इस साल फरवरी में 9 वें चीन-मध्य और पूर्वी यूरोपीय मुल्कों के सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन और मध्य और पूर्वी यूरोपीय (सीईई) देशों के बीच व्यापार को बढ़ाने पर जोर दिया. इसका मकसद इस क्षेत्र से 170 बिलियन अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा मूल्य की वस्तुओं के आयात का था और बाद में वैक्सीनेशन को लेकर आपसी सहयोग को बढ़ावा देना था. इसी के साथ इस सम्मेलन के लिए 12 में से 6 ईयू सदस्य देश जो इसका हिस्सा थे, उन्होंने अपने मंत्रियों, ना कि राष्ट्राध्यक्षों को यहां प्रतिनिधि बनाकर भेजा. यह दो समूहों द्वारा सहयोग के लिए दिए गए महत्व के अलग-अलग स्तरों की ओर इशारा करता है – जहां चीन यह उम्मीद कर रहा था कि यह ढांचा आगे अपना विस्तार करे जबकि सीईई देश ऐसे किसी सहयोग के नतीजे को लेकर असंतुष्ट नज़र आए.
चीन-सीईईसी सहयोग एक तरह से चीन और 16 सदस्य देशों के बीच आर्थिक और व्यापारिक सहयोग को बढ़ावा देने की पहल है जिसमें अल्बानिया,बोस्निया और हर्जेगोविना, बुल्गारिया, क्रोएशिया, चेक रिपब्लिक, एस्टोनिया, ग्रीस, हंगरी, लातविया, नॉर्थ मेसिडोनिया,मोंटेनेग्रो, पोलैंड, रोमानिया, सर्बिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया शामिल हैं
साल 2012 में स्थापित, चीन-सीईईसी सहयोग एक तरह से चीन और 16 सदस्य देशों के बीच आर्थिक और व्यापारिक सहयोग को बढ़ावा देने की पहल है जिसमें अल्बानिया,बोस्निया और हर्जेगोविना, बुल्गारिया, क्रोएशिया, चेक रिपब्लिक, एस्टोनिया, ग्रीस, हंगरी, लातविया, नॉर्थ मेसिडोनिया,मोंटेनेग्रो, पोलैंड, रोमानिया, सर्बिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया शामिल हैं, जबकि हाल ही में इस संगठन से लिथुआनिया बाहर निकला है. मध्य और पूर्वी यूरोप के मुल्क एशिया और यूरोप के चौराहे पर खड़े हैं जो कि रूस और मध्य पूर्व एशिया के लिए सामरिक लिहाज़ से बेहद अहम हैं. इस क्षेत्र की भू-राजनीतिक अहमियत को पहली बार हाफर्ड मैकिंडर अपने हार्टलैंड थ्योरी के जरिए दुनिया के सामने लेकर आए. “जो भी पूर्वी यूरोप पर शासन करेगा वही इस केंद्रीय स्थल पर नियंत्रण रख पाएगा; और जो भी केंद्रीय स्थल पर शासन करेगा वह विश्व-द्वीप पर नियंत्रण कर पाएगा; जो विश्व-द्वीप पर शासन करेगा वह दुनिया पर राज करेगा.”
थोड़ा अलग सहयोग
सालों से सहयोग को लेकर उठाए गए इस कदम की आलोचना होती रही, जिसे यूरोपीय कूटनीतिज्ञ चीन की बांटो और राज करो नीति का हिस्सा बताते रहे. दूसरी ओर सीईई देशों के बीच गहरा असंतोष बढ़ता गया क्योंकि चीन के साथ आर्थिक गतिविधियों में शामिल होने के नतीजे उम्मीद के मुताबिक नहीं आए, जिससे इस क्षेत्र में चीन का प्रभाव लगातार घटने लगा. इसकी शुरुआत से दस साल बाद, अभी भी 16+1 पहल को लेकर उसी तरह के सवाल मौजूद हैं जो पहले थे. क्या इसे चीन द्वारा बांटो और राज करो नीति के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है या फिर यह एक सुविधाजनक सहयोग है जिसे लेकर व्यर्थ में इतनी बातें कही जा रही हैं ?
एक तरह से ये एक बेहद मुफ़ीद मंच है जहां से चीन अपने महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को विस्तार दे सके. मध्य और पूर्वी एशियाई देश पश्चिमी यूरोप और एशिया के बीच सामरिक कड़ी का काम करते हैं. इस तरह 16+1 पहल की अनुकूलता बीआरआई प्रोजेक्ट की सफलता पर निर्भर करता है. दरअसल इसे लेकर विभिन्नता इसकी बनावट में है क्योंकि यहां चीन का नियंत्रण इसके सदस्य देशों पर उतना नहीं है जैसा कि सहयोगी देशों पर अक्सर चीन का होता है. इसके अलावा बीआरआई मुख्य तौर पर डिज़िटल सेक्टर पर ध्यान केंद्रित करता है जबकि 16+1 पहल बहुक्षेत्रीय और एक से ज़्यादा मुल्कों को समाहित करता है.
