Published on Sep 30, 2023 Updated 0 Hours ago

आख़िरकार भारतीय सेना अपने लिए साइबर-सक्षम क्षमता तैयार करने की दिशा में निरंतर क़दम बढ़ा रही है.

देर आए दुरुस्त आए: डिजिटलीकरण के रास्ते पर आगे बढ़ती भारतीय सेना

भारतीय सेना द्वारा साइबर टेक्नोलॉजी अपनाए जाने को लेकर दो महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुए हैं. सेना ने घोषणा की है कि वो दीर्घकाल से लंबित बैटल सर्विलांस सिस्टम (BSS) को चालू करेगी. BSS के नदारद रहने से डिजीटलीकृत और साइबर-सक्षम सेना के निर्माण पर भारी असर पड़ा है. BSS क्यों ज़रूरी है, इस पर तत्काल नज़र डालने से पता चल जाएगा कि देर से ही सही पर इसे अपनाने की क़वायद का स्वागत किया जाना चाहिए. हालांकि, अतीत में BSS की स्थापना को लागू करने के लिए आवश्यक संसाधन आवंटित नहीं किया जाना, भारत के असैनिक और सैन्य नेतृत्व द्वारा दिखाई गई उदासीनता की गवाही देती है. सेना के वरिष्ठ नेतृत्व ने अनेक वर्षों तक इसको लेकर हिचकिचाहट दिखाई और BSS को प्राथमिकता नहीं दी, यहां तक ​​​​कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) और पाकिस्तानी फ़ौज ने भी डिजिटलीकरण और साइबर टेक्नोलॉजी के क्षेत्रों में बढ़त बना ली.

सेना के वरिष्ठ नेतृत्व ने अनेक वर्षों तक इसको लेकर हिचकिचाहट दिखाई और BSS को प्राथमिकता नहीं दी, यहां तक ​​​​कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) और पाकिस्तानी फ़ौज ने भी डिजिटलीकरण और साइबर टेक्नोलॉजी के क्षेत्रों में बढ़त बना ली.

सेना द्वारा “प्रोजेक्ट संजय” के हिस्से के रूप में आगे बढ़ाई जा रही इस क़वायद में BSS  की अपरिहार्यता दो कारकों से पैदा होती है. सर्वप्रथम, ये एक ऐसा निगरानी ढांचा बनाता है जो सेना के विभिन्न स्तरों पर कमांडरों और कर्मचारियों के साथ सभी कमांड सेंटरों को एकीकृत करता है. इससे सेंसर को शूटर लूप तक बढ़ाने में मदद मिलेगी. दूसरे, BSS को सेना के आर्टिलरी कॉम्बैट कमांड एंड कंट्रोल एंड कम्युनिकेशन सिस्टम (ACCCS) के साथ एकीकृत किया जाएगा, जो सेंसर से शूटर लूप को और मज़बूत करेगा. नतीजतन, BSS  कमांड के सभी स्तरों के लिए व्यापक परिचालनात्मक और सामरिक तस्वीर स्थापित करेगा. पूरी तरह से एकीकृत और परिचालित कर दिए जाने पर ये परिस्थितिजनक जागरूकता को भी समान रूप से बढ़ाएगा. इससे शीर्ष स्तर के कमांडर सटीक निर्णय लेने में सक्षम हो सकेंगे. 

