Author : Ayjaz Wani

Expert Speak Raisina Debates
Published on Mar 31, 2022 Updated 0 Hours ago

क्या OIC के सदस्य देशों में चीन का विदेशी निवेश इन देशों के कुलीन सियासी वर्ग को शिंजियांग में उइगर मुसलमानों के साथ हो रही नाइंसाफ़ी की आलोचना करने से रोक रहा है?

क्या OIC ख़ामोशी से उइगर मुसलमानों पर ज़ुल्म को बढ़ावा दे रहा है?

पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में 22 और 23 मार्च को इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के विदेश मंत्रियों की परिषद का 48वां सम्मेलन हुआ. इस बैठक में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ‘विशेष अतिथि’ के तौर पर शामिल हुए. OIC ने चीन के विदेश मंत्री को अपना ख़ास मेहमान उस वक़्त बनाया, जब चीन ने अपने शिंजियांग सूबे में दस लाख से ज़्यादा उइघुर मुसलमानों को नज़रबंद कर रखा है. उइगर मुसलमान, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के हाथों ‘नरसंहार’ और ‘सांस्कृतिक ज़ुल्म’ के शिकार हो रहे हैं. वांग यी ने ख़ुद को ख़ास मेहमान बनाए जाने के इस मौक़े का इस्तेमाल न सिर्फ़ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के उस दावे को मज़बूती देने के लिए किया कि चीन में मुसलमानों से पूरे सम्मान वाला बर्ताव किया जाता है, बल्कि उन्होंने यह भी कहा कि, ‘चीन और इस्लामिक विश्व के बीच लंबे ऐतिहासिक संबंध रहे हैं. दोनों एक जैसे मूल्यों की आकांक्षा करते हैं और ऐतिहासिक मिशन भी साझा करते हैं’. वांग यी ने मुस्लिम देशों को संयुक्त राष्ट्र में लगातार चीन का समर्थन करने के लिए भी शुक्रिया किया और ये वादा किया कि चीन अपने बेल्ट एंडरोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत OIC देशों में 400 अरब डॉलर का निवेश करेगा. चूंकि OIC के विदेश मंत्रियों की ये बैठक संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘इस्लामोफोबिया’  को वैश्विक ख़तरा मानने का प्रस्ताव पारित करने के कुछ दिनों बाद ही हुई थी, तो इस बैठक में भी इस्लामोफ़ोबिया का मुद्दा छाया रहा. हालांकि, तुर्की के विदेश मंत्री द्वारा उइगर मुसलमानों की चुनौतियों का सामना करने के ज़िक्र के सिवा, OIC के ज़्यादातर सदस्य देश शिंजियांग में उइगर मुसलमानों के ‘भविष्य’ को लेकर ख़ामोश ही रहे.

वांग यी ने मुस्लिम देशों को संयुक्त राष्ट्र में लगातार चीन का समर्थन करने के लिए भी शुक्रिया किया और ये वादा किया कि चीन अपने बेल्ट एंडरोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत OIC देशों में 400 अरब डॉलर का निवेश करेगा.

उइगर मुसलमान और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा उनका दमन

1949 में जब से शिंजियांग सूबा, चीन का हिस्सा बना है, तब से ही कम्युनिस्ट पार्टी वहां सांस्कृतिक आक्रामकता, ज़बरदस्ती आबादी बदलने और वहां के संसाधनों के दुरुपयोग का एजेंडा चलाती आ रही है. इस दौरान, शिंजियांग में चीन के हान समुदाय की आबादी पांच प्रतिशत से बढ़कर 40 फ़ीसद हो गई जबकि, उइगर मुसलमानों की आबादी 80 फ़ीसद से घटकर 45.8 प्रतिशत हो गई है. ज़्यादातर उइगर मुसलमान प्राथमिक क्षेत्रों में ही काम करते हैं. वहीं, ऊंचे ओहदों और बड़े उद्योगों में हान समुदाय के कामगारों का ही दबदबा है. हान समुदाय और उइघुर मुसलमानों के बीच बढ़ते इस फ़ासले के चलते, शिंजियांग में जातीय तनाव भी बढ़ रहा है. इसकी परिणति 2009 में जातीय दंगों की शक्ल में सामने आई थी. इसके बाद, बग़ावती तेवर बढ़ते ही गए हैं.

