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भारत और थाईलैंड राजनयिक संबंधों की स्थापना की 75वीं सालगिरह का जश्न मना रहे हैं. ऐसे में आपसी सहयोग को और विस्तार देने के लिए नए द्विपक्षीय दायरे ढूंढे जा रहे हैं.
भारत और थाईलैंड के राजनयिक रिश्तों की 75वीं सालगिरह के मौक़े पर बैंकॉक में 9वें भारत-थाईलैंड संयुक्त आयोग बैठक (JCM) का आयोजन किया गया. आयोजन में शामिल भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने 16-18 अगस्त 2022 को हुई बैठक की सह-अध्यक्षता की. थाईलैंड की नुमाइंदगी उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री डोन प्रमुदविनई ने की. इत्तेफ़ाक़ से भारत भी इस साल अपनी आज़ादी के 75 साल का जश्न मना रहा है, लिहाज़ा वो द्विपक्षीय संबंधों में नई ऊर्जा भरने को तत्पर है.
महामारी के बाद की दुनिया में द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया. इस सिलसिले में अनेक क्षेत्रों को रेखांकित किया गया, जिनमें व्यापार, पर्यटन, साझा अभ्यास, रक्षा व्यवस्थाएं, भौतिक जुड़ाव, ICT और साइबर सुरक्षा शामिल हैं.
तीन दिवसीय दौरे से रिश्तों में मज़बूती के संकेत मिले. महामारी के बाद की दुनिया में द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया. इस सिलसिले में अनेक क्षेत्रों को रेखांकित किया गया, जिनमें व्यापार, पर्यटन, साझा अभ्यास, रक्षा व्यवस्थाएं, भौतिक जुड़ाव, ICT और साइबर सुरक्षा शामिल हैं. इनके अलावा मुक्त, स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत और आस-पड़ोस से जुड़े मसलों के तौर पर भूराजनीतिक आकांक्षाओं पर भी ध्यान दिया गया. इस दौरे में 2 समझौता पत्रों (MoUs) पर दस्तख़त हुए. पहला MoU स्वास्थ्य और चिकित्सा अनुसंधान से जुड़ा है. इसमें भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) और थाईलैंड के चिकित्सा विज्ञान विभाग (DMS) के बीच शोध कार्यों में सहयोग को लेकर क़रार हुआ. दूसरे MoU के ज़रिए प्रसार भारती और थाई पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग सर्विस के बीच प्रसारण से जुड़े सहयोग को पुख़्ता रूप दिया गया.
दोनों विदेश मंत्रियों ने संबंधों को मज़बूत बनाने के सकारात्मक संकेत के तौर पर भारतीय दूतावास की नवनिर्मित रिहाइश और आवासीय परिसर का भी साझा तौर पर उद्घाटन किया. डॉ. एस जयशंकर ने थाई प्रधानमंत्री प्रयुत चान-ओचा से भी मुलाक़ात की. दोनों के बीच द्विपक्षीय रिश्तों को और आगे बढ़ाने के साथ-साथ बहुपक्षीय सहयोग समेत क्षेत्रीय और वैश्विक महत्व के तमाम मसलों पर चर्चा हुई.
थाईलैंड द्विपक्षीय और बहुपक्षीय दायरों में भारत के लिए सामरिक रूप से एक अहम किरदार है. ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के मुताबिक म्यांमार की तरह थाईलैंड भी दक्षिण पूर्व एशिया का दरवाज़ा है. उसी तरह ‘एक्ट वेस्ट’ के तहत थाईलैंड के लिए भारत दक्षिण एशिया में संभावनाओं के द्वार खोलता है. दोनों ही देश अनेक बहुपक्षीय मंचों के अहम सदस्य हैं. इनमें बिम्सटेक, पूर्वी एशिया सम्मेलन, IORA, एशिया सहयोग संवाद और MGC शामिल हैं. आसियान की बैठकों में भी दोनों के बीच क़रीबी सहयोग देखा जा सकता है.
निश्चित रूप से ‘आत्मनिर्भर भारत’ का आग़ाज़ इस सिलसिले में अहम है. इससे निवेश की संभावनाएं बढ़ेंगीं, साथ ही थाईलैंड द्वारा भारतीय उत्पादों के बाक़ी दुनिया में व्यापार का दायरा भी व्यापक होगा. ख़ासतौर से पूर्वोत्तर भारत की चाय से जुड़ी उपज, कृषि और बागवानी उत्पादों, बांस, हथकरघा आदि के लिए नई संभावनाओं के द्वार खुलेंगे.
