Author : Dhaval Desai

Published on Oct 14, 2020 Updated 0 Hours ago

महाराष्ट्र सरकार को मेट्रो-3  कार डिपो के लिए एक वैकल्पिक साइट का फ़ैसला लेने के बजाय गहराई से लागत-लाभ विश्लेषण करना चाहिए था.

आरे कॉलोनी में मुंबई मेट्रो कार डिपो नहीं बनने पर पर्यावरण की दृष्टि से असर

मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का मुंबई के आरे में विवादास्पद मेट्रो 3 कार डिपो नहीं बनाने के फैसले का पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने ज़ोरदार स्वागत किया है. संवेदनशील आरे मिल्क कॉलोनी से मेट्रो कार डिपो कहीं और बनाने के साथ ही महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार ने आरे कॉलोनी की 600 एकड़ भूमि को “आरक्षित वन” घोषित कर दिया है.

शिवसेना ने अपने पुराने गठबंधन सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से तल्ख़ी भरे अलगाव के बाद 2019 में अपने चुनाव अभियान में कार डिपो के विवाद को लेकर जनता के गुस्से का इस्तेमाल किया था. आरे कार डिपो के विरोध प्रदर्शनों का सीएम के बेटे और अब राज्य के पर्यावरण व पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे ने समर्थन किया था. नवंबर 2019 में सरकार के गठन से पहले हुई घटनाओं में  आए नाटकीय मोड़ के बाद नए मुख्यमंत्री द्वारा सबसे पहले लिए गए फैसलों में से एक था कार डिपो के निर्माण कार्य को अनिश्चित काल के लिए रोकना. “पर्यावरण-पहले” के चुनावी वादे पर खरा उतरने का फै़सला और फिर पर्यावरण के लिए संवेदनशील आरे ज़ोन में आरक्षित वन की घोषणा से पता चलता है कि नई सरकार में मुंबई के पर्यावरणीय टिकाऊपन के लिए कड़े फ़ैसले लेने का साहस था. लेकिन सवाल फिर भी बने हुए हैं.

मेट्रो-3 पर कब क्या हुआ

146 किलोमीटर लंबे प्रस्तावित नौ मेट्रो कॉरिडोर में से 33.5 किलोमीटर लंबे मेट्रो-3 कॉरिडोर का ख़ास महत्व है. शहर का यह पहला भूमिगत मेट्रो सिस्टम न केवल शानदार इंजीनियरिंग का नमूना है, बल्कि शहर के भौगोलिक विस्तार में बहुप्रतीक्षित पूर्व-पश्चिम की कनेक्टिविटी देता है और भीड़भाड़ वाले पड़ोसी इलाक़ों को जोड़ता है, जहां सार्वजनिक परिवहन की अच्छी सुविधा नहीं है.

इस कॉरिडोर पर साल 2011 से काम चल रहा था. तकनीकी मुद्दों का समाधान  होने के बाद 2015 के आसपास परियोजना पर ज़मीनी काम शुरू हुआ. कोविड-19 लॉकडाउन से इसका काम रुक जाने तक, मुंबई ने सबसे जटिल बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में से एक को देखा, जिसने परियोजना के हर मील के पत्थर को पार कर रफ़्तार और दक्षता के नए प्रतिमान बनाए. 2019 के अंत तक मुंबई मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (एमएमआरसी) ने प्रति माह 1,500 मीटर की सुरंग खुदाई की रफ़्तार हासिल की थी. साल 2020 की शुरुआत तक टनलिंग कार्य का 80 फ़ीसद और पूरे काम का 57 फ़ीसद पूरा हो चुका था.

146 किलोमीटर लंबे प्रस्तावित नौ मेट्रो कॉरिडोर में से 33.5 किलोमीटर लंबे मेट्रो-3 कॉरिडोर का ख़ास महत्व है. शहर का यह पहला भूमिगत मेट्रो सिस्टम न केवल शानदार इंजीनियरिंग का नमूना है, बल्कि शहर के भौगोलिक विस्तार में बहुप्रतीक्षित पूर्व-पश्चिम की कनेक्टिविटी देता है

लॉकडाउन ने निर्माणाधीन सभी मेट्रो कॉरिडोर की समय-सीमा पर असर डाला है, एक महत्वपूर्ण टर्मिनल लिंक आरे में मेट्रो-3 कार डिपो की किस्मत पर ताला लग गया है. नवंबर में निर्माण कार्य पर रोक लगने के बाद से एमएमआरसी रोज़ाना  4.30 करोड़ रुपये का नुकसान उठा रहा है, जिसमें से अकेले सालाना 2% ब्याज का नुकसान प्रति दिन 1.50 करोड़ रुपये आंका गया है. बाकी नुकसान ठेकेदारों को संसाधनों के गैर-उपयोग का भुगतान और अन्य ढांचागत संरचना लागत के अवमूल्यन से संबंधित हैं, जिसमें ढांचा तैयार तो किया गया था, लेकिन अब बेकार पड़ा है. इस लेखक से बातचीत में एमएमआरसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा था, जबकि सिविल वर्क पूरी तरह ख़त्म हो चुका है, अन्य ‘पैकेज’  जिसमें एप्रोच रैंप, बिजली आपूर्ति, हाईटेंशन वायरिंग और मरोल-मरोशी रोड का अंडरपास बनाने जैसे काम शामिल हैं, या तो पूरे हो चुके हैं या पूरे होने वाले हैं. पिछले नवंबर में काम रुकने तक, एमएमआरसी कार डिपो पर 100 करोड़ रुपये ख़र्च कर चुका था.

