Author : K. V. Kesavan

Published on Mar 16, 2021 Updated 0 Hours ago

प्रधानमंत्री सुगा ख़ुद को कठिन दुविधा में पा रहे हैं. वो देश की अर्थव्यवस्था और सार्वजनिक स्वास्थ्य की ज़रूरतों के बीच व्यावहारिक संतुलन स्थापित करने में संघर्ष कर रहे हैं.

जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा के सामने है कठिन चुनौती

जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा को प्रधानमंत्री बने क़रीब छह महीने हो चुके हैं. जापान के लोगों के बीच उनके प्रशासन को लेकर राय तीखे तौर पर बंटी हुई है. सितंबर 2020 में उन्होंने ओपिनियन पोल में 70% अप्रूवल रेटिंग के साथ अच्छी शुरुआत की थी. लेकिन हाल के हफ़्तों में अलग-अलग मीडिया एजेंसियों द्वारा आयोजित ओपिनियन सर्वे से पता चलता है कि देश में कोविड-19 के मामलों की “तीसरी लहर” के बीच उनकी लोकप्रियता तेज़ी से गिरकर क़रीब 40% पर पहुंच गई है. जापान के लोगों की बड़ी संख्या मानती है कि तेज़ी से फैल रही महामारी को लेकर उनका प्रबंधन बहुत धीमा और निराशाजनक रहा है.

प्रधानमंत्री सुगा जिस सबसे बड़ी बाधा का सामने कर रहे हैं वो ये है कि पार्टी अध्यक्ष के तौर पर उनका कार्यकाल सिर्फ़ एक साल के लिए है जो सितंबर 2021 में ख़त्म हो रहा है. इसका मतलब ये है कि उनके पास अब सिर्फ़ छह महीने बचे हैं और उन्हें जापान के मतदाताओं को दिखाने के लिए एक असरदार नेता के तौर पर अपनी छवि बनानी है जिसने महत्वपूर्ण कामयाबी हासिल की है.

सुगा ख़ुद मान चुके हैं कि विदेश नीति उनकी ख़ासियत नहीं है लेकिन अपने शुरुआती क़दम के ज़रिए वो मज़बूती से जता चुके हैं कि वो अपने पूर्ववर्ती शिंज़ो आबे द्वारा अपनाई गई नीतियों को जारी रखेंगे

इस बात को मानना पड़ेगा कि जापान की संसद में अपने पहले बड़े नीतिगत भाषण में उन्होंने सुधारों के ज़रिये कठिन प्रशासनिक ढांचे में बदलाव के अपने निश्चय पर ज़ोर दिया था. उन्होंने बड़े पैमाने पर डिजिटलाइज़ेशन शुरू करने और हेन्को मुहर सिस्टम जैसी कुछ पुरानी पद्धतियों को पूरी तरह ख़त्म करने के महत्व पर भी ज़ोर दिया. डिजिटलाइज़ेशन के लिए एक केंद्रीय एजेंसी स्थापित करने का फ़ैसला करने के बाद उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेता तारो कोनो को प्रशासनिक सुधार के प्रभारी के तौर पर नियुक्त किया. उन्होंने ये भरोसा भी दिया कि वो अपने से ठीक पहले के प्रधानमंत्री की आबेनॉमिक्स रणनीति को अंजाम देकर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण करेंगे.

विदेश नीति में कमज़ोर

हालांकि, सुगा ख़ुद मान चुके हैं कि विदेश नीति उनकी ख़ासियत नहीं है लेकिन अपने शुरुआती क़दम के ज़रिए वो मज़बूती से जता चुके हैं कि वो अपने पूर्ववर्ती शिंज़ो आबे द्वारा अपनाई गई नीतियों को जारी रखेंगे. उन्होंने टोक्यो में चार क्वॉड देशों के विदेश मंत्रियों की दूसरी बैठक की मेज़बानी करके अपने ‘मुक्त और खुले इंडो-पैसिफिक’ के दृष्टिकोण के महत्व पर ज़ोर दिया. ‘मुक्त और खुले इंडो-पैसिफिक दृष्टिकोण’ को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने अपनी पहली आधिकारिक यात्रा के तौर पर वियतनाम और इंडोनेशिया को चुना. इस दौरान उन्होंने आसियान नेताओं को एक खुले और नियम आधारित इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का निर्माण करने की दिशा में बढ़ने की ज़रूरत के बारे में समझाया.

