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अमेरिका की ओर से F-35 देने की पेशकश को लेकर भारत का मन ललचा रहा होगा. विशेषतः ऑपरेशन सिंदूर के पश्चात फिफ्थ-जेनरेशन फाइटर्स लेने की उसकी बढ़ी हुई कोशिशों को देखते हुए यह पेशकश अच्छी दिखाई दे सकती है. लेकिन भारत के लिए यह आदर्श पसंद नहीं कही जा सकती. इसका कारण यह है कि इस हवाई जहाज को ख़रीदने के लिए देश को अनेक चुनौतियों का सामना करना होगा.
Image Source: Getty
फरवरी 2025 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाशिंगटन का दौरा किया तब यूनाइटेड स्टेट्स (US) के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उनके समक्ष F-35 की बिक्री का विचार रखा था. ऐसे में आधिकारिक रूप से इसकी ख़रीद का प्रस्ताव भेजा जा रहा है. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष से भारतीय वायु सेना (IAF) के लिए राफेल जैसे एडवांस्ड फाइटर एयरक्राफ्ट की अहमियत साफ़ हो गई. ऐसे में भविष्य के किसी भी संघर्ष के मद्देनजर एडवांस फाइटर एयरक्राफ्ट को लेकर निर्भरता बेहद स्पष्ट हो गई है. यह बात और भी महत्वपूर्ण इसलिए हो गई है, क्योंकि चीन ने J-10 जैसे लड़ाकू हवाई जहाज की आपूर्ति पाकिस्तान को कर दी है और वह हाल ही में J-35 के रूप में उसे फिफ्थ-जेनरेशन फाइटर की आपूर्ति करने वाला है. ऐसे में भारत को भी IAF के पास मौजूद हथियारों को लेकर भविष्य में उपजने वाली आवश्यकताओं को गंभीरता से लेना होगा. उसे इस बात पर भी विचार करना होगा कि क्या F-35 एक बेहतरीन हवाई जहाज साबित हो सकता है? इस बात को ध्यान में रखते हुए भविष्य में लिए जाने वाले फ़ैसले से पहले F-35 की तकनीकी विशेषताओं और उसके इतिहास का गहराई से परीक्षण किया जाना ज़रूरी हो गया है.
1990s के दशक में US डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस (DOD) के तहत शुरू किए गए ज्वाइंट स्ट्राइक फाइटर (JSF) प्रोग्राम के तहत F-35 Lightning II को विकसित किया गया था. DOD ने अक्टूबर 2011 में लॉकहीड मार्टिन के हवाई जहाज की डिजाइन को चुना था. इसके बाद ही JSF प्रोग्राम ने सिस्टम डेवलपमेंट एंड डेमोंस्ट्रेशन यानी प्रदर्शन के चरण की शुरुआत की थी. F-22 Raptor (रैप्टर) के साथ F-35 को पहला फिफ्थ-जनरेशन स्ट्राइक-फाइटर एयरक्राफ्ट माना जाता है, जिसमें एडवांस्ड स्टेल्थ फीचर्स जैसे कि स्टेल्थ कोटिंग्स, एक इंटरनल वेपंस बे यानी अंदरूनी हथियार गलियारा और सुपरक्रूज क्षमता (अर्थात सुपरसोनिक स्पीड के साथ लेकिन आफ्टरबर्नर के बगैर उड़ने की क्षमता) मौजूद है. इस हवाई जहाज को प्रैट एंड व्हीटनी F135 इंजन से शक्ति हासिल होती है, जो 40,000 पाउंड का थ्रस्ट मुहैया करवा सकता है. इसके साथ ही इसमें फोर्थ-जनरेशन इंजन से आगे की स्टेल्थ तकनीक भी उपलब्ध है. F-35 Mach 1.6 की गति से उड़ सकता है और इसका कॉम्बैट रेडियस यानी आक्रमण करने का दायरा 450 से 600 नॉटिकल माइल्स है. यह तीन संस्करणों में उपलब्ध है, जिसमें F-35 A, F-35 B, and F-35 C का समावेश है. इन सभी में एक जैसे इंजन लगे हुए हैं और इनकी स्टेल्थ खूबियां भी एक समान ही हैं. इन सभी विमानों में इनके टेक-ऑफ और लैंडिंग का तरीका अलग-अलग है और इनकी ईंधन क्षमता तथा कैरियर (वाहक) उपयोगिता भी एक-दूसरे से भिन्न है.
