Author : Arya Roy Bardhan

Expert Speak India Matters
Published on Jan 03, 2024 Updated 0 Hours ago

2024 में क़ुदरती और ज़िम्मेदार प्रगति के लिए भारत को एक ऐसा नीतिगत ढांचा लागू करना होगा, जो मौजूदा भू-राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए विकासशील देशों के बीच एकदम अनूठा हो.

भारतीय अर्थव्यवस्था: कैसा रहा 2023?

भारत की अर्थव्यवस्था के लिए 2023 का साल बहुत अच्छा रहा. इस साल भारत की GDP 3.73 ट्रिलियन डॉलर पहुंच गई, तो प्रति व्यक्ति GDP 2610 डॉलर हो गई. इस साल भारत की अनुमानित विकास दर 6.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि दुनिया की औसत विकास दर केवल 2.9 फ़ीसद रही थी. आज जब भारत 2027 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की तैयारी कर रहा है, तो इसकी प्रगति के पीछे के अहम कारणों के साथ साथ दूसरे प्रमुख मानकों की पड़ताल करना ज़रूरी हो जाता है. इनमें से कुछ पैमाने महंगाई दर, बेरोज़गारी, निवेश, हर सेक्टर का प्रदर्शन और ख़ास तौर से टिकाऊ विकास के मानक पर प्रदर्शन के हैं. इन सूचकांकों की एक समीक्षा की गई है, ताकि भारत की अर्थव्यवस्था की ताक़त को पहचाना जा सके और उन प्रयासों को उजागर किया जा सके, जिन्हें 2024 में भी अपनाने की ज़रूरत होगी.

Figure 1: भारत की प्रति व्यक्ति GDP (अमेरिकी डॉलर में)

महत्वपूर्ण मानक

आज जब दुनिया की विकास दर धीमी पड़ रही है, तो भी महंगाई दर ऊंचे स्तर पर बनी हुई है. कमोडिटी की क़ीमतों में सुधार और सस्ते ईंधन की वजह से अक्टूबर 2023 से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) की महंगाई दर में लगभग दो प्रतिशत की गिरावट चुकी है. मुख्य महंगाई (Core Inflation), जो खाद्य पदार्थ और ईंधन के अलावा महंगाई होती है, वो भी स्थिर बनी हुई है. इससे संकेत मिलता है कि महंगाई दर ऊंची रहने की बड़ी वजह खाने-पीने के सामान के बढ़ते दाम हैं, जिनकी वजह से महंगाई दर 4 प्रतिशत के लक्ष्य से ज़्यादा रह रही है. अनाजों, दालों और मसालों में दोहरे अंकों की महंगाई ने खाद्य पदार्थों की महंगाई को ऊंचाई पर बनाए रखा है. सरकार निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर घरेलू क़ीमतों को क़ाबू में रखकर इससे पार पाने की कोशिश कर रही है. वैसे तो वैश्विक मांग स्थिर है. लेकिन, भू-राजनीतिक तनावों की वजह से आपूर्ति श्रृंखलाओं में खलल 2024 में भी जारी रहने की आशंका है, जिसके कारण नियमित रूप से मौद्रिक और वित्तीय क़दम उठाने की ज़रूरत पड़ती रहेगी.

Figure 2: CPI महंगाई दर का तिमाही-वार अनुमान (साल के अनुपात में)

 

रिज़र्व बैंक द्वारा आंकड़ों पर आधारित निरपेक्ष मौद्रिक नीति अपनाने की तारीफ़ अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भी की है, क्योंकि इससे क़ीमतें धीरे धीरे स्थिर हो सकती हैं. भारतीय रूपये और अमेरिकी डॉलर की विनियम दर 82 से 84 के बीच घटते बढ़ते रहने की संभावना है और धीरे धीरे, भारतीय मुद्रा के नीचे वाले स्तर पर स्थिर होने की संभावना अधिक है. मिसाल के तौर पर नवंबर 2022 की तुलना में नवंबर 2023 में भारत का व्यापार घाटा लगभग आधा रह गया है. वैसे तो पिछले साल की तुलना में जनवरी से अक्टूबर के बीच निर्यात में 5.43 प्रतिशत की गिरावट आई है. वहीं, इसी दौरान आयात में भी 7.31 फ़ीसद की कमी दर्ज की गई है, जिसकी वजह से व्यापार संतुलन में सुधार हुआ है. घरेलू महंगाई पर क़ाबू पाने के कलिए चावल और दूसरे खाद्य उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए जाने की वजह से निर्यात में गिरावट की आशंका तो पहले से ही थी.

