिक हालात ने जापान को अपनी ताइवान संबंधी रणनीति पर फिर से विचार करने को मजबूर किया हो. यूक्रेन संकट के अलावा, अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद वहां जो हालात पैदा हुए, उनसे निश्चित रूप से अमेरिका पर जापान का भरोसा कमज़ोर ही हुआ है. इसके अलावा, जापान अपने शांति के हामी संविधान से भी बंधा हुआ है, जो उसे अपने आपको अधिक हथियारबंद करने से रोकता है. जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने देश के संविधान में बदलाव को अपना बड़ा राजनीतिक एजेंडा बनाया था, जिससे उनका देश दुनिया के सामने खड़े मौजूदा भू–राजनीतिक ख़तरों से निपटने के लिए ख़ुद को तैयार कर सके. हालांकि, शांति का ख़याल जापान के समाज के ज़हन में गहरी पैठ बनाए हुए है और इससे छेड़छाड़ करने की किसी भी कोशिश को क़ानूनी और राजनीतिक झंझटों का सामना करना पड़ सकता है.
ऐसे में चीन के ख़िलाफ़ अपने सामरिक और सुरक्षा संबंधी हितों की रक्षा के लिए जापान के पास क्या विकल्प मौजूद हैं? इसका सीधा सा जवाब ये हो सकता है कि जापान, क्वाड को मज़बूत बनाए. लेकिन, यहां पर बड़ा सवाल है कि अगर चीन, ताक़त के बल पर ताइवान पर क़ब्ज़ा जमाने की कोशिश करता है, तो आख़िर क्वाड इसे रोकने में किस तरह की भूमिका अदा करेगा. न तो भारत और न ही ऑस्ट्रेलिया चाहेंगे कि ताइवान के मुद्दे पर उनका चीन से सैन्य संघर्ष छिड़े. भारत पहले ही हिमालय की चोटियों पर चीन की घुसपैठ से जूझ रहा है, जिसके चलते दोनों देशों के सैनिकों के बीच गलवान घाटी में हिंसक संघर्ष जैसी घटना हुई थी, जो चीन और भारत के बीच कई दशकों के बाद हुई हिंसक सैन्य झड़प थी. उसके बाद से दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच कई दौर की बात हो चुकी है. मगर इसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका है. उधर ऑस्ट्रेलिया इस वक़्त प्रशांत महासागर में स्थित द्वीपों पर अपना शिकंजा कसने की चीन की कोशिशों से जूझ रहा है, जहां पर चीन इन छोटे द्वीपीय देशों को अपने प्रभाव में लाने के लिए पूरी ताक़त लगा रहा है. दुनिया में सबसे बड़ी सैन्य महाशक्ति अमेरिका, जो जापान की सुरक्षा की गारंटी भी लेता है, वो भी अपना पूरा ध्यान यूक्रेन के युद्ध में लगाए हुए है और वो अपने ऊपर और बोझ डाला जाना पसंद नहीं करेगा. इसके साथ साथ, अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी, अमेरिकी जनता के लिए एक बड़ा जज़्बाती मुद्दा था. इसीलिए, अमेरिकी जनता को किसी नए संघर्ष में उलझने के लिए राज़ी कर पाना किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए आसान नहीं होगा.
आक्रामक चीन द्वारा पेश की जा रही चुनौतियों से अपनी रक्षा करने के लिए जापान को अपने ऊपर ही निर्भर रहना होगा.