यह तीन संस्करणों में उपलब्ध है, जिसमें F-35 A, F-35 B, and F-35 C का समावेश है. इन सभी में एक जैसे इंजन लगे हुए हैं और इनकी स्टेल्थ खूबियां भी एक समान ही हैं.
फिगर 1 : F-35 के विभिन्न संस्करण
Source: Congressional Research Service
F-35 A |
F-35 B |
F-35 C |
US वायु सेना (USAF) के लिए डिजाइन किया हुआ जिसमें परंपरागत टेक ऑफ और लैंडिंग (CTOL) की क्षमताएं मौजूद हैं. यह एक ड्यूल केपेबल एयरक्राफ्ट (DCA) भी है, अर्थात यह परंपरागत तथा परमाणु दोनों ही तरह के हथियार डिलीवर कर सकता है. |
मुख्यत US मरीन कोर (USMC) तथा US नौसेना के लिए विकसित किया गया और इसमें शॉर्ट टेक ऑफ तथा वर्टिकल लैंडिंग (STOL) क्षमताएं मौजूद हैं. |
एयरक्राफ्ट कैरियर संस्करण |
F-35 को DOD का अब तक का सबसे महत्वाकांक्षी और महंगा सौदा माना जाता है. 2,470 एयरक्राफ्ट और इंजन के विकास और उत्पादन पर 485 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कुल लागत आयी है. हालांकि यह भी अनुमान लगाया जाता है कि इस प्रोग्राम के विकास की कुल लागत 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है. F-22 के साथ ही F-35 को US के फाइटर फ्लीट यानी बेड़े की आधारशिला माना जाता है. इसका कारण यह है कि ये दोनों हवाई जहाज मिलकर एक "हाई-लो मिक्स", अर्थात एयर सुपीरियॉरिटी फाइटर्स (F-22) तथा थोड़ा मॉडेस्ट DCAs (F-35), तैयार करते हैं. इतना ही नहीं DOD की 2040 के दशक के मध्य तक F-35s को ख़रीदने की योजना है.
F-35 के विकास और उसे उन्नत बनाने के विभिन्न चरणों में काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा था. इसकी वजह से इसकी लागत में बार-बार वृद्धि होती रही. दिसंबर 2018 में यह इनिशियल ऑपरेशनल टेस्ट यानी आरंभिक संचालन परीक्षण और मूल्यांकन चरण में पहुंचा और उस वक़्त भी इसमें 873 अनसुलझी कमियां थी. इनमें से 13 को कैटेगरी 1 "मस्ट फिक्स" आइटम्स में वर्गीकृत किया गया था जो इसकी सुरक्षा और कॉम्बैट यानी युद्ध क्षमता को प्रभावित कर रही थी. हालांकि DOD ने मार्च 2024 में इस हवाई जहाज के फुल-रेट प्रोडक्शन को मंजूरी दे दी, लेकिन F-35 प्रोग्राम अभी भी अनेक समस्याओं का सामना कर रहा है.
इस प्लान में ही टेक्निकल रिफ्रेश 3 (TR-3) का समावेश है जो एक सॉफ्टवेयर अपडेट सबप्रोग्राम है. इसमें 50 से ज़्यादा सॉफ्टवेयर को अपग्रेड किया जाता है. इसका मतलब यह है कि इन अपग्रेड्स के माध्यम से ब्लॉक 4 क्षमताओं को सक्षम बनाने के लिए प्रोसेसिंग पॉवर उपलब्ध कराया जाता है.