ग़ाज़ियाबाद स्थित भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (BEL) BSS के सेंसर्स का मुख्य इंटीग्रेटर है. ऐसी प्रगति के बावजूद बैटल मैनेजमेंट सिस्टम (BMS) के निर्माण के लिए सेना को अभी काफ़ी काम करना है. तैयार हो जाने पर BMS, सबसे निचले स्तर से लेकर शीर्ष स्तर तक के सैनिकों को जोड़ देगा. हालांकि BMS किस तरह से BSS से अलग है, ये अभी साफ़ नहीं है. एक वास्तविक अंतर ये हो सकता है कि BMS का काम बियॉन्ड लाइन ऑफ साइट (BLoS) के लिए नेटवर्क तैयार करना, स्पेक्ट्रम और नेटवर्क प्रबंधन की क्षमता तैयार करना, कम विलंब के साथ क्वॉलिटी ऑफ सर्विस (QoS) या भरोसेमंद हाई स्पीड डिलिवरी और मज़बूत एन्क्रिप्शन कम्युनिकेशंस का निर्माण करना है! BMS के तहत, डेटा ट्रांसमिशन दरें ऊंची होंगी और सेना के लिए कस्टम विकसित किया जाएगा. पूरा होने के बाद BMS (जैसा कि पहले से ही BSS के मामले में है) को भी ACCCS और कमांड इन्फॉर्मेशन एंड डिसिजन सपोर्ट सिस्टम (CIDSS) के साथ एकीकृत किया जाएगा, जिसे आर्मी इन्फॉर्मेशन एंड डिसिजन सपोर्ट सिस्टम (AIDSS) के नाम से भी जाना जाता है. AIDSS 2011 से प्रचलन में है. 

ग़ाज़ियाबाद स्थित भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (BEL) BSS के सेंसर्स का मुख्य इंटीग्रेटर है. ऐसी प्रगति के बावजूद बैटल मैनेजमेंट सिस्टम (BMS) के निर्माण के लिए सेना को अभी काफ़ी काम करना है.

क्या BSS, BMS से अलग है, इसको लेकर परस्पर विरोधी विचार हैं, इसके बावजूद भारतीय सेना द्वारा साइबर और डिजिटल तकनीक का प्रयोग अब अधूरा है और उसके विकास की प्रक्रिया जारी है. जब ये सभी तत्व पूरे हो जाएंगे, तब इन्हें ऑपरेशनल इंफॉर्मेशन सिस्टम (OIS) में एकीकृत किया जाएगा, जो तमाम गोपनीय सामरिक और परिचालनात्मक मामलों के लिए ज़िम्मेदार होता है. OIS, आर्मी क्लाउड (जिसे 2015 में लॉन्च किया गया था) के दो हिस्सों में से एक बनेगा. आर्मी क्लाउड का दूसरा हिस्सा मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम (MIS) है, जो सैन्य कर्मियों के मसलों से संबंधित सभी डेटा अपने पास रखेगा और उनकी निगरानी करेगा.

माया OS का एकीकरण

दरअसल, भारतीय सेना, सामरिक संचार के लिए अधिक स्वदेशी क्षमता की दिशा में बढ़ रही है, और इन घटनाक्रमों को सुदृढ़ करना उसी दिशा में उठाया गया क़दम है. लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) संचार प्रणाली विकसित करने के लिए सेना ने बेंगलुरु स्थित एस्ट्रॉम टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड (ATPL) के साथ सौदा किया है. “टैक्टिकल LAN रेडियो (TLR)” नाम की ये प्रणाली, एक बार सेना की युद्धक व्यवस्था में पूरी तरह से एकीकृत हो जाने के बाद सेना की तैनात इकाइयों के बीच ऐसा संचार मुहैया कराएगी जिसे दुश्मन शक्तियां बीच में नहीं रोक (इंटरसेप्ट) पाएंगी.  

हाल ही में हुआ दूसरा घटनाक्रम, माया OS-उबंटू नामक ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) को अपनाया जाना है. इस ऑपरेटिंग सिस्टम के विकास से कई संस्थाएं जुड़ी हुई थीं. रक्षा मंत्रालय ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO), सेंटर फॉर द डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (C-DAC) और नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर (NIC) के साथ मिलकर माया OS-उबंटू का विकास किया है. इन संस्थाओं ने मिलकर एक ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम विकसित किया है जिसका इंटरफेस और क्रियाकलाप Windows OS के समान हैं. इस ऑपरेटिंग सिस्टम में एक वर्चुअल लेयर भी है जिसे चक्रव्यूह नामक सॉफ्टवेयर की मदद से प्रभावी ढंग से संरक्षित किया जाता है, जो मैलवेयर का प्रवेश रोककर अंतिम उपयोगकर्ता और इंटरनेट की संरक्षा करता है. 

