Published on Dec 07, 2023 Updated 0 Hours ago

भारतीय थलसेना को अपने दुश्मनों के किसी भी हमले का मुकाबला करने के लिए बिना GPS वाले लड़ाई के क्षेत्रों में काम करने वाले ड्रोन की क्षमता को हासिल करने के लिए काफी तत्परता के साथ आगे बढ़ने की ज़रूरत है.

भारतीय थलसेना में ड्रोन का इस्तेमाल: बिना GPS वाले माहौल में सैटेलाइट नेविगेशन

भारतीय थलसेना ने पिछले दिनों लद्दाख, लेह और पूर्वोत्तर भारत में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सप्लाई के लिए खच्चरों और हेलीकॉप्टर की जगह ड्रोन का इस्तेमाल करने के कदम का ऐलान  किया है. अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV) दूरदराज के इलाकों में तैनात सैनिकों की टुकड़ी या बॉर्डर ऑब्ज़र्वेशन पोस्ट को दवाओं और खाने-पीने के सामान की सप्लाई करेगा. प्रॉक्सिमिटी सेंसर से लैस ये UAV हर तरह के मौसम में उड़ सकते हैं और ये GPS गाइडेड हैं. सेना ने ड्रोन के इस नए उपयोग का फैसला 2022 में पूर्वी लद्दाख और चीन-भारत सीमा पर इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रिकॉनेसेंस (ISR या खुफिया, निगरानी और टोही) मिशन के लिए ख़ास UAV की तैनाती की पृष्ठभूमि में लिया है. ताकत बढ़ाने वाले ये ड्रोन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से सक्षम हैं जिसकी वजह से ये सेना की इन्फैंट्री, मैकेनाइज़्ड  इन्फैंट्री, मोबाइल आर्टिलरी और हथियारबंद फॉर्मेशन के लिए तालमेल और नज़दीकी हवा से ज़मीन वाले ऑपरेशन में मदद के दौरान एक-दूसरे से संवाद करने में सक्षम हैं. इसके अलावा इनमें जो ऑटोमेटिक टारगेट रिकॉग्निशन (ATR) सिस्टम फिट है वो दुश्मन की आर्टिलरी यूनिट, इन्फैंट्री फॉर्मेशन और स्टैटिक इंस्टॉलेशन  समेत पूरे टारगेट की पहचान कर सकता है.

सेना के द्वारा ड्रोन, जो कि लॉजिस्टिक की ज़रूरत पूरी करने के लिए महत्वपूर्ण रूप से सेटेलाइट  पर निर्भर हैं, के उपयोग का परीक्षण युद्ध के दौरान होगा क्योंकि वो भारत के बड़े दुश्मनों- पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) और पाकिस्तान- के हमलों से बहुत ज़्यादा असुरक्षित हैं.

शांतिकालीन मिशन और ज़िम्मेदारी के लिए भारतीय थलसेना के द्वारा तैनात/तैनात किए जा रहे- जिसके तहत जानवरों से परिवहन और रोटरी एयरक्राफ्ट की जगह ड्रोन का इस्तेमाल शामिल है- UAV की जो क्षमताएं ऊपर बताई गई हैं वो बिना किसी शक के ज़रूरी हैं. लेकिन सेना के द्वारा ड्रोन, जो कि लॉजिस्टिक की ज़रूरत पूरी करने के लिए महत्वपूर्ण रूप से सेटेलाइट  पर निर्भर हैं, के उपयोग का परीक्षण युद्ध के दौरान होगा क्योंकि वो भारत के बड़े दुश्मनों- पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) और पाकिस्तान- के हमलों से बहुत ज़्यादा असुरक्षित हैं.

