Author : Shoba Suri

Published on Nov 18, 2023 Updated 28 Days ago

हाल के रिसर्च ने वायु प्रदूषण और डायबिटीज़ के बीच संभावित संबंध की तरफ़ ध्यान खींचा है, जिससे ये संकेत मिलता है कि इस बीमारी के विस्तार के पीछे पर्यावरण के कारणों की भूमिका भी हो सकती है.

क्या वायु प्रदूषण और डायबिटीज के बीच का संबंध एक खामोश ख़तरे को न्योता दे रहा है?

डायबिटीज़ मेलिटस, सेहत की एक व्यापक और लगातार बढ़ती जा रही समस्या है, जिससे पूरी दुनिया में क़रीब 42.2 करोड़ लोग पीड़ित हैं. डायबिटीज़ के दो प्रमुख रूप होते हैं- टाइप 1 और टाइप 2. इस बीमारी की वजह से ग्लूकोज़ को पचाने में दिक़्क़त होती है, जिससे ख़ून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है और इंसान को लाचार कर देने वाली कई और समस्याएं भी पैदा हो जाती हैं. हाल के रिसर्च ने वायु प्रदूषण और डायबिटीज़ के बीच संभावित संबंध की तरफ़ ध्यान खींचा है. इससे संकेत मिलता है कि इस बीमारी के फैलने में पर्यावरण संबंधी कारकों की भी अहम भूमिका हो सकती है.

हाल के रिसर्च ने वायु प्रदूषण और डायबिटीज़ के बीच संभावित संबंध की तरफ़ ध्यान खींचा है. इससे संकेत मिलता है कि इस बीमारी के फैलने में पर्यावरण संबंधी कारकों की भी अहम भूमिका हो सकती है.

डायबिटीज़ और वायु प्रदूषण के संबंध की पड़ताल के लिए इस बीमारी को लेकर कई अध्ययनों में वायु प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों के असर की पड़ताल की गई है. इन स्टडीज़ में डायबिटीज़ होने और इसके फैलाव में बारीक़ पार्टिकुलेट मैटर (PM 2.5), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड  (NO2), ओज़ोन (O3) और पॉलीसाइक्लिक, एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAHs) की भूमिका पर अध्ययन किया गया है. इन अध्ययनों ने बार बार वायु प्रदूषण और डायबिटीज़ के जोखिम के बीच संबंध होने की तरफ़ इशारा किया है. लांसेट के मुताबिक़, ‘ये कहा जा सकता है कि 2016 में दुनिया और देश में डायबिटीज़ के बढ़ते मरीज़ों के पीछे PM 2.5 वायु प्रदूषण का हाथ है.’ ग्लोबल बर्डन  ऑफ डिज़ीज़ स्टडी 2019 के मुताबिक़, ‘दुनिया में टाइप 2 डायबिटीज़ के 20 प्रतिशत मरीज़ों में इसकी वजह PM 2.5 प्रदूषकों के संपर्क में आना है.’ वहीं, टाइप 2 डायबिटीज़ से होने वाली 13.4 फ़ीसद मौतों के पीछे वातावरण में मौजूद PM 2.5, और 6.50 प्रतिशत मौतों की वजह घरों के भीतर का वायु प्रदूषण होता है. नीचे दिखाए गए आंकड़े बताते हैं कि किस तरह, वैश्विक स्तर पर घरों के वायु प्रदूषण में कमी की वजह से डायबिटीज़ होने के अनुपात में कमी आती जाती है.

Source: Diabetes trends due to air pollution across regions

ग्लूकोज़ पचा पाने की क्षमता में कमी और इंसुलिन न बनना, ये दोनों ही टाइप 2 डायबिटीज़ होने के प्रमुख कारण होते हैं, और इन दोनों का संबंध लंबे समय तक भयंकर वायु प्रदूषण का सामना करने से पाया गया है. ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस वो बड़ी वजह है, जिसके कारण वायु प्रदूषण से डायबिटीज़ की बीमारी होती है. वायु प्रदूषण के तत्वों में ऑक्सीजन के नुक़सानदेह स्वरूप होते हैं, जिनकी वजह से इंसान के शरीर में ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस और जलन पैदा होती है. इस तरह इंसुलिन बनने और ग्लूकोज़ पचाने में बाधा पड़ जाती है, जिससे इंसुलिन बनना बंद हो जाता है. यही नहीं, वायु प्रदूषण का संबंध मोटापे से भी पाया गया है, जो टाइप 2 डायबिटीज़ की एक बड़ी वजह माना जाता है. धूल, गंदगी और राख जैसे पार्टिकुलेट मैटर (PM) से हमारे शरीर में हार्मोन  का संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे वज़न बढ़ने और शरीर में वसा जमा होने की समस्या पैदा होती है, ख़ास तौर से पेट के आस-पास की चर्बी बढ़ जाती है, जिसका इंसुलिन न बनने से बेहद नज़दीकी संबंध होता है.

डायबिटीज़ का प्रभाव

कई अनुसंधान और अध्ययन, वायु प्रदूषण और डायबिटीज़ के बीच सीधा संबंध साबित कर चुके हैं. इन अध्ययनों में वायु प्रदूषण से लोगों की सेहत और अर्थव्यवस्था पर बुरे प्रभाव के निष्कर्ष स्पष्ट रूप से मिले हैं. एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया था कि डायबिटीज़ की बीमारी बढ़ने और प्रति व्यक्ति डायबिटीज़ पर ख़र्च की वजह से अमेरिका को 327 अरब डॉलर की आर्थिक क़ीमत चुकानी पड़ रही है.

एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया था कि डायबिटीज़ की बीमारी बढ़ने और प्रति व्यक्ति डायबिटीज़ पर ख़र्च की वजह से अमेरिका को 327 अरब डॉलर की आर्थिक क़ीमत चुकानी पड़ रही है.

डायबिटीज़ बढ़ाने में वायु प्रदूषण की भूमिका केवल इंसुलिन बनना रोकने तक सीमित नहीं है. इसकी वजह से पैंक्रियाज़ ग्रंथि के काम करने पर भी बुरा असर पड़ता है, जो टाइप 1 डायबिटीज़ की पहचान है. इस नुक़सान से जेनेटिक रूप से डायबिटीज़ के शिकार होने की आशंका वाले लोगों में ऑटोइम्यून  प्रतिक्रिया शुरू हो सकती है, जिससे टाइप 1 डायबिटीज़ होने की गति में बढ़ोत्तरी हो सकती है. इसके अतिरिक्त वाय प्रदूषण से शरीर में ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस और लगातार जलन जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं, जिससे बीटा-सेल के काम न करने की समस्या और बढ़ सकती है.

अलग अलग इलाक़ों में डायबिटीज़ कम या ज़्यादा होने का संबंध उस इलाक़े की हवा की क्वालिटी से जुड़ा होता है. इससे भी वायु प्रदूषण और डायबिटीज़ के बीच संबंध साबित होता है. शहरी इलाक़ों में, जहां वायु प्रदूषण अक्सर ज़्यादा होता है, वहां ग्रामीण इलाक़ों की तुलना में हमेशा ही डायबिटीज़ की समस्या ज़्यादा पायी जाती है. ये बात कम और मध्यम आमदनी वाले देशों में ख़ास तौर से देखने को मिलती है, जहां तेज़ी से हो रहे शहरीकरण ने रहन-सहन को बदल दिया है. अध्ययनों में पाया गया है कि रहने के ख़राब हालात, अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था और पोषण की कमी भी डायबिटीज़ बढ़ाने में योगदान देते हैं.

नियमित रूप से वर्ज़िश और संतुलित आहार लेने जैसे रहन-सहन के बदलाव लाकर भी, पहले से प्रदूषित इलाक़ों में रह रहे लोगों को वायु प्रदुषण के दुष्प्रभाव कम करने में मदद मिल सकती है. यही नहीं, वायु प्रदूषण के ख़तरों के बारे में लोगों को आगाह करने के लिए जन स्वास्थ्य अभियान चलाने की भी ज़रूरत है, जिससे लोग वायु प्रदूषण से ख़ुद को बचा सकें.

वायु प्रदूषण से डायबिटीज़ होने का ख़तरा सिर्फ़ वयस्कों को नहीं होता. इससे आबादी के कमज़ोर तबक़ों जैसे कि बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर भी बुरा असर पड़ता है. लगातार सामने आ रहे सबूत इशारा करते हैं कि वायु प्रदूषण का असर मां के पेट में पल रहे बच्चे पर भी होता है, जिससे उसको नुकसान हो सकता है. इसके अलावा, जो बच्चे प्रदूषित हवा में लंबे समय तक रहते हैं, उनको टाइप 1 डायबिटीज़ होने का ख़तरा बढ़ जाता है. इससे डायबिटीज़ जल्दी होने में पर्यावरण के हालात की भूमिका और भी स्पष्ट रूप से साबित होती है.

समाधान

वायु प्रदूषण और डायबिटीज़ के बीच संबंध होने के नतीजे बहुत व्यापक होते हैं. इनका असर लोगों की सेहत और अर्थव्यवस्था से लेकर पर्यावरण को टिकाऊ बनाने तक पर पड़ता है. डायबिटीज़ से बहुत अधिक आर्थिक बोझ पड़ता है, जो न केवल इलाज के भारी ख़र्च के तौर पर झेलना पड़ता है, बल्कि इससे उत्पादकता और अच्छे रहन सहन का स्तर भी गिर जाता है. डायबिटीज़ की महामार को बढ़ाने में योगदान देकर, वायु प्रदूषण इस बोझ को और भारी कर देता है. इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन जैसे वायु प्रदषण के पर्यावरण पर प्रभावों के कारण, ये समस्या और भी जटिल हो जाती है.

डायबिटीज़ के नए केस सामने आने से रोकने के लिए वायु प्रदूषण कम करने के लिए नियामक प्रयासों, जैसे कि गाड़ियों और औद्योगिक केंद्रों से उत्सर्जन के सख़्त नियम लागू करने की ज़रूरत है. नियमित रूप से वर्ज़िश और संतुलित आहार लेने जैसे रहन-सहन के बदलाव लाकर भी, पहले से प्रदूषित इलाक़ों में रह रहे लोगों को वायु प्रदुषण के दुष्प्रभाव कम करने में मदद मिल सकती है. यही नहीं, वायु प्रदूषण के ख़तरों के बारे में लोगों को आगाह करने के लिए जन स्वास्थ्य अभियान चलाने की भी ज़रूरत है, जिससे लोग वायु प्रदूषण से ख़ुद को बचा सकें. लगातार प्रदूषित होती जा रही दुनिया में, डायबिटीज़ की महामारी का सामना करने के लिए, लोगों की सेहत से जुड़ी नीतियां बनाने, पर्यावरण के नियम और हर इंसान द्वारा अपने स्तर पर क़दम उठाने जैसे उपाय बहुत अहम हैं. परिवहन के स्थायी समाधान, हरियाली को बढ़ावा देने वाली शहरी विकास योजनाएं, लोगों की जानकारी बढ़ाने वाले अभियान, और दुष्प्रभाव कम करने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर अपनाई जाने वाली रणनीतियां, एक व्यापक नज़रिये का अहम हिस्सा हैं.

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