तो कुल मिलाकर, आक्रामक चीन द्वारा पेश की जा रही चुनौतियों से अपनी रक्षा करने के लिए जापान को अपने ऊपर ही निर्भर रहना होगा. हाल ही में टोक्यो में जापान और फिलिपींस ने अपनी पहली 2+2 वार्ता की. फिलीपींस, नौवां ऐसा देश है जिसके साथ जापान इस तरह की बातचीत कर रहा है. इसके साथ साथ जापान को चाहिए कि वो अमेरिका और दक्षिण कोरिया के साथ मिलकर तीन देशों के समूह को मज़बूत बनाए. हाल ही जब सिंगापुर में शांग्री–ला डायलॉग हुआ था, तो वहां तीनों देशों के रक्षा मंत्रियों की बैठक हुई थी. इस दौरान तीनों देशों ने दबे–ढंके शब्दों में चीन पर तंज़ कसा था और साझा बयान में ये बात सामने आई थी कि तीनों देश एक बार फिर से अपना साझा सैनिक अभ्यास शुरू करेंगे, जो 2017 से ही अटके हुए हैं. आख़िर में, जैसी की शिंजो आबे ने कल्पना की थी, उसके तहत भारत के साथ जापान के रिश्ते बेहद अहम होंगे, क्योंकि दोनों ही देश चीन की हरकतों के शिकार रहे हैं. इस समय जापान और भारत के सामरिक संबंध अपने शीर्ष पर हैं. जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच इसी साल दो शिखर वार्ताएं हो चुकी हैं.
इसके अलावा, ऐसी भी चर्चाएं चल रही हैं कि जापान अपने रक्षा बजट में भी इज़ाफ़ा कर सकता है. जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने साल 2022 तक देश के सामने नई सुरक्षा रणनीति पेश करने का वादा किया है. शांग्री–ला डायलॉग में अपने संबोधन में किशिदा ने कहा था कि, ‘मैं अगले पांच वर्षों में जापान की रक्षा क्षमताओं को बुनियादी तौर पर और मज़बूत बनाने को लेकर प्रतिबद्ध हूं और इस काम के लिए ज़रूरी रक्षा बजट में बड़े इज़ाफ़े पर भी सहमति हासिल करूंगा’. जापान के प्रधानमंत्री ने ये भी कहा कि वो जापान के लिए ‘पलटवार कर पाने की क्षमता’ जुटाने की भी कोशिश करेंगे. बहुत से पर्यवेक्षकों का मानना है कि ये 2022 में जापान की आर्थिक और वित्तीय नीति के दिशा निर्देशों के लिहाज़ से बहुत कड़ा रुख़ है, जिसकी तुलना नेटो के उस मानक से की जाती है, जिसके तहत नेटो देशों के अपना रक्षा बजट बढ़ाकर, GDP के 2 प्रतिशत तक करने की अपेक्षा की जाती है. प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की कैबिनेट के विशेष सलाहकार कुनी मियाके कहते हैं कि, ‘अब समय आ गया है कि जापान, नेटो के रक्षा बजट को GDP का 2 प्रतिशत करने का लक्ष्य पूरा करे, फिर चाहे ये किसी को पसंद आए या नहीं.’
प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की कैबिनेट के विशेष सलाहकार कुनी मियाके कहते हैं कि, ‘अब समय आ गया है कि जापान, नेटो के रक्षा बजट को GDP का 2 प्रतिशत करने का लक्ष्य पूरा करे, फिर चाहे ये किसी को पसंद आए या नहीं.’
अब ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि जापान के प्रधानमंत्री अपने वादों को किस हद तक हक़ीक़त बना पाते हैं. दुनिया में भू–राजनीतिक तनाव बढ़ने तो तय ही हैं क्योंकि चीन अपने रुख़ में किसी तरह के बदलाव का इशारा नहीं दे रहा है. यूक्रेन पर रूस के हमले से चीन के हौसले बुलंद ही हुए हैं. हालांकि, रूस ऐसा न भी करता तो चीन का रुख़ ऐसा ही होता. चीन का मुक़ाबला करने के लिए जापान जो भी क़दम उठाएगा, उसका इस क्षेत्र के सुरक्षा ढांचे पर दूरगामी असर पड़ेगा. अब गेंद जापान के पाले में है.
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Dr. Amlan Dutta is a Junior Fellow at the Prime Minister's Museum and Library (PMML), Teen Murti House, New Delhi, where he is working on ...
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