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चीन में कोविड मामलों में बढ़ोतरी के साथ ही भारत के एंटी कोविड दवाओं की लोकप्रियता में भी वृद्धि हुई है.
जैसा कि चीन कोविड मामलों में अचानक आयी तेज़ी से जूझ रहा है तो भारत से एंटी-कोविड जेनेरिक दवाएं - विशेष रूप से फाइज़र की एंटी-कोविड ओरल ड्रग पैक्सलोविड का जेनेरिक संस्करण, चीन में बेस्ट-सेलर बन गया है और इसे एक सप्ताह पहले बुक कराना ज़रूरी हो गया है. चीनी रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले कुछ दिनों में वीबो की हॉट सर्च लिस्ट में "1000 आरएमबी बॉक्स में बिकने वाली एंटी-कोविड भारतीय जेनेरिक दवाएं" दिखाई दी हैं. भारतीय जेनेरिक दवाओं की स्टॉक की कमी के कारण चीन में विभिन्न ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और व्यक्तिगत स्टोरों ने प्री-सेल मोड पर इन्हें बेचना शुरू कर दिया है. इन जेनेरिक दवाओं को वर्तमान में चीन में दवा की दुकानों की शेल्फ से सीधे खरीदना मुश्किल है, जबकि भारत से सीधे मेल के ज़रिये इसे पाने में लगभग 15-20 दिन लगते हैं और यह प्रति व्यक्ति केवल दो बॉक्स तक ही सीमित है. यहां तक कि कुछ ऑनलाइन ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों ने, भारी मांग को देखते हुए, भारतीय जेनेरिक-संबंधित की-वर्ड को ब्लॉक कर दिया है. हालांकि, दवायें चीन के काले बाज़ारों और सामाजिक हलकों में हॉटकेक की तरह बिक रही हैं.
मौज़ूदा समय में, चीन में केवल दो समर्पित एंटी-कोविड दवाएं स्वीकृत हैं, जिनके नाम हैं फाइज़र की पैक्सलोविड और घरेलू रूप से विकसित रियल बायो की एजवुडाइन. हालांकि, एजवुडाइन को घरेलू बाज़ार में कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि एजवुडाइन को लिस्टिंग के लिए सशर्त रूप से अनुमोदित किए जाने के बाद रियल बायो ने दवा के बारे में कुछ जानकारी का खुलासा नहीं किया है. दूसरी ओर, फाइज़र पैक्सलोविड, जो गंभीर रोग दर और मृत्यु दर को 82.5 प्रतिशत तक कम कर रहा है, विशेष रूप से बुजुर्ग लोगों के बीच चीनी बाज़ार में कम उपलब्ध है. वर्तमान में, फाइज़र का पैक्सलोविड केवल चीन के कुछ अस्पतालों में ही बेचा जाता है और इसकी सप्लाई बेहद अपर्याप्त है.
9 मार्च को सिनोफार्म ने चीन में पैक्सलोविड के वितरण अधिकार प्राप्त किए हैं. 17 मार्च को ड्रग्स की पहली खेप चीन के कस्टम में दाख़िल हुई. कुल मिलाकर इस दवा के केवल 21,200 बक्से थे और उन्हें आठ प्रांतों में वितरित किया गया था, जहां उन दिनों जिलिन, शंघाई और ग्वांगडोंग सहित कोरोना का प्रकोप तेज़ी से फैला था. अप्रैल के मध्य में, जब शंघाई में महामारी बढ़ी, तब शंघाई फार्मास्युटिकल ग्रुप ने इस दवा के 20,000 बक्से फिर से आयात किए थे. 13 दिसंबर को, चीनी सरकार ने घोषणा की कि फाइज़र की एंटी-कोविड ओरल ड्रग चीन में ऑनलाइन बेची जा सकती हैं लेकिन अचानक कुछ ही घंटों में पैक्सलोविड बाज़ार में ऑनलाइन उपलब्ध नहीं रहा. मीडिया रिपोर्टों ने बताया कि कुछ अस्पतालों से संपर्क करने के अलावा दवा तक पहुंचने का कोई दूसरा ज़रिया नहीं है.
