सितंबर 2021 में जापान ने अपनी डिजिटल नीति के ज़रिए टोक्यो में नई डिजिटल एजेंसी की शुरुआत की. वैसे तो जापान ख़ुद को डिजिटल रूप में बदलने के लिए क़दम उठा रहा है लेकिन हमें ये समझने की कोशिश करनी चाहिए कि जापान डिजिटल मामले में पिछड़ा देश क्यों बना हुआ है, वो भी तब जब तकनीकी रूप से जापान दुनिया के दूसरे देशों के मुक़ाबले साफ़ तौर पर ज़्यादा आधुनिक है. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के डिजिटल अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण 2020 के मुताबिक़ जापान ऑनलाइन प्रक्रिया के मामले में 31 देशों में सबसे पीछे है. यूरोप के देशों जैसे एस्टोनिया, डेनमार्क और आइसलैंड, जहां क़रीब 70 प्रतिशत आबादी सरकारी कार्यालयों में डिजिटल एप्लीकेशन का इस्तेमाल करती है, के मुक़ाबले जापान में सिर्फ़ 5.4 प्रतिशत लोग डिजिटल एप्लीकेशन का इस्तेमाल करते हैं. जापान ने सूचना तकनीक के क्षेत्र में सुधार की कोशिश के तहत 2001 में ई-गवर्नमेंट रणनीति की शुरुआत की. लेकिन दो दशकों के बाद भी काग़ज़ आधारित प्रशासनिक सेवाएं और फैक्स का इस्तेमाल व्यापक बना हुआ है.
कोविड-19 से जापान का डिजिटल पिछड़ापन उजागर
जापान की सरकार महामारी के दौरान पिछले साल प्रत्येक व्यक्ति को 1,00,000 येन नकद पहुंचाने में देरी की वजह से लोगों को राहत पहुंचाने में न सिर्फ़ नाकाम रही बल्कि कोविड-19 के कॉन्टैक्ट ट्रैकिंग एप- कॉन्टैक्ट कन्फर्मिंग एप्लीकेशन (सीओसीओए)- में बड़ी दिक़्क़तों की वजह से उसे आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा. अच्छा कहें या बुरा लेकिन कोविड-19 महामारी ने जापान के डिजिटल पिछड़ेपन को उजागर कर दिया. टोक्यो के थिंक टैंक एशिया-पैसिफिक इनिशिएटिव (एपीआई) ने विशेषज्ञों के एक सम्मेलन में कोविड-19 को लेकर जापान के जवाब को “डिजिटल हार” बताया. इसे देखते हुए इस साल मई में जापान की संसद डायट ने डिजिटल एजेंसी क़ानून को पारित किया ताकि डिजिटल एजेंसी नाम की एक नई सरकारी संस्था को स्थापित किया जा सके जो जापान की डिजिटलाइज़ेशन की महत्वाकांक्षा को पूरा कर सके. इस साल सितंबर में काम-काज शुरू करने वाली डिजिटल एजेंसी में 600 अधिकारी शामिल हैं जिनमें एक-तिहाई निजी क्षेत्र के हैं. अधिकारियों की ये संख्या पिछली संस्था आईटी स्ट्रैटजिक हेडक्वार्टर के मुक़ाबले क़रीब चार गुना ज़्यादा है. अगर तुलना की जाए तो 2016 में सिंगापुर की सरकारी तकनीकी एजेंसी की शुरुआत के समय तीन गुना ज़्यादा यानी 1,800 अधिकारी थे.