F-35 प्रोग्राम के समक्ष पेश आने वाली प्राथमिक परेशानियों में मार्च 2017 में मंजूर किया गया "ब्लॉक 4" मॉर्डनाइजेशन प्लान है. इसमें एडवांस्ड सेंसर सुइट और उन्नत इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम जैसे हार्डवेयर अपडेट का समावेश है. इस प्लान में ही टेक्निकल रिफ्रेश 3 (TR-3) का समावेश है जो एक सॉफ्टवेयर अपडेट सबप्रोग्राम है. इसमें 50 से ज़्यादा सॉफ्टवेयर को अपग्रेड किया जाता है. इसका मतलब यह है कि इन अपग्रेड्स के माध्यम से ब्लॉक 4 क्षमताओं को सक्षम बनाने के लिए प्रोसेसिंग पॉवर उपलब्ध कराया जाता है. ब्लॉक 4 अपग्रेड्स में बार-बार देरी हुई है, जिसकी वजह से बजट पिछले तीन अलग-अलग अवसरों पर बढ़ गया था. अब इस प्रोग्राम का बजट 2018 के आरंभिक 10.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 2023 में बढ़कर 16.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर पहुंच गया है. JSF को प्रबंधित करने वाले ज्वाइंट प्रोग्राम ऑफिस (JPO) ने कहा है कि अनेक ब्लॉक 4 क्षमताएं 2030 तक उपलब्ध नहीं हो सकेंगी. इसी प्रकार TF-3 में भी देरी हो रही है. इसकी वजह से USAF को F-35 A एयरक्राफ्ट की डिलीवरी को जुलाई 2023 में लेना रोकना पड़ा है. इसके बाद जुलाई 2024 में USAF ने F-35s की डिलीवरी लेना शुरू किया, लेकिन यह डिलीवरी TR-3 के सीमित संस्करण वाली थी. USAF ने आरंभ में 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति एयरक्राफ्ट के हिसाब से भुगतान भी रोक दिया था. यह भुगतान अपग्रेड पूरा होने तक रोका गया था. बाद में इस राशि को घटाकर 1.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति एयरक्राफ्ट कर दिया गया.
ब्लॉक 4 एवं TR-3 अपग्रेड्स के लिए F135 के इंजन को पॉवर एवं कूलिंग अपग्रेड की आवश्यकता होती है. 2016 में एडेप्टिव इंजन ट्रांजिशन प्रोग्राम के तहत जनरल इलेक्ट्रिक एवं प्रैट एंड व्हिटनी दोनों को ही F-35 के लिए एडवांस्ड इंजन विकसित करने के लिए 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था. लेकिन इसके परिणामस्वरूप विकसित किए गए दोनों ही इंजन XA100 और XA101 को रिजेक्ट कर दिया गया. इसका कारण यह था कि इन दोनों ही इंजन को F-35 के साथ एकीकृत करने के लिए काफ़ी ज़्यादा ख़र्च आने वाला था. अत: DOD ने F135 के मौजूदा इंजन के लिए इंजन कोर अपग्रेड प्रोग्राम को मंजूरी दी, जो 2032 तक ही पूरा हो सकेगा.
F-35 एक डाटा-ट्रैकिंग सिस्टम का उपयोग करता है, जिसे ऑटोमैटिक लॉजिस्टिक्स इंर्फोमेशन सिस्टम (ALIS) कहा जाता है. इसका उपयोग करके F-35 का रखरखाव बेहतर तरीके से किया जाता है. लेकिन इस सिस्टम का सॉफ्टवेयर का ढांचा पुराना हो चुका है और अब यह बहुत ज़्यादा कुशलता के साथ काम नहीं करता. ऐसे में रखरखाव को सटीक रखने के लिए अधिकतर मानवीय इनपुट्स की ज़रूरत पड़ती है. इसके अलावा यह सॉफ्टवेयर साइबर हमलों के प्रति भी संवेदनशील है. 2020 में DOD ने एक क्लाउड-बेस्ड सिस्टम को स्वीकार करने का प्रस्ताव रखा. इसे ऑपरेशनल डाटा इंटीग्रेटेड नेटवर्क (ODIN) कहा जाता है. TR-3 अप्रगेड के लिए भी ODIN अनुकूल होगा. ऐसे में वर्तमान में ALIS-से-ODIN ट्रांजिशन प्रोग्राम अर्थात बदलाव कार्यक्रम चल रहा है.