अब चूंकि, गंभीर संक्रमण के जोख़िम को कम करने के लिए पैक्सलोविड को कोरोना के शुरुआती चरण में इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है, इसलिए कई चीनी नेटिज़न्स को यह चिंता सता रही है कि अगर वे पहले से इस दवा को अच्छी तरह से बुक नहीं करते हैं, तो बुज़ुर्गों तक दवा पहुंचने में काफी देर हो जाएगी और उन्हें इसके लिए ज़्यादा इंतज़ार करना होगा. वो भी तब जब वो बीमार हैं और फिर अस्पताल भेजे जाने के लिए लंबी कतारों में प्रतीक्षा कर रहे होंगे, जिससे ज़रूरी दवाइयां प्राप्त की जा सकें - जो वैसे भी जीवन बचाने के मामले में एक व्यर्थ कोशिश साबित होगी.
वर्तमान में चीनी बाज़ार में चार प्रकार की एंटी-कोविड भारतीय जेनेरिक दवाएं बेची जाती हैं, जैसे प्रीमोविरर, पैक्सिस्टा, मोलनुनाट और मोलनाट्रिस. इनमें से पहली दो फाइज़र पैक्सलोविड की जेनेरिक दवाएं हैं. प्रीमोविरर का उत्पादन एक भारतीय कंपनी एस्ट्रिका द्वारा किया जाता है और पैक्सिस्टा का उत्पादन भारतीय दवा कंपनी हेटेरो की सहायक कंपनी अज़ीस्ता द्वारा किया जाता है.
दूसरी ओर, इन ब्रांडेड दवाओं की क़ीमतें सामान्य चीनी ख़रीदारों के लिए बहुत अधिक हैं. चीन में दवा की ऑनलाइन बिक्री मूल्य आरएमबी 2,980 / बॉक्स है, और चिकित्सा बीमा ख़रीद मूल्य आरएमबी 2,300 / बॉक्स है. ऑस्ट्रेलिया में, कीमत 1,159 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर प्रति बॉक्स (5,473 आरएमबी) है; संयुक्त राज्य अमेरिका में यह लगभग 529 अमेरिकी डॉलर प्रति बॉक्स (लगभग 3,688 आरएमबी) है; ज़्यादातर यूरोपीय देशों में, क़ीमत 600-700 अमेरिकी डॉलर प्रति बॉक्स (लगभग 4,183-4,880 आरएमबी) है; ताइवान और हांगकांग में इसकी क़ीमत 700 अमेरिकी डॉलर प्रति बॉक्स (लगभग 4,880 आरएमबी) है; इसी तरह, मोल्नुपिराविर जिसने चीन में मार्केटिंग के लिए आवेदन किया है, उसकी क़ीमत लगभग 4,722 आरएमबी/बॉक्स होने की उम्मीद है. हालांकि, ज़्यादातर चीनी परिवार इतनी अधिक राशि का भुगतान करने में असमर्थ हैं.
इसकी तुलना में, उपर्युक्त दवाओं के मुक़ाबले भारतीय जेनेरिक दवाओं के एक बॉक्स की क़ीमत बहुत सस्ती है (1,000 युआन से लेकर 1,600 युआन तक), और बिना डॉक्टरी नुस्ख़े के आसानी से ख़रीदी जा सकती है. ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं कि भारतीय एंटी-कोविड जेनेरिक दवाएं अधिकांश चीनी परिवारों के लिए स्पष्ट विकल्प के रूप में उभरी हैं. वर्तमान में चीनी बाज़ार में चार प्रकार की एंटी-कोविड भारतीय जेनेरिक दवाएं बेची जाती हैं, जैसे प्रीमोविरर, पैक्सिस्टा, मोलनुनाट और मोलनाट्रिस. इनमें से पहली दो फाइज़र पैक्सलोविड (नैमेटवेई टैबलेट/रटनवीर टैबलेट) की जेनेरिक दवाएं हैं. प्रीमोविरर का उत्पादन एक भारतीय कंपनी एस्ट्रिका द्वारा किया जाता है और पैक्सिस्टा का उत्पादन भारतीय दवा कंपनी हेटेरो की सहायक कंपनी अज़ीस्ता द्वारा किया जाता है. बाद की दो दवाइयां मर्क के मोल्नुपिराविर के लिए जेनेरिक हैं.
हालांकि, चीनी सरकार भारतीय एंटी-कोविड दवाओं को मान्यता नहीं देती है, भारतीय जेनेरिक दवाओं की बिक्री को अभी भी चीन में अवैध माना जाता है और यह एक दंडनीय अपराध है. चीनी डॉक्टरों को अनौपचारिक चैनलों के माध्यम से दवायें ख़रीदने की सलाह देते हुए और इसमें शामिल जोख़िमों को उजागर करते हुए भी देखा जा सकता है. हालांकि, सभी चेतावनियों और कार्रवाई के बावज़ूद, चीनी मीडिया रिपोर्टों ने उजागर किया है कि, इस साल अप्रैल से, भारतीय जेनेरिक दवाएं चीन, हॉन्गकॉन्ग, मकाओ और ताइवान में ग्राहकों के बीच बेहद लोकप्रिय हो गया है. नवंबर में ज़ीरो कोविड नीति को अचानक वापस लेने के बाद इन दवाओं की मांग में उछाल आया है और एक महीने से भी कम समय में 50,000 से अधिक बॉक्स बेचे जा चुके हैं.
