Author : Satyam Singh

Expert Speak Raisina Debates
Published on Apr 25, 2024 Updated 0 Hours ago

पश्चिमी देशों के नेतृत्व में लड़खड़ाती अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की कमियों को देखते हुए भारत की अगुवाई में रचनात्मक संशोधनवाद की एक महत्वपूर्ण मांग खड़ी हुई है.

भारत का रचनात्मक संशोधनवाद!

रायसीना डायलॉग 2024 के दौरान विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली को लेकर भारत की सोच को दोहराया. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि 1945 के बाद की अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था भले ही टूटी नहीं लेकिन निश्चित रूप से कम प्रभावी है और इसे बदलने की ज़रूरत है. हालांकि विश्व व्यवस्था को बदलना अक्सर संशोधनवाद के रूप में देखा जाता है जो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के शब्दकोष में एक वर्जित शब्द है. इसकी तुलना अक्सर मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की तबाही के साथ की जाती है और इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया जाता कि संशोधनवाद रचनात्मक हो सकता है और सकारात्मक बदलाव ला सकता है. इस संदर्भ में ये लेख इस बात पर ध्यान देता है कि कैसे मोदी सरकार के तहत भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को अधिक प्रतिनिधिक, वैध और समाधान केंद्रित बनाकर  रचनात्मक रूप से इसे बदल रहा है. 

ये लेख इस बात पर ध्यान देता है कि कैसे मोदी सरकार के तहत भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को अधिक प्रतिनिधिक, वैध और समाधान केंद्रित बनाकर  रचनात्मक रूप से इसे बदल रहा है. 

संशोधनवाद और उसका रचनात्मक पक्ष

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में संशोधनवाद शब्द का संदर्भ किसी देश के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को अपने लाभ के लिए बदलने या पुनर्गठित करने के इरादे से है. व्यवस्था के संशोधनवाद को वर्जित समझा जाता है क्योंकि इस तरह की रणनीति का लक्ष्य रखने वाले अलग-अलग देशों ने अतीत और मौजूदा समय में वर्तमान व्यवस्था को तबाह करने की मांग की है. 1945 से पहले के उदाहरणों में जहां नेपोलियन के युग का फ्रांस और तत्कालीन सोवियत संघ शामिल हैं, वहीं मौजूदा समय में चीन और रूस को संशोधनवादी शक्ति माना जाता है क्योंकि उनकी आक्रामक कार्रवाई संप्रभुता और अंतर्राष्ट्रीय कानून के मानकों के लिए ख़तरा है. इसे साउथ चाइना सी में और भारत के ख़िलाफ़ चीन के ग्रे-ज़ोन वॉरफेयर में देखा जा सकता है जबकि रूस के मामले में क्राइमिया को मिलाने और यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध में. 

हालांकि, इन ताकतों की विध्वंसक संशोधनवादी प्रवृत्तियां अक्सर संशोधनवाद के रचनात्मक पक्ष पर हावी हो जाती हैं. उदाहरण के लिए, भारत अपने हितों, जो कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ग्लोबल साउथ (विकासशील देश) की प्रमुख शक्ति बनना है, को बढ़ावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के मानकों और संस्थानों के ख़िलाफ़ आक्रामक कदम नहीं उठा रहा है. इसके बदले भारत रचनात्मक ढंग से पश्चिम देशों के वर्चस्व वाली व्यवस्था में बदलाव लाने की कोशिश कर रहा है ताकि ये भारत की महत्वाकांक्षाओं को जगह दे. इस दिशा में भारत पश्चिमी देशों की अगुवाई वाली मौजूदा व्यवस्था को बहुध्रुवीय व्यवस्था में बदलने के बारे में सोचता है जहां भारत एक ध्रुव के रूप में काम कर सके. इस कोशिश में भारत अपनी क्षमताओं को दिखाने के लिए न केवल अधिक वैश्विक ज़िम्मेदारियों का भार उठा रहा है बल्कि विश्व व्यवस्था में सकारात्मक योगदान देने के लिए दूसरे देशों के साथ भी काम कर रहा है. इस तरह भारत अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों को अधिक प्रतिनिधिक बनाने और अलग-अलग देशों के सामने मौजूद चुनौतियों के समाधान की तलाश में सक्षम नए तौर-तरीके विकसित करने के लिए समान विचार वाले देशों के साथ सहयोग कर रहा है.  

