Author : Abhijit Singh

Published on Sep 09, 2022 Updated 0 Hours ago

एयरक्राफ्ट कैरियर (विमानवाहक पोत) हिंद महासागर में भारत की समुद्री कूटनीति और ताक़त का प्रतीक है.

#Maritime Operations: आईएनएस विक्रांत और समंदर में कार्यवाही!

आईएनएस विक्रांत को भारतीय नौसेना में शामिल किया जाना राष्ट्र और भारतीय नौसेना के लिए एक बड़ी उपलब्धि है. नौसेना के युद्धपोत डिज़ाइन ब्यूरो द्वारा विकसित और कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल) द्वारा निर्मित, विक्रांत भारत का सबसे बड़ा और स्वदेशी तौर पर निर्मित युद्धपोत है. 43,000 टन के डिस्प्लेसमेंट क्षमता के साथ यह युद्धपोत लगभग 7,500 समुद्री मील की दूरी तय कर सकता है और 28 समुद्री मील (इसके आकार और भार के लिए महत्वपूर्ण) की अधिकतम रफ़्तार का यह दावा करता है. इस युद्धपोत पर मिग 29-के विमान, कामोव 31 अर्ली वार्निंग (पूर्व चेतावनी) और एमएच-60 आर मल्टी रोल हेलीकॉप्टरों के साथ-साथ अत्याधुनिक शिपबोर्ड और सुरक्षा प्रणाली, निगरानी और अग्नि-नियंत्रण रडार का बेड़ा लगा हुआ है जो इसे एक अजेय जंगी प्लेटफॉर्म बनाता है.

नौसेना के युद्धपोत डिज़ाइन ब्यूरो द्वारा विकसित और कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल) द्वारा निर्मित, विक्रांत भारत का सबसे बड़ा और स्वदेशी तौर पर निर्मित युद्धपोत है.

हालांकि विक्रांत को भारतीय नौसेना में शामिल करने से मौज़ूदा दुनिया में विमान वाहक पोतों की प्रासंगिकता के बारे में रणनीतिक विशेषज्ञों और पर्यवेक्षकों के बीच एक तरह की बहस छिड़ गई है. हिंद महासागर में भारतीय हितों की रक्षा के लिए भारतीय नौसेना के शीर्ष अधिकारियों द्वारा बार-बार तीसरे विमानवाहक पोत की ज़रूरत को दोहराए जाने के बाद, कुछ टिप्पणी करने वालों ने इस कदम की आलोचना की है और नौसेना की मानसिकता में बदलाव की अपील की है. शक ज़ाहिर करने वालों का कहना है कि बंगाल की खाड़ी या अरब सागर की रक्षा के लिए युद्धपोत जैसे स्ट्राइक फोर्स के लिए अरबों ख़र्च करने का कोई मतलब नहीं है, जबकि भारत के द्वीप क्षेत्रों पर मौज़ूद एयरबेस से समुद्र के पास की रक्षा आसानी से सुनिश्चित की जा सकती है. आलोचकों का मानना है कि विमान वाहक तार्किक रूप से व्यवहारिक नहीं हैं और नए हाइपरसोनिक हथियारों और महाविनाश के तक़नीकों के लिए अत्यधिक संवेदनशील हैं. उनका तर्क है कि फ्लैटटॉप पानी के नीचे के हमलों, रणनीतिक हवाई शक्ति और बैलिस्टिक मिसाइलों के ख़िलाफ़ सुरक्षा देने में नाकाम है ; और युद्ध के हालत में प्रभावहीन है.

संशयवादी एक मज़बूत तर्क देते हैं. युद्धपोतों का संचालन करने वाले जहाज जंग के दौरान सबसे अहम टारगेट होते हैं; ना केवल उनकी भारी लागत और दुश्मन के हमले के लिए संवेदनशीलता के कारण, बल्कि उनके प्रतीकात्मक मूल्य की वज़ह से भी. जब नौसेना जंग का सामना करती है तब दुश्मन के एयरक्राफ्ट कैरियर को तबाह करना सबसे बड़ी प्राथमिकता होती है. इस तरह के जहाजों को क्रूज़ और बैलिस्टिक मिसाइलों की बौछार से टारगेट किए जाने की संभावना रहती है – इस तरह का बारूदी हमला जिससे समंदर में किसी भी तैरते हुए प्लेटफॉर्म का बचना मुश्किल होता है, और कम से कम एक विशालकाय जहाज के अहम हिस्से दुश्मन के टारगेट रेंज में होते हैं. समंदर में जहाजों की निगरानी करने के बावज़ूद फ्लैपटॉप हमेशा दुश्मनों के टारगेट पर होता है.

विक्रांत के बेड़े में शामिल होने और अगले दशक में तीसरे विमानवाहक पोत के शामिल होने की संभावना के साथ ही भारतीय नौसेना पहली बार हिंद महासागर में शक्ति संतुलन को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.

फिर भी विमान वाहक युद्धपोतों को नौसेना में शामिल करने के लिए कई मज़बूत तर्क हैं. ऐसे जहाज तटीय क्षेत्रों तक महत्वपूर्ण पहुंच प्रदान करते हैं, जिससे संवेदनशील समुद्री इलाक़ों में लगातार मौज़ूदगी दर्ज़ होती है. इसके नुक़सान जो भी हों, विमान वाहक युद्धपोत विवादित क्षेत्रों में मनोवैज्ञानिक संतुलन को बदलने में अहम होता है, यही कारण है कि आधुनिक नौसेनाएं युद्धपोत को एक अपरिहार्य संपत्ति के रूप में देखती हैं.

