Author : Anchal Vohra

Published on Apr 10, 2021 Updated 0 Hours ago

इज़रायल को दुश्मन मानने वाले कुछ अरब देश भी टीकाकरण अभियान में उसकी सफलता देखकर हैरान हैं 

इज़रायल के तेज़ टीकाकरण अभियान ने पूरी दुनिया कर दिया है दंग!

छोटा-सा देश है इज़रायल, जो कोरोना टीकाकरण के मामले में दुनिया में सबसे आगे निकल गया है. इस देश की कुल आबादी 90 लाख है और उसने लेख लिखे जाने तक 20 फीसदी लोगों को वैक्सीन  लगा दी थी. एक बात यह भी है कि जहां दुनिया के दूसरे हिस्सों में वैक्सीन को लेकर एक हिचक दिख रही है, यहां उसका नामोनिशान नहीं है. लोग स्वास्थ्य केंद्रों के बाहर टीका लगवाने के लिए लाइन लगा रहे हैं और वे जिंदगी में पहले जैसी आजादी पाने के लिए बेताब हैं. रोज यहां एक लाख से अधिक लोगों को टीका लगाया जा रहा है और किसी-किसी दिन तो यह संख्या डेढ़ लाख तक पहुंच जाती है. 

इज़रायल उन देशों में शामिल है, जिन्होंने शुरुआती दौर में ही वैक्सीन खरीद ली थी. यह काम भी उसने बड़ी अक्लमंदी से किया. उसने दिग्गज दवा कंपनी फाइज़र से कहा कि अगर वह इज़रायल को 1 करोड़ वैक्सीन की डोज़ की सप्लाई करती है तो बदले में वह अपने नागरिकों के मेडिकल डेटा उसे देगा. इनमें उनकी उम्र, लिंग और मेडिकल हिस्ट्री शामिल होगी. इज़रायल ने फाइज़र से कहा कि वैक्सीन के साइड इफेक्ट और वह कितनी असरदार है, इसके आंकड़े भी शोध की ख़ातिर दिए जाएंगे. लेकिन पहचान संबंधी ब्यौरे गोपनीय रखे जाएंगे. 

इज़रायल उन देशों में शामिल है, जिन्होंने शुरुआती दौर में ही वैक्सीन खरीद ली थी. यह काम भी उसने बड़ी अक्लमंदी से किया. उसने दिग्गज दवा कंपनी फाइज़र से कहा कि अगर वह इज़रायल को 1 करोड़ वैक्सीन की डोज़ की सप्लाई करती है तो बदले में वह अपने नागरिकों के मेडिकल डेटा उसे देगा

आपको पिछले साल दिसंबर की वह तस्वीर याद है, जब जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल बुंडस्टैग में हाथ जोड़े हुए अलग-अलग प्रांतों के राजनीतिक नेतृत्व से सख्त़ लॉकडाउन लगाने की अपील कर रही थीं. उन्होंने कहा कि इससे मृत्यु दर को घटाने में मदद मिलेगी. इंग्लैंड भी कोविड-19 के नए स्ट्रेन से त्रस्त था, जिसके कारण ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को पूरे देश में लॉकडाउन लगाना पड़ा. जर्मनी और ब्रिटेन की बात यहां हम बेवजह नहीं कर रहे. जर्मनी की स्वास्थ्य सेवाएं शानदार हैं और ब्रिटेन के पास भी मजबूत स्वास्थ्य व्यवस्था है. लेकिन दोनों ही देशों को कोविड-19 वायरस को काबू में करने में दिक्कत हो रही थी. इज़रायल की कहानी ऐसी नहीं है. वहां की रेगुलेटरी अथॉरिटी ने फाइज़र की वैक्सीन को फटाफट मंजूरी दी और इससे वहां टीकाकरण अभियान काफी जल्द शुरू हो गया. 

मज़बूत स्वास्थ्य व्यवस्था

इजरायल ऐसा छोटा देश है, जिसके लोगों को अतीत में नाज़ियों ने प्रताड़ित किया था, इसलिए वहां गति की ख़ास अहमियत है. उसने सबसे पहले बुजुर्गों और स्वास्थ्यकर्मियों को वैक्सीन लगाना शुरू किया, जिन्हें वायरस से अधिक ख़तरा था. वैक्सीन लगाने की प्राथमिकता में उन लोगों को भी शामिल किया गया, जिन्हें पहले से बीमारी थी. इसलिए वह 60 वर्ष और इससे अधिक उम्र वाले नागरिकों में से 72 फीसदी का टीकाकरण कर चुका है. 

