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भारत दुनिया में सॉफ़्टवेयर डेवलपमेंट का वाहक बनता जा रहा है. ओपन सोर्स में योगदान देने वाले डेवलपर्स के मामले में भारत की चाल दुनिया में सबसे तेज़ है. 2023 तक इनकी तादाद बढ़कर 1 करोड़ हो जाने का अनुमान लगाया गया है.
#IR4.O: चौथी औद्योगिक क्रांति की मदद से भारत की बड़ी छलांग; दुनिया को ताक़त देने को तैयार!
ये लेख इंडिया@75: एस्पिरेशंस, एंबिशंस, एंड एप्रोचेज़ सीरीज़ का हिस्सा है.
श्रवणन तिरुचिरापल्ली में स्कूल के बाहर खिलौने और चॉकलेट बेचते हैं. जब भी उनका पेमेंट साउंडबॉक्स उन्हें तमिल में लेनदेन की सटीक जानकारी देता है तो उनके चेहरे पर मुस्कान खिल उठती है.
ओडिशा के कालाहांडी ज़िले में छोटे से घर में रहने वाले धबलेश माझी अपनी धुन में गाने गाते हैं, जो उनके लाखों फ़ॉलोअर्स तक पहुंचता है.
उदारीकरण के बाद 1990 और 2000 के दशकों में भारत बिज़नेस प्रॉसेसिंग का अड्डा (कॉल सेंटरों और सॉफ़्टवेयर टेस्टिंग के साथ) बन गया था. अब भारत की भूमिका बदल गई है. भारत अब नवाचार की अगुवाई करते हुए अत्याधुनिक तकनीक को अपनी विशाल आबादी के स्तर तक पहुंचाने लगा है.
हाल ही में अंडरग्रैजुएट डिग्री पूरी करने वाले अनुराग भागलपुर के पास खेतीबाड़ी में अपने पिता की मदद करने की ठान लेते हैं. इसके लिए डिजिटल एडवाइज़री ऐप्लिकेशंस (मौसम विभाग के पूर्वानुमानों के हिसाब से फ़सलों की योजना बनाने और बुआई से पहले की तैयारियों और मिट्टी की सेहत जानने के लिए), इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (IoT) मॉनिटरिंग उपकरणों (मौसमी फ़सलों की देखभाल) और डिजिटल मार्केटप्लेसेज़ के इस्तेमाल से वो कमाई बढ़ाने में अपने पिता की सहायता करते हैं. ऐप के इस्तेमाल से ओपन प्लैटफ़ॉर्म और डेटा शेयरिंग के ज़रिए वो इस पूरी क़वायद को कामयाबी से अंजाम देते हैं.
विकास अपने फ़ोन पर एमबीए लोन के लिए अर्ज़ी देते हैं. उसकी झटपट प्रॉसेसिंग होती है और उन्हें लोन मिल जाता है. फ़ोन पर ये पूरी प्रक्रिया महज़ 10 मिनट में ही पूरी हो जाती है.
बालकोंडा मंडल के निवासी विद्यासागर पिछले 20 सालों से निज़ामाबाद मार्केट यार्ड में आढ़तियों को अपने उत्पाद बेचते थे. वो अपने उत्पादों के वज़न की प्रक्रिया पूरी होने तक मार्केट यार्ड में रुके रहते थे. इसके बाद भुगतान के लिए 20-30 दिनों तक इंतज़ार करते थे. अब वो e-NAM की मदद से प्रत्यक्ष रूप से ख़रीद के ऑर्डरों के ज़रिए अपने माल बेच रहे हैं. इस तरह से वो कमीशन और हमाली शुल्कों की बचत कर पा रहे हैं. इतना ही नहीं उन्हें मिनटों में ही ऑनलाइन भुगतान भी मिल जाता है.