वैचारिक आधार पर, फ्लैटटॉप्स के अंतर्निहित फायदे भी हैं. युद्ध लड़ने वाली संपत्तियों (विध्वंसक, फ्रिगेट, मिसाइल नौकाओं और हमलावर पनडुब्बियों) या ‘सॉफ्ट-पावर’ प्लेटफॉर्मों (अस्पताल के जहाजों और मानवीय राहत प्लेटफॉर्मों) के विपरीत, विमान वाहक युद्धपोत शांतिकाल में सैन्य शक्ति का प्रतीक होती है. जंग के दौरान अहम भूमिका होने के साथ ही फ्लैटटॉप्स राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ज़रूरी होते हैं. इस अर्थ में विमान वाहक युद्धपोत समुद्री कूटनीति के लिए एक अहम हिस्सा है.

हालांकि भारत के विमान वाहक जहाजों का उपयोग शायद ही कभी लचीले ढंग से किया गया है, जो पावर प्रोजेक्शन, सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी और प्रजेंस ऑपरेशन के बीच बदलाव को दर्शाता हो. ऐसा इसलिए है क्योंकि नौसेना को अक्सर एक से अधिक ऑपरेशनल युद्धपोतों को तैनात करने का मौक़ा अब तक नहीं मिला है. विक्रांत के बेड़े में शामिल होने और अगले दशक में तीसरे विमानवाहक पोत के शामिल होने की संभावना के साथ ही भारतीय नौसेना पहली बार हिंद महासागर में शक्ति संतुलन को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.

बीजिंग को लेकर कहा जा रहा है कि वह शक्ति प्रदर्शन और सॉफ्ट-पावर डिप्लोमेसी दोनों के लिए विमान वाहक युद्धपोत का इस्तेमाल करेगा – यह पीएलए-एन की ‘दूर-समुद्र’ रणनीति का एक प्रमुख हिस्सा है.

फिर भी भारत के समुद्री योजनाकारों को एक दुविधा का सामना करना पड़ता है: क्या लागत पर विचार करने से नौसेना की योजनाओं में बदलाव होना चाहिए, जिसमें तट-आधारित वायु शक्ति की जगह विमान वाहक युद्धपोत रक्षा और ताक़त की नुमाइश के लिए मौज़ूद होंगे? विशेषज्ञों के बीच आम सहमति यह है कि हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की सामरिक क्षमता पर प्रतिकूल असर होगा अगर फ्लीट डिफेंस को तटों पर तैनात जंगी विमानों के ज़रिए सुनिश्चित किया जाता है. इनके कथित सामरिक फायदों के बावज़ूद, यह समुद्र में विशेष रूप से प्रभावी नहीं रहा है.

चाइना फैक्टर

भारतीय नौसेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (पीएलए-एन) की महत्वाकांक्षा और चीन के विमान वाहक जहाजों– लिओनिंग, शेडोंग और हाल ही में लॉन्च किए गए फुजियान (टाइप 003) की भूमिका को लेकर भी सचेत है – प्रशांत और हिंद महासागर में इनकी अहम भूमिका होगी. बीजिंग को लेकर कहा जा रहा है कि वह शक्ति प्रदर्शन और सॉफ्ट-पावर डिप्लोमेसी दोनों के लिए विमान वाहक युद्धपोत का इस्तेमाल करेगा – यह पीएलए-एन की ‘दूर-समुद्र’ रणनीति का एक प्रमुख हिस्सा है. बीजिंग की समुद्री महत्वाकांक्षाएं भारतीय पर्यवेक्षकों के समझने के लिए है, क्योंकि चीन साल 2049 तक छह फ्लैटटॉप बनाने की योजना पर काम कर रहा है, जो समुद्री रणनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा में विमान वाहक युद्धपोतों की ज़रूरत को रेखांकित करता है.

फिलहाल विक्रांत को युद्ध के लिए तैयार करने में वक़्त लग सकता है. यूक्रेन पर हमला करने के लिए मॉस्को पर लगाए गए अमेरिकी नेतृत्व वाले प्रतिबंधों के बाद जहाज के लिए रूस से उपकरण, विशेष रूप से एविएशन फैसिलिटी कॉम्प्लेक्स एएफसी को अभी तक पूरी तरह से चालू नहीं किया गया है. भारतीय नौसेना जहाज के आक्रामक तत्व को पूरा करने की कोशिश कर रही है, जिसमें मिग 29के शामिल हैं, जिसमें मल्टी रोल कैरियर बोर्न लड़ाकू विमान (या तो फ्रांसीसी राफेल समुद्री लड़ाकू या बोइंग एफ / ए -18 ई / एफ ‘सुपर हॉर्नेट्स’) शामिल हैं. साल 2023 के अंत तक इस विमान वाहक युद्धपोत के पूरी तरह से चालू होने की संभावना है. हालांकि, भारतीय नौसेना कमांडरों के लिए तीसरे विमान वाहक युद्धपोत से जुड़ी चिंताएं पूरी तरह से विवादास्पद हैं. जैसा कि पर्यवेक्षक देखते हैं, एक विमान वाहक युद्धपोत दुश्मनों को डराने के लिए एक ‘बड़ी छड़ी’ जैसा नहीं है, बल्कि यह करीब और दूर के समुद्री इलाक़े में नौसैनिक कोशिशों का प्रतीक है.

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