Published on Jun 25, 2021 Updated 0 Hours ago

ये झगड़ा जून महीने में उस वक़्त शुरू हुआ जब श्रीलंका सरकार ने अपनी नौसेना की मदद से क़रीब 20 बेकार बसों को डेफ्ट द्वीप के पानी में फेंक दिया

श्रीलंका: मछली पालन की कृत्रिम रीफ़ योजना, भारत के लिए ‘ज़हरीला’ क्यों है?

हाल के दिनों में मछली पालन के मक़सद से कृत्रिम रीफ बनाने में मदद के लिए ख़राब हो चुकी बसों को समुद्र में तय जगह पर फेंकने की श्रीलंका सरकार की एक पहल, भारत के तमिलनाडु और श्रीलंका के जाफ़ना के बीच स्थित जल मार्ग ाल्क स्ट्रेट के इस पार भी आलोचना के दायरे में आ गई है. दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के मछुआरों और विशेषज्ञों ने इस पहल को विनाशकारी’, ‘अवैध और ग़ैरज़िम्मेदाराना बताया है. उनका दावा है कि इस आदत से आने वाले महीनों और वर्षों में व्यापार और उपभोक्ताओं पर समान रूप से असर पड़ेगा. इस तरह दोनों देशों के बीच अड़ियल मछुआरों के मुद्दे में एक नया पहलू जुड़ जाएगा

ये झगड़ा जो समय बहुत आगे नहीं बढ़ा है, जून महीने की शुरुआत में उस वक़्त शुरू हुआ जब श्रीलंका सरकार ने अपनी नौसेना की मदद से क़रीब 20 बेकार बसों को डेफ्ट द्वीप, जिसे तमिल में नीदंतीवु कहा जाता है, के पानी में फेंक दिया. ऐसा करते वक़्त श्रीलंका सरकार ने लान किया कि इससे मछली पालन में मदद मिलेगी और तेज़ी से ख़त्म हो रहे समुद्री जीवन को बहाल किया जा सकेगा. श्रीलंका के मत्स्य पालन मंत्री डगलस देवानंदा, जो श्रीलंका के उत्तरी जाफ़ना प्रायद्वीप से संबंध रखने वाले तमिल राजनीतिक नेता हैं, ने दावा किया कि फेंकी गई गाड़ियां कृत्रिम रीफ़ की तरह काम करेगी और धीरेधीरे चलने वाली मछली की प्रजाति के विकास में मदद करेगी. साथ ही तेज़ी से चलने वाली मछलियों की प्रजाति से उन धीरेधीरे चलने वाली मछलियों की प्रजाति को सुरक्षा भी देगी जो अन्यथा उन्हें खाकर ज़िंदा रहती हैं.

श्रीलंका के मत्स्य पालन मंत्री डगलस देवानंदा, जो श्रीलंका के उत्तरी जाफ़ना प्रायद्वीप से संबंध रखने वाले तमिल राजनीतिक नेता हैं, ने दावा किया कि फेंकी गई गाड़ियां कृत्रिम रीफ़ की तरह काम करेगी और धीरे-धीरे चलने वाली मछली की प्रजाति के विकास में मदद करेगी.

पिछले दिनों जाफ़ना में एक समाचार सम्मेलन के दौरान मंत्री ने इस चलन को अवैज्ञानिक बताने वाले सुझावों को नज़रअंदाज़ कर दिया. स्थानीय तमिल अख़बारों के मुताबिक़ मंत्री ने कहा कि कृत्रिम रीफ़ निर्माण का चलन अमेरिका में 17वीं सदी से और जापान में डेढ़ सौ साल से ज़्यादा समय से है. मंत्री के मुताबिक़, ऐसे चलन ने मछली पालन और मछली उत्पादन बढ़ाने में मदद की थी.