बिना GPS की इजाज़त वाले माहौल में ड्रोन का ऑपरेशन

वैसे तो ड्रोन से जुड़ी क्षमताओं को अपनाना और उनका एकीकरण आवश्यक और सराहनीय है लेकिन ये UAV ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) सक्षम हैं. इस तरह भारतीय थलसेना उन इलाक़ों में इनका इस्तेमाल नहीं कर सकती है जहां GPS नहीं है. ये किसी भी ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) के लिए सच है जिनमें भारत का सीमित सात सैटेलाइट वाला नेविगेशन सिस्टम नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन (NAViC) और चीन का बीदू सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम शामिल हैं. GNSS कॉन्स्टेलेशन सेना के UAV के लिए सिग्नल के ट्रांसमिशन के ज़रिए सटीक पोज़िशन, नेविगेशन एंड टाइमिंग (PNT) सेवाएं सक्षम बनाते हैं. GPS सैटेलाइट और भारत के अपने NAViC कॉन्स्टेलेशन से सप्लाई की डिलीवरी  के लिए तैयार भारतीय सेना के ड्रोन के झुंड को सिग्नल भेजने में रुकावट युद्ध के दौरान एक चुनौती साबित होगी. जैमिंग (सिग्नल जाम करना) और स्पूफिंग (धोखा देना) GPS पर निर्भर सिस्टम के लिए वास्तविक ख़तरे हैं चाहे वो ड्रोन हों, आर्टिलरी हों या मिसाइल हों. जैसा कि अज़रबैजान और आर्मेनिया के बीच युद्ध और विशेष रूप से रूस-यूक्रेन संघर्ष ने साफ तौर पर और निर्विवाद रूप से दिखाया है, इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग ISR UAV के ख़िलाफ़ हमले के सबसे ख़तरनाक रूपों में से एक है. स्पूफिंग हमले का एक और रूप है जिसमें दुश्मन के GPS सिग्नल की नकल करके गलत सिग्नल फीड की जाती है और दुश्मन के रिसीवर को कैप्चर किया जाता है. इस तरह दुश्मन को चकमा दिया जाता है. चीन के साथ भारत की विवादित सीमा पर कम्युनिकेशन सर्विलांस मिशन के लिए भारतीय सेना ने पहले ही GPS या सैटेलाइट पर निर्भर इज़रायल का मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्यूरेंस  ड्रोन, जिसे हर्म्स स्टारलाइनर 900 ड्रोन कहा जाता है, ख़रीदा है.

भारतीय थलसेना के द्वारा ताज़ा कदम की वजह से सैटेलाइट से अलग होकर काम करने वाले UAV को चलाने और इस्तेमाल में कमी का समाधान किया जा रहा है. सेना के लिए ISR, लॉजिस्टिक और हथियार से हमले की क्षमताओं को पूरा करने के लिए ऐसे UAV के परीक्षण की शुरुआत हो गई है जो बिना GPS वाले इलाकों में काम कर सकते हैं. बेंगलुरु की कंपनी न्यूस्पेस रिसर्च के द्वारा तैयार स्वार्म (SWARM) ड्रोन से गिराए गए नागास्त्र-1 हथियार बिना सैटेलाइट निर्देश के सटीक टारगेट पर हमला करने में सक्षम रहे. लेकिन पूरी तरह से सेना के इस्तेमाल में लाने के लिए और ज़्यादा परीक्षण की ज़रूरत होगी. इसके अलावा, इस बात को लेकर सजग रहना चाहिए कि जो ड्रोन कॉन्स्टेलेशन असली लड़ाई के दौरान और युद्ध के मैदान की स्थिति में आंशिक रूप से खो जाते हैं वो हर हाल में एक-दूसरे के साथ कम्युनिकेशन के लिए सक्षम होने चाहिए. मान लिया जाए कि ISR या हमले के मिशन या फिर दोनों अभियानों के दौरान 30 ड्रोन के झुंड में से उसका पांचवां हिस्सा नष्ट हो जाता है तो बाकी ड्रोन को मिशन को अंजाम देने के लिए सक्षम होना चाहिए. ये साफ नहीं है कि बेंगलुरु स्थित न्यूस्पेस रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी और नोएडा में मुख्यालय वाली कंपनी राफे एमफिबर प्राइवेट लिमिटेड के द्वारा बनाया गया AI से चलने वाला ड्रोन, जिसे सेना की आर्मर्ड कोर और मेकेनाइज़्ड इन्फैंट्री ने ख़रीदा है, युद्ध के मैदान में दुश्मन की कार्रवाई से अपने झुंड के एक हिस्से को नुकसान पहुंचने या बर्बाद होने की स्थिति में काम और मिशन को ख़त्म करने में पूरी तरह सक्षम हैं या नहीं. इसके अलावा, क्या भारतीय सेना के लिए भारत के स्टार्ट-अप्स के द्वारा ख़ास तौर पर बनाए गए ड्रोन में इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम (INS) की क्षमताएं हैं और क्या उन्हें अधिक लचीलेपन के साथ स्पूफ प्रतिरोधी GNSS रिसीवर के साथ जोड़ा गया है? क्या इन UAV के सेंसर ऐरे, कैमरा और सॉफ्टवेयर में GNSS या GPS की मदद के बिना अपने इर्द-गिर्द की स्थिति जानने की क्षमता है?

