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यह लेख “सागरमंथन एडिट 2024” निबंध श्रृंखला का हिस्सा है.
पिछले कुछ वर्षों के दौरान, अंतरराष्ट्रीय संबंधों में टिकाऊ ब्लू इकॉनमी (BE) केंद्रीय भूमिका में आती जा रही है. हिंद महासागर क्षेत्र में भारत जैसे विशाल और सेशेल्स जैसे छोटे देशों ने अपने राष्ट्रीय विकास की रणनीतियों में ब्लू इकॉनमी के तमाम सिद्धांतों को लागू किया है. ब्लू इकॉनमी की बढ़ती अहमियत को देखते हुए भागीदारों को इसकी उस भूमिका के बारे में विचार करना होगा, जिससे टिकाऊ तरीक़े से कारोबार, व्यापार और कनेक्टिविटी को आविष्कारों और तकनीक के इस्तेमाल से बढ़ावा दिया जा सके.
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के मामले में सेशेल्स काफ़ी नाज़ुक स्थिति में है. इनमें समुद्र का बढ़ता स्तर, महासागरों के तापमान में बढ़ोत्तरी, समुद्र में उफनते ज्वार और तटीय इलाक़ों में बाढ़ की समस्याएं शामिल हैं. ये सभी चुनौतियां सेशेल्स की अर्थव्यवस्था पर काफ़ी असर डालती हैं. अपने अनुभव का इस्तेमाल करते हुए सेशेल्स महासागरों के प्रशासन और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पूंजी जुटाने जैसे मामलों को लेकर वैश्विक परिचर्चाओं को आगे बढ़ा रहा है. भले ही सेशेल्स की आबादी एक लाख से कुछ ही ज़्यादा है और देश के पास सिर्फ़ एक प्रमुख बंदरगाह है. इसके बावजूद सेशेल्स ने दुनिया का पहला 1.5 करोड़ डॉलर का ब्लू बॉन्ड लॉन्च किया और 2015 में सेशेल्स ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के क़दम उठाने के एवज़ में क़र्ज़ माफ़ कराने के एक समझौते पर भी दस्तख़त किए हैं. 2020 में सेशेल्स ने अपने 30 प्रतिशत महासागर क्षेत्र को संरक्षित समुद्री क्षेत्र (MPA) भी घोषित किया था, जो स्थायी विकास के लक्ष्य 14.5 के तहत अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र के दस प्रतिशत हिस्से को संरक्षित करने के उसके अपने ही वादे से कहीं अधिक है. इन पहलों से संकेत मिलता है कि सेशेल्स विश्व मंच पर ख़ुद को एक बड़ी महासागरीय अर्थव्यवस्था के तौर पर अलग पहचान दिलाने की आकांक्षा रखता है.
संकेत मिलता है कि सेशेल्स विश्व मंच पर ख़ुद को एक बड़ी महासागरीय अर्थव्यवस्था के तौर पर अलग पहचान दिलाने की आकांक्षा रखता है.
भारत-सेशेल्स साझेदारी
इसकी तुलना में भारत की ब्लू इकॉनमी में 7500 किलोमीटर लंबी तटीय रेखा है. 14 बड़े बंदरगाह हैं जहां से हर साल 1400 मीट्रिक टन कार्गो आता-जाता है. भारत में 40 लाख लोग ऐसे हैं, जिनकी रोज़ी रोटी तटीय समुदायों पर निर्भर है. भारत का लगभग 95 प्रतिशत व्यापार समुद्र के रास्ते से होता है. मछलियों के उत्पादन के मामले में भारत का पूरी दुनिया में दूसरा स्थान है और भारत में मछली पकड़ने की ढाई लाख से अधिक नौकाएं हैं. भारत ने अपनी ब्लू इकॉनमी की नीति तैयार करने के दौरा तटीय समुदायों के रहन सहन को सुधारने, देश का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