अख़बारों की रिपोर्ट के मुताबिक़ मंत्री देवानंदा ने ये भी कहा कि ये कोई पहली बार नहीं है जब श्रीलंका इस पद्धति को आज़मा रहा है. पहले सरकार ने इसे दक्षिणी इलाक़े के समुद्र में आज़माया है. उन्होंने दावा किया कि स्थानीय मछुआरों ने उत्पादन में बढ़ोतरी की बात कही है. देवानंदा ने इस संदर्भ में ये लान भी किया कि अगर इस मक़सद के लिए ज़रूरत पड़ी तो बेकार हो चुके ट्रेन के डिब्बों और यहां तक कि जहाज़ों को भी समुद्र में फेंका जा सकता है.

श्रीलंका के मीडिया की दूसरी रिपोर्ट में कहा गया कि इस चलन ने गहरे समुद्र में मत्स्य पालन में मदद की है जिसमें श्रीलंका के दक्षिणी भाग में रहने वाले सिंहली मछुआरे बेहद कामयाब हुए हैं. भारत में समुद्र के भीतर दोनों देशों के मछुआरों की लड़ाई से बचने के लिए और भारतीय मछुआरों को अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (आईएमबीएल) पार करने से रोकने के लिए तमिलनाडु सरकार ने केंद्र की मदद से एक कार्यक्रम लागू किया है जिसका मक़सद विकल्प के रूप में गहरे समुद्र में मछली पकड़ने को बढ़ावा देना है. हालांकि ये कार्यक्रम अभी उतनी रफ़्तार नहीं पकड़ पाया है

केंद्रीय हस्तक्षेप

श्रीलंका की पहल से हर कोई ख़ुश नहीं है. पड़ोस में भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु, जहां के स्थानीय मछुआरों और श्रीलंका की नौसेना के बीच दुश्मनी जग ज़ाहिर है और श्रीलंका की नौसेना जिन्हें खदेड़ती रहती है और कई बार अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा पार करने पर उन पर गोली बरसाकर उनकी हत्या करती है, के मछुआरे और विशेषज्ञ श्रीलंका के नज़रिए से अलग राय रखते हैं. उनकी कुछ दलीलों पर विस्तार से सोचविचार करने की ज़रूरत है और इस पर केंद्र के हस्तक्षेप की ज़रूरत पड़ सकती है.

तमिलनाडु के मछुआरे कहते हैं कि उनके विशाल और महंगे मछलियों पकड़ने के लिये समुद्र में फेंकी गई जाल इन बसों में फंसकर बर्बाद हो सकते हैं. कुछ मछुआरे अपने पुराने रुख़ पर कायम हैं कि भारतीय मछुआरों को अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा के पार भी मछली पकड़ने का अधिकार हासिल है. पिछले दशक के दौरान सरकार और नेतृत्व में बदलाव के बावजूद केंद्र इस नज़रिए का लगातार विरोध कर रहा है

केंद्र के मुताबिक़ भारतीय मछुआरों ने अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा के पार मछली पकड़ने का अपना परंपरागत अधिकार उस वक़्त खो दिया जब दोनों देशों ने 1974 और 1976 के द्विपक्षीय समझौतों के ज़रिए समुद्री सीमा का निर्धारण किया. 1974 के समझौते के एक अनुच्छेद, जिसके तहत अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमारेखा के श्रीलंका वाले इलाक़े में पड़ने वाले कच्चतिवु में भारतीय मछुआरों को अपना जाल सुखाने की इजाज़त है, का उल्लेख करते हुए केंद्र का मानना है कि भारतीय मछुआरों को अपना जाल सुखाने की तब तक ज़रूरत नहीं है जब तक कि मछली पकड़ने के दौरान वो भीग नहीं जाएं

लेकिन इसके बावजूद सवाल बना हुआ है कि जो व्यवस्था भारतीय समुद्री किनारे के नज़दीक कच्चतिवु टापू के पास समुद्र के लिए लागू है, तर्क के लिए ही सही, क्या उसे श्रीलंका के समुद्री किनारे के क़रीब पाल्क स्ट्रेट तक विस्तारित किया जा सकता है. ये वही जलमार्ग है जहां श्रीलंका की सरकार ने अब पुराने और टूटे-फूटे बसों को फेंक दिया है

2004 की सुनामी के दौरान इस तरह के कई मलबे श्रीलंका के समुद्री क्षेत्र से भारतीय तट की तरफ़ आ गए और बाद में मछुआरों की नाव को समुद्र में इन मलबों से बचाने के लिए उन्हें हटाना पड़ा था.