ऊपर जिन मुद्दों की चर्चा की गई है वे ही F-35 को उसके परर्फोंमस गोल्स हासिल करने की राह में रोड़ा बने हुए हैं. इसकी वजह से उसकी उपलब्धता, विश्वसनीयता और रखरखाव में गिरावट देखी गई है. उदाहरण के लिए 2023 में USAF’s की F-35 A फ्लीट यानी बेडे की मिशन-केपेबल रेट अर्थात अभियान-संपन्न दर 51.9 फीसदी थी, जो न्यूनतम लक्ष्य 80 फीसदी से काफ़ी कम थी. इतना ही नहीं हाल में यह कयास भी लगाया जा रहा है कि F-35 फिलहाल कॉम्बैट-केपेबल यानी युद्ध-सक्षम तक नहीं है. इसके अलावा 2020 से F-35 कई दुर्घटनाओं का भी शिकार हुआ है. इसमें से कुछ हादसे छोटे थे, लेकिन कुछ मामलों में इसे भारी क्षति पहुंची है. हालांकि किसी भी हवाई जहाज के विकास चक्र में होने वाले हादसे एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन ये घटनाएं कुछ प्रणालीगत मुद्दों की ओर संकेत करती हैं जिनसे F-35 प्रोग्राम जूझ रहा है.
लॉकहीड मार्टिन ने आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान के लिए COVID-19 महामारी को दोषी बताया है. रक्षा क्षेत्र की अग्रणी कंपनी के अनुसार इसकी वजह से ही उसे ऊपर चर्चा की गई अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा है. और इसी वजह से वह 2023 तक डिलीवरी देने के लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकती. यहां यह भी चर्चा करने की बात है कि इस कंपनी का सिक्स्थ-जनरेशन फाइटर विकसित करने के लिए US’ के नेक्स्ट जनरेशन एयर डॉमिनंस प्रोग्राम से कोई संबंध नहीं है. DOD ने अब इसके लिए बोइंग के F-47 हवाई जहाज का विकल्प चुना है. इसी वजह से स्विट्जरलैंड जैसे देशों ने अब F-35 की ख़रीद करने से बाहर होने का विचार शुरू कर दिया है. उनके इस फ़ैसले के पीछे कुछ हद तक इस हवाई जहाज से जुड़ी तकनीकी चिंताएं भी जुड़ी हुई हैं.
JSF प्रोग्राम की शुरुआत से अब तक US के 19 विभिन्न सहयोगी देशों को 1,100 F-35s का निर्यात किया जा चुका है. ऐतिहासिक रूप से डिलीवरी टाइमलाइन यानी आपूर्ति की तिथियों का पालन किया गया है, लेकिन हाल के वर्षों में अब इसमें देरी बढ़ती जा रही है. उदाहरण के लिए 2024 में जापान को छह F-35 B हवाई जहाजों की आपूर्ति की जानी थी. लेकिन ब्लॉक 4 अपग्रेड में देरी के चलते इसे आगे बढ़ाना पड़ा था. इसी तरह बेल्जियम को भी 2025 के आरंभ में होने वाली F-35 की आपूर्ति में देरी हुई है. इस वजह से बेल्जियम भी यूक्रेन को 30 F-16s देने के अपने वादे पर खरा नहीं उतर सका है.
F-35 का आयात करने में इनकी बढ़ती हुई कीमत भी जापान और हाल ही में कनाडा जैसे देशों के लिए चिंता का कारण बनी हुई है. कीमत बढ़ने की वजह से इन देशों को अनेक मुद्दों पर परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. इसके अलावा US टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को लेकर भी प्रत्यक्ष रूप से काफ़ी संवेदनशील है. इसका कारण इंटरनेशनल ट्रैफिक इन आर्म्स रेग्युलेशंस है. इन रेग्युलेशंस के कारण उसे अपने UK तथा दक्षिण कोरिया जैसे करीबी सहयोगियों के साथ भी तनाव का सामना करना पड़ा है.