महाराष्ट्र के बीड के रहने वाले भानु ने अपने सहपाठियों और सोशल मीडिया से जुड़े असम के छात्र मित्रों के साथ मिलकर अपने मुहल्ले में बारिश के पानी को छत पर संरक्षित करने वाला ढांचा तैयार किया. उन्होंने नेशनल अटल इनोवेशन चैलेंज पर अपनी कामयाबी की कहानी का वीडियो बनाकर डाला और एक ही दिन के भीतर उनका चयन हो गया. नतीजतन अपने विचार को बड़े पैमाने पर आगे बढ़ाने के लिए उन्हें फ़ंड मिलने लगा है. अब वो अटल इनक्यूबेशन सेंटरों में विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम करते हैं.
रीना रोबोटिक्स और ऑर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में उतरना चाहती हैं. Swayam और NPTEL की पेशकशों के ज़रिए उन्होंने अपनी ज़रूरतों के हिसाब से कोर्स टूलकिट (पैकेज्ड कोर्स की बजाए) तैयार किया है. लाइव डेमो सेशंस के ज़रिए वो मनपसंद रूप से आगे पढ़ाई कर रही हैं. प्रमाण पत्रों के साथ उन्हें विशेषज्ञों के साथ संवाद करने का मौका भी मिल रहा है. इसके अलावा अपने साथी दल में समान सोच रखने वालों से मिलने का मौका भी मिला. अब वो अपना भविष्य संवारने और देश निर्माण करने के लिए तैयार हैं.
नालंदा में हुई बेमौसम बरसात से रवि की 70 फ़ीसदी से ज़्यादा फ़सल बर्बाद हो गई. वो अपने मोबाइल ऐप में लॉग इन कर फ़सल बीमा के लिए अर्ज़ी लगाते हैं. जियो-टैगिंग से हासिल आंकड़ों और सैटेलाइट तस्वीरों के ज़रिए उनके दावों पर एक दिन के अंदर कार्यवाही हो जाती है और उनके खाते में रकम आ जाती है.
आज भारत में इंटरनेट उपयोग करने वालों की तादाद 75 करोड़ से भी ज़्यादा है. आम ज़िंदगियों पर प्रभाव डालने वाली कामयाबियों के अनगिनत छोटे-छोटे क़िस्से हैं. इनमें किराना स्टोर चलाने वाले भी शामिल हैं जिनका ग्राहक वर्ग इंटरनेट की मदद से आसपास की गलियों से परे एक व्यापक क्षेत्र में फैल गया है. बुनकर भी अब अपना सामान सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्मों के ज़रिए बेच रहे हैं. भारत इस वक़्त परिवर्तनकारी डिजिटल बदलावों के मुहाने पर खड़ा है. बड़े कारोबारों की अगली पीढ़ी भी तैयार होने लगी है. विचारों का लोकतांत्रिकरण हो रहा है और ऐसे समावेशी रुझान सामने आ रहे हैं जो पहले कभी देखने को नहीं मिले थे.
भारत का तेज़ी से फैलता मध्यम वर्ग उपभोग को (कुल ख़र्च का 70 प्रतिशत) तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ा रहा है. उनकी आमदनी और ख़र्च करने की क्षमता का लगातार विस्तार हो रहा है. ग्रामीण और शहरी इलाक़ों में सस्ते इंटरनेट (2016 में टेलीकॉम क्षेत्र में जियो के प्रवेश के साथ) की मदद से इसमें और तेज़ी आ गई है. उदारीकरण के बाद 1990 और 2000 के दशकों में भारत बिज़नेस प्रॉसेसिंग का अड्डा (कॉल सेंटरों और सॉफ़्टवेयर टेस्टिंग के साथ) बन गया था. अब भारत की भूमिका बदल गई है. भारत अब नवाचार की अगुवाई करते हुए अत्याधुनिक तकनीक को अपनी विशाल आबादी के स्तर तक पहुंचाने लगा है.