 पेट्रोलियम उत्पादों और महंगे पत्थरों के निर्यात में वैसे तो कमी आई है. लेकिन, दूरसंचार के उपकरणों, इलेक्ट्रिक मशीनरी और दवाओं के निर्यात में काफ़ी बढ़ोतरी देखी गई है. इससे पता चलता है कि अर्थव्यवस्था के किन सेक्टरों से उम्मीद लगाई जा सकती है.

पेट्रोलियम उत्पादों और महंगे पत्थरों के निर्यात में वैसे तो कमी आई है. लेकिन, दूरसंचार के उपकरणों, इलेक्ट्रिक मशीनरी और दवाओं के निर्यात में काफ़ी बढ़ोतरी देखी गई है. इससे पता चलता है कि अर्थव्यवस्था के किन सेक्टरों से उम्मीद लगाई जा सकती है. इसके अलावा, बाहरी सेक्टर के मोर्चे पर अगर हम अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुमानों पर यक़ीन करें तो विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) दोनों में 2023 में बढ़ोत्तरी होते देखी गई है और 2024 में इनके क्रमश: 44.4 और 33.9 अरब डॉलर पहुंचने की उम्मीद है. विदेशी निवेश में ये बढ़ोत्तरी इस हक़ीक़त का सबूत है कि भारत को ग्लोबल साउथ की एक उभरती हुई ताक़त माना जा रहा है, जहां बेहद कम जोखिम के साथ निवेश पर नियमित रूप से अच्छा रिटर्न मिलने की संभावना दिख रही है. उभरते हुए सेक्टरों के मामले में इस बदलाव का अध्ययन किया जाना चाहिए, क्योंकि इन्हीं सेक्टरों के कारण आज भारत तेज़ गति से विकास कर पा रहा है.

सबसे चमकदार सेक्टर

2023 की तीसरी तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की विकास दर 13.9 प्रतिशत रही थी, जिसे स्टील, सीमेंट और ऑटोमोबाइल निर्माण क्षेत्र में दोहरे अंकों वाली विकास दर से मदद मिली. मूलभूत ढांचे और रियल स्टेट के सेक्टरों ने भी अच्छा प्रदर्शन किया है, वहीं कंस्ट्रक्शन सेक्टर में 13.3 प्रतिशत की तिमाही विकास दर दर्ज की गई है. हालांकि, आख़िरी तिमाही में कृषि और सेवा क्षेत्रों- वित्तीय और हॉस्पिटैलिटी सेक्टर की विकास दर में कमी आती देखी गई है. जहां तक कृषि क्षेत्र की बात है, तो इसकी प्रगति में कमी के पीछे मौसम की ख़राबी और ख़रीफ़ की फ़सल के अनुमान से कहीं कम उत्पादन को कारण माना जा रहा है. मगर, वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में आई गिरावट के पीछे आधार में वृद्धि को बताया जा रहा है. क्योंकि पिछले साल इन सेवाओं के आधार में काफ़ी बढ़ोतरी देखी गई है.

Figure 3: प्रमुख सेक्टरों में तिमाही-वार सकल मूल्य संवर्धन

Source: EY Pulse

मेक इन इंडियाकी पहल की मदद से, भारत के मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के 2025-26 तक 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावनाएं दिखती हैं. उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए लागू की गई अन्य योजनाओं जैसे कि प्रोडक्शन लिंक्ड इनिशिएटिव (PLI) योजना के ज़रिए इसको और बढ़ावा मिल सकता है. PLI योजना का मक़सद, भारी सब्सिडी देकर 14 अहम सेक्टरों में निवेश आकर्षित करना है, ताकि बड़े पैमाने पर उत्पादन करके भारत की कंपनियां विश्व स्तर पर होड़ लगा सकें. लेकिन, इससे सरकारी ख़ज़ाने पर भारी बोझ पड़ता है. मैन्युफैक्चरिंग उद्योग, जिसमें ऑटोमोबाइल, कपड़ा उद्योग और इलेक्ट्रॉनिक्स के सेक्टर शामिल हैं, वो घरेलू ग्राहकों में अपेक्षित बढ़ोत्तरी के साथ साथ बढ़ रहे हैं. इससे कम रोज़गार वाली अर्थव्यवस्था में कुल मांग की महत्ता का पता चलता है. इससे अर्थव्यवस्था को गति देने और उसकी वजह से रोज़गार में बढ़ोतरी में ग्राहक की आमदनी की अहम भूमिका रेखांकित होती है.

