Author : Nilanjan Ghosh

Published on Apr 26, 2023 Updated 0 Hours ago

‘अर्थ डे 2023’ की थीम के मुताबिक़ भारतीय व्यवसायों को ग्रीन सॉल्युशन्स यानी हरित समाधानों में निवेश करना चाहिए और टिकाऊ एवं ग्रीन बिजनेस मॉडल्स को अपनाना चाहिए.

प्लैनेट यानी पृथ्वी में निवेश: भारतीय कॉरपोरेट्स को ESG सक्षम बनाने में जलवायु साक्षरता का महत्त्व!

आज के दौर में एनवायरनमेंटल, सोशल एवं गवर्नेंस यानी ESG मापदंड दुनिया भर के व्यवसायों के साथ बेहद लोकप्रिय हो चुके हैं. इसके पीछे प्रमुख वजह यह है कि व्यवसायों के संचालन की मुख्य रणनीति में स्थिरता संबंधी चिंताओं को आत्मसात करने की ज़रूरत बढ़ी है और इसकी मान्यता भी बढ़ी है. देखा जाए तो इसका दायरा न केवल पश्चिमी देशों में फैला है, बल्कि भारतीय कंपनियों समेत ग्लोबल साउथ में भी इसके महत्त्व पर ध्यान दिया जाने लगा है. कॉर्पोरेट सेक्टर में तात्कालिक "लाभ" हासिल करने की जो धारणा है, वह भी इसीलिए "टिकाऊ व्यवसाय" की धारणा के साथ बदल रही है. ऐसा इसलिए है क्योंकि व्यवसायों ने तीन महत्त्वपूर्ण बिंदुओं का मूल्यांकन करना और उनके महत्त्व को पहचानना शुरू कर दिया है: a) लंबे समय में उनके प्रयासों का अस्तित्व प्राकृतिक संसाधन बेस पर निर्भर करता है, एक छोटी अवधि में रेंट-सीकिंग व्यवहारों यानी आर्थिक लाभ प्राप्त करने और जोड़-तोड़ का सहारा लेने जैसे व्यवहारों में गिरावट और कमी के अधीन है., b) अधिक टिकाऊ मूल्य-श्रृंखलाओं का निर्माण करने के लिए भविष्य की ह्यूमन कैपिटल यानी मानव पूंजी में निवेश करने की ज़रूरत, c) वे व्यवसाय जो पूंजी की चार शक्तियों, यानी कि मानव पूंजी, सोशल पूंजी, भौतिक पूंजी और प्राकृतिक पूंजी में निवेश करते हैं और जिसकी वजह से वे "टिकाऊ और हरित" बिज़नेस मॉडल्स के रास्ते पर चलते हुए मध्यम और लंबी अवधि में ज़्यादा प्रतिस्पर्धी होंगे, जिसके नतीजे उनकी दीर्घाकालिक बॉटम लाइन्स अर्थात लाभ या हानि की अंतिम स्थिति में दिखाई देते हैं. इस सबके बावज़ूद हमें इस सच्चाई का सामना करने की ज़रूरत है, क्योंकि भारतीय व्यवसायों के बीच अभी इसका हर स्तर पर और हर जगह पर इसका अनुसरण नहीं किया गया है.

आज के दौर में एनवायरनमेंटल, सोशल एवं गवर्नेंस यानी ESG मापदंड दुनिया भर के व्यवसायों के साथ बेहद लोकप्रिय हो चुके हैं. इसके पीछे प्रमुख वजह यह है कि व्यवसायों के संचालन की मुख्य रणनीति में स्थिरता संबंधी चिंताओं को आत्मसात करने की ज़रूरत बढ़ी है और इसकी मान्यता भी बढ़ी है.