ISR और हमले के मिशन के लिए तैयार सेना के सभी ड्रोन पर समान रूप से लागू होती है जिनमें बिना GPS वाले लड़ाई के क्षेत्रों में असरदार ढंग से काम करने की क्षमता होनी चाहिए.

इस तरह जब तक इन सवालों के बारे में स्थिति साफ नहीं होती तब तक भारतीय सेना को बिना GPS वाले माहौल में ड्रोन मिशन और ऑपरेशन के उद्देश्य से उच्च स्तर की तैयारी करने के लिए अभी भी कुछ दूरी तय करनी पड़ सकती है. अगर सेना की ड्रोन आधारित लॉजिस्टिक फोर्स को मौजूदा समय के अनुसार ही GPS पर निर्भर होना पड़ता है तो ये सक्रिय सैन्य अभियानों के दौरान अपने ज़मीनी बलों के लिए रुकावट बनने से लेकर उसे ख़तरे तक में डालेगी. इसलिए भारतीय थलसेना के सामने चुनौती ये है कि उसे साजो-सामान की ज़रूरत को पूरा करने के लिए ड्रोन की क्षमता, जो कि GPS पर निर्भर नहीं हो, हासिल करने के उद्देश्य से बेहद तत्परता के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है क्योंकि सेना का साजो-सामान, चाहे उड़कर आए या ज़मीन से आए, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA), पीपुल्स लिबरेशन आर्मी स्ट्रैटेजिक  सपोर्ट फोर्स और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयरफोर्स  (PLAAF) के लिए मुख्य निशाना होगा. फिलहाल कम-से-कम ऊपर बताई गई बातों से ये बिल्कुल भी साफ नहीं है कि भारतीय सेना के लॉजिस्टिक मिशन के लिए तैयार ड्रोन की क्षमता बिना GPS वाले माहौल में काम करने की है. ये बात ISR और हमले के मिशन के लिए तैयार सेना के सभी ड्रोन पर समान रूप से लागू होती है जिनमें बिना GPS वाले लड़ाई के क्षेत्रों में असरदार ढंग से काम करने की क्षमता होनी चाहिए. अंत में, भारतीय थलसेना और भारतीय सशस्त्र बलों को आम तौर पर अपने इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम और स्पूफिंग अटैक क्षमताओं को मज़बूत करने की ज़रूरत पड़ेगी ताकि चीन और पाकिस्तान के GNSS सक्षम UAV का प्रभावी ढंग से मुकाबला किया जा सके.


कार्तिक बोम्माकांति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक  स्टडीज़ प्रोग्राम में सीनियर फेलो हैं.

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