Expert Speak Raisina Debates
Published on Mar 27, 2025 Updated 0 Hours ago

खलील उर-रहमानी की हत्या तालिबान में गहराते आतंरिक विभाजन और आईएसकेपी को बढ़ते ख़तरे को दिखाती है. इससे ये सवाल भी खड़े होने लगे हैं कि क्या अब अफ़गानिस्तान पर शासन करने की तालिबान की क्षमता कमज़ोर हो रही है.

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार की चिंताएं: आंतरिक दरार और बाहरी ख़तरों की चुनौती

Image Source: Getty

11 दिसंबर 2024 को काबुल में इस्लामिक अमीरात ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान (IEA) में शरणार्थी और प्रत्यावर्तन मंत्री खलील उर-रहमान हक्क़ानी की हत्या कर दी गई थी. अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी हुई थी. इसके बाद तालिबान से जुड़े किसी अधिकारी की ये पहली हाई-प्रोफाइल हत्या थी. हक्क़ानी नेटवर्क से प्रमुख व्यक्तियों में से एक खलील उर-रहमान की मंत्रालय परिसर में एक आत्मघाती हमले में मौत हो गई. उस वक्त वो दोपहर की नमाज़ अदा करने के बाद अपने कार्यालय से बाहर निकल रहे थे. इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (आईएसकेपी) ने अपने टेलीग्राम चैनल के माध्यम से इस हमले की जिम्मेदारी ली है. इस हमले के ज़रिए आईएसकेपी ने तालिबान के वरिष्ठ नेतृत्व को निशाना बनाने की अपनी क्षमता भी दिखा दी. ये हत्या ना सिर्फ आईएसकेपी की तरफ से बढ़ते सुरक्षा ख़तरों को उजागर करती है, बल्कि आंतरिक स्थिरता और सुरक्षा बनाए रखने की तालिबान की क्षमता पर भी सवाल उठाती है.

हक्क़ानी नेटवर्क से प्रमुख व्यक्तियों में से एक खलील उर-रहमान की मंत्रालय परिसर में एक आत्मघाती हमले में मौत हो गई. उस वक्त वो दोपहर की नमाज़ अदा करने के बाद अपने कार्यालय से बाहर निकल रहे थे. इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (आईएसकेपी) ने अपने टेलीग्राम चैनल के माध्यम से इस हमले की जिम्मेदारी ली है. 

तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद खुद को अफ़ग़ानिस्तान का अमीर घोषित कर चुके मुल्ला हबीतुल्लाह अखुंदज़ादा ने तालिबान पर अपनी पकड़ मज़बूत करते जा रहे हैं. संगठन पर अपने नियंत्रण का विस्तार करने और सरकार के भीतर शक्ति को मज़बूत करने के लिए लगातार आदेश जारी कर रहे हैं. हालांकि तालिबान के मंत्रियों द्वारा कई बार अखुंदज़ादा की नीतियों का विरोध भी किया जा रहा है. ये सब उदाहरण बता रहे हैं कि तालिबान के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है और कुछ आंतरिक दरारें मौजूद हैं. तालिबान के दूसरे गुट इन आंतरिक दरारों का फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं. हालांकि तालिबान ने हक्क़ानी की मौत पर आधिकारिक तौर पर "शहादत" के रूप में शोक व्यक्त किया, लेकिन हबीतुल्लाह अखुंदज़ादा के इन शोक सभाओं में शामिल होने की सूचना नहीं मिली. खलील उर-रहमान की हत्या कंधार स्थित तालिबान नेतृत्व और काबुल स्थित हक्क़ानी गुट के बीच आंतरिक समीकरण समझने के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं.

 

हक्क़ानी नेटवर्क कितना मज़बूत?

हक्क़ानी नेटवर्क की स्थापना जलालुद्दीन हक्कानी ने सोवियत विरोधी जिहाद के दौरान की थी. ये नेटवर्क तालिबान की सैन्य और राजनीतिक मशीनरी का एक प्रमुख घटक रहा है. जलालुद्दीन हक्क़ानी की मौत के बाद उनके बेटे सिराजुद्दीन हक्क़ानी ने इस नेटवर्क की बागडोर संभाली. 2021 में वो इस्लामिक एमिरेट अफ़ग़ानिस्तान के गृह मंत्री बन गए. हक्क़ानी नेटवर्क में सबसे ज़्यादा तादाद जद्रान जनजाति से जुड़े लोगों की है. ये लोग लंबे समय से विद्रोही रणनीति के साथ जुड़े हुए हैं. हक्क़ानी नेटवर्क के सदस्यों ने ही सबसे पहले अफगानिस्तान में जिहाद के दौरान आत्मघाती हमलों को एक प्रमुख रणनीति के रूप में स्वीकार किया था. 2012 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने हक्क़ानी नेटवर्क को एक प्रतिबंधित ईकाई घोषित किया. ये दिखाता है कि वैश्विक स्तर पर हक्क़ानी नेटवर्क की छवि एक आतंकी गुट के तौर पर है.

