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‘अर्थ डे 2023’ की थीम के मुताबिक़ भारतीय व्यवसायों को ग्रीन सॉल्युशन्स यानी हरित समाधानों में निवेश करना चाहिए और टिकाऊ एवं ग्रीन बिजनेस मॉडल्स को अपनाना चाहिए.
आज के दौर में एनवायरनमेंटल, सोशल एवं गवर्नेंस यानी ESG मापदंड दुनिया भर के व्यवसायों के साथ बेहद लोकप्रिय हो चुके हैं. इसके पीछे प्रमुख वजह यह है कि व्यवसायों के संचालन की मुख्य रणनीति में स्थिरता संबंधी चिंताओं को आत्मसात करने की ज़रूरत बढ़ी है और इसकी मान्यता भी बढ़ी है. देखा जाए तो इसका दायरा न केवल पश्चिमी देशों में फैला है, बल्कि भारतीय कंपनियों समेत ग्लोबल साउथ में भी इसके महत्त्व पर ध्यान दिया जाने लगा है. कॉर्पोरेट सेक्टर में तात्कालिक "लाभ" हासिल करने की जो धारणा है, वह भी इसीलिए "टिकाऊ व्यवसाय" की धारणा के साथ बदल रही है. ऐसा इसलिए है क्योंकि व्यवसायों ने तीन महत्त्वपूर्ण बिंदुओं का मूल्यांकन करना और उनके महत्त्व को पहचानना शुरू कर दिया है: a) लंबे समय में उनके प्रयासों का अस्तित्व प्राकृतिक संसाधन बेस पर निर्भर करता है, एक छोटी अवधि में रेंट-सीकिंग व्यवहारों यानी आर्थिक लाभ प्राप्त करने और जोड़-तोड़ का सहारा लेने जैसे व्यवहारों में गिरावट और कमी के अधीन है., b) अधिक टिकाऊ मूल्य-श्रृंखलाओं का निर्माण करने के लिए भविष्य की ह्यूमन कैपिटल यानी मानव पूंजी में निवेश करने की ज़रूरत, c) वे व्यवसाय जो पूंजी की चार शक्तियों, यानी कि मानव पूंजी, सोशल पूंजी, भौतिक पूंजी और प्राकृतिक पूंजी में निवेश करते हैं और जिसकी वजह से वे "टिकाऊ और हरित" बिज़नेस मॉडल्स के रास्ते पर चलते हुए मध्यम और लंबी अवधि में ज़्यादा प्रतिस्पर्धी होंगे, जिसके नतीजे उनकी दीर्घाकालिक बॉटम लाइन्स अर्थात लाभ या हानि की अंतिम स्थिति में दिखाई देते हैं. इस सबके बावज़ूद हमें इस सच्चाई का सामना करने की ज़रूरत है, क्योंकि भारतीय व्यवसायों के बीच अभी इसका हर स्तर पर और हर जगह पर इसका अनुसरण नहीं किया गया है.
आज के दौर में एनवायरनमेंटल, सोशल एवं गवर्नेंस यानी ESG मापदंड दुनिया भर के व्यवसायों के साथ बेहद लोकप्रिय हो चुके हैं. इसके पीछे प्रमुख वजह यह है कि व्यवसायों के संचालन की मुख्य रणनीति में स्थिरता संबंधी चिंताओं को आत्मसात करने की ज़रूरत बढ़ी है और इसकी मान्यता भी बढ़ी है.
ऐसे में जब हम यह कहते हैं कि ESG मूलभूत प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना और कार्यों से समझौता किए बगैर पूंजी की चार ताक़तों में निवेश करने वाली कंपनियों की आवश्यकता पर ज़ोर देता है, तो यह SDGs में निवेश करने के ही बराबर है, जो कि चार पूंजियों द्वारा वर्णित प्लैनेट यानी धरती की इस "समावेशी संपत्ति" को भी स्वीकार करता है. यहां सबसे अहम बात यह है कि व्यवसायों को यह समझने की आवश्यकता है कि वे ESG मापदंडों के बारे में बात करते समय UN SDGs अर्थात संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों का ध्यान रख रहे हैं या नहीं. इस प्रक्रिया में यह समझने की ज़रूरत है कि बिजनेस और SDGs के बीच दोतरफा संबंध होता है. हालांकि, जहां तक व्यवसायों की बात है, तो उनके लिए ESG वह माध्यम है, जिसके ज़रिए से वे SDGs की ज़रूरतों को संबोधित करते हैं. रिसर्च के मुताबिक़ SDGs निम्नलिखित तरीक़ों से सक्षम एवं अनुकूल व्यावसायिक परिस्थितियों का निर्माण करते हैं. सबसे पहले, SDGs को संबोधित करने से, या उसके मुताबिक़ रणनीति बनाने से भविष्य में लगने वाले झटकों से पैदा होने वाले ज़ोख़िमों को कम करके दीर्घकालिक "लेनदेन लागत" को कम करने में मदद मिलती है. ज़ाहिर है कि यह उनकी कोशिशों के पर्यावरणीय, राजनीतिक और सामाजिक आयामों को प्रभावित कर सकता है, जिससे उनके बीच प्रतिस्पर्धात्मकता में मदद मिलती है. दूसरा, SDGs की ज़रूरतों का ध्यान रखने से स्थिरता ज़ोख़िमों और प्रभावों में अंतर्निहित पारदर्शिता के कारण गवर्नेंस के बेहतर तरीक़ों को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है, जो कि जानकारी या सूचना से जुड़ी विषमताओं को कम करने में मददगार होते हैं. तीसरा, जब SDGs को संबोधित करते हुए नए व्यावसायिक समाधान और अवसर सामने लाए जाते हैं, तो इससे न केवल बाज़ार का विस्तार करने में मदद मिलती है, बल्कि बॉटम लाइन्स को भी लाभ होता है और विभिन्न स्तरों पर साझेदारी निर्मित होने से आख़िरकार रोज़गार के अवसरों का भी सृजन होता है. यह कंपनी की अच्छाई और नेक कार्य करने की भावना को भी सामने लाता है, साथ ही कॉर्पोरेट ब्रांडिंग में मददगार होता है. आख़िरकार देखा जाए तो ESG मापदंडों में निवेश करना और साथ ही साथ SDGs का ध्यान रखना साझा मूल्य निर्मित करने (CSV) की तरह है, जैसा कि माइकल पोर्टर एवं मार्क क्रैमर ने कल्पना की थी.