ऐसे में जब हम यह कहते हैं कि ESG मूलभूत प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना और कार्यों से समझौता किए बगैर पूंजी की चार ताक़तों में निवेश करने वाली कंपनियों की आवश्यकता पर ज़ोर देता है, तो यह SDGs में निवेश करने के ही बराबर है, जो कि चार पूंजियों द्वारा वर्णित प्लैनेट यानी धरती की इस "समावेशी संपत्ति" को भी स्वीकार करता है. यहां सबसे अहम बात यह है कि व्यवसायों को यह समझने की आवश्यकता है कि वे ESG मापदंडों के बारे में बात करते समय UN SDGs अर्थात संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों का ध्यान रख रहे हैं या नहीं. इस प्रक्रिया में यह समझने की ज़रूरत है कि बिजनेस और SDGs के बीच दोतरफा संबंध होता है. हालांकि, जहां तक व्यवसायों की बात है, तो उनके लिए ESG वह माध्यम है, जिसके ज़रिए से वे SDGs की ज़रूरतों को संबोधित करते हैं. रिसर्च के मुताबिक़ SDGs निम्नलिखित तरीक़ों से सक्षम एवं अनुकूल व्यावसायिक परिस्थितियों का निर्माण करते हैं. सबसे पहले, SDGs को संबोधित करने से, या उसके मुताबिक़ रणनीति बनाने से भविष्य में लगने वाले झटकों से पैदा होने वाले ज़ोख़िमों को कम करके दीर्घकालिक "लेनदेन लागत" को कम करने में मदद मिलती है. ज़ाहिर है कि यह उनकी कोशिशों के पर्यावरणीय, राजनीतिक और सामाजिक आयामों को प्रभावित कर सकता है, जिससे उनके बीच प्रतिस्पर्धात्मकता में मदद मिलती है. दूसरा, SDGs की ज़रूरतों का ध्यान रखने से स्थिरता ज़ोख़िमों और प्रभावों में अंतर्निहित पारदर्शिता के कारण गवर्नेंस के बेहतर तरीक़ों को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है, जो कि जानकारी या सूचना से जुड़ी विषमताओं को कम करने में मददगार होते हैं. तीसरा, जब SDGs को संबोधित करते हुए नए व्यावसायिक समाधान और अवसर सामने लाए जाते हैं, तो इससे न केवल बाज़ार का विस्तार करने में मदद मिलती है, बल्कि बॉटम लाइन्स को भी लाभ होता है और विभिन्न स्तरों पर साझेदारी निर्मित होने से आख़िरकार रोज़गार के अवसरों का भी सृजन होता है. यह कंपनी की अच्छाई और नेक कार्य करने की भावना को भी सामने लाता है, साथ ही कॉर्पोरेट ब्रांडिंग में मददगार होता है. आख़िरकार देखा जाए तो ESG मापदंडों में निवेश करना और साथ ही साथ SDGs का ध्यान रखना साझा मूल्य निर्मित करने (CSV) की तरह है, जैसा कि माइकल पोर्टर एवं मार्क क्रैमर ने कल्पना की थी.

भारतीय व्यवसायों के बीच जलवायु साक्षरता क्यों अहम है?

लिहाज़ा SDGs द्वारा सामने लाए गए बेशुमार अवसरों के मद्देनज़र, जिन्हें व्यवसाय अपनी ESG पहलों के ज़रिए संभाल सकते हैं, भारतीय व्यवसाय इस उभरते परिदृश्य की अनदेखी नहीं कर सकते हैं. हालांकि, सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में सभी स्तरों पर सामाजिक-पारिस्थितिक तंत्र के लिए जो ताक़तें सर्वकालिक परेशानी पैदा करने के तौर पर उभरी है, वो निश्चित रूप से ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हैं. जलवायु परिवर्तन और सतत विकास लक्ष्यों का पारस्परिक संबंध बेहद जटिल और बहुआयामी है, साथ ही यह संबंध बाई-डायरेक्शन कैजुअल्टी यानी जब दो चीज़ें एक दूसरे का कारण बनती हैं, के साथ होता है. एक तरफ जलवायु परिवर्तन सतत विकास लक्ष्यों की उपलब्धि को प्रभावित करता है, जबकि दूसरी ओर, SDGs जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिए एक उम्मीद से भरे फ्रेमवर्क को प्रस्तुत करते हैं, क्योंकि इसके कई सारे लक्ष्य जलवायु परिवर्तन को कम करने और इसके अनुसार अनुकूल होने से संबंधित हैं. कुछ हद तक देखा जाए, तो SDG 13 पूरी तरह से क्लाइमेट एक्शन के बारे में है.