शुल्क दरों में कटौती से हाल ही में भारत और थाईलैंड के बीच व्यापार में इज़ाफ़ा हुआ है. जुलाई 2022 के आख़िरी हफ़्ते में बैंकॉक में पूर्वोत्तर महोत्सव का आयोजन किया गया. यहां विदेश राज्यमंत्री राजकुमार रंजन सिंह ने गर्व के साथ कहा कि “भारत का घरेलू बाज़ार थाई निवेशकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. लिहाज़ा दोनों देशों के बीच का व्यापार 2021-22 में अब तक के सबसे ऊंचे स्तर 15 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है.“
दोनों देशों की अनेक वाणिज्यिक कंपनियां बख़ूबी अपना कामकाज आगे बढ़ा रही हैं. कारोबारी अवसरों को और आगे बढ़ाने की भरपूर संभावनाएं मौजूद हैं. पूर्वोत्तर महोत्सव का आयोजन इसी संदर्भ में किया गया. भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र और थाईलैंड में पारंपरिक संपर्कों के इज़हार के साथ-साथ इस क़वायद से उत्तरपूर्व के भारतीय कारोबारी समुदाय के लिए आकर्षक व्यापारिक संभावनाओं के द्वार भी खुलते हैं. पूर्वोत्तर क्षेत्र के कारोबारी थाईलैंड में अवसरों की तलाश में हैं. महोत्सव के दौरान पूर्वोत्तर भारत के शानदार खानपान, खासतौर से पोर्क डिशेज़ को ख़ासी लोकप्रियता मिली. थाई लोगों में इसकी बढ़ती मांग से मांस की आपूर्ति के साथ-साथ थाई ग्राहकों के लिए फ़ूड चेन्स खोले जाने की संभावना भी खुलेगी. निश्चित रूप से ‘आत्मनिर्भर भारत’ का आग़ाज़ इस सिलसिले में अहम है. इससे निवेश की संभावनाएं बढ़ेंगीं, साथ ही थाईलैंड द्वारा भारतीय उत्पादों के बाक़ी दुनिया में व्यापार का दायरा भी व्यापक होगा. ख़ासतौर से पूर्वोत्तर भारत की चाय से जुड़ी उपज, कृषि और बागवानी उत्पादों, बांस, हथकरघा आदि के लिए नई संभावनाओं के द्वार खुलेंगे.
रक्षा और सुरक्षा से जुड़ी क़वायद भी साझा सामुद्रिक गश्त के ज़रिए लगातार परवान चढ़ रही है. दोनों देशों की नौसेनाएं साझा सैनिक अभ्यास और प्रशिक्षण के कार्यक्रम आयोजित करती रहती हैं.
पिछले 150 सालों से भी ज़्यादा वक़्त से भारतीय प्रवासी आबादी थाई समुदाय का अटूट हिस्सा रही है. भारतीय समुदाय दोनों देशों के बीच अहम कड़ी का काम करता है और थाईलैंड की जीडीपी में बड़ा योगदान भी देता है. इसी क्षमता को ध्यान में रखते हुए डॉ. जयशंकर अपने दौरे के पहले ही दिन भारतीय समुदाय से रुबरु हुए. इस दौरान उन्होंने भारतीय प्रवासियों की सहूलियत के लिए भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए तमाम कार्यक्रमों का ब्योरा दिया. उन्होंने भारत में कोविड की दूसरी लहर के दौरान थाईलैंड में रह रहे भारतीय समुदाय द्वारा की गई मदद की सराहना भी की. ग़ौरतलब है कि थाईलैंड के भारतीय समुदाय ने उस वक़्त भारी तादाद में मेडिकल उपकरण मुहैया कराए थे.
