इलेक्ट्रोलिसिस के ज़रिये पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में तोड़ा जाता है, और यह हरित हाइड्रोजन (जीएच) के उत्पादन से जुड़ी सबसे मुख्य प्रक्रिया है. हम इस तकनीक के बारे में लगभग दो सदी से जानते हैं, लेकिन इसे बड़े पैमाने पर कर पाना अब भी संभव नहीं हो पाया है और यह जीएच के उत्पादन में एक बड़ा लागत घटक बना हुआ है. इलेक्ट्रोलाइज़र स्टैक और सिस्टम से मिलकर बना होता है. ‘स्टैक’ में पानी का विघटन होता है. वहीं ‘सिस्टम’ (बाकी का संयंत्र) में विद्युत आपूर्ति, जलापूर्ति, शुद्धीकरण और कम्प्रेशन शामिल होते हैं.
सभी तकनीकों में पानी के इलेक्ट्रोलिसिस का सिद्धांत एक ही है, लेकिन इनके निर्माण में अलग-अलग फिजियोकेमिकल और इलेक्ट्रोकेमिकल पहलू शामिल होते हैं. इस आधार पर चार तरह की तकनीकें हैं – अल्कलाइन इलेक्ट्रोलिसिस (एई), प्रोटॉन एक्सचेंज मेंब्रेन (पीईएम) इलेक्ट्रोलिसिस, एनॉयन एक्सचेंज मेंब्रेन (एईएम) इलेक्ट्रोलिसिस और सॉलिड ऑक्साइड इलेक्ट्रोलिसिस (एसओई).
अल्कलाइन और पीईएम वाणिज्यिक तकनीकें हैं, जबकि एईएम और एसओई अब भी प्रयोगशाला के स्तर पर ही हैं. बाद वाली दोनों तकनीकें काफ़ी संभावनाशील हैं.
इस्तेमाल किये गये इलेक्ट्रोलाइट, तापमान, परिचालन दबाव, और स्टैक में इस्तेमाल किये गये पदार्थ के आधार पर ये तकनीकें भिन्न होती हैं. अल्कलाइन और पीईएम वाणिज्यिक तकनीकें हैं, जबकि एईएम और एसओई अब भी प्रयोगशाला के स्तर पर ही हैं. बाद वाली दोनों तकनीकें काफ़ी संभावनाशील हैं. यूरोप में केवल कुछ कंपनियां और मूल उपकरण निर्माता (ओईएम) हैं ,जो इनके विनिर्माण में शामिल हैं. नीचे दी गयी तालिका चार तरह के वॉटर इलेक्ट्रोलिसिस की विशेषताओं का वर्णन करती है.
तालिका 1 : चार तरह के वॉटर इलेक्ट्रोलाइजर की विशेषताएं
Component/Operating Condition |
Alkaline |
PEM |
Anion Exchange Membrane |
Solid Dioxide |
Operating Temperature (Degree Celcius) |
70–90 |
50–80 |
40–60 |
700–850 |
Operating Pressure (bar) |
1–30 |
<70 |
<35 |
1 |
Electrolyte |
Potassium hydroxide (KOH) 5–7 molL-1 |
PFSA membranes |
DVB polymer support with
KOH or NaHCO3 1molL-1
|
Yttria-stabilized Zirconia (YSZ) |
Bipolar Plate Cathode |
Nickel-coated stainless steel |
Platinum-coated titanium |
Nickel-coated stainless steel |
None |
Bipolar Plate Anode |
Nickel-coated stainless steel |
Gold-coated titanium |
Nickel-coated stainless steel |
Cobalt-coated stainless steel |
स्रोत: ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत में कमी: इलेक्ट्रोलाइज़र्स की संख्या बढ़ाना ताकि 1.5 डिग्री सेल्सियस के मौसम के लक्ष्य के हासिल किया जा सके, IRENA
अल्कलाइन इलेक्ट्रोलाइजर एक सुस्थापित तकनीक है, जो 30 बार के दबाव पर काम करती है, और मोटी मेंब्रेन (झिल्ली) और निकल धातु आधारित इलेक्ट्रोड का इस्तेमाल करती है. इसके स्टैक का संघटन (कम्पोजीशन) इसे अभी उपलब्ध सबसे सस्ती तकनीक बनाता है, लेकिन इसकी मोटी मेंब्रेन इसकी कार्य कुशलता को कम करके 70-80 फ़ीसद तक कर देती हैं. वहीं, पीईएम की कार्य कुशलता लगभग 80-90 फ़ीसद है. यह उच्च दबाव पर काम करती है. इसमें पतली मेंब्रेन होती हैं और सोना व प्लेटिनम चढ़े टाइटेनियम इलेक्ट्रोड इस्तेमाल होते हैं. पीईएम के घटक ज़्यादा स्थिरता और कार्यकुशलता तो प्रदान करते हैं, लेकिन लागत को बढ़ा देते हैं. दूसरी तकनीकों के मुक़ाबले एईएम और एसओई ने उच्च कार्यकुशलता दिखायी है, लेकिन इनके स्टैक की स्थिरता और टिकाऊपन अब भी सवालों के घेरे में हैं.
लागत में डीआयनाइज्ड वाटर सर्कुलेशन और हाइड्रोजन प्रोसेसिंग की हिस्सेदारी क्रमश: 22 फ़ीसद और 20 फ़ीसद की है. ये तीन महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं, जो स्टैक को छोड़ बाकी के संयंत्र की लागत कम कर सकते हैं.