यही सब कारण हैं कि भारतीय व्यवसायों को इस पर गंभीरता के साथ विचार करने की ज़रूरत है. जलवायु परिवर्तन से व्यवसायों के ESG मापदंड गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं, ज़ाहिर है कि इससे उनकी दीर्घकालिक व्यावसायिक संभावनाओं और प्रतिस्पर्धा पर भी असर पड़ता है. इस वजह से भारतीय व्यवसायों के लिए जलवायु साक्षरता बेहद महत्त्वपूर्ण हो जाती है. जलवायु साक्षरता का मतलब जलवायु परिवर्तन (यदि विज्ञान नहीं है) के प्रभाव से है और अनुकूलन एवं कमी करने के रूप में इसके समाधान की समझ से है. इस तरह की जलवायु साक्षरता व्यवसायों को विवेकपूर्ण फैसले लेने और भविष्य के ज़ोख़िमों को दूर करने के लिए सार्थक कार्रवाई करने में मदद करने के साथ ही बेहद अहम व सार्थक भूमिका निभाएगी. इसके अनगिनत फायदे हैं.

  1. जलवायु-संबंधी ज़ोख़िमों की पहचान और प्रबंधन: क्लाइमेट लिटरेसी यानी जलवायु साक्षरता, व्यवसायों को जलवायु से जुड़े विभिन्न ज़ोख़िमों को पहचानने और उनका आकलन करने के लिए जानकारी एवं उपकरणों से लैस करती है, जैसे कि भौतिक ज़ोख़िम (यानी कि चरम मौसमी घटनाएं, समुद्र के जल स्तर में बढ़ोतरी), संक्रमण ज़ोख़िम (जैसे, नीति और विनियामक बदलाव, बाज़ार में परिवर्तन) और रेपुटेशनल ज़ोख़िम (जैसे, सार्वजनिक विचार, हितधारकों की अपेक्षाएं). इन ज़ोख़िमों को भली-भांति समझकर, इनके परिणामों एवं असर का सामना करने के लिए और व्यवसायों की दीर्घकालिक व्यवहार्यता एवं लचीलेपन का बचाव करने के लिए उचित रणनीति तैयार की जा सकती है. 
  1. जलवायु से जुड़े विचारों को व्यावसायिक रणनीति में समाहित करना: जलवायु साक्षरता व्यवसायों को जलवायु संबंधी विचारों को उनकी समग्र व्यावसायिक रणनीति में जोड़ने के योग्य बनाती है, ताकि उनके व्यवसाय संचानल को टिकाऊ लक्ष्यों के साथ जोड़ा जा सके. इसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए लक्ष्य निर्धारित करना, स्थायी आपूर्ति श्रृंखला प्रथाओं को अपनाना, सर्कुलर अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों को बढ़ावा देना और जलवायु ज़ोख़िम प्रबंधन को वित्तीय योजना एवं निवेश के फैसलों में समाहित करना शामिल है. अपनी व्यावसायिक रणनीति में जलवायु संबंधी विचारों को शामिल करके, व्यवसाय न केवल अपने समग्र ESG प्रदर्शन में सुधार कर सकते हैं, बल्कि अपने हितधारकों के लिए दीर्घकालिक मूल्यों को निर्मित कर सकते हैं.
  1. जलवायु से जुड़े मुद्दों पर हितधारकों को शामिल करना: जलवायु साक्षरता व्यवसायों को जलवायु से जुड़े विभिन्न प्रकार के मुद्दों पर निवेशकों, ग्राहकों, कर्मचारियों, स्थानीय समुदायों और नियामकों समेत हितधारकों के साथ जुड़ने के लिए सशक्त करती है. इसमें जलवायु से संबंधित ज़ोख़िमों, अवसरों और कार्रवाईयों को पारदर्शी एवं भरोसेमंद तरीक़े से सूचित करना, जलवायु संबंधी पहलों पर हितधारक के इनपुट प्राप्त करना और हितधारकों की चिंताओं एवं अपेक्षाओं का उत्तर देना शामिल है.
  1. जलवायु-लचीले ऑपरेशन्स का निर्माण: जलवायु साक्षरता क्लाइमेट चेंज के प्रभावों के अनुकूल उपायों को अपनाकर व्यवसायों को जलवायु-लचीले ऑपरेशन्स निर्मित करने में सहायता करती है. इसमें जलवायु ज़ोख़िम से संबंधित आकलन को कार्यान्वित करना, अत्यंत ख़तरनाक मौसमी घटनाओं का सामना करने के लिए आकस्मिक योजना तैयार करना, कमज़ोर इलाक़ों पर निर्भरता कम करने के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाना और जलवायु-लचीले बुनियादी ढांचे एवं प्रौद्योगिकियों में निवेश करना शामिल है, जिससे निर्बाध रूप से बिजनेस संचालित करने में मदद मिलती है.
  1. जलवायु से जुड़े कार्यों की रिपोर्टिंग और उनके प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना: जलवायु साक्षरता, व्यवसायों को जलवायु के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों की रिपोर्टिंग और उनके प्रचार को बढ़ाने में सक्षम बना सकती है, जो की ESG रिपोर्टिंग का एक अहम पहलू है. इसमें ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन, जलवायु से संबंधित ज़ोख़िमों और अवसरों, जलवायु के प्रभावों को कम करने और अनुकूलन से जुड़ी रणनीतियों एवं जलवायु लक्ष्यों की दिशा में होने वाली प्रगति को लेकर पारदर्शी रिपोर्टिंग शामिल है.