कोविड-19 और अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की वजह से प्रधानमंत्री सुगा अपने ज़्यादातर पूर्ववर्तियों की तरह अमेरिका की परंपरागत यात्रा नहीं कर सके. लेकिन अब वो इस साल अप्रैल में वॉशिंगटन यात्रा की तैयारी कर रहे हैं. अमेरिका का नया डेमोक्रेटिक प्रशासन चीन को लेकर क्या दृष्टिकोण अपनाएगा, ये जापान में बड़ी दिलचस्पी का विषय है. हाल के हफ़्तों में इस बात के सबूत मिले हैं कि जापान के साथ संबंधों को बेहतर करने में चीन ने दिलचस्पी दिखाई है. चीन के लोग मानते हैं कि इस समय जापान के साथ अच्छे समीकरण स्थापित करना बाइडेन प्रशासन के साथ लेन-देन करने में उपयोगी साबित होगा. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने पिछले साल नवंबर के आख़िरी हफ़्ते में टोक्यो का दौरा किया. उनके दौरे का मक़सद सुगा प्रशासन के साथ संबंधों को बेहतर करना था. दोनों देशों के कारोबारियों के एक-दूसरे के देश के दौरे को लेकर एक समझौते को फिर से शुरू करने में वांग कामयाब रहे. दोनों देश इस बात के लिए भी तैयार हो गए कि जापान का एक उच्चस्तरीय आर्थिक प्रतिनिधिमंडल चीन का दौरा करेगा जो भविष्य के लिए अपनी योजनाओं का खाका तैयार करेगा.

आबे की तरह प्रधानमंत्री सुगा भी द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर रखने में दिलचस्पी रखते हैं. ऐसे में वो अमेरिका और चीन के साथ जापान के संबंधों के मामले में नाज़ुक संतुलन को बरकरार रखेंगे. ये ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि वांग के साथ अपनी बैठक में सुगा ने सेनकाकु द्वीप के इर्द-गिर्द जापान के समुद्री क्षेत्र में चीन की नौसेना के जहाज़ों द्वारा घुसपैठ के बढ़ते मामलों को लेकर अपनी चिंता के बारे में बताया. लेकिन सुगा की चिंताओं का समाधान तो छोड़िए वांग ने द्वीप पर चीन के दावे को दोहरा दिया.

सुगा की अपनी पार्टी में भी कई लोग इस बात को लेकर निराश थे कि सुगा लोगों की सेहत से ज़्यादा आर्थिक रिकवरी को ज़्यादा तरजीह देकर महामारी के संकट का असरदार ढंग से समाधान नहीं कर रहे हैं. 

इस मामले में जापान के रुख़ पर अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन की ओर से साफ़-तौर पर अमेरिका का समर्थन दोहराने के बाद इस बात की संभावना बेहद कम है कि चीन-जापान के बीच संबंधों में तनाव जल्दी कम होगा. महत्वपूर्ण बात ये है कि जापान की सरकार ने कोविड-19 की वजह से अप्रैल 2020 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के जापान दौरे के टलने का सवाल नहीं उठाया.

कोरोना वायरस की तीसरी लहर

लेकिन प्रधानमंत्री सुगा के लिए सबसे बड़ी चुनौती देश में कोरोना वायरस के बढ़ते मामले हैं. जापान में इस समय कोरोना वायरस के मामलों को “तीसरी लहर” कहा जा रहा है. मौजूदा लहर पहले की दो लहर, जो अप्रैल और अगस्त में आए थे, से बढ़कर है. जिस वक़्त सुगा ने प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली थी, उस वक़्त कोविड-19 के हालात नियंत्रण में लग रहे थे लेकिन अक्टूबर में तीसरी लहर शुरू हो गई. इस लहर के बाद सुगा ने राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में तेज़ी लाने के लिए घरेलू यात्रा को प्रोत्साहन देने की बड़ी योजना का मज़बूती से समर्थन किया. उन्होंने ज़ोर लगाकर “गो टू ट्रैवल” योजना को बढ़ावा दिया जिसमें यात्रा, ठहरने और खाने की व्यवस्था शामिल थी. इसके लिए खुलकर सब्सिडी का विस्तार किया. आबे के कार्यकाल के दौरान जुलाई 2020 में शुरू इस योजना के वक़्त सुगा मुख्य कैबिनेट सचिव थे. सुगा इस कार्यक्रम के बड़े समर्थक थे. आबे की जगह प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने अर्थव्यवस्था में तेज़ी लाने के लिए इस योजना का नेतृत्व करना जारी रखा.