1990 के दशक में भारत में सेवा क्षेत्र में तेज़ उछाल देखा गया. ख़ासतौर से सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) और आईटी की मदद से संचालित की जाने वाली सेवाओं (ITeS) और आईटी उद्योग के साथ वित्तीय सेवाओं में ज़बरदस्त तरक़्क़ी हुई. 1991 के 15 करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2000 में ये उद्योग 5.7 अरब अमेरिकी डॉलर से भी ऊपर पहुंच गया. इस क्षेत्र में पहली बार भारत में तैयार कंपनियों का समूह खड़ा हो गया. इनमें इंफ़ोसिस, विप्रो और टीसीएस प्रमुख हैं. तीसरी औद्योगिक क्रांति की लहर पर सवार होकर ये कंपनियां दुनिया की तमाम बड़ी कंपनियों को मात देने लगीं. इसके साथ ही “इलेक्ट्रॉनीकरण और सूचना प्रौद्योगिकी” को लेकर भारत की धारणा में बदलाव की शुरुआत हो गई.
भारत के स्टार्ट अप परिदृश्य को आधार, यूपीआई और जनधन (वित्तीय समावेश) के आ जाने से काफ़ी फ़ायदा पहुंचा है. पिछले 5-6 सालों की तेज़ी ने सबको चौंका दिया है. 2021 में वेंचर कैपिटल निवेश पिछले तमाम कीर्तिमानों से आगे निकल गया. 840 से भी ज़्यादा सौदों में 17 अरब अमेरिकी डॉलर से भी अधिक की फ़ंडिंग हुई.
पिछले दशक में साइबर कम्प्यूटिंग में हुए सुधारों से वास्तविक और डिजिटल दुनिया के बीच का अंतर धीरे-धीरे कम होने लगा. इससे चौथी औद्योगिक क्रांति (इसे यही नाम दिया जाने लगा है) की आमद की प्रक्रिया में तेज़ी आ गई है. भारत इस क्षेत्र में एक प्रमुख परिवर्तनकारी ताक़त रहा है. पब्लिक डिजिटल इंफ़्रास्ट्रक्चर की मदद से बेमिसाल और बड़े पैमाने की परियोजनाओं पर अमल के ज़रिए भारत ने इस दिशा में बड़े-बड़े झंडे गाड़े हैं.
ग़ौरतलब है कि ये तमाम बड़े सार्वजनिक डिजिटल समाधान ओपन आर्किटेक्चर के साथ तैयार किए गए हैं. इन्हें चालू करो और काम देखो की नीति के हिसाब से गढ़ा गया है. दरअसल, इसका मकसद टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को विकेंद्रीकृत कर पूरी प्रक्रिया को लोकतांत्रिक बनाना है. भारत ‘ओपन डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म्स’ तैयार करता आ रहा है. ये बेहद सशक्त और कारगर (Platformisation) रहे हैं. ये पूरी क़वायद बेहद अहम और बेमिसाल है. इससे हर परिस्थिति में इस्तेमाल आने योग्य, सस्ते, एपीआई-संचालित (लिहाज़ा इनका आकार बढ़ाया जा सकता है) और स्थानीय भाषाओं में पहली बार मोबाइल पर उपलब्ध सामग्रिया हासिल हो रही हैं. भारतीय उद्यमियों को इन प्लैटफ़ॉर्मों के ज़रिए नवाचार करने और समस्याओं के बड़े पैमाने पर समाधान और भरोसा हासिल करने की सुविधा मिलती है.
भारत के स्टार्ट अप परिदृश्य को आधार, यूपीआई और जनधन (वित्तीय समावेश) के आ जाने से काफ़ी फ़ायदा पहुंचा है. पिछले 5-6 सालों की तेज़ी ने सबको चौंका दिया है. 2021 में वेंचर कैपिटल निवेश पिछले तमाम कीर्तिमानों से आगे निकल गया. 840 से भी ज़्यादा सौदों में 17 अरब अमेरिकी डॉलर से भी अधिक की फ़ंडिंग हुई. 29 दिसंबर 2021 तक के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 275 अरब अमेरिकी डॉलर के सकल मूल्यांकन के साथ कुल 81 यूनिकॉर्न खड़े हो चुके हैं. इनमें से 44 यूनिकॉर्न की शुरुआत तो 2021 में ही हुई है.