भारतीय सशस्त्र सेवाओं में, माया OS के एकीकरण के साथ आगे बढ़ने वाली पहली सेवा भारतीय नौसेना है. सभी सेवाओं और रक्षा मंत्रालय में नेटवर्क सुरक्षा सुनिश्चित करने में घरेलू रूप से निर्मित ऑपरेटिंग सिस्टम के ज़बरदस्त फ़ायदे हैं.

भारतीय सशस्त्र सेवाओं में, माया OS के एकीकरण के साथ आगे बढ़ने वाली पहली सेवा भारतीय नौसेना है. सभी सेवाओं और रक्षा मंत्रालय में नेटवर्क सुरक्षा सुनिश्चित करने में घरेलू रूप से निर्मित ऑपरेटिंग सिस्टम के ज़बरदस्त फ़ायदे हैं. हालांकि सेना अब भी सॉफ्टवेयर का मूल्यांकन कर रही है, लेकिन सेवाओं द्वारा इसे अपनाने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगना चाहिए. भारतीय रक्षा बलों के नेटवर्क में अधिक साइबर लचीलापन तैयार करने के लिहाज़ से माया-OS भारत के लिए अहम हो जाता है. भारतीय सशस्त्र सेवाओं के लिए देसी सॉफ्टवेयर और कंप्यूटिंग क्षमताओं का लाभ उठाने के संदर्भ में भी ये एक अच्छा क़दम है. माया-OS को अपनाए जाने और उसके एकीकरण के बाद भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा संचालित कंप्यूटर नेटवर्कों में शत्रुतापूर्ण घुसपैठ की आशंकाएं कम हो गई हैं. माया-OS के एकीकरण से एन्क्रिप्टेड संचार बेहतर हो जाएगा.

भारतीय सेना के वरिष्ठ नेतृत्व ने इनोवेशंस इन डिफेंस एक्सिलेंस (iDEX) को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाई है. ये मोदी सरकार की महत्वपूर्ण पहलों में से एक है, जिसका लक्ष्य भारत के निजी क्षेत्र (ख़ासतौर से स्टार्ट-अप्स) की क्षमताओं का लाभ उठाना है.

कई वर्षों तक आनाकानी और विरोध करने के बाद (जिसके पीछे इकलौती उनकी ही मर्ज़ी नहीं थी) आख़िरकार भारतीय सैन्य नेतृत्व, सेवा के लिए साइबर-सक्षम क्षमता बनाने में निरंतर प्रगति कर रहा है. भारतीय सेना के मौजूदा तकनीकी कायाकल्प के पीछे एक अहम (लेकिन इकलौती नहीं) वजह ये तथ्य है कि वर्तमान थल सेना प्रमुख (CoAS), जनरल मनोज पांडे, एक टेक्नोलॉजिस्ट हैं. जनरल पांडे भारतीय थल सेना का नेतृत्व करने वाले पहले इंजीनियर हैं. निश्चित रूप से, उनके ठीक पूर्ववर्ती जनरल मनोज मुकुंद नरवणे और दिवंगत चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत ने भी सेना में जारी मौजूदा तकनीकी बदलावों की शुरुआत में अहम महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. भारतीय सेना के वरिष्ठ नेतृत्व ने इनोवेशंस इन डिफेंस एक्सिलेंस (iDEX) को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाई है. ये मोदी सरकार की महत्वपूर्ण पहलों में से एक है, जिसका लक्ष्य भारत के निजी क्षेत्र (ख़ासतौर से स्टार्ट-अप्स) की क्षमताओं का लाभ उठाना है. भारतीय सेना ने डिफेंस स्टार्ट-अप चैलेंज (DISC), ओपन चैलेंजेज़ और iDEX स्कीम के तहत 42 परियोजनाएं भी शुरू की हैं, जो भारतीय सेना के सामने आने वाली तकनीकी चुनौतियों के लिए अत्याधुनिक तकनीक़ी समाधान विकसित करने के लिए तत्पर हैं. सौ बात की एक बात ये है कि ये घटनाक्रम, और भारतीय सेना ने जो रास्ता चुना है वो तीनों सेनाओं के लिए शुभ संकेत देते हैं. 


कार्तिक बोम्माकांति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में सीनियर फेलो हैं.

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