  1. पर्यावरण संबंधी मैनेजमेंट सिस्टम्स को कार्यान्वित करना: भारतीय व्यवसाय अपने पर्यावरणीय प्रभावों को विधिवत पहचानने, उनका प्रबंधन करने और उन्हें कम करने के लिए ISO 14001 जैसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त पर्यावरणीय प्रबंधन प्रणालियों को अपना सकते हैं. इसमें नियमित रुप से पर्यावरणीय ऑडिट करना, संसाधनों की खपत, अपशिष्ट उत्पादन एवं उत्सर्जन को कम करने के लिए लक्ष्य निर्धारित करना और पर्यावरण से संबंधित नियम-क़ानूनों का पालन करने के उपायों को लागू करना शामिल है.
  1. नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश: भारतीय व्यवसाय अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए और अपने पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर मुड़ सकते हैं. व्यवसाय भारत की सक्रिय नवीकरणीय ऊर्जा पहलों और अनुकूल रेगुलेटरी वातावरण की मदद से नवीकरणीय ऊर्जा के तमाम अवसरों का लाभ उठा सकते हैं. जैसे कि सौर या पवन ऊर्जा प्लांट्स स्थापित करना, ग्रीन एनर्जी टेक्नोलॉजियों में निवेश करना, या फिर पॉवर परचेज एग्रीमेंट्स यानी बिजली ख़रीद समझौतों (PPAs) के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा की ख़रीद करना. यह न सिर्फ़ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद करता है, बल्कि भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों में भी योगदान देता है और इसके परिणामस्वरूप लंबी अवधि में बिजनेस की लागत में बचत हो सकती है.
  1. सर्कुलर इकोनॉमी सिद्धांतों को अपनाना: भारतीय व्यवसाय सर्कुलर इकोनॉमी सिद्धांतों को अपना सकते हैं, जिसका उद्देश्य अपशिष्ट को कम करना और संपूर्ण मूल्य श्रृंखला में संसाधन के इस्तेमाल में सुधार करना है. इसमें उत्पादों को इस प्रकार से डिजाइन करना कि उसमें स्थायित्व हो और उन्हें रिसाइकिल भी किया जा सके. साथ ही इसमें कम से कम अपशिष्ट पैदा होने वाले और रिसाइकिलिंग वाले कार्यक्रमों को लागू करने एवं सस्टेनेबल ख़रीद प्रैक्टिसिस को बढ़ावा देने जैसी प्रथाओं को अपनाना शामिल हो सकता है. भारतीय व्यवसाय प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 जैसे अधिनियमों का भी लाभ उठा सकते हैं, जो अपने ऑपरेशन्स में सर्कुलर इकोनॉमी प्रथाओं को लागू करने के लिए निर्माता की ज़िम्मेदारी को बढ़ाते हैं. सर्कुलर इकोनॉमी के सिद्धांतों को अपनाकर, व्यवसाय न केवल अपने पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकते हैं, बल्कि एक अधिक टिकाऊ व्यवसाय मॉडल सृजित कर सकते हैं.
  1. कर्मचारी प्रशिक्षण और विकास में निवेश करना: भारतीय व्यवसाय अपने कर्मचारियों के बीच जलवायु और पर्यावरण के बारे में साक्षरता बढ़ाने के लिए कर्मचारी प्रशिक्षण और विकास कार्यक्रमों में निवेश कर सकते हैं. इसमें स्थिरता से जुड़ी अवधारणाओं, सर्वोत्तम प्रथाओं और विनियमों को लेकर प्रशिक्षण देना शामिल हो सकता है. साथ ही जागरूकता अभियानों, वर्कशॉप्स और कर्मचारियों के जुड़ाव वाली पहलों के माध्यम से स्थायित्व की संस्कृति को बढ़ावा देना शामिल हो सकता है. व्यवसाय, पर्यावरणीय मुद्दों को समझने और संबोधित करने के लिए कर्मचारियों की योग्यता को बढ़ा कर स्थिरता की संस्कृति को बढ़ाने के साथ ही कंपनी के ESG लक्ष्यों में योगदान करने के लिए अपने कर्मचारियों को सशक्त बना सकते हैं.
  1. मूल्य-श्रृंखला का लचीलापन और स्थिरता: जलवायु संबंधी मुद्दों को संबोधित करने और स्थिरता में निवेश करने से व्यवसायों को मूल्य-श्रृंखला लचीलापन निर्मित करने में और टिकाऊ मूल्य-श्रृंखला बनाने में मदद मिलेगी. इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि मौजूदा आपूर्ति श्रृंखलाएं महामारी और यूक्रेन संकट की वजह से फिलहाल सामने आ रही दुर्भावना और शत्रुता वाले अनिश्चितिता से भरी वैश्विक आर्थिक पृष्ठभूमि की तुलना में बेहतरीन और व्यवहारिक व्यावसायिक वातावरण के लिए तैयार की गई हैं. मौजूदा आपूर्ति-श्रृंखला फ्रेमवर्क वैश्विक जलवायु परिवर्तन द्वारा लाई गई अनिश्चितताओं का मुश्किल से सामना कर सकते हैं. यही वजह है कि भारतीय व्यवसायों को अपने टिकाऊपन के मानकों को बढ़ाकर कुशलता हासिल करने और अधिक लचीली आपूर्ति श्रृंखला बनाने के लिए नए-नए रास्तों के बारे में सोचने की ज़रूरत है.
कंपनियां अगर प्लैनेट में निवेश करती हैं, तो वे एक लिहाज़ से व्यापक पैमाने पर सोसाइटी के लिए साझा मूल्य बनाने के साथ ही अपनी खुद की बिजनेस निरंतरता प्रक्रिया में ही निवेश करेंगी.