तालिबान और हक्क़ानी के बीच संबंध लेन-देन वाले रहे हैं. तालिबान के पास निर्णय लेने की शक्ति है, जबकि हक्क़ानी नेटवर्क को हमेशा मंत्रिमंडल में जगह मिलती रहती है और उसके मंत्री अपने एजेंडे के हिसाब से स्वतंत्र रूप से काम करते रहे हैं. 

तालिबान और हक्क़ानी के बीच संबंध लेन-देन वाले रहे हैं. तालिबान के पास निर्णय लेने की शक्ति है, जबकि हक्क़ानी नेटवर्क को हमेशा मंत्रिमंडल में जगह मिलती रहती है और उसके मंत्री अपने एजेंडे के हिसाब से स्वतंत्र रूप से काम करते रहे हैं. हक्क़ानी के पास तालिबान से स्वतंत्र वित्तीय स्रोत भी हैं. हक्क़ानी नेटवर्क को तालिबान की हायरकी (पदानुक्रम) का "स्वायत्त लेकिन अनिवार्य" हिस्सा माना जाता है. तालिबान के अस्तित्व और विस्तार के लिए हक्क़ानी नेटवर्क के सह-अस्तित्व की आवश्यकता होती है.

क़तर, तुर्की, सऊदी अरब और पाकिस्तान जैसे देशों ने भी खलील उर-रहमान हक्क़ानी की हत्या की निंदा की. लंबे वक्त से तालिबान का विरोध करने वाले अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने भी हमले की निंदा करते हुए खलील हक्क़ानी को "एक प्रमुख जिहादी परिवार का सदस्य" बताया. हक्क़ानी के गृहनगर की यात्रा के दौरान करज़ई ने उनकी मौत पर संवेदनाएं व्यक्त कीं और हक्क़ानी नेटवर्क के वरिष्ठ सदस्यों के साथ बातचीत की.

हक्क़ानी की मौत के बाद एआरजी महल ने शोक सभाओं का आयोजन किया. इनमें तालिबान के वरिष्ठ नेतृत्व के लोग भी शामिल हुए. सिराजुद्दीन हक्क़ानी ने शोक प्रार्थनाओं का आयोजन किया, जिसमें लगभग दो हफ्तों के दौरान कई देशों से हजारों लोग शामिल हुए. ये रणनीतिक कदम सिराजुद्दीन हक्क़ानी के विभिन्न देशों के अधिकारियों के साथ व्यापक नेटवर्क को उजागर करता है. ये हक्क़ानी नेटवर्क की कूटनीतिक पहुंच और प्रभाव को दर्शाता है.

इस तरह की ख़बरें भी आ रही हैं कि खलील उर-रहमान पर हमले को आसान बनाने के लिए समूह के भीतर संभावित घुसपैठ हुई, या इसे आंतरिक समर्थन मिला. इसकी एक वजह तालिबान के नेतृत्व वाले प्रशासन के भीतर वैचारिक विभाजनों और शक्ति संघर्ष हो सकती है. हक्क़ानी नेटवर्क कुछ फैसलों पर लगातार असहमतियां दर्ज करा रहे थे. सिराजुद्दीन हक्कानी भी अमीर के अधिकार को चुनौती देते हुए उनकी नीतियों और शासन की खुलेआम आलोचना कर रहे हैं. महिलाओं की शिक्षा और दक्षिणपूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में हक्क़ानी नेटवर्क की मज़बूत पकड़ वाले इलाकों में कुछ आदेशों को जिस कड़ाई के साथ लागू किया जा रहा था, उसकी भी कड़ी आलोचना की गई. हालांकि ये कदम व्यक्तिगत सुधार से कम और व्यावहारिक राजनीति से अधिक प्रेरित है. इन्हें पश्चिमी देशों का समर्थन मिल सकता है. हाल ही में हबीतुल्लाह अखुंदज़ादा ने अपने प्रत्यक्ष नियंत्रण के तहत सैन्य उपकरणों के वितरण और उपयोग की घोषणा की. अखुंदज़ादा का ये कदम भी अपने मंत्रियों पर उनके बढ़ते अविश्वास को उजागर करता है. यही वजह है कि उनके मंत्रिमंडल के कई प्रमुख सदस्यों ने इसे लेकर अपनी नाराज़गी जताई, जिनमें आंतरिक मंत्री सिराजुद्दीन हक्क़ानी, विदेश मामलों के उप मंत्री एके स्टानेकज़ई और रक्षा मंत्री मुल्ला याकूब शामिल हैं.