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा शिंजियांग की सुरक्षा, सामाजिक एकरूपता और उसके चीनीकरण पर ज़्यादा ज़ोर तब दिया जाने लगा, जब 2014 में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की शुरुआत हुई. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ‘ज़ोरदार हमला करने’ का अभियान शुरू किया और उन्होंने ‘जनवादी तानाशाही के हथियार इस्तेमाल’ किए जाने की वकालत की. सैनिक से नेता बने चेन क्वांगुओ  को तिब्बत में उनकी अल्पसंख्यक विरोधी नीतियां लागू करने के लिए जाना जाता है. चेन को 2016 में शिंजियांग भेजा गया था. एक जातीय नीति विकसित करने के लिए मशहूर चेन ने वहां पहुंचने के साल भर के भीतर ही शिंजियांग में सुरक्षा संबंधी रणनीति पर अमल करना शुरू कर दिया. आज शिंजियांग दुनिया का सबसे ज़्यादा सैन्य मोर्चेबंदी वाला इलाक़ा बन चुका है.

ज़्यादातर उइगर मुसलमान प्राथमिक क्षेत्रों में ही काम करते हैं. वहीं, ऊंचे ओहदों और बड़े उद्योगों में हान समुदाय के कामगारों का ही दबदबा है. हान समुदाय और उइघुर मुसलमानों के बीच बढ़ते इस फ़ासले के चलते, शिंजियांग में जातीय तनाव भी बढ़ रहा है.

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने पूरे शिंजियांग में 1200 से ज़्यादा नज़रबंदी शिविर बनाने के लिए साल 2017 से अब तक करीब 70 करोड़ डॉलर से भी ज़्यादा रक़म ख़र्च की है. ‘बुर्क़ा पहनने’, ‘लंबी दाढ़ी रखने’ और सरकार की परिवार नियोजन नीति का उल्लंघन करने के ‘जुर्म’ में दस लाख से ज़्यादा उइगर मुसलमानों को इन नज़रबंदी शिविरों में भेज दिया गया है. इसके अलावा चीनी सरकार, शिंजियांग में डीएनए प्रोफ़ाइल बनाने, ख़ून के नमूने, फिंगरप्रिंट और आवाज़ के सैंपल लेने जैसे सख़्त क़दम भी उठा रही है. ख़ुफ़िया डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल कर उइगर मुसलमानों पर कड़ी नज़र रखी जा रही है. उनके बर्ताव का विश्लेषण किया जा रहा है. इसके अलावा, चीन ने मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने पर रोक लगा दी है और मस्जिदें ढहा दी हैं. इतना ही नहीं, इन डिटेंशन सेंटरों में  मुस्लिम महिलाओं से बलात्कार करके उन्हें जला दिया गया. ज़बरदस्ती नसबंदी, गर्भपात और सरकारी अभियानों के ज़रिए गर्भनिरोधक लगाने जैसे क़दमों के चलते शिंजियांग में उइगर मुसलमानों की आबादी बढ़ने की क़ुदरती विकास दर में 84 प्रतिशत तक की गिरावट आई है. दक्षिण के उइगर बहुल क्षेत्र में ये आबादी 1.6 से गिरकर 0.26 प्रतिशत ही रह गई है. नज़रबंदी शिविरों में क़ैद उइगर मुसलमानों के साथ सामूहिक बलात्कार, शरीर के अंग निकालने और महामारी के दौरान ज़बरन मज़दूरी कराने की घटनाएं आम हो चुकी हैं. 2017 से नमाज़ पढ़ने को अवैध गतिविधि घोषित किया जा चुका है और बुनियादी धार्मिक काम करने पर भी उइगर मुसलमानों पर जुर्माना लगाया जा रहा है.

ख़ुद को दुनिया भर के मुसलमानों का मसीहा बताने वाले पाकिस्तान ने तो बार-बार उन पाकिस्तानी संगठनों और नागरिकों को चुप कराया है, जिन्होंने उइगर मुसलमानों के बुरे हालातों का मुद्दा उठाने की कोशिश की है.