लागत में कमी
लागत कम करने के लिए दो घटक हैं – स्टैक और सिस्टम. कुल लागत में लगभग 50-60 फ़ीसद हिस्सा सिस्टम का है. और सिस्टम में लगभग 50 फ़ीसद लागत विद्युत आपूर्ति की है. लागत में डीआयनाइज्ड वाटर सर्कुलेशन और हाइड्रोजन प्रोसेसिंग की हिस्सेदारी क्रमश: 22 फ़ीसद और 20 फ़ीसद की है. ये तीन महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं, जो स्टैक को छोड़ बाकी के संयंत्र की लागत कम कर सकते हैं.
इसके अलावा, मॉड्यूल का आकार बढ़ाने से पैमाना आधारित किफ़ायत (economies of scale) का लाभ मिल सकता है और नतीजतन बाकी के संयंत्र के ज़रिये लागत में कमी आ सकती है. स्टैक का आकार बढ़ाने से पैमाना आधारित किफ़ायत नहीं हो सकती, लेकिन इसकी संख्या बढ़ायी जा सकती है. कई अध्ययनों ने दिखाया कि क्षमता में 10 मेगावाट की वृद्धि लागत को केवल 4-5.6 गुना बढ़ायेगी. यह भी दिखाया गया कि सबसे बड़ी पैमाना आधारित किफ़ायत 1020 मेगावाट के माड्यूल पर हासिल हुई है.
इससे इतर, लागत में कोई कमी स्टैक में नवाचार के ज़रिये ही हासिल होगी. कुल लागत में स्टैक का हिस्सा 40-50 फ़ीसद का है. स्टैक में नवाचार का मतलब है अतिमहत्वपूर्ण पदार्थों (क्रिटिकल मटेरियल) का कम इस्तेमाल, उच्च कार्यकुशलता के लिए स्टैक के डिजाइन में बदलाव, उच्च टिकाऊपन तथा विद्युतधारा घनत्व में वृद्धि. सबसे महत्वपूर्ण लागत घटक पीईएम तकनीक में बाइपोलर प्लेट/इलेक्ट्रोड और बाइपोलर प्लेट की सुरक्षात्मक परत तथा एई तकनीक में डायफ्राम के पास है. ऐसे अनुसंधान कार्यक्रम चल रहे हैं जो कोबाल्ट और प्लेटिनम से मुक्त अल्कलाइन इलेक्ट्रोलाइज़र बनाने में जुटे हैं. और, सोना व प्लेटिनम चढ़े टाइटेनियम इलेक्ट्रोड की जगह नायोबियम, टैंटलम, और स्टेनलेस स्टील जैसे अपेक्षाकृत सस्ते पदार्थों के इस्तेमाल की कोशिश हो रही है. स्टैक के दूसरे घटकों की बात करें तो, एक आयाम में कार्यकुशलता को बढ़ाने से दूसरे आयाम में प्रदर्शन प्रभावित होता है. लिहाज़ा, अभी तक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन वाला डिजाइन सामने नहीं आ पाया है. इसलिए, महंगे पदार्थों की जगह सस्ते पदार्थों का इस्तेमाल करने से ही इलेक्ट्रोलाइजर उत्पादन की लागत कम हो सकती है.
नीतिगत अनिवार्यताएं
यह बार-बार दोहराया गया है कि भारत में अक्षय ऊर्जा की अपार संभावना है, और इसके दोहन के उसके प्रयास सराहनीय रहे हैं. फिर भी, 2030 तक हर साल 50 लाख टन जीएच के उत्पादन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल करने और जीएच का ग्लोबल हब बनने के लिए, भारत को इलेक्ट्रोलाइज़र उत्पादन के अपने प्रयास तेज़ करने की ज़रूरत है. वैश्विक जीएच उत्पादन में भारत का भविष्य तय करने में इलेक्ट्रोलाइजर तकनीक में नवाचार और निवेश की केंद्रीय भूमिका है.
हरित हाइड्रोजन के अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, मौजूदा तकनीक में सुधार जारी रखने और उभरती तकनीकों में नवाचार को बढ़ावा देने के वास्ते आवश्यक अनुसंधान कार्यक्रमों को धन मुहैया कराने में सरकारी समर्थन अनिवार्य है
हरित हाइड्रोजन के अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, मौजूदा तकनीक में सुधार जारी रखने और उभरती तकनीकों में नवाचार को बढ़ावा देने के वास्ते आवश्यक अनुसंधान कार्यक्रमों को धन मुहैया कराने में सरकारी समर्थन अनिवार्य है. सबसे सस्ती उपलब्ध तकनीक से भी हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करना भूरी या काली हाइड्रोजन (प्रदूषणकारी तरीक़ों से बनी हाइड्रोजन) के मुक़ाबले अब भी 50-60 फ़ीसद ज़्यादा महंगा है. लिहाज़ा, प्रतिस्पर्धी हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए संयंत्रों के पैमाने में उन्नयन के लिए सरकार को क़दम उठाने की ज़रूरत है. जीएच की मांग को प्रोत्साहित करने के लिए रास्ते बनाने के क्रम में, वह विनिर्माण लक्ष्य, कर लाभ और कार्बन क्रेडिट तय कर सकती है तथा ज़्यादा निवेश जुटाने के लिए सार्वजनिक-निजी साझेदारी को आमंत्रित कर सकती है.
भारत को तेज़ी से क़दम उठाने होंगे और वैश्विक निर्यात केंद्र बनने, सीओपी26 लक्ष्य पूरे करने तथा अपनी ऊर्जा सुरक्षा बेहतर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय रूप से प्रतिस्पर्धी और वाणिज्यिक रूप से व्यावहारिक जीएच के उत्पादन के वास्ते इलेक्ट्रोलाइजर विनिर्माण में उसे पहली चाल चलने का लाभ लेना होगा. हरित हाइड्रोजन में भारत की अगुवाई इलेक्ट्रोलाइज़र में उसकी अगुवाई से तय होगी.
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