जापान ऑनलाइन प्रक्रिया के मामले में 31 देशों में सबसे पीछे है. यूरोप के देशों जैसे एस्टोनिया, डेनमार्क और आइसलैंड, जहां क़रीब 70 प्रतिशत आबादी सरकारी कार्यालयों में डिजिटल एप्लीकेशन का इस्तेमाल करती है
डिजिटल एजेंसी तत्कालीन प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा की पसंदीदा परियोजना थी. लेकिन एजेंसी के द्वारा कोई ख़ास नतीजा देने के पहले ही पीएम सुगा के इस्तीफ़े के अचानक ऐलान के बाद इस विशाल परियोजना के लिए बना सरकारी नेतृत्व जांच के दायरे में है. नये नियुक्त प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा के नेतृत्व में करेन माकिशिमा फिलहाल डिजिटल एजेंसी के प्रमुख हैं. दिलचस्प बात ये है कि किशिदा, जिन्होंने 31 अक्टूबर को समय से पूर्व हुए आम चुनाव में एलडीपी का नेतृत्व किया था, की औसत अप्रूवल रेटिंग 50 प्रतिशत से कुछ ही ज़्यादा है यानी अपने पूर्ववर्ती से काफ़ी कम. संसद के ऊपरी सदन के लिए दो उपचुनावों में से एक में हार के बाद किशिदा के नेतृत्व के लिए हनीमून पीरियड समय से पहले ही ख़त्म हो गया है. लेकिन चुनाव से पूर्व की बहस और पार्टी के घोषणापत्र में डिजिटल एजेंसी को लेकर किशिदा की दूरदर्शिता पर काफ़ी कम चर्चा हुई थी. जहां फूमियो के ‘नये पूंजीवाद’ की महत्वाकांक्षा ‘आबेनॉमिक्स’ से बदल गई है और मीडिया की कवरेज में कोरोना वायरस से बेहतर ढंग से निपटने को तरजीह मिली है लेकिन सक्रिय डिजिटलाइज़ेशन के ज़रिए इन उद्देश्यों को हासिल करने के तरीक़े पर काफ़ी कम चर्चा हुई है. चूंकि किसी भी बड़ी पार्टी ने एजेंसी के इर्द-गिर्द बातचीत शुरू नहीं की है, ऐसे में दूसरे नीतिगत फ़ैसलों में डिजिटलाइज़ेशन को कम प्राथमिकता मिलने को माना जा सकना आसान है.
अब डिजिटल एजेंसी के काम-काज को समझने के साथ-साथ ये जानना भी ज़रूरी है कि क्यों वर्षों से जापान की सरकार ने डिजिटल सुधार को रोक कर रखा है. दूसरे अनगिनत काम-काज के साथ एजेंसी विदेश की यात्रा पर जाने वाले लोगों के लिए वैक्सीन पासपोर्ट को डिजिटलाइज़ करने वाली है. साथ ही एक सरकारी क्लाउड प्लैटफॉर्म भी शुरू करने वाली है जो सभी स्थानीय सरकारी विभागों को एकजुट कर एक मानक आईटी सिस्टम शुरू करेगा. ये विभाग फिलहाल अलग-अलग एप्लीकेशन चला रहे हैं. एक इलेक्ट्रॉनिक संपर्क सिस्टम को आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने डिजिटल हस्ताक्षर की शुरुआत की है जिसके ज़रिए बेहद पुराने हैंको मुहर की परंपरा को ख़त्म किया जाएगा. नई डिजिटल एजेंसी को “माई नंबर” व्यक्तिगत पहचान कार्ड के इस्तेमाल को और बढ़ावा देने का काम
भी सौंपा गया है. डिजिटल एजेंसी के लिए निराशा की बात ये है कि इस कार्ड को जनवरी 2016 में शुरू किया गया था लेकिन आंतरिक मामलों और संचार मंत्रालय के मुताबिक़ 26.3 प्रतिशत आबादी ने ही इस कार्ड को अपनाया है (1 मार्च 2021 के आंकड़े के मुताबिक़). अब ये एजेंसी के अधिकार क्षेत्र में है कि वो कार्ड को लेकर जागरुकता की कमी और प्राइवेसी को लेकर चिंताओं का समाधान करे.
डिजिटल एजेंसी तत्कालीन प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा की पसंदीदा परियोजना थी. लेकिन एजेंसी के द्वारा कोई ख़ास नतीजा देने के पहले ही पीएम सुगा के इस्तीफ़े के अचानक ऐलान के बाद इस विशाल परियोजना के लिए बना सरकारी नेतृत्व जांच के दायरे में है.
लालफीताशाही?