हालांकि, कार डिपो स्थानांतरित करने के फ़ैसले की शहर को गंवा दिए मौक़े के रूप में भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी. इसके स्थानांतरण से कम से कम चार साल की और देरी होगी. सॉयल कन्सॉलिडेशन (मिट्टी को स्थिर करना) जो कि एक महत्वपूर्ण काम है, इसमें दो-ढाई साल का समय लगेगा, जो कि अगर नई साइट समुद्र से नीचे का हिस्सा हुआ या समुद्री मिट्टी या ज्वार क्षेत्र में आने वाली ज़मीन हुई तो तीन साल से ज़्यादा हो सकती है. बोली की प्रक्रिया में छह महीने लगेंगे. सुरंगों, एलिवेटेड ट्रैक, ट्रैक्शन, पावर सप्लाई, सिग्नलिंग आदि का निर्माण भले ही युद्धस्तर पर किया जाए, तो भी इसमें एक और साल लगेंगे. और यह भी केवल एक नामुमकिन हालात में मुमकिन होगा कि अदालत में मुकदमे, पुनर्वास और दूसरी पर्यावरणीय चुनौतियां नहीं आती हैं और काम बिना रुकावट के आगे बढ़ता है.

हालात को मुंबई के लिए एक अनोखे अवसर में बदला जा सकता है. संयुक्त राष्ट्र के ग्रीन क्लाईमेट फंड (जीसीएफ) की तर्ज पर मुंबई महानगर क्षेत्र के लिए ग्रीन फंड बनाने के लिए आरे विवाद को सबक के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है.

नुकसान हो जाने के बाद जागने का क्या फ़ायदा?

आरे की ज़मीन पर अगर अभी जंगल होते तो वैकल्पिक जगह की तलाश करना समझदारी होती, लेकिन हालात ऐसे नहीं है. बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा पेड़ों की कटाई के खिलाफ याचिकाओं को ख़ारिज करने के फ़ौरन बाद ही कार्रवाई शुरू हो गई थी, एमएमआरसी ने रातों-रात लगभग 2,500 पेड़ काट दिए सरकार वैकल्पिक साइट का फ़ैसला कर जो पर्यावणीय नुकसान बचाने की बात कर रही है, वो 4 अक्टूबर 2019 को अदालत के फैसले के 24 घंटे के भीतर हो चुका था.

इन हालात को देखते हुए मुंबई की तेजी से ग़ायब होती प्राकृतिक संपदा के संरक्षण के लिए सरकार के नेक इरादे को दर्शाने के बजाय, दोनों फैसलों— एक वैकल्पिक साइट के साथ-साथ आरक्षित वन की घोषणा— ने कई सवाल खड़े किए हैं. पहली बात, 600 एकड़ आरक्षित वन भूमि क्षेत्र की प्रशंसनीय घोषणा में आरे का मेट्रो-3 डिपो शामिल नहीं है. इस तरह अभी भी भविष्य में इसके व्यावसायिक इस्तेमाल का जोख़िम है. दूसरी बात, अगर सरकार की मंशा सच में यह सुनिश्चित करना थी कि संजय गांधी नेशनल पार्क (एसजीएसपी) के दायरे में आने वाली पूरी आरे ग्रीन बेल्ट अतिक्रमणों से सुरक्षित रहे, तो उसे चुनिंदा तरीके से काम करने के बजाय पूरे 1,800 एकड़ क्षेत्र को आरक्षित वन घोषित करना चाहिए था. तीसरा, अगर सरकार वाकई शहर की दीर्घकालिक पर्यावरणीय स्थिरता के वास्ते आरे के संरक्षण के लिए ईमानदार है, तो शहर के पश्चिमी किनारे पर समुद्र तट के साथ 9.8 किलोमीटर कोस्टल रोड परियोजना के लिए पूरी ताकत झोंकने का क्या औचित्य हो सकता है. क्या कोस्टल रोड, जिसमें आरे में मेट्रो-3 कार डिपो के लिए उखाड़े गए जंगल के आकार से लगभग चार गुना ज़्यादा रीक्लेम लैंड (समुद्री ज़मीन की भराई कर इस्तेमाल करने) का इस्तेमाल होगा, क्या इससे पर्यावरण को कोई ख़तरा नहीं होगा? खासकर ये देखते हुए कि अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों में कहा गया है कि बढ़ते समुद्र जलस्तर के कारण मुंबई गंभीर खतरे में है. क्या कोस्टल रोड परियोजना के लिए पर्यावरणीय, सामाजिक और अवसर लागत परस्पर विरोधी नहीं हैं, जो सिर्फ़ टोल टैक्स देकर अपनी कार से चलने वाले अमीरों के काम आएगा. इसके मुकाबले दूसरी तरफ़ मेट्रो रेल परियोजना का इस्तेमाल कर लाखों लोग फ़ायदा उठाएंगे? आरे में कार डिपो की स्थिति— निर्माण के अंतिम चरण में होने और पहले से ही किए जा चुके जंगल की कटाई पर विचार करते हुए, दीर्घकालिक पर्यावरणीय टिकाऊपन को नुकसान के मुकाबले इसके नई जगह पर शिफ्ट करने से शहर की तात्कालिक आर्थिक-सामाजिक ज़रूरतों को पूरा करने के बीच निष्पक्ष आकलन की मांग करता है. इस मोड़ पर साइट के बदलाव से कौन सबसे ज्यादा प्रभावित होगा?