जैसे-जैसे इस योजना में तेज़ी आई, इसने पूरे देश में वायरस फैलाने में भी योगदान किया. सुगा की अपनी पार्टी में भी कई लोग इस बात को लेकर निराश थे कि सुगा लोगों की सेहत से ज़्यादा आर्थिक रिकवरी को ज़्यादा तरजीह देकर महामारी के संकट का असरदार ढंग से समाधान नहीं कर रहे हैं. उनकी “गो टू ट्रैवल” योजना की सार्वजनिक आलोचना बढ़ती जा रही थी जो कई ओपिनियन सर्वे में उनकी कम होती लोकप्रियता में भी दिख रही थी. यहां तक कि देश के कई मेडिकल एक्सपर्ट और संस्थानों ने भी सरकार को सलाह दी कि वो इस योजना को कुछ समय के लिए बंद करे.

वायरस की तीसरी लहर अक्टूबर के महीने में शुरू हुई और टोक्यो, ओसाका, ऐची, ह्योगो चिबा, सैतामा, कानागावा और होक्काइदो जैसे प्रांतों में घनी आबादी वाले कई इलाक़ों ने संक्रमण के मामलों में अभूतपूर्व बढ़ोतरी देखी. इसकी वजह से ये आशंका बढ़ी कि फिर से आपातकाल का ऐलान कर दिया जाएगा. आख़िरकार 7 जनवरी को टोक्यो, चिबा, कानागावा और सैतामा प्रांतों में फिर से आपातकाल का एलान करना पड़ा. शुरू में आपातकाल एक महीने के लिए लगाया गया था जिसे दो बार बढ़ाया गया और चार प्रांतों में लगाए गए आपातकाल में सात और प्रांतों को शामिल किया गया. उम्मीद जताई जा रही है कि 21 मार्च को आपातकाल हटाया जाएगा. प्रधानमंत्री सुगा ने इसके लिए माफ़ी भी मांगी. सुगा ने कहा, “मैं खेद जताता हूं कि 7 मार्च तक आपातकाल हटाने में मैं सक्षम नहीं हो पाया. मैं दिल की गहराई से माफ़ी मांगता हूं.”

योजना को टालने का उनका फ़ैसला मुख्य रूप से राजनीतिक वजहों जैसे उनकी गिरती लोकप्रियता, जनता के बढ़ते विरोध और एक्सपर्ट की लगातार सलाह की वजह से लिया गया. 

जनवरी में आपातकाल के ऐलान से पहले सुगा को ये एहसास हुआ कि कोरोना वायरस के केस में कोई कमी नहीं आ रही है. इसके बाद उन्होंने 26 दिसंबर से “गो टू ट्रैवल” योजना को टालने का ऐलान किया. जापान के कई मेडिकल एक्सपर्ट ने उन्हें सलाह दी थी कि अगर वो महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई में गंभीर हैं तो ट्रैवल योजना को जारी नहीं रखा जाए. योजना को टालने का उनका फ़ैसला मुख्य रूप से राजनीतिक वजहों जैसे उनकी गिरती लोकप्रियता, जनता के बढ़ते विरोध और एक्सपर्ट की लगातार सलाह की वजह से लिया गया.

जैसे-जैसे कोविड-19 महामारी और ज़्यादा जटिल होती जा रही है, वैसे-वैसे प्रधानमंत्री सुगा ख़ुद को कठिन दुविधा में पा रहे हैं. वो देश की अर्थव्यवस्था और सार्वजनिक स्वास्थ्य की ज़रूरतों के बीच व्यावहारिक संतुलन स्थापित करने में संघर्ष कर रहे हैं. इस दुविधा से बाहर आने के लिए उन्हें अच्छा-ख़ासा समय और संसाधन खर्च करना होगा.

इस बीच उनके पास समय की काफ़ी कमी है. उन्हें अब अपना ध्यान दूसरे प्रमुख सवालों जैसे इस साल जुलाई तक टाले गए ग्रीष्मकालीन ओलंपिक, फिर से पार्टी अध्यक्ष के चुनाव का सामना करने और संसद के मौजूदा निचले सदन को भंग कर नये चुनाव के लिए सबसे उपयुक्त तारीख़ को चुनने की तरफ़ देना होगा. ये बड़ी चुनौतियां हैं और सुगा का बचे रहना इस बात पर निर्भर करता है कि वो इन चुनौतियों का सामना कितनी समझदारी से करते हैं.

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