सुधार की काफ़ी गुंजाइश है

पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के मुताबिक़ जून 2022 की तुलना में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (LFPR) 41.3 प्रतिशत से बढ़कर जून 2023 में 42.4 हो गया है. लेकिन, महिलाओं की लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन की दर (LFPR) अभी भी 30.5 प्रतिशत के काफ़ी कम स्तर पर है. भारत के नीति नियंताओं के लिए युवा बेरोज़गारी की दर अभी भी बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई है. औद्योगिक विकास और रोज़गार के बीच की कड़ी टूटने की वजह रोज़गार मिलने में फ़र्क़ से जोड़कर देखी जा सकती है. क्योंकि एक औसत कामगार के पास वो हुनर नहीं होता कि वो काम हासिल कर सके. कामगारों को प्रशिक्षित करके उन्हें हुनरमंद बनाने के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है. लेकिन, नीतियां ऐसी होनी चाहिए ताकि उपलब्ध अवसरों को लेकर जागरूकता बढ़े और परिवर्तन की प्रक्रिया भी आसान हो. वैसे तो बेरोज़गारी की दर में गिरावट रही है. लेकिन, इसे कम से कम करना होगा ताकि भारत, विकास के लिए अपनी विशाल आबादी का अधिकतम लाभ उठा सके.

 रिज़र्व बैंक के गवर्नर रह चुके रघुराम राजन अपनी हालिया किताब में तर्क देते हैं कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में तेज़ प्रगति तभी तक जारी रहेगी, जब तक भारतीय उत्पादों को विश्व स्तर पर मुक़ाबला करने लायक़ बनाने के लिए, सरकार की तरफ़ से प्रोत्साहन दिया जाता रहेगा.

इससे भारत द्वारा चुने गए संरचनात्मक रास्ते को लेकर बहस के दरवाज़े खुलते हैं और सवाल ये उठता है कि क्या सेवा क्षेत्र पर आधारित प्रगति की राह पर चलकर भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकता है. रिज़र्व बैंक के गवर्नर रह चुके रघुराम राजन अपनी हालिया किताब में तर्क देते हैं कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में तेज़ प्रगति तभी तक जारी रहेगी, जब तक भारतीय उत्पादों को विश्व स्तर पर मुक़ाबला करने लायक़ बनाने के लिए, सरकार की तरफ़ से प्रोत्साहन दिया जाता रहेगा. वैसे तो ये बात नया उद्योग होने के तर्क को ख़ारिज करती है. लेकिन, सेवा क्षेत्र की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए. उद्योगों को मुक़ाबला करने लायक़ बनाने के लिए इनपुट की लागत को कम से कमतर बनाने की ज़रूरत है. इसमें श्रम क्षेत्र भी शामिल है. लेकिन, इससे समावेशी विकास बाधित होगा और भारत के टिकाऊ विकास के सफर में बाधाएं खड़ी होंगी. हालांकि, रिसर्च और विकास में पर्याप्त मात्रा में निवेश करके सब्सिडी वाली योजनाओं की ज़रूरत को काफ़ी कम किया जा सकता है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए क़ुदरती तरीक़े से आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके.

टिकाऊ विकास सुरक्षित बनाना

टिकाऊ विकास के लक्ष्य (SDG) हासिल करने के मामले में भारत, दुनिया के 166 देशों के बीच 112वें स्थान पर है. इस उपलब्धि के अन्य देशों पर भी सकारात्मक असर के मामले में भी भारत का प्रदर्शन काफ़ी अच्छा रहा है. लेकिन, मैन्युफैक्चरिंग पर आधारित विकास पर ध्यान केंद्रित करने से पर्यावरण की गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ेगा. इससे विकास और बेहतरी के बीच समझौता करने का सवाल खड़ा होगा. इस सवाल से निपटने के लिए बहुक्षेत्रीय रिसर्च और नीतिगत तालमेल की ज़रूरत पैदा होती है, ताकि कम सामाजिक क़ीमत चुकाकर विकास की तेज़ दर हासिल की जा सके. भारत ने 2030 के एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए अपनी G20 अध्यक्षता के दौरान कई क़दम उठाए हैं और टिकाऊ विकास की ज़रूरतों के हिसाब से भारत अपने आर्थिक समझौतों में इसकी रूप-रेखाओं को भी शामिल कर रहा है. हालांकि, 2024 में सहज और उत्तरदायी विकास के लिए भारत को अभूतपूर्व और नीतिगत संरचना तैयार करके उसे लागू करना होगा. ये ऐसा ढांचा हो, जो मौजूदा भू-राजनीतिक माहौल में किसी बड़े और विकासशील देश के लिहाज़ से एकदम अनूठा हो.

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