जापान में इन सुधारों को लाने में देरी की वजह समाज में कई तरह के टकराव थे. सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) से निचली सदन के सांसद और सूचना तकनीक नीति के प्रभार वाले कैबिनेट कार्यालय में पूर्व राज्य मंत्री मसाकी ताइरा कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि तकनीक में हम पीछे थे. इसकी वजह संरचनात्मक समस्याएं थीं.” जापान की परंपरागत विचारों और जोखिम लेने में पीछे रहने वाली नौकरशाही ने वर्षों से सिस्टम के भीतर डिजिटल बदलाव का विरोध किया. मीजी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और लोक नीति के विशेषज्ञ हिदेअकी तनाका कहते हैं कि जापान के नौकरशाह ऐसा जोखिम लेने से परहेज करते हैं जो उनके करियर पर असर डाल सकता है. सुरक्षित ढंग से काम करना यहां की परंपरा बन गई है और इसका नतीजा संरचनात्मक अकड़ के रूप में निकला है.
नौकरशाही के कारण मंत्रालयों में तालमेल की कमी
इसके अलावा हर दो साल पर पद को बदलने की प्रणाली ने विशेषज्ञता हासिल करने में बाधाएं खड़ी की हैं. कई नौकरशाह जो डिजिटल ज्ञान हासिल करते में सफल रहते हैं, उनका तबादला दूसरे विभाग में कर दिया जाता है. फिर शुरुआत से सीखना उन्हें सामान्य जानकारी वाला बना देता है. ये ज़िक्र करना भी ज़रूरी है कि नौकरशाही की सीधी संरचना ने कई मंत्रालयों को एक-दूसरे के लिए बेमेल बना दिया है. डिजिटल एजेंसी के सामने अब चुनौती प्राइवेट सेक्टर के भागीदारों के साथ बातचीत करने और परंपरागत नौकरशाही वाली संस्कृति से दूर होने की है. वैसे तो एजेंसी ने कई अन्य मंत्रालयों और एजेंसियों को प्राइवेट सेक्टर से कर्मचारियों को नौकरी पर रखने के लिए प्रेरित किया है लेकिन प्रभावशाली उच्च पदों पर अभी भी पुरानी नौकरशाही प्रणाली से जुड़े सिविल सर्वेंट बैठे हुए हैं.
एक इलेक्ट्रॉनिक संपर्क सिस्टम को आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने डिजिटल हस्ताक्षर की शुरुआत की है जिसके ज़रिए बेहद पुराने हैंको मुहर की परंपरा को ख़त्म किया जाएगा.
नौकरशाही के अलावा कई हित समूह और यूनियनों ने ऐतिहासिक रूप से जापान में डिजिटलाइज़ेशन नीति का विरोध किया है. महामारी ने जापान के हेल्थकेयर सेक्टर में बड़े झटकों का पर्दाफ़ाश किया. जापान मेडिकल एसोसिएशन (जेएमए)- एलडीपी का मज़बूत सहयोगी और ताक़तवर हित समूह- ने सक्रिय रूप से टेलीमेडिसिन की ओर स्थायी बदलाव का विरोध किया है. उसका मानना है कि सरकार की तरफ़ से टेलीमेडिसिन पर ज़ोर सामान्य दवा दुकानों के पक्ष में होगा. उनके दबाव की वजह से स्वास्थ्य, श्रम और कल्याण मंत्रालय (एमएचएलडब्ल्यू) ऑनलाइन मेडिकल सेवाओं को बढ़ावा देने में हिचकिचाता रहा है. कोविड-19 महामारी ने कुछ नियमों को आसान बनाया लेकिन बड़ी राजनीतिक बाधाएं अभी भी मौजूद हैं. न सिर्फ़ प्रतिस्पर्धा का डर है बल्कि ये भी दलील दी जा सकती है कि जेएमए पीढ़ियों से विरोध करता रहा है. चूंकि जापान के क़रीब आधे डॉक्टर 50 वर्ष से ज़्यादा उम्र के हैं, ऐसे में आधुनिक तकनीक के मामले में अनाड़ी एक बुजुर्ग पीढ़ी ने टेलीमेडिसिन का विरोध किया. महामारी के बाद के युग में डिजिटल एजेंसी के लिए ये और भी ज़रूरी है कि रूढ़िवादी यूनियनों को चुनौती और स्वास्थ्य सेक्टर के भीतर सुधार को बढ़ावा दे.
नौकरशाही के अलावा कई हित समूह और यूनियनों ने ऐतिहासिक रूप से जापान में डिजिटलाइज़ेशन नीति का विरोध किया है. महामारी ने जापान के हेल्थकेयर सेक्टर में बड़े झटकों का पर्दाफ़ाश किया.