लेकिन तमिलनाडु के मत्स्य पालन विशेषज्ञों ने इस बात की तरफ़ ध्यान दिलाया है कि किस तरह 2004 की सुनामी के दौरान इस तरह के कई मलबे श्रीलंका के समुद्री क्षेत्र से भारतीय तट की तरफ़ आ गए और बाद में मछुआरों की नाव को समुद्र में इन मलबों से बचाने के लिए उन्हें हटाना पड़ा था. तमिलनाडु के मत्स्य पालन विशेषज्ञों ने ये भी कहा कि इस तरह के मलबे क्षेत्र के समुद्री जीवन में ज़हर घोल सकते हैं

ये समझना चाहिए कि मछलियां इंसान की तरफ़ से बनाई गई अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा को नहीं मानती हैं और वो एक जगह से दूसरी जगह चलती रहती हैं. ऐसे में भारतीय उपभोक्ताओं द्वारा खायी जाने वाली मछली के ज़हरीला बनने की आशंका बढ़ सकती है. इसका मतलब है कि भारत को ये अधिकार है और उसकी ये ज़िम्मेदारी भी है कि वो इस तरह की अवैज्ञानिक पद्धतियों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करे

ये याद करना चाहिए कि सरकारी और प्राइवेट क्षेत्र में मछली पालन की पद्धतियों का अध्ययन करने वाले भारतीय संस्थानों ने भी मछली पालन में मदद के मक़सद से कृत्रिम रीफ़ के निर्माण के लिए क़रीबक़रीब मिलतीजुलती पद्धति अपनाई थी. लेकिन तमिलनाडु के विशेषज्ञ इस बात की तरफ़ ध्यान दिलाते हैं कि इस तरह के सभी मामलों में समुद्री सतह पर भारी कंक्रीट की बाधा को नीचे कर दिया गया था जहां से समुद्र की धारा उन्हें बेदख़ल या तंग नहीं कर सकती. जैसा कि विशेषज्ञों का कहना है क़ुदरती या कृत्रिम स्थायी रीफ़ अकेले कुछ दिन या लंबे समय में मछली पालन को बनाए नहीं रख सकती हैं. इसलिए श्रीलंका का ये प्रैक्टिस कोई उपाय नहीं है

परस्पर विरोधी उदाहरण 

दक्षिणी तमिलनाडु के बंदरगाह शहर तूतुकुड़ी से ज़्यादा दूर जाने की ज़रूरत नहीं है जहां विशेषज्ञों ने वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध संरक्षण के उपायों के ज़रिए वान टापू की सुरक्षा सुनिश्चित की है जिसकी वजह से मछली की संख्या बढ़ गई है. निर्माण उद्योग के लिए चूना बनाने के मक़सद से व्यापक स्तर पर रीफ़ के खनन की वजह से नुक़सान को देखते हुए पर्यावरणविदों ने आशंका जताई थी कि वान टापू भी दूसरे टापुओं की तरह अगले साल तक पानी में समा जाएगा. अब पर्यावरणविद कहते हैं कि वान टापू लंबे समय तक के लिए बना रहेगा

भारतीय विशेषज्ञों के अध्ययन पर पिछले दिनों श्रीलंका की एक मीडिया रिपोर्ट मुहर लगाती है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह अस्पताल के कूड़े और दूसरे मलबे, जो संभवत: दक्षिण भारतीय राज्य केरल के हैं, श्रीलंका के उत्तरी समुद्री किनारे पर जमा हो गए हैं. ये समुद्री किनारा उस जगह से ज़्यादा दूर नहीं है जहां क्रेन की मदद से समुद्र में बसें गिराई गई थीं. द आईलैंड अख़बार के मुताबिक़ हाल की बारिश और बाढ़ ने अस्पताल के कूड़े को समुद्र तक पहुंचाया होगा और वहां से वो श्रीलंका के समुद्री तट तक पहुंच गया होगा.