भारत का रचनात्मक संशोधनवाद

भारत का रचनात्मक संशोधनवाद मोदी सरकार के शुरुआती वर्षों के दौरान उस समय दिखा जब  दुनिया में चर्चा अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के सामने मौजूद संकट से भरी थी. संयुक्त राष्ट्र में 2014 में प्रधानमंत्री मोदी और 2015 में विदेश मंत्री के भाषणों ने अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली के साथ भारत की समस्याओं के बारे में बताया, ख़ास तौर पर 1945 के बाद संयुक्त राष्ट्र (UN) और उसकी फैसला लेने वाली इकाई संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की संरचना में सुधार और इन्हें और प्रतिनिधिक और वैध बनाने की जरूरत को लेकर. यहां तक कि मौजूदा समय में भी UN यूक्रेन में संघर्ष या इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच युद्ध को खत्म करने में नाकाम रहा है. वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के संस्थान उस समय ग्लोबल साउथ की विकास से जुड़ी ज़रूरतों को पूरा करने में नाकाम रहे हैं जब वैश्वीकरण ने धन की असमानताएं बढ़ा दी है और बिना इच्छा के निर्भरता पैदा की है. जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और परमाणु सुरक्षा जैसे मुद्दे समाधान और समन्वय से दूर बने हुए हैं. मौजूदा व्यवस्था के द्वारा उत्पन्न समस्याओं को देखते हुए भारत जैसे देशों ने दुनिया की भलाई के लिए साथ मिलकर काम करने के उद्देश्य से विभाजन और मुकाबले से ऊपर उठने की आवश्यकता व्यक्त की है. उदाहरण के लिए, भारत ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन (CCIT) की कानूनी रूप-रेखा के मसौदे को प्रायोजित करके आतंकवाद से लड़ाई के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं. 

भारत का रचनात्मक संशोधनवाद मोदी सरकार के शुरुआती वर्षों के दौरान उस समय दिखा जब  दुनिया में चर्चा अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के सामने मौजूद संकट से भरी थी. 

भारत ने वैकल्पिक प्रणाली और मानदंड बनाने की भी मांग की है जो अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में सभी हितधारकों (स्टेकहोल्डर) को फायदा पहुंचाए. चूंकि कोई देश अकेले इस तरह की प्रणाली नहीं बना सकता है, ऐसे में भारत ने आपसी महत्व के मुद्दों पर समान विचार वाले देशों के साथ गठबंधन/साझेदारी बनाई है या बढ़ावा दिया है. 2014 से भारत अलग-अलग क्षेत्रों में 36 संगठनों में शामिल हुआ है या उनकी शुरुआत की है. मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के सत्ता केंद्रित होने के ख़िलाफ़ भारत इन गठबंधनों/साझेदारियों के नए मानक या एजेंडे के रूप में ‘मानवता की समस्याओं के समाधान की पेशकश’ तैयार करना चाहता है. G20, इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA), इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) और कोएलिशन फॉर डिज़ास्टर रिज़िलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (CDRI) जैसे संस्थानों के माध्यम से भारत मानवता के सामने मौजूद चुनौतियों के सतत समाधान की पेशकश करके सक्रिय तौर पर विश्व व्यवस्था का पुनर्निर्माण कर रहा है.  

जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा सुरक्षा की बात करें तो भारत और फ्रांस ने 2030 तक सभी को स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करके दुनिया भर में ऊर्जा उपलब्धता, सुरक्षा और परिवर्तन की सुविधा के लिए 2015 में इंटरनेशनल सोलर अलायंस की शुरुआत की थी. 90 सदस्य देशों के इस गठबंधन ने सोलर टेक्नोलॉजी एंड एप्लिकेशन रिसोर्स सेंटर (STAR-C) की स्थापना की है जो ऊर्जा परिवर्तन के लिए सदस्य देशों के भीतर मानव क्षमता और कौशल का निर्माण करता है. COP (कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़) 26 में भारत और UK ने ग्रीन ग्रिड्स इनिशिएटिव- वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड की शुरुआत करने के लिए ISA और विश्व बैंक के साथ साझेदारी की. इस पहल का लक्ष्य 140 देशों को जोड़ना और स्वच्छ ऊर्जा के लिए बुनियादी ढांचा विकसित करना है. 