भारत के टेक स्टैक की नींव बेहद मज़बूत है. यहां यूपीआई, आधार, डेटा सुरक्षा के ठोस उपायों समेत ओपन-सोर्स आर्किटेक्चर मौजूद हैं. एक अरब इंटरनेट उपभोक्ताओं के बूते एक विशाल आबादी तक डिजिटल सेवाओं की पहुंच है. डिजिटल सामग्री स्थानीय भाषाओं में भी उपलब्ध है.
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के मुताबिक 2025 तक भारत में सार्वजनिक और निजी डिजिटल ऑफ़रिंग्स के ज़रिए 1 खरब अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा की डिजिटल वैल्यू जुटाई जा सकेगी. भारत आज दुनिया के लिए अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी तैयार कर रहा है. इनमें सोशल कॉमर्स, सॉफ़्टवेयर एज़ ए सर्विस (SaaS), भुगतान, शिक्षा-तकनीकी समेत कई अन्य सुविधाएं शामिल हैं.
भारत के उभरते डिजिटल इकोसिस्टम को स्टार्ट अप में होने वाले ठोस नवाचारों और जनसंख्या में युवाओं की बढ़ती तादाद से जुड़े अनुकूल कारकों से भरपूर मदद मिल रही है. 2041 तक भारत की कार्यकारी जनसंख्या में बढ़ोतरी जारी रहने वाली है. साथ ही यहां सालाना 36 लाख STEM ग्रैजुएट्स तैयार हो रहे हैं. इन तमाम कारकों से हमें आने वाले दशकों में दुनिया की अगुवाई करने के अभूतपूर्व अवसर मिलने वाले हैं.
डिजिटल तरक़्क़ी की लहर से कोर डिजिटल सेक्टरों को बढ़ावा मिलेगा. इनमें प्रगति की अपार संभावनाओं वाले सेक्टरों (नया-नया डिजिटलाइज़ हो रहा रसद, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि) के साथ-साथ 2025 तक बढ़त की ज़बरदस्त क्षमताओं वाले सेक्टर भी शामिल हैं. इस कड़ी में वित्तीय सेवाओं (170 गुणा), कृषि (70 गुणा), शिक्षा (30 गुणा) और सरकारी ई-मार्केटप्लेस में 25 गुणा बढ़ोतरी की क्षमता मौजूद है.
भारत दुनिया में सॉफ़्टवेयर डेवलपमेंट का वाहक बनता जा रहा है. ओपन सोर्स में योगदान देने वाले डेवलपर्स के मामले में भारत की चाल दुनिया में सबसे तेज़ है. 2023 तक इनकी तादाद बढ़कर 1 करोड़ हो जाने का अनुमान लगाया गया है. इसके केंद्र में स्थित ओपन सोर्स सॉफ़्टवेयर डेवलपमेंट से बड़े पैमाने के मुद्दों का समाधान होने के साथ-साथ तकनीक के इस्तेमाल का लोकतांत्रिकरण होता है. भारतीय स्टार्ट अप ने तो पहले ही सघन रूप से सॉफ़्टवेयर का निर्यात करना शुरू कर दिया है. दो दशक पहले के हालात की तुलना में ये एक बड़ा बदलाव है. तब ये सिर्फ़ आईटी सेवाएं मुहैया कराते थे. मिसाल के तौर पर 1.7 करोड़ डेवलपर्स से भी ज़्यादा और फ़ॉर्चून 500 कंपनियों में से 98 प्रतिशत कंपनियां आज ‘पोस्टमैन एपीआई प्लैटफ़ॉर्म’ का इस्तेमाल कर रही हैं.
