Jammu Kashmir: कश्मीर घाटी में हाल के महीनों में भारतीय सुरक्षा बलों (India Army) ने काफी सफलता हासिल की है, लेकिन उच्चाधिकारियों को यह अनुभव है कि स्थितियां जल्दी ही विपरीत हो सकती है. हक़ीकत में सामान्य स्थिति काफी नाज़ुक है और सुरक्षा की स्थिति में किसी भी सुधार को कुछ देर के लिए देखना चाहिए और फिर निश्चित रूप से यह दावा किया जाना चाहिए कि अब स्थिति वापस पहले जैसी नहीं होगी.
जम्मू और कश्मीर में सुरक्षा की स्थिति में सुधार का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि यहां 2018 से ही केंद्र सरकार का शासन है. 2019 में किए गए संवैधानिक सुधार ने सुरक्षा बलों को और अतिरिक्त बल प्रदान किया है.
जम्मू और कश्मीर में सुरक्षा की स्थिति में सुधार का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि यहां 2018 से ही केंद्र सरकार का शासन है. 2019 में किए गए संवैधानिक सुधार ने सुरक्षा बलों को और अतिरिक्त बल प्रदान किया है.
इस वक्त भले ही घाटी में आतंकवाद की एकाध घटना को छोड़कर स्थिति सामान्य दिख रही हो, लेकिन सुरक्षा बल इस स्थिति का आकलन करने में काफी सतर्कता और रुढ़ीवादी रवैया ही अपनाते दिखते हैं. उन्होंने लगभग दो दर्ज़न पैमाने तय किए हैं, जिसके आधार पर वे यह मानेंगे कि स्थिति अब काबू में है. इसमें लक्षित हमलों में आम नागरिकों की होने वाली मौतों की संख्या, मस्जिदों से होने वाले भड़काऊ भाषण, अलगाववादी नेताओं की अंतिम यात्रा, नारेबाजी और उसमें होने वाली हिस्सेदारी, देश को लेकर प्रतिबद्धता का सार्वजनिक प्रदर्शन, राष्ट्रीय ध्वज एवं प्रतीक चिन्हों का प्रदर्शन, सुन्नी धार्मिक स्थलों से वहाबी/देवबंदी प्रभाव को खत्म करना, पर्यटन, आर्थिक गतिविधि, बढ़ा हुआ निवेश और नागरिकों को सेना के शिविर में जाते वक्त लक्षित होने का भय न लगना शामिल है.
कुछ अफ़सरों का मानना है कि वर्तमान में चल रही प्रशासनिक व्यवस्था यानी कि गवर्नर का शासन राज्य में एक या दो साल तक और चलाया जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आने वाली राजनीतिक सरकार को संवैधानिक सुधार के पहले वाली स्थिति में जाने के बारे में न तो कोई प्रोत्साहन मिले और न ही मौका.
सुरक्षा बल राजनीतिक प्रक्रिया की वापसी को उम्मीद मिश्रित भय के साथ देखते है. वे यह बात समझते है कि चुनाव का महत्व क्या है और चुनी हुई सरकार का काम संभालना कितना महत्वपूर्ण है, लेकिन उन्हें डर है कि कुछ स्थानीय राजनेता राजनीतिक प्रक्रिया को बाधित कर राज्य को कमज़ोर करते हुए उसके लिए चुनौती पेश करेंगे. जम्मू-कश्मीर पुलिस (Jammu Kashmir Police)को भी यह डर है कि उसे कानून व्यवस्था (Law and Order in Kashmir) को बनाए रखने के लिए जो खुली छूट मिली थी वह भी गुज़रे ज़माने की बात हो जाएगी. एक और चिंता यह भी है कि राजनेता उन अफ़सरों को परेशान करेंगे, जिन्होंने राज्य के खिलाफ़ काम करने वाले तंत्र को चुनौती देकर काम करना मुश्किल कर दिया था. इसी तरह अंतर एजेंसी (Inter Agency in Kashmir) के बीच सहयोग और समन्वय की वजह से जो प्रगति हुई थी वह भी रुक जाएगी.
कुछ अफ़सरों का मानना है कि वर्तमान में चल रही प्रशासनिक व्यवस्था (Kashmir’s Administrative Law) यानी कि गवर्नर का शासन राज्य में एक या दो साल तक और चलाया जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आने वाली राजनीतिक सरकार को संवैधानिक सुधार के पहले वाली स्थिति में जाने के बारे में न तो कोई प्रोत्साहन मिले और न ही मौका. आज की स्थिति में भी यहां जमे हुए राजनेताओं के उस प्रशासनिक और संविदात्मक ढांचे को ध्वस्त नहीं किया जा सका है, जिसका उपयोग वे अपने फायदे के लिए किया करते थे. ऐसी स्थिति में राजनीतिक सरकार यदि लौटी तो वह फिर वहीं काम करेगी जो वह हमेशा से करती आयी है, अर्थात पुराने दिनों की ओर लौटना.
नोट: SushantSareen द्वारा लिखे गये ओआरएफ़ हिंदी के लॉन्ग फॉर्म आर्टिकल का एक छोटा सा हिस्सा है. इस विषय के बारे में विस्तार से जानने के लिए क्लिक करें, इस Occasional Research Paper के लिंक को, जिसका शीर्षक है-“बदलाव की दहलीज़ पर खड़ा है जम्मू और कश्मीर; लेकिन चुनौतियां आगे भी रहेंगी बरक़रार !”
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