दोनों देशों के बीच आम जनता के स्तर पर सहयोग को मज़बूत बनाने के लिहाज़ से पर्यटन एक प्रमुख सेक्टर है. विदेश मंत्री जयशंकर के दौरे में ये बात उभरकर सामने आई. उन्होंने थाईलैंड में बौद्ध मंदिरों का दौरा करने के बाद दोनों देशों में सभ्यता-संस्कृति की समानताओं के बारे में ट्वीट भी किया. दोनों ही सरकारें 2016 से बौद्ध सर्किट से जुड़ी क़वायद को आगे बढ़ाने की कोशिशों में लगी हैं. इसमें भारत और नेपाल में बौद्ध पर्यटन के लिहाज़ से मौजूद सबसे अहम तीर्थस्थान शामिल हैं. थाईलैंड के लाखों बौद्ध तीर्थयात्री लुंबिनी, बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर की धार्मिक यात्राएं करते हैं. उनकी यात्रा को सहज बनाने के लिए भारत सरकार ने थाई नागरिकों के लिए डबल-एंट्री ई-टूरिस्ट वीज़ा की सहूलियत दी है. थाई कंपनियों द्वारा बौद्ध सर्किट के विकास में निवेश करने और कुछ लग्ज़री होटल खोले जाने की उम्मीद की जा रही थी. इससे एक बड़े जनसमुदाय को फ़ायदा होने की आस थी. बहरहाल, कोविड-19 से इस प्रक्रिया को अमली जामा पहनाने में रुकावट आ गई. हालांकि, हाल के हवाई संपर्क दोबारा बहाल होने से इस पहल के पटरी पर आने की उम्मीद जगी है. नियमित उड़ानों के स्थगित रहते भारतीय पर्यटकों को लुभाने के लिए शुरू की गई एयर ट्रैवल बबल स्कीम का थाईलैंड के प्रधानमंत्री ने समर्थन किया है. ये योजना कारगर रही है. जनवरी से मई 2022 के बीच 100,884 भारतीय पर्यटक थाईलैंड पहुंचे. 2022 में थाईलैंड पहुंचने वाले विदेशी पर्यटकों में भारतीयों की तादाद सबसे ज़्यादा रही है. लिहाज़ा इन संभावनाओं का और ज़्यादा इस्तेमाल बेहद अहम है.
कनेक्टिविटी परियोजनाओं की बात करें तो भारत के चेन्नई और कोलकाता बंदरगाहों से व्यापार को बढ़ावा देने के लिए थाईलैंड अपने रेनॉन्ग बंदरगाह का विकास कर रहा है. भारत और थाईलैंड के बीच अहम कड़ी बनने वाले त्रिपक्षीय हाईवे की प्रगति की दोबारा समीक्षा हुई है. दोनों मंत्रियों के मुताबिक इस परियोजना का काम अपनी रफ़्तार से जारी है. ये हाईवे मणिपुर के मोरेह से थाईलैंड के मेई सोट तक जाएगा. आगे चलकर कंबोडिया, लाओस और वियतनाम तक इस सुविधा का विस्तार कर दिया जाएगा. इससे पूरे आसियान के बाज़ारों तक पहुंच की उम्मीद है, जिससे लोगों के बीच का संपर्क और बढ़ेगा.
भारत 1360 किमी लंबे त्रिपक्षीय हाईवे के 2 अहम हिस्सों का म्यांमार में निर्माण कर रहा है. हालांकि इसके कुछ खंडों पर कामकाज में देरी हो रही है. साथ ही 70 पुलों को आधुनिक बनाने के काम में भी विलंब हो रहा है. इसके लिए ज़िम्मेदार कारकों में कोष की कमी के साथ-साथ प्रौद्योगिकी और योग्य कामगारों का अभाव शामिल हैं. म्यांमार में तख़्तापलट के बाद वहां के चिन प्रांत में भड़के संघर्ष और आंदोलनों से पैदा सुरक्षा चिंताओं के चलते वहां से गुज़रने वाले कई हिस्सों का काम सुस्त पड़ गया है. लिहाज़ा इस परियोजना के जल्द पूरा होने के आसार दिखाई नहीं देते.