इस्लामिक स्टेट ऑफ़ खुरासन प्रांत का बढ़ता ख़तरा

खलील हक्क़ानी की मौत के एक दिन बाद आईएसकेपी ने अपने टेलीग्राम चैनल के ज़रिए इस विस्फोट की जिम्मेदारी ली थी. अफ़ग़ानिस्तान में आईएसकेपी की तरफ से किए जा रहे हमलों की सूची में हक्क़ानी की हत्या एक बड़ी घटना है. आईएसकेपी  की स्थापना 2014 में हुई थी और उसके बाद से वो लगातार तालिबान सरकार की वैधता को कम करने की कोशिश कर रहा है. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी), अल-क़ायदा और तालिबान से अलग होकर आने वाले लोगों से मिलकर ये संगठन बना है. इस्लामिक स्टेट ऑफ़ खुरासन प्रांत का उद्देश्य कड़े नियमों वाला इस्लामी शासन स्थापित करना है. आईएसकेपी की तरफ से ये आरोप लगाया जाता है कि अंतर्राष्ट्रीय मान्यता हासिल करने के लिए तालिबान पर अपने इस्लामी सिद्धांतों से भटक गया है.

अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया में आईएसकेपी की बढ़ती मज़बूत उपस्थिति क्षेत्रीय स्थिरता के लिए सीधा ख़तरा पैदा करती है. इस समूह की महत्वाकांक्षाएं अफ़ग़ानिस्तान से भी आगे जाने की है. आईएसकेपी का लक्ष्य मध्य और दक्षिण एशिया में भी अपना प्रभाव स्थापित करने का है. अफ़ग़ानिस्तान सरकार के प्रमुख व्यक्तियों को निशाना बनाकर आईएसकेपी ये संदेश देना चाहता है कि तालिबान अब कमज़ोर हो रहा है और वो मज़बूत. खुद को मज़बूत दिखाकर वो तालिबान के कुछ लड़ाकों को आईएसकेपी में शामिल होने के लिए प्रेरित कर सकता है. इसके अलावा तालिबान द्वारा जातीय अल्पसंख्यकों के प्रति जो सख्ती की जा रही है, उसने भी आईएसकेपी में लड़ाकों की भर्ती में मदद की है. चूंकि अफ़ग़ानिस्तान की सीमा सुरक्षा कमज़ोर है, तालिबान का भी अफ़ग़ानिस्तान के कई इलाकों में सीमित प्रभाव है. इसने भी आईएसकेपी को भर्ती, प्रशिक्षण और ऐसे हमलों को करने में सक्षम बनाया है, जिसके गंभीर क्षेत्रीय प्रभाव हो सकते हैं.

खालिल हक्क़ानी की हत्या के दो तात्कालिक प्रभाव दिखे हैं. पहला, इसने अफ़ग़ानिस्तान की अंतरिम सरकार के सदस्यों के लिए बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों को उजागर किया है. दूसरा, तालिबान में आंतरिक असंतोष के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता भी इससे सामने आई है. इसका फायदा आईएसकेपी जैसी संगठन उठा सकते हैं. हक्क़ानी की हत्या आईएसकेपी के रणनीतिक दृष्टिकोण को भी दर्शाती है. आईएसकेपी अब तालिबान के भीतर के विभाजन का लाभ उठाकर ये नैरेटिव देने की कोशिश कर रहा है कि तालिबान कमज़ोर हो रहा है और वो शक्तिशाली. इससे ये संदेश जाएगा कि तालिबान अब अफ़ग़ानिस्तान पर शासन करने में असमर्थ है. हक्क़ानी की हत्या इस बात के भी संकेत देती है कि शायद आईएसकेपी की सरकारी तंत्र में घुसपैठ हो चुकी है. कड़ी चौकसी वाले सरकारी संस्थानों में सुरक्षा उल्लंघन से ये बात स्पष्ट ज़ाहिर होती है.

आईएसकेपी अब तालिबान के भीतर के विभाजन का लाभ उठाकर ये नैरेटिव देने की कोशिश कर रहा है कि तालिबान कमज़ोर हो रहा है और वो शक्तिशाली. इससे ये संदेश जाएगा कि तालिबान अब अफ़ग़ानिस्तान पर शासन करने में असमर्थ है. 

जैसे-जैसे इस तरह के हमले बढ़ेंगे, इस पूरे भेत्र में सुरक्षा ज़ोखिम भी बढ़ेंगे. ऐसे में अफ़ग़ानिस्तान और उसके आसपास के क्षेत्रों में अस्थिरता और हिंसा को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की ज़रूरत है. इस संदर्भ में, ये देखना भी महत्वपूर्ण होगा कि तालिबान कब तक अपना प्रभुत्व बनाए रख सकता है, क्योंकि उसके नेतृत्व में विकास की नीतियों पर कुछ दरारें दिखने लगी हैं. हालांकि हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा का अपने मंत्रियों पर अब भी मज़बूत नियंत्रण है. इसके अलावा अफ़ग़ानिस्तान के अमीर के तौर पर उनकी उनकी आधिकारिक छवि को देखकर लगता है कि कम से कम निकट भविष्य में तो उनके ख़िलाफ कोई आंतरिक विद्रोह नहीं होगा.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.