निष्कर्ष

इस सभी परिस्थितियों के मद्देनज़र भारतीय व्यवसायों के लिए अपने प्लैनेट के लिए निवेश करना अनिवार्य हो जाता है. प्रकृति-आधारित समाधानों में निवेश, हरित ऊर्जा संक्रमण, कम ऊर्जा खपत वाली टेक्नोलॉजी और कम संसाधन-खपत वाली प्रथाओं का निर्माण करने से ही जलवायु परिवर्तन के "वैश्विक कॉमन्स" जैसे कि पृथ्वी का बदलता वातावरण, समुद्र तल में बढ़ोतरी जैसे विभिन्न मुद्दों का मुक़ाबला करने में मदद मिलेगी, जिनका कि व्यवसाय की बॉटम लाइन्स पर विभिन्न तरीक़ों से दीर्घकालिक असर पड़ता है. जितनी तेज़ गति से भारतीय व्यवसाय इन्हें स्वीकार करेंगे और संबोधित करेंगे, उतना ही उनके लिए और व्यापक समाज के लिए बेहतर होगा. कंपनियां अगर प्लैनेट में निवेश करती हैं, तो वे एक लिहाज़ से व्यापक पैमाने पर सोसाइटी के लिए साझा मूल्य बनाने के साथ ही अपनी खुद की बिजनेस निरंतरता प्रक्रिया में ही निवेश करेंगी. इसलिए, 2023 के ‘अर्थ डे’ के अवसर पर भारतीय व्यवसायों को आदर्श रूप से इस "हरित संकल्प" का न केवल समर्थन करना चाहिए, बल्कि इसे सिद्ध करके भी दिखाना चाहिए.

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