ज़ुल्म ढाने में शरीक़

सियासी तिकड़म अपनी जगह, मगर पिछले एक दशक से इस्लामिक सहयोग संगठन ने शिंजियांग के मुसलमानों को लेकर पूरी तरह से ख़ामोशी अख़्तियार कर रखी है. कई बार तो OIC ने शिंजियांग में उइगर मुसलमानों पर ज़ुल्म ढाने का समर्थन भी किया है, ख़ास तौर से राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शासन काल में. वहीं दूसरी तरफ़, अमेरिका, यूरोपीय संघ और समान विचारधारा वाले अन्य लोकतांत्रिक देशों ने उइगर मुसलमानों पर चीन द्वारा ढाए जा रहे ज़ुल्म की कड़ी आलोचना की है और इन्हें ‘नरसंहार’ क़रार दिया है. पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों ने शिंजियांग में तैनात चीन के अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने के लिए क़ानून भी पारित किए हैं और बीजिंग में हुए शीतकालीन ओलंपिक खेलों का कूटनीतिक बहिष्कार भी किया गया था. 2019 से ही लोकतांत्रिक देश OHCHR जैसे मंचों पर चीन द्वारा किए जा रहे मानव अधिकारों के उल्लंघन के मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठा रहे हैं. हालांकि, पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, क़तर, ओमान, बहरीन, मिस्र और कुवैत जैसे OIC के तमाम सदस्य देशों ने इन्हीं मंचों पर ‘मानव अधिकारों के संरक्षण और विकास के ज़रिए उन्हें बढ़ावा देने’ के लिए चीन के प्रयासों की तारीफ़ की है. ख़ुद को दुनिया भर के मुसलमानों का मसीहा बताने वाले पाकिस्तान ने तो बार-बार उन पाकिस्तानी संगठनों और नागरिकों को चुप कराया है, जिन्होंने उइगर मुसलमानों के बुरे हालातों का मुद्दा उठाने की कोशिश की है. दिसंबर 2019 में पूर्व क्रिकेटर शाहिद अफरीदी ने उइगर मुसलमानों पर चीन द्वारा ढाए जा रहे ज़ुल्म को लेकर ट्वीट किया और इमरान ख़ान को भी सलाह दी कि वो इस मुद्दे के ख़िलाफ़ बोलें. हालांकि पाकिस्तान के अधिकारियों ने शाहिद अफरीदी को उनका ट्वीट डिलीट करने के लिए मजबूर किया गया था.

OIC के अन्य सदस्यों ने भी चीन की मुस्लिम विरोधी नीतियों और वहां पर बढ़ते इस्लामोफ़ोबिया का न सिर्फ़ समर्थन किया है, बल्कि उइगर मुसलमानों पर ज़ुल्म ढाने के शरीक भी रहे हैं. पाकिस्तान, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, मलेशिया, तुर्की, क़तर, मिस्र और यहां तक कि अफ़ग़ानिस्तान ने भी चीन से आए उइगर मुसलमानों को दोबारा चीन को प्रत्यर्पित कर दिया. 2017 से अब तक 682 से ज़्यादा उइगर मुसलमानों को गिरफ़्तार करके उन्हें चीन वापस भेजा गया है.

शिंजियांग से बाहर रहने वाले उइगर मुसलमानों को दबाने की कोशिशों ने OIC के पाखंड का भी पर्दाफ़ाश कर दिया है और इससे ये भी पता चलता है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने मुस्लिम देशों में कितनी गहरी पैठ बना ली है.

मुस्लिम देश तानाशाही मानसिकता वाले हैं और लोकतांत्रिक देशों की दख़लंदाज़ी वाली नीतियों से उन्हें ख़ौफ़ हो जाता है. चीन ने इन हालात का बख़ूबी फ़ायदा उठाया है. ख़ास तौर से अरब देशों में हुए इंक़लाब के बाद और दूसरे देशों में दख़लंदाज़ी न देने और उनकी क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करने की नीति पर अमल किया है. चीन ने इन मुस्लिम देशों को मानव अधिकारों, क़ानून के राज और अन्य राजनीतिक और सियासी चिंताओं के मुद्दे न उठाकर, बिना किसी शर्त के क़र्ज़ भी मुहैया कराए हैं. पाकिस्तान को भी BRI का नगीना कहे जाने वाले चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के विकास के लिए चीन से 62 अरब डॉलर का क़र्ज़ हासिल हुआ है. बीजिंग ने ऊर्जा कूटनीति का भी ख़ूब दोहन किया है. आज सऊदी अरब, ईरान, कुवैत और ओमान से सबसे ज़्यादा तेल और गैस चीन को ही निर्यात किया जाता है. इसके अलावा चीन ने चाइनीज़ इस्लामिक एसोसिएशन (CIA) के ज़रिए इस्लाम पर अपने बख़ान का भी ख़ूब प्रचार किया है. ये इस्लामिक परिचर्चा और धार्मिक गतिविधियों पर नज़र रखने वाली चीन की सबसे बड़ी संस्था है.

ऐसे हालात में OIC की बैठक में चीन के विदेश मंत्री की मौजूदगी ने मुस्लिम देशों के ख़ुदग़र्ज़ हितों को उजागर कर दिया है. शिंजियांग से बाहर रहने वाले उइगर मुसलमानों को दबाने की कोशिशों ने OIC के पाखंड का भी पर्दाफ़ाश कर दिया है और इससे ये भी पता चलता है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने मुस्लिम देशों में कितनी गहरी पैठ बना ली है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.