यूरोपियन यूनियन और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं द्वारा फंड मुहैया कराने के बावजूद सीईई मुल्कों के बीच वित्तीय खाई चौड़ी होती गई जिसे बिना तीसरे देश से संसाधनों को अधिकृत किए पाटा नहीं जा सका. इसी जगह चीन ने आकर्षक पैकेज के साथ दखल दी, जिसमें किसी तरह की संस्थागत बाधाएं नहीं थीं और इसे अमल में लाना आसान था.
दोनों पक्षों के नेता हमेशा से इस क्षेत्र में चीन के निवेश के असर को बढ़ा-चढ़ा कर बताते रहे. सदस्य देशों में ज़्यादातर मुल्कों का चीन के साथ कारोबार बेहद कम था और इस तरह के असंतुलित कारोबार के चलते व्यापार का घाटा 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आंकड़े तक पहुंच गया.
ढांचागत विकास को लेकर चीन-सीईईसी सहयोग में मतभेद यूरोपियन यूनियन की सदस्यता की वजह से उभर कर आए. पांच गैर-यूरोपीयिन यूनियन देशों – सर्बिया, अल्बानिया, मेसोडोनिया, मोंटेनेग्रो, बोस्निया हर्जेगोविना – ने चीन द्वारा फंड किए गए 6 बिलियन यूरो मूल्य के बराबर के प्रोजेक्ट का खूब स्वागत किया. एग्ज़िम बैंक ऑफ चाइना के ऋण द्वारा हाईवे, कोयला आधारित पावर स्टेशन, पश्चिमी बाल्कन क्षेत्र में रेलवे के प्रोजेक्ट तैयार किए जाने लगे. चीन के फंडिंग मॉडल की प्रसिद्धि इसलिए भी बढ़ी क्योंकि यूरोपियन बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट, विश्व बैंक, सर्बिया के लिए रूस की तरफ से ऋण की व्यवस्था की धूमिल प्रकृति इसके अनुकूल थी.
ईयू ने पश्चिमी बाल्कन राष्ट्रों की भी आलोचना की है और चेतावनी दी है कि चीन के साथ मज़बूत सहयोग उन्हें ईयू सदस्यों से भविष्य में अलग ले जा सकता है. इसके अलावा सीईई देशों की स्क्रीनिंग प्रक्रिया की विसंगतियों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.
इसके विपरीत, बचे हुए 11 देशों के लिए जो इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टों का ऐलान किया गया था, जो ईयू के सदस्य देश थे, वो दस्तावेजों और राजनीतिक घोषणा के इतर जाने लगे. 2013 में जिन परियोजनाओं को लेकर हस्ताक्षर किए गए थे उन्हें शुरू भी नहीं किया जा सका, सिर्फ बेलग्रेड-बुडापेस्ट रेलवे परियोजना को ही एक मात्र अपवाद के रूप में देखा गया. 2019 में चीन के निवेश का आंकड़ा ईयू में चीन के कुल विदेशी निवेश के महज 3 फ़ीसदी पर जा कर थम गया. यह वो स्तर था जो ईयू के कुल जीडीपी में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी से कहीं कम था. इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट प्रोजेक्ट को लेकर कई परियोजनाएं चीन के खाते में आ गईं लेकिन इसमें चीन की भूमिका महज़ कॉन्ट्रैक्टर की रह गई और चीन ना तो ऋणदाता और ना ही निवेशक की भूमिका अपना सका. सदस्य देशों की अनिच्छा की बड़ी वजह यूरोपियन यूनियन कानूनों के संदर्भ में चीन के फंडिंग मॉडल को लेकर आशंकाएं थीं. दूसरी बात यह थी कि पश्चिमी बाल्कन क्षेत्र के मुकाबले चीनी निवेश का विकल्प ईयू के लिए एक दूसरा विकल्प जैसा था, क्योंकि उनके पास यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक की ओर से दी जाने वाली सस्ती और बेहद पारदर्शी ऋण लेने का विकल्प मौजूद था.
नीचे दिए गए टेबल के जरिए यह बताया गया है कि कैसे अथाह पैसा निवेश होने के बावजूद विदेशी पूंजी निवेश का मतलब यह नहीं था कि देश में पूंजी का वास्तविक प्रवाह हुआ. चीन के आधिपत्य वाली कंपनियों को चीन के प्रत्यक्ष निवेश का हिस्सा माना गया. इसका मतलब यह हुआ कि जब चीन की एक कंपनी किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी का अधिग्रहण करती है और उस बहुराष्ट्रीय कंपनी की शाखा सीईई देशों में मौजूद रहती है तो ऐसे में यह चीन का ही निवेश माना जाएगा.
सीईईसी ही क्यों?
इस सहयोग को कई जानकारों ने यूरोपियन यूनियन में मतभेद पैदा करने का जरिया माना. आशंका तब जाहिर की जाने लगी जब चीन निवेश के बदले ऋण देने का प्रस्ताव देने लगा. जो कर्ज़ मुहैया कराई जाती थी वह राज्य के आधिपत्य वाली संस्थाएं होती थीं जिसके लिए संप्रभु गारंटी की आवश्यकता होती थी, इस तरह निवेश का जोख़िम कर्ज़ लेने वाले देश पर चला जाता था. इसकी एक बेहतर मिसाल मोंटेनेग्रो में हाईवे प्रोजेक्ट है जिसके चलते यह देश चीन के कर्ज़ के भारी बोझ के तले दब गया, जो मोंटेनेग्रो सरकार के वार्षिक बज़ट का तीन गुना था.