कॉरपोरेट सेक्टर, ग़ैर-सरकारी संगठनों और यहां तक ​​कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संगठनों की भागीदारी के साथ पीपीपी मोड में ग्रीन फंड धनराशि का इस्तेमाल शहर की ऐसी ज़रूरतों के लिए किया जाना चाहिए जिन पर फ़ौरन ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है

वैकल्पिक साइट नहीं, वैकल्पिक दृष्टिकोण की ज़रूरत है

हालात को मुंबई के लिए एक अनोखे अवसर में बदला जा सकता है. संयुक्त राष्ट्र के ग्रीन क्लाईमेट फंड (जीसीएफ) की तर्ज पर मुंबई महानगर क्षेत्र के लिए ग्रीन फंड बनाने के लिए आरे विवाद को सबक के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. जीसीएफ वित्तीय संसाधनों का संग्रह है, जिसका बड़ा हिस्सा विकसित देशों के योगदान से आता है, और इसका मक़सद “विकासशील देशों की मुश्किलों को कम करना और अनुकूलन ज़रूरतों पर ध्यान देना है.”  इसी तरह मुंबई ग्रीन फंड बड़ी  बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से फंड जुटा सकता है ताकि इस क्षेत्र की नष्ट होती इकोलॉजिकल संपदा को फिर से बहाल किया जा सके. विश्व के सबसे अच्छे तरीक़ों का इस्तेमाल करते हुए, हर परियोजना का उसके पर्यावरणीय असर के लिए आकलन किया जाना चाहिए, एक ऐसा अभ्यास जो बड़े पैमाने पर परियोजना के शुरुआती चरणों में पर्यावरणीय प्रभाव विश्लेषण के माध्यम से किया जाता है, लेकिन ऐसा सिर्फ़ परियोजना के पात्रता मानदंडों को पूरा करने के लिए किया जाता है. इस तरह के प्रभाव मूल्यांकन के आधार पर, काम करने वाली एजेंसी पर  ग्रीन फंड के लिए शुरुआती पूंजी बनाने के लिए मान लीजिए कि काटे गए हर पेड़ के लिए 5 लाख रुपये की राशि तय कर दी जाए. उदाहरण के लिए अगर शहर भर में मेट्रो-3 कॉरिडोर के लिए 4,000 पेड़ काटे गए हैं, तो एमएमआरसी को 200 करोड़ रुपये का योगदान देना होगा— जो कुल परियोजना लागत का बहुत मामूली 0.63 फ़ीसद होगा. इसी तरह, मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (एमएमआरडीए) को वर्तमान में चल रही सभी परियोजनाओं के लिए प्रत्येक पेड़ की कटाई के लिए समान राशि का योगदान करना चाहिए— ऐसा ही किसी भी अन्य राज्य की सरकारी या निजी एजेंसी के मामले में होना चाहिए. कॉरपोरेट सेक्टर, ग़ैर-सरकारी संगठनों और यहां तक ​​कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संगठनों की भागीदारी के साथ पीपीपी मोड में ग्रीन फंड धनराशि का इस्तेमाल शहर की ऐसी ज़रूरतों के लिए किया जाना चाहिए जिन पर फ़ौरन ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है, जैसे कि अपनी नदियों की सफाई के लिए किया जा सकता है— जिसमें मीठी नदी, मैंग्रोव (समुद्र तटीय वनस्पतियां) और दलदली ज़मीन का पुनर्जीवन शामिल है, नदी के मुहाने और समुद्र तटीय क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली, एसजीएनपी और खुद आरे की जैव विविधता के रखरखाव और शहर के दीर्घकालिक पर्यावरणीय भलाई के लिए इस तरह के अनगिनत सुधारात्मक कदम शामिल हैं.

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