भारत इंडो-पैसिफिक, ख़ास तौर पर हिंद महासागर के क्षेत्र में, समुद्री सुरक्षा और समृद्धि को सुनिश्चित करने के लिए भी सक्रिय रूप से काम कर रहा है. इस क्षेत्र में समुद्री तेल के व्यापार का लगभग 80 प्रतिशत और करीब 10 अरब अमेरिकी डॉलर का वाणिज्य होता है. क्षेत्र में सबके लिए सुरक्षा और विकास (सिक्युरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन या SAGAR) की अपनी नीति के अनुरूप भारत ने इन्फॉर्मेशन फ्यूज़न सेंटर-इंडियन ओशन रीजन (IFC-IOR) की स्थापना की है जो समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत के साझेदारों को वास्तविक समय में जानकारी मुहैया कराता है. इसके अलावा भारतीय नौसेना समय-समय पर अदन की खाड़ी से लेकर मलक्का स्ट्रेट तक इस क्षेत्र में पाइरेसी विरोधी अभियानों को अंजाम देती है. इसके तहत पिछले दिनों सोमालिया के समुद्री डकैतों से MV लीला नॉरफॉक और MV रुएन जहाज़ों को बचाया गया. भारत क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं के पारस्परिक विकास के लिए समुद्र में आधारित संसाधनों को सतत ढंग से निकालकर समुद्री अर्थव्यवस्था (ब्ल इकोनॉमी) को बढ़ावा देने के लिए बांग्लादेश, म्यांमार, मॉरिशस, केन्या और मोज़ाम्बिक जैसे देशों के साथ भी काम कर रहा है. 

आपदा सामर्थ्य के निर्माण के मोर्चे पर भारत ने 2019 में कोएलिशन फॉर डिज़ास्टर रिज़िलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (CDRI) की स्थापना की थी. ये जलवायु और आपदा को झेलने वाले बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राष्ट्रीय सरकारों, बहुपक्षीय एजेंसियों, प्राइवेट सेक्टर और अकादमिक जगत की एक वैश्विक साझेदारी है. इसमें आपदा प्रतिक्रिया एवं बहाली में समर्थन के लिए प्रयास शामिल हैं जो आपदा के दौरान पड़ोसी देशों को मदद प्रदान करने, जैसे कि 2004 की सुनामी और 2015 में नेपाल के भूकंप के दौरान, में भारत के शानदार रिकॉर्ड को आगे बढ़ाती है. 2021 में CDRI ने 58 छोटे द्वीपीय विकासशील देशों (स्मॉल आईलैंड डेवलपिंग स्टेट्स या SIDS) के बुनियादी ढांचे से जुड़े सामर्थ्य को पूरा करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर द रिज़िलिएंट आइलैंड स्टेट्स (IRIS) पहल की शुरुआत की. CDRI ने फिजी, मार्शल आईलैंड, पापुआ न्यू गिनी, डोमिनिका, मालदीव एवं हैती में पूर्व चेतावनी क्षमताओं को विकसित करने और बुनियादी ढांचे की क्षमताओं को मज़बूत करने के लिए भी परियोजनाओं की शुरुआत की है. 

G20 की अपनी अध्यक्षता के दौरान भारत ने संगठन के एक स्थायी सदस्य के तौर पर अफ्रीकन यूनियन को शामिल करके और दुनिया की समस्याओं के समाधान को तय करने में ग्लोबल साउथ की आवाज़ को मुख्यधारा में लाकर बंटवारे को भरने का काम किया. 