इस पहल के ज़्यादातर हिस्से में पर्यटन क्षेत्र में व्यक्ति से व्यक्ति की हिस्सेदारी, थिंक टैंक सहयोग, युवा नेता के फोरम और साहित्य का अनुवाद शामिल है. यह लोगों को सीधे तौर पर पहुंच देता है इस तरह यह चीन को सीधे उनलोगों से जोड़ता है जो भविष्य में फैसले लेने के काबिल होते हैं. स्थानीय स्तर पर चीन और सीईईसी के बीच चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की ज़्यादा हिस्सेदारी होती है. इन पार्टियों से सीधे संपर्क की बदौलत सीसीपी को राजनयिक चैनलों और आधिकारिक सरकारी संपर्कों को दरकिनार करने में आसानी होती है.
इस तरह की पहल और पारदर्शिता में कमी की वजह से अपनी आपत्तियों को लेकर यूरोपियन यूनियन काफी मुखर रहा है. ईयू 16+1 के सदस्य देशों से अपील कर चुका है कि पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि “चीन के साथ रिश्तों को लेकर ईयू के सभी सदस्य देश एक सुर में बोलें” और किसी भी तरह राष्ट्रीय और यूरोपियन हित से समझौता नहीं करें. इन देशों ने इस बात को लेकर भी चिंता जाहिर की है कि ईयू सदस्य देशों में भविष्य में होने वाले विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की देखरेख के लिए एक प्रक्रिया होनी चाहिए. हालांकि, चीन सीईई क्षेत्र में अकेला निवेशक नहीं है, ऐसे में इस कदम को भविष्य में चीनी निवेश पर सख़्त निगरानी का हिस्सा माना जा रहा है. ईयू ने पश्चिमी बाल्कन राष्ट्रों की भी आलोचना की है और चेतावनी दी है कि चीन के साथ मज़बूत सहयोग उन्हें ईयू सदस्यों से भविष्य में अलग ले जा सकता है. इसके अलावा सीईई देशों की स्क्रीनिंग प्रक्रिया की विसंगतियों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.
यह क्षेत्र ‘ट्रोजन हॉर्स’ की तरह है इस आरोप के पीछे की वजह सहयोगी राष्ट्रों में चीन के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव का ख़तरा है. जुलाई 2018 में यूरोपियन नेबरहुड पॉलिसी एंड एनलार्जमेंट नेगोशिएशन के पूर्व यूरोपियन कमिश्नर जोहान्स हैन ने चेतावनी दी थी कि पश्चिमी बाल्कन क्षेत्र को चीन अपने लिए ट्रोजन हॉर्स में बदलने की कोशिश में है, जो आखिरकार यूरोपियन यूनियन का ही सदस्य है. साल 2017 के जून में ग्रीस व्यवधान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में ईयू के एक दस्तावेज को रोक दिया था जिसमें चीन की मानवाधिकार रिकॉर्ड की आलोचना की गई थी. इसके कुछ महीने पहले हंगरी ने एक चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था जिसमें चीन की हिरासत में लिए गए वकीलों को प्रताड़ित करने के ख़िलाफ़ लिखा गया था. हालांकि, यह बेहद महत्वपूर्ण घटना है लेकिन यह इक्का-दुक्का घटनाएं ही हैं, यह कोई सामान्य ट्रेंड नहीं बना है. दूसरी ओर सीईई राष्ट्र चीन के साथ सहयोग बढ़ाने को लेकर भारी आशंकित हैं. इसे ऐसे देखा जा सकता है कि इसके ज़्यादातर सदस्य राष्ट्र अपनी 5 जी सुरक्षा को मज़बूत कर रहे हैं और रोमानिया न्यूक्लियर रियेक्टर समझौतों को रद्द कर रहे हैं.
नीतज़तन, ट्रोजन हॉर्स के आरोपों का मतलब यह निकलता है कि पश्चिमी देशों की तरह ही सीईई राष्ट्र भी बाहरी संबंधों को बहाल करने को लेकर अव्यवहारिक हैं और ईयू के हितों को बढ़ावा देने में नाकाम हैं. सीईई राष्ट्रों की आलोचना करने के लिए यह किसी विडंबना से कम नहीं है कि जर्मनी और फ्रांस क्या कर रहे हैं – चीन के साथ किसी भी संबंध स्थापित करने से पहले वो अपने राष्ट्र हितों को सर्वोपरि रख रहे हैं. इस अविश्वास और पूर्व-पश्चिम के आंतरिक बंटवारे को कम करने की आवश्यकता है या फिर यूरोपियन यूनियन ख़ुद को कमजोर कर सकता है, जिससे कि चीन की अपेक्षा ईयू ख़ुद के लिए ही कहीं ज़्यादा समस्याएं खड़ी ना कर ले.
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