भारतीय विशेषज्ञों के अध्ययन पर पिछले दिनों श्रीलंका की एक मीडिया रिपोर्ट मुहर लगाती है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह अस्पताल के कूड़े और दूसरे मलबे, जो संभवत: दक्षिण भारतीय राज्य केरल के हैं, श्रीलंका के उत्तरी समुद्री किनारे पर जमा हो गए हैं.

दिलचस्प बात ये है कि मुख्य विपक्षी पार्टी समागी जना बालावेगाया (एसजेबी) के एक संसदीय प्रतिनिधिमंडल ने कोलंबो के आर्कबिशप मैल्कम कार्डिनल रंजीत से मुलाक़ात की और उनसे ये अपील की कि वो इस मामले में दख़ल दें और दक्षिणी (सिंहली) मछुआरा समुदाय जिन अलगअलग तरह के ख़तरों का सामना कर रहा है, उनसे उन्हें बचाएं. श्रीलंका के बौद्ध भिक्षुओं की तरह पिछले कुछ वर्षों से कार्डिनल भी खुले तौर पर सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे हैं. जिन मुद्दों पर कार्डिनल से हस्तक्षेप की अपील की गई उनमें से एक पिछले दिनों विदेश में रजिस्टर्ड जहाज़ एक्सप्रेस पर्ल का श्रीलंका के समुद्र में डूबना है. इस बात की आशंका जताई जा रही है कि मलबे मछुआरों की नाव को नुक़सान पहुंचा सकते हैं और मछुआरों की आजीविका को ख़त्म कर सकते हैं

लाइसेंस लेकर मछली पकड़ना 

इस बात को मान भी लिया जाए कि पुरानी बसों को समुद्र में फेंककर कृत्रिम रीफ़ बनाना कुछ समय के लिए श्रीलंका सरकार की नीति है लेकिन इसके बावजूद मंत्री देवानंदा इस साल मार्च में एक ग़ैरज़रूरी विवाद में फंस गए जब उन्होंने श्रीलंका के समुद्र में भारतीय मछुआरों को मछली पकड़ने की इजाज़त देने पर विरोधाभासी बयान दिए. पहले उन्होंने कहा कि श्रीलंका सरकार चिन्हित भारतीय मछुआरों को मछली पकड़ने का लाइसेंस देगी. उन्होंने दलील दी कि इससे श्रीलंका सरकार की आमदनी में अच्छीख़ासी बढ़ोतरी होगी

लेकिन जब उनके क्षेत्र जाफना के मछुआरों, जो भारतीयों के द्वारा अवैध तरीक़े से मछली पकड़ने से सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं, ने इसका विरोध किया तो ख़बरों के मुताबिक़ मंत्री ने कहा कि वो नौसेना को निर्देश देंगे कि भारतीय मछुआरों को अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा पार करने नहीं दे. उनके सुझाव पर औपचारिक फ़ैसला लंबित होने की वजह से ये असंभव नहीं था. उन्होंने अपना सुझाव 2019 में मत्स्य पालन मंत्री बनने के कुछ ही समय बाद दिया था. देवानंदा सिर्फ़ इस बात का संकेत दे रहे थे कि भारतीय मछुआरों और उनके द्वारा समुद्र की सतह में जाल बिछाकर मछली पकड़ने पर मौजूदा पाबंदी को बरकरार रखा जाना चाहिए.