चीनी इंटरनेट पर भारतीय जेनेरिक दवाएं चर्चा का विषय है. भारतीय जेनेरिक दवाओ का मुद्दा पहली बार चीन में दो साल पहले "आई एम नॉट द गॉड ऑफ मेडिसिन" नामक एक लोकप्रिय फिल्म द्वारा सुर्ख़ियों में लाया गया था, जिसमें चीन में कैंसर रोगियों के लिए कैंसर रोधी सस्ती जीवन रक्षक दवाओं तक पहुंच पाने के संघर्ष को दिखाया गया था. फिल्म का कथानक पूरी तरह ग्लीवेक दवा के इर्द-गिर्द घूमता रहा, जिसका उपयोग क्रोनिक माइलोजेनस ल्यूकेमिया रोगियों के इलाज के लिए किया जाता है. चीन में दवा के ब्रांडेड संस्करण की क़ीमत लगभग 23,500 से 40,000 आरएमबी/बॉक्स है. इसे रोगियों द्वारा अपने शेष जीवन के लिए हर महीने उपभोग करने की आवश्यकता होती है, जिससे यह चीन में अधिकांश लोगों के लिए कुछ हद तक अप्रभावी हो जाता है. जबकि उसी के लिए भारतीय जेनेरिक दवाओं की क़ीमत 200 आरएमबी प्रति बॉक्स है और इसलिए चीन में इस विशेष दवा की भारी मांग है. सिर्फ जीवन रक्षक दवाएं ही नहीं, चीन के इंटरनेट पर विभिन्न व्यक्तिगत प्रमाण भी पाए जाते हैं जो इस बात को रेखांकित करते हैं कि कैसे गाउट की 10 टैबलेट के लिए एक बॉक्स की क़ीमत 140 आरएमबी है, जिसे पूरे साल लेने की ज़रूरत है. जबकि 100 गोलियों के इसी दवा की भारतीय संस्करण की कीमत केवल 200 आरएमबी प्रति बॉक्स है और इसलिए इसे आम लोगों द्वारा पसंद किया जाता है.
चीनी इंटरनेट पर भारतीय जेनेरिक दवाएं चर्चा का विषय है. भारतीय जेनेरिक दवाओ का मुद्दा पहली बार चीन में दो साल पहले "आई एम नॉट द गॉड ऑफ मेडिसिन" नामक एक लोकप्रिय फिल्म द्वारा सुर्ख़ियों में लाया गया था, जिसमें चीन में कैंसर रोगियों के लिए कैंसर रोधी सस्ती जीवन रक्षक दवाओं तक पहुंच पाने के संघर्ष को दिखाया गया था.
कई चीनी टिप्पणीकार अनिच्छा से यह सवाल करते हैं कि ऐसा क्यों है कि एक अन्यथा "गंदा", "ग़रीब", और "पिछड़ा" भारत कुछ ऐसा करने में सक्षम है जो चीन अपनी पूरी शक्ति के साथ नहीं कर पा रहा - जो अपनी ग़रीब जनता की ज़िंदगी को बचाने से संबंधित है. इस बीच कई लोग भारतीय जेनेरिक दवाओं को अवैध, नकली, सुरक्षा के लिए ख़तरा और अप्रभावी बताते हुए ख़ारिज़ कर देते हैं, जबकि दवा प्रतिरोध का जोख़िम भी वो उठाते हैं. हालांकि, सभी नकारात्मक प्रचार के बावज़ूद, चीनी टिप्पणीकारों के बीच एक अंतर्निहित सहमति दिखती है कि चीन और दुनिया भर में "जीने के लिए तड़प रहे" लोगों के लिए, भारत अभी भी अपनी जीवन रक्षक "चमत्कारिक दवाओं" के साथ उम्मीद की किरण बना हुआ है.
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Antara Ghosal Singh is a Fellow at the Strategic Studies Programme at Observer Research Foundation, New Delhi. Her area of research includes China-India relations, China-India-US ...
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