म्यांमार में फ़रवरी 2021 में हुए तख़्तापलट के बाद राजनीतिक अस्थिरता, बढ़ते संघर्षों और विस्थापन का भारत और थाईलैंड दोनों पर असर हुआ है. जून 2022 तक दोनों ही देशों में 40 हज़ार से भी ज़्यादा विस्थापित लोग शरण ले चुके हैं. आने वाले दिनों में इसमें और बढ़ोतरी होने की आशंका है. म्यांमार की जुंटा केयाह और करेन प्रांतों में लगातार हवाई हमले कर रही है. ये दोनों ही प्रांत थाई सीमा से सटे हुए हैं. लिहाज़ा बमबारियों के चलते थाईलैंड के सीमावर्ती इलाक़ों को भी भारी नुक़सान पहुंच रहा है और वहां का जनजीवन अस्तव्यस्त हो रहा है. ड्रग्स और मानव तस्करी की वारदात भी बढ़ती जा रही है. लिहाज़ा इस मसले का निपटारा भारत और थाईलैंड, दोनों के लिए अहम है. दोनों ही देशों ने 1951 के शरणार्थी संधि पर दस्तख़त नहीं किए हैं. यही वजह है कि दोनों मुल्क विस्थापित लोगों को ज़रूरी संसाधन मुहैया करवाने में असमर्थ हैं. पूरे इलाक़े के विकास और प्रगति के लिए शांतिपूर्ण माहौल ज़रूरी है. बहरहाल पड़ोसी होने के नाते दोनों ही देशों की कुछ राजनयिक जवाबदेहियां और सुरक्षा चिंताएं हैं. ऐसे में संकट के मद्देनज़र वार्ता एक मुनासिब और रचनात्मक रुख़ रहा है. हालांकि, अभी ये देखना बाक़ी है कि हालात के माकूल समाधान का रास्ता इन क़वायदों से निकलता है या नहीं.
जहां तक एक और साझा पड़ोसी चीन का सवाल है तो भारतीय विदेश मंत्री ने चुलालोंगकोर्न यूनिवर्सिटी में साफ़ कर दिया कि सीमा पर तनाव के चलते भारत और चीन के रिश्ते फ़िलहाल एक कठिन पड़ाव पर हैं. हालांकि दोनों ही देशों के हित में है कि वो एकजुट होकर आगे बढ़ें. बहरहाल इस दिशा में काफ़ी कुछ चीन के इरादों और क़दमों पर निर्भर करेगा.
फ़िलहाल चीन के साथ थाईलैंड का क़रीबी जुड़ाव मुख्य रूप से आर्थिक कारकों से प्रेरित है. दरअसल, चीन दुनिया में थाईलैंड का सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी है. रोज़गार, कारोबार और निवेश के लिए चीन एक बड़ा बाज़ार मुहैया कराता है. हालांकि कई वजहों से दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों में हल्के झटकों का दौर देखा गया है.
फ़िलहाल चीन के साथ थाईलैंड का क़रीबी जुड़ाव मुख्य रूप से आर्थिक कारकों से प्रेरित है. दरअसल, चीन दुनिया में थाईलैंड का सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी है. रोज़गार, कारोबार और निवेश के लिए चीन एक बड़ा बाज़ार मुहैया कराता है. हालांकि कई वजहों से दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों में हल्के झटकों का दौर देखा गया है. इन कारकों में हाई-स्पीड रेलवे का सुस्त विकास, पनडुब्बी सौदे से जुड़ी उलझनें और पर्यटन शामिल हैं. हालांकि दोनों ही देशों की वायुसेना ने कामयाबी से अपना साझा अभ्यास पूरा किया है. रेल संपर्क से जुड़ा काम भी दोबारा चालू हो गया है. इस बीच थाईलैंड अपने वैश्विक संपर्कों में संतुलन बनाने के लिए अमेरिका, जापान और भारत जैसे देशों के साथ भी अपने जुड़ावों को मज़बूत बना रहा है. इस सिलसिले में वहां भारत का रसूख़ आगे बेहद अहम रहने वाला है. व्यापार, पर्यटन और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए कनेक्टिविटी परियोजनाओं का जल्द से जल्द पूरा होना ज़रूरी है.
दोनों देश अपने राजनयिक संबंधों के 75 साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं. हालांकि पर्यटन, व्यापार और वाणिज्य के साथ-साथ सुरक्षा चिंताओं से जुड़ी अनेक संभावनाओं का लाभ उठाया जाना अभी बाक़ी है. इनमें से कुछ मुद्दों पर ध्यान दिया गया है. बहरहाल निकट भविष्य में इन तमाम मसलों पर ठोस उपायों और योजनाओं की संरचना तैयार किए जाने और उनपर क्रियान्वयन की उम्मीद की जा रही है.
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Sreeparna Banerjee is an Associate Fellow in the Strategic Studies Programme. Her work focuses on the geopolitical and strategic affairs concerning two Southeast Asian countries, namely ...
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