इज़रायल में सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था मज़बूत है, जिससे उसे तेज़ी से टीकाकरण करने में मदद मिली. वहां टीका लगाने की व्यवस्था पहले से तैयार थी और अच्छी तरह काम भी कर रही थी. इससे यह काम सहज ढंग से हुआ. इज़रायल ने फाइज़र के अलावा अमेरिका की कंपनी मॉडर्ना और ब्रिटेन की एस्ट्राजेनेका के साथ भी वैक्सीन के लिए समझौता किया है. ऐसी ख़बर भी आई कि मॉडर्ना ने इज़रायल को 60 लाख लोगों के लिए वैक्सीन देने का वादा किया है. पश्चिम एशिया के टीकाकरण अभियान की तारीफ़ हो रही है, लेकिन कई लोग फ़िलस्तीनियों की अनदेखी करने के लिए उसकी आलोचना भी कर रहे हैं. भीड़-भाड़ वाले वेस्ट बैंक और गज़ा इलाके में 45 लाख़ फ़िलस्तीनी रहते हैं, जिन्हें इज़रायल से वैक्सीन नहीं मिली है. 

इज़रायल में सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था मज़बूत है, जिससे उसे तेज़ी से टीकाकरण करने में मदद मिली. वहां टीका लगाने की व्यवस्था पहले से तैयार थी और अच्छी तरह काम भी कर रही थी. इससे यह काम सहज ढंग से हुआ.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि चौथे जिनेवा कन्वेंशन के तहत मेडिकल सप्लाइज़ देने की इज़रायल की जवाबदेही बनती है. इसमें ‘महामारी को रोकने वाली दवाएं, टीके भी शामिल हैं.’ उसने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के मुताबिक, इज़रायल को अपने नियंत्रण वाले इलाके में रहने वाले फ़िलस्तीनियों को बग़ैर भेदभाव के टीका लगाना होगा. इज़रायल और फ़िलस्तीन के लिए ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) के निदेशक उमर शाकिर ने कहा, ‘वेस्ट बैंक में आज जो भी हो रहा है, उसे किसी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता. वहां सड़क के एक ओर रहने वाले लोगों को वैक्सीन मिल रही है, जबकि दूसरी ओर रहने वालों को नहीं. इसका आधार यह है कि कौन यहूदी है और कौन फिलस्तीनी.’ शाकिर ने कहा, ‘किसी इलाके में रहने वाले सभी लोगों को वैक्सीन मिलनी चाहिए. नस्लीय आधार पर इसमें कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए.’

नस्लीय आधार पर भेदभाव

वैसे, इज़रायल में मीडिया ने अधिकारियों के हवाले से बताया है कि फ़िलस्तीनी अथॉरिटी (PA) ने इज़रायल से मदद नहीं मांगी है. कहा जा रहा है कि PA विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से मिली वित्तीय मदद के ज़रिये दूसरे ज़रियों से वैक्सीन हासिल करने की कोशिश कर रहा है. गज़ा पर हमास का नियंत्रण है, जो इज़रायल का जानी दुश्मन है. माना जा रहा है कि वह महामारी के दौर में भी इज़रायल से मदद नहीं मांगेगा और न ही स्वीकार करेगा. ऐसी खबरें भी आई हैं कि फ़िलस्तीन ने वैक्सीन के लिए रूस से मदद मांगी है. रूस के पास स्पूतनिक V नाम की वैक्सीन है, जिसे फ़िलस्तीन मंज़ूरी दे चुका है. उधर, इज़रायल ने अपनी जेल में बंद फ़िलस्तीनियों का टीकाकरण शुरू कर दिया है. 

एक और बात यह है कि तेज़ी से टीकाकरण के बावजूद इज़रायल में कोविड-19 वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या काफी बढ़ रही थी, लेकिन बाद में उसमें गिरावट आने लगी. टीकाकरण अभियान के अलावा इज़रायल की सरकार ने संक्रमण को कम करने के लिए कई सख्त़ पाबंदियां भी लगाई हैं. यह भी कहा जा रहा था कि जो भी कारोबार लॉकडाउन का पालन नहीं करेंगे, उन पर जुर्माना 1,500 डॉलर से बढ़ाकर 3,000 डॉलर किया जा सकता है. वहीं, लॉकडाउन के दौरान शादियों और पार्टियों का आयोजन करने वालों पर 6,000 डॉलर का जुर्माना लग सकता है. 

गज़ा पर हमास का नियंत्रण है, जो इज़रायल का जानी दुश्मन है. माना जा रहा है कि वह महामारी के दौर में भी इज़रायल से मदद नहीं मांगेगा और न ही स्वीकार करेगा

इज़रायल में यह चुनावी साल है, बेंजमिन नेतन्याहू 2009 से ही वहां के प्रधानमंत्री बने हुए हैं. उनका पुकारू नाम बिबी है और वह पिछले चुनाव की तुलना में इस बार कहीं मज़बूती से मैदान में उतरने जा रहे हैं. पिछले चुनाव में नेतन्याहू भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए थे. इस बार स्थिति बदली हुई है. एक तो उन्होंने चार इस्लामिक देशों के साथ शांति समझौता किया है और चुनाव में उन्हें कोरोना वायरस को काबू में करने का भी फायदा मिल सकता है. इस महामारी को जिस तरह से पश्चिम एशिया के इस देश ने नियंत्रित किया है, वह बाकी दुनिया के लिए एक उदाहरण साबित हो सकता है. कहा तो यहां तक जा रहा है कि कुछ अरब देश भी ‘दुश्मन’ इज़रायल की इस उपलब्धि से हैरान हैं. 

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