G20 की अपनी अध्यक्षता के दौरान भारत ने संगठन के एक स्थायी सदस्य के तौर पर अफ्रीकन यूनियन को शामिल करके (55 अफ्रीकी देशों को सामूहिक रूप से जोड़कर) और दुनिया की समस्याओं के समाधान को तय करने में ग्लोबल साउथ की आवाज़ को मुख्यधारा में लाकर बंटवारे को भरने का काम किया. कर्ज़ से जुड़ी लाचारी को कम करने की दिशा में काम करते हुए भारत ने अपनी G20 की अध्यक्षता के दौरान कॉमन फ्रेमवर्क फॉर डेट ट्रीटमेंट्स के माध्यम से ज़ांबिया, इथियोपिया और घाना और क्रेडिटर कमेटी के माध्यम से श्रीलंका की कर्ज़ पुनर्संरचना के मामले में महत्वपूर्ण प्रगति हासिल की. भारत ने हर साल 100 अरब अमेरिकी डॉलर के न्यूनतम स्तर से न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल ऑफ क्लाइमेट फाइनेंस तय करके सतत विकास लक्ष्य (SDG) को लेकर 2023 एक्शन प्लान टू एक्सेलीरेट प्रोग्रेस को लागू करने की दिशा में सर्वसम्मति पैदा करके बहुपक्षवाद को भी फिर से ज़िंदा किया. इस संदर्भ में भारत ने बायोफ्यूल के वैश्विक इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस की भी मिलकर शुरुआत की है. 

वास्तव में इन संगठनों का सफलतापूर्वक काम-काज एक बहुध्रुवीय व्यवस्था के उदय को दिखाता है जिसमें भारत भी एक ध्रुव होगा. ऊपर के उदाहरणों के माध्यम से भारत दिखाता है कि 1945 के बाद बने संस्थान जब व्यवस्था बनाए रखने और विकासशील देशों की विकास से जुड़ी ज़रूरतों को पूरा करने में नाकाम रहे तो वैश्विक शासन व्यवस्था के लिए वैकल्पिक प्रणालियों की स्थापना की जा सकती है जो समग्र रूप से मानवता के सामने आने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों के लिए समाधान प्रदान करती हैं. भारत इस बात की वकालत करता है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ये समाधान केंद्रित कार्रवाई संस्थानों का नया मानदंड या एजेंडा होना चाहिए. इन वैकल्पिक प्रणालियों के लाभों को पहले ही कई मंचों पर स्वीकार किया जा चुका है क्योंकि ये अभी तक हाशिये पर रहे देशों को अपनी ज़रूरत और हिस्से को पूरा करने और वैश्विक समृद्धि में योगदान देने के लिए उचित अवसर पेश करती हैं. ये आपसी चिंता के मुद्दे पर समान विचार वाले देशों के इन गठबंधनों का काम-काज ही है जो अंतर्राष्ट्रीय रणभूमि में एक से अधिक ध्रुव के आगमन को दिखाता है. 

भारत मानवता के सामने मौजूद समस्याओं के लिए कदम उठाने योग्य समाधान प्रदान करने वाले संस्थानों को बढ़ावा देकर या बनाकर विश्व व्यवस्था में रचनात्मक ढंग से संशोधन कर रहा है.

निष्कर्ष

इस तरह पश्चिमी देशों की अगुवाई वाली अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की समस्याओं ने संशोधनवाद को ज़रूरी बना दिया है. जहां चीन और रूस के नेतृत्व में विनाशकारी संशोधनवाद निश्चित रूप से नहीं चाहिए वहीं रचनात्मक संशोधनवाद अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली को अधिक वैध और समाधान केंद्रित बनाने का प्रयास करता है. भारत मानवता के सामने मौजूद समस्याओं के लिए कदम उठाने योग्य समाधान प्रदान करने वाले संस्थानों को बढ़ावा देकर या बनाकर विश्व व्यवस्था में रचनात्मक ढंग से संशोधन कर रहा है. ठोस कोशिशों के ज़रिए भारत इन संगठनों के सफल काम-काज को सुनिश्चित कर रहा है और एक बहुध्रुवीय व्यवस्था के उदय को सुविधाजनक बनाने में मदद कर रहा है. 


सत्यम सिंह ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं. 

(नोट: ये लेख लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस में लेखक की 'प्रॉब्लेमेटाइज़िंग रिवाइज़निज़्म: इंडियाज़ कंस्ट्रक्टिव रिवाइज़निज़्म अंडर द मोदी गवर्नमेंट' (संशोधनवाद की समस्या: मोदी सरकार के तहत भारत का रचनात्मक संशोधनवाद) शीर्षक वाली थीसिस से लिया गया है.) 

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