US इस बात पर विचार कर रहा है कि वह भारत को फॉरेन मिलिट्री सेल्स एग्रीमेंट यानी विदेशी सैन्य बिक्री अनुबंध के माध्यम से F-35A देने का आधिकारिक प्रस्ताव देगा. लेकिन भारतीय वायुसेना के बेड़े के लिए यह बेस्ट च्वाइस नहीं हो सकता. दुनिया में फिफ्थ-जनरेशन एयरक्राफ्ट की श्रेणी में सबसे उन्नत हवाई जहाज होने के बावजूद F-35 में अनेक टेक्निकल एवं लॉजिस्टिकल चुनौतियां मौजूद हैं. इन चुनौतियों की ऊपर चर्चा की जा चुकी है. इसके अलावा इस हवाई जहाज को ख़रीदने की राह में भारत के समक्ष अन्य संदर्भगत बाधा भी मौजूद हैं. इस हवाई जहाज के साथ हाई यूनिट एंड मेंटेनेंस कॉस्ट जुड़ी हुई है अर्थात इसके रखरखाव पर काफ़ी पैसा ख़र्च करना होता है. इसके साथ ही F-35 हवाई जहाज को NATO के इंटरऑपरेबिलिटी के लिए विकसित किया गया था. ऐसे में इसका संचालन और रखरखाव भारत के लिए काफ़ी मुश्किल या बोझिल काम साबित होगा. इसके अलावा यह हवाई जहाज सॉफ्टवेयर (ALIS तथा बाद में, ODIN) और हार्डवेयर (हथियार प्रणाली) दोनों के ही रखरखाव एवं अपग्रेड्स के लिए पूर्णत: US पर निर्भर है. अत: इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि IAF के सारे ऑपरेशंस अमेरिकी सक्रूटनी यानी सूक्ष्म परीक्षण और ओवरसाइट अर्थात निगरानी में आ जाएंगे. इसके साथ ही F-35’s का सॉफ्टवेयर क्लासिफाइड है. इसे लेकर US DOD स्वत: ही लॉकहीड मार्टिन के साथ इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स यानी बौद्धिक संपदा अधिकार को लेकर मुकदमेबाजी में फंसा हुआ है.
दुनिया में फिफ्थ-जनरेशन एयरक्राफ्ट की श्रेणी में सबसे उन्नत हवाई जहाज होने के बावजूद F-35 में अनेक टेक्निकल एवं लॉजिस्टिकल चुनौतियां मौजूद हैं. इन चुनौतियों की ऊपर चर्चा की जा चुकी है. इसके अलावा इस हवाई जहाज को ख़रीदने की राह में भारत के समक्ष अन्य संदर्भगत बाधा भी मौजूद हैं.
ऑपरेशन सिंदूर के परिणामस्वरूप भारत को अपने हवाई बेड़े के भविष्य का गंभीरता से विचार करना चाहिए. हाल में स्वीकृत घरेलू एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) सबसे आदर्श विकल्प के रूप में लक्षित किया जाना चाहिए. लेकिन घरेलू लड़ाकू विमानों के विकास को लेकर भारत का प्रदर्शन ऐतिहासिक रूप से चर्चा योग्य नहीं है. तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट को विकसित करने में भी 30 वर्षों से अधिक का वक़्त लग गया था. इसका कारण इसके विकास में लगातार होने वाली देरी और कीमत में हो रहा इज़ाफ़ा था. अगर AMCA प्रोग्राम में भी इसी तरह की देरी हुई तो भारत को पुन: विदेशी पर्याय जैसे रूसी सुखोई Su-57 या अमेरिकी F-35 जैसे विकल्पों पर ही आश्रित होने पर मजबूर होना पड़ेगा. चूंकि पाकिस्तान अब चीन से फिफ्थ-जेनरेशन फाइटर्स को जल्दी हासिल करने की कोशिश कर रहा है और इसकी वजह से उसके पक्ष में तैयार होने वाले एयर पावर एडवांटेज की स्थिति से एक चुनौती खड़ी होने वाली है. यह स्थिति किसी भी आगामी संघर्ष में भारत के लिए चिंता का कारण बन सकती है. ऐसे में भारत को अपने घरेलू फिफ्थ-जेनरेशन फाइटर, यदि इसके विकास के लिए तय समय सीमा का पालन हो भी जाए तो भी, से मिलने वाले लाभ की बजाय विदेशी पर्यायों पर ही गंभीरता से विचार करने पर मजबूर होना पड़ सकता है. हालांकि दोनों ही विकल्पों के साथ अपनी-अपनी चुनौतियां और समझौते जुड़े हुए हैं. लेकिन ऊपर चर्चा किए गए मुद्दों को देखते हुए यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि F-35 भारत के लिए उपयुक्त विकल्प नहीं दिखाई देता.
प्रतिक त्रिपाठी, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्योरिटी, स्ट्रैटेजी एंड टेक्नोलॉजी में जूनियर फेलो हैं.
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Prateek Tripathi is a Junior Fellow at the Centre for Security, Strategy and Technology. His work focuses on emerging technologies and deep tech including quantum technology ...
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