डिजिटल माध्यमों ने एक-दूसरे से और संस्थाओं के साथ संपर्क और लेनदेन करने के हमारे तौर-तरीक़ों को नए सिरे से स्थापित करना शुरू कर दिया है. इसने संगठनों को अपने नियमित कार्यों को स्वचालित करने में मदद दी है. इससे उत्पादकता में बढ़ोतरी हुई है. ये क़वायद संगठनों और सरकारों के लिए डेटा-आधारित निर्णय प्रक्रिया अपनाने में सहायक साबित हुई है. इन ताक़तों के बीच के संवाद से आने वाले वक़्त में नया डिजिटल इकोसिस्टम खड़ा हो जाएगा. अपने अत्याधुनिक तकनीकी भंडार के चलते भारत को काफ़ी फ़ायदा होने वाला है.
भारत के टेक स्टैक की नींव बेहद मज़बूत है. यहां यूपीआई, आधार, डेटा सुरक्षा के ठोस उपायों समेत ओपन-सोर्स आर्किटेक्चर मौजूद हैं. एक अरब इंटरनेट उपभोक्ताओं के बूते एक विशाल आबादी तक डिजिटल सेवाओं की पहुंच है. डिजिटल सामग्री स्थानीय भाषाओं में भी उपलब्ध है. इन मज़बूतियों के बूते भारत सॉफ़्टवेयर नवाचार और डेटा एनेलिटिक्स में दुनिया की डिजिटल फ़ैक्ट्री बन सकता है. डिजिटल सशक्तिकरण और क्षमता निर्माण से छोटे और लघु उद्यमों (MSMEs) से बड़ी कंपनियों तक उत्पादकता में बढ़ोतरी होगी. स्कूलों और विश्वविद्यालयों के लिए नए सिरे से प्रभावी उपाय किए जा सकेंगे. मसलन, छात्रों के हुनर में मज़बूती लाई जा सकेगी, निवेश की उत्पादकता बढ़ सकेगी और अध्ययन-अध्यापन से बेहतर नतीजे हासिल हो सकेंगे. इससे भारत के कृषि इकोसिस्टम की कायापलट (डिजिटल फ़ार्म एडवाइज़री, IoT से लैस निगरानी व्यवस्था) हो सकती है. इतना ही नहीं स्वास्थ्य सेवाओं में भी ये क़वायद (मांग-आपूर्ति में अंतर- टेलीमेडिसिन, गुणवत्ता सुधार और भरोसा) मददगार साबित हो सकती है.
डिजिटल तौर-तरीक़े अपनाने से अर्थव्यवस्था के तमाम क्षेत्र और उद्योगों पर क्रांतिकारी प्रभाव पड़ेगा और बदलाव आएंगे. मिसाल के तौर पर भविष्य में एक स्वतंत्र वाहन के मूल्य का 60 प्रतिशत हिस्सा सॉफ़्टवेयर और ऐप्लीकेशंस लेयर के तौर पर सामने आएगा (मॉर्गन स्टेनली). खाका नीचे दिया गया है:
कल का भारत इस डिजिटल कायापलट की अगुवाई करते हुए सेवा क्षेत्र का वाहक बनेगा और विनिर्माण के क्षेत्र में भी बड़ी कामयाबियां हासिल करेगा. (समर्थ उद्योग भारत 4.0 का लक्ष्य बड़े पैमाने पर तकनीकी समाधान तैयार करना और 2025 तक जीडीपी में विनिर्माण का हिस्सा बढ़ाकर 25 फ़ीसदी करना है.)
आज डिजिटल इंडिया का मतलब अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग है. इनमें से कई चीज़ें ऐसी हैं जिनकी हम वाजिब अहमियत नहीं समझते. इनमें रात के 2 बजे खाना ऑर्डर करने से लेकर ऑनलाइन ख़रीदारी करना, अपनी सैलरी का एक हिस्सा तत्काल घर भेजने से लेकर गांवों और दूरदराज़ के इलाक़ों की फ़िल्में बनाना जैसे काम शामिल हैं. हालांकि, दुनिया के लिए इसके मायने यही हैं कि अपनी तकनीक़ के बूते भारत दुनिया की अगुवाई करने को तैयार खड़ा है!
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Adil Zainulbhai is the Chairman at Capacity Building Commission of India and Quality Council of India.
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