भारत के साथ जिस ‘समझौते’ पर सहमति बनी थी, उस पर श्रीलंका महामारी की वजह से आगे नहीं बढ़ पाया.

ये देखा जाना अभी बाक़ी है कि लाइसेंस देने के बाद भी भारतीय मछुआरे समुद्र की सतह में जाल बिछाकर मछली पकड़ने, जिसे दुनिया भर में विनाशकारी चलन के तौर पर स्वीकार किया गया है औ जिस पर श्रीलंका में पाबंदी है और भारत में भी जिसे बढ़ावा नहीं दिया जाता है, के बिना  दिलचस्पी रखते हैं कि नहीं. देवानंदा ने तब कहा कि भारत के साथ जिस समझौते पर सहमति बनी थी, उस पर श्रीलंका महामारी की वजह से आगे नहीं बढ़ पाया. श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुए उस समझौते के दौरान देवानंदा भी मौजूद थे. इस पृष्ठभूमि में श्रीलंका के द्वारा कृत्रिम रीफ़ बनाने को लेकर नया विवाद खड़ा हुआ है

मानवीय तरीक़ा

इस मामले में सबसे नई घटना कोलंबो के मीडिया की वो रिपोर्ट हैं जिसमें बताया गया है कि भारतीय नौसेना के जवानों ने श्रीलंका के मछुआरों से हाथापाई की. लेकिन सच्चाई ये है कि लंबे समय से भारतीय मछुआरे श्रीलंका की नौसेना के जवानों के हमले और उनकी फायरिंग का निशाना बनते रहे हैं. श्रीलंका की नौसेना के जवान अक्सर भारतीय मछुआरों को गिरफ़्तार कर लेते हैं और श्रीलंका की सीमा में घुसने और वहां मछली मारने के आरोप में उनकी नाव को भी ज़ब्त कर लेते हैं

भारतीय तटरक्षक और नौसेना ने टूना मछली के शिकार के लिए भारतीय समुद्री सीमा में घुसने वाले श्रीलंका के मछुआरों को अक्सर बेकसूर की तरह देखा है. जब श्रीलंका के मछुआरे सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण क्षेत्र जैसे बंदरगाह और नौसेना के अड्डे के काफ़ी नज़दीक आ जाते हैं तो उन्हें भगा दिया जाता है. कभीकभी उन्हें गिरफ़्तार भी किया जाता है. गिरफ़्तारी के बाद उन्हें दक्षिण भारत के अलगअलग राज्यों की स्थानीय अदालतों में पेश किया जाता है और बाद में उन्हें कूटनीतिक दख़ के ज़रिए छोड़ा जाता है. भारतीय मछुआरों के मामले में भी ऐसा होता है

ताज़ा मामले में कोलंबो में भारतीय उच्चायोग ने श्रीलंका के मछुआरों के साथ नौसेना के जवानों के द्वारा हाथापाई की घटना से इनकार करते हुए इसे पूरी तरह झूठ बताया है. उच्चायोग के एक प्रवक्ता ने इस तरह की किसी घटना से इनकार किया. प्रवक्ता ने दोहराया कि भारतीय नौसेना एक बेहद अनुशासित और पेशेवर बल है जो अपनी ज़िम्मेदारी बिना किसी ग़लती के निभाती है.”

इस बात को याद किया जा सकता है कि भारत श्रीलंका के साथ मछुआरों से जुड़े सभी मुद्दों को स्थापित द्विपक्षीय तौरतरीक़ों और समझ के ज़रिए मानवीय ढंग से समाधान करने के लिए प्रतिबद्ध है.” ज़मीनी वास्तविकता को देखते हुए, जिसकी शुरुआत 1964-66 के समझौतों के तहत अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा के लिए भारत के सम्मान से होती है, इससे हटकर कुछ नहीं हो सकता जबकि इसके उलट बड़ी संख्या में भारतीय मछुआरों को श्रीलंका की नौसेना गिरफ़्तार करती है और उन्हें परेशान किया जाता है

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