लिहाज़ा SDGs द्वारा सामने लाए गए बेशुमार अवसरों के मद्देनज़र, जिन्हें व्यवसाय अपनी ESG पहलों के ज़रिए संभाल सकते हैं, भारतीय व्यवसाय इस उभरते परिदृश्य की अनदेखी नहीं कर सकते हैं. हालांकि, सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में सभी स्तरों पर सामाजिक-पारिस्थितिक तंत्र के लिए जो ताक़तें सर्वकालिक परेशानी पैदा करने के तौर पर उभरी है, वो निश्चित रूप से ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हैं. जलवायु परिवर्तन और सतत विकास लक्ष्यों का पारस्परिक संबंध बेहद जटिल और बहुआयामी है, साथ ही यह संबंध बाई-डायरेक्शन कैजुअल्टी यानी जब दो चीज़ें एक दूसरे का कारण बनती हैं, के साथ होता है. एक तरफ जलवायु परिवर्तन सतत विकास लक्ष्यों की उपलब्धि को प्रभावित करता है, जबकि दूसरी ओर, SDGs जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिए एक उम्मीद से भरे फ्रेमवर्क को प्रस्तुत करते हैं, क्योंकि इसके कई सारे लक्ष्य जलवायु परिवर्तन को कम करने और इसके अनुसार अनुकूल होने से संबंधित हैं. कुछ हद तक देखा जाए, तो SDG 13 पूरी तरह से क्लाइमेट एक्शन के बारे में है.
यही सब कारण हैं कि भारतीय व्यवसायों को इस पर गंभीरता के साथ विचार करने की ज़रूरत है. जलवायु परिवर्तन से व्यवसायों के ESG मापदंड गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं, ज़ाहिर है कि इससे उनकी दीर्घकालिक व्यावसायिक संभावनाओं और प्रतिस्पर्धा पर भी असर पड़ता है. इस वजह से भारतीय व्यवसायों के लिए जलवायु साक्षरता बेहद महत्त्वपूर्ण हो जाती है. जलवायु साक्षरता का मतलब जलवायु परिवर्तन (यदि विज्ञान नहीं है) के प्रभाव से है और अनुकूलन एवं कमी करने के रूप में इसके समाधान की समझ से है. इस तरह की जलवायु साक्षरता व्यवसायों को विवेकपूर्ण फैसले लेने और भविष्य के ज़ोख़िमों को दूर करने के लिए सार्थक कार्रवाई करने में मदद करने के साथ ही बेहद अहम व सार्थक भूमिका निभाएगी. इसके अनगिनत फायदे हैं.
कंपनियां अगर प्लैनेट में निवेश करती हैं, तो वे एक लिहाज़ से व्यापक पैमाने पर सोसाइटी के लिए साझा मूल्य बनाने के साथ ही अपनी खुद की बिजनेस निरंतरता प्रक्रिया में ही निवेश करेंगी.
इस सभी परिस्थितियों के मद्देनज़र भारतीय व्यवसायों के लिए अपने प्लैनेट के लिए निवेश करना अनिवार्य हो जाता है. प्रकृति-आधारित समाधानों में निवेश, हरित ऊर्जा संक्रमण, कम ऊर्जा खपत वाली टेक्नोलॉजी और कम संसाधन-खपत वाली प्रथाओं का निर्माण करने से ही जलवायु परिवर्तन के "वैश्विक कॉमन्स" जैसे कि पृथ्वी का बदलता वातावरण, समुद्र तल में बढ़ोतरी जैसे विभिन्न मुद्दों का मुक़ाबला करने में मदद मिलेगी, जिनका कि व्यवसाय की बॉटम लाइन्स पर विभिन्न तरीक़ों से दीर्घकालिक असर पड़ता है. जितनी तेज़ गति से भारतीय व्यवसाय इन्हें स्वीकार करेंगे और संबोधित करेंगे, उतना ही उनके लिए और व्यापक समाज के लिए बेहतर होगा. कंपनियां अगर प्लैनेट में निवेश करती हैं, तो वे एक लिहाज़ से व्यापक पैमाने पर सोसाइटी के लिए साझा मूल्य बनाने के साथ ही अपनी खुद की बिजनेस निरंतरता प्रक्रिया में ही निवेश करेंगी. इसलिए, 2023 के ‘अर्थ डे’ के अवसर पर भारतीय व्यवसायों को आदर्श रूप से इस "हरित संकल्प" का न केवल समर्थन करना चाहिए, बल्कि इसे सिद्ध करके भी दिखाना चाहिए.
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Dr Nilanjan Ghosh heads Development Studies at the Observer Research Foundation (ORF) and is the operational head of ORF’s Kolkata Centre. His career spans over ...
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