स्वाभाविक तौर पर आने वाले वर्षों में एजेंसी के लिए अनगिनत बाधाएं होंगी. यूनियनों और रूढ़िवादी गुटों के दबाव की वजह से सरकार की तरफ़ से पहल में कमी डिजिटल एजेंसी के बेरोकटोक काम-काज पर असर डाल सकती है. जैसा कि क्षेत्रीय पड़ोसियों दक्षिण कोरिया और सिंगापुर के मामले में देखा गया था, प्रभावशाली नीतियों को लाने में सर्वोच्च निर्णायक नेतृत्व की सीधी भागीदारी बेहद ज़रूरी है. ऐसा करने के लिए राजनीतिक स्थायित्व होना चाहिए. इस मामले में प्रगति के लिए मज़बूत नेता की ज़रूरत पूर्व शर्त है. एजेंसी की सफलता सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के सहयोग पर भी काफ़ी हद तक निर्भर है. व्यवसाय के लिए अवसरों का अनंत आकाश निजी क्षेत्र को सरकार की पहल में सहयोग के लिए और बढ़ावा देगा. एजेंसी को निजता की दुविधा और नागरिक स्वतंत्रता और सूचनाओं के आदान-प्रदान पर बहस का सामना करना पड़ेगा. इसलिए ये ज़रूरी है कि नागरिक स्वतंत्रता के पैरोकारों और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों को एक मेज पर बैठाकर चर्चा की जाए.
सबसे बढ़कर डिजिटल एजेंसी के लिए ये दिखाना ज़रूरी है कि अपने नीतिगत फ़ैसलों को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए वो अपने काम-काज में बदलाव, ग़लतियों को सुधारने और दलीलों के आधार पर काम करने को तैयार है.
सबसे बढ़कर डिजिटल एजेंसी के लिए ये दिखाना ज़रूरी है कि अपने नीतिगत फ़ैसलों को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए वो अपने काम-काज में बदलाव, ग़लतियों को सुधारने और दलीलों के आधार पर काम करने को तैयार है. इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के साथ सहयोग की भी ज़रूरत है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि डिजिटलाइज़ेशन की तरफ़ जापान का रास्ता दूसरे देशों के साथ जुड़ा हुआ है. एस्टोनिया और भारत जैसे देशों के साथ साझेदारी, जिन्होंने राष्ट्रीय सत्यापन प्रणाली में भारी निवेश किया है, की कोशिश करनी चाहिए.
एजेंसी की चुनौती
डिजिटल सुधार जापान को न सिर्फ़ श्रमिकों की कमी से निपटने में मदद करेगा बल्कि उत्पादकता बढ़ाने, उम्रदराज आबादी का ध्यान रखने और जनसांख्यिकीय परिवर्तन के मामले में भी सहायता करेगा. डिजिटल सुधार इनोवेशन को प्रोत्साहन और श्रम में महिलाओं की भागीदारी को भी बढ़ावा देगा. एजेंसी का अगला क़दम और उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती न सिर्फ़ पुरानी तकनीक से पार पाना है बल्कि इस बदलाव के पक्ष में सरकारी अधिकारियों की ज़िद्दी सोच को बदलना भी है. अगर दुनिया में सबसे ज़्यादा डिजिटल देश एस्टोनिया के उदाहरण का पालन करना है तो लोगों के लिए ज़रूरी है कि वो सिस्टम और सरकार के इरादों पर भरोसा करें. जैसे ही परंपरागत प्रणाली को बदला जाएगा, वैसे ही नये सिस्टम के काम करने के लिए अच्छे तौर-तरीक़े की स्थापना की ज़रूरत है. उम्मीद की जा सकती है कि महामारी के द्वारा उजागर व्यवस्थात्मक कमियां और पिछड़ापन डिजिटल एजेंसी के लिए वो जगह बनाएंगे जिससे देश के भीतर डिजिटल माहौल को सक्रिय रूप से प्रोत्साहन दिया जा सके. मौजूदा हालात के मुताबिक़ घरेलू राजनीति जापान की डिजिटल एजेंसी के लिए सफलता या मिथ्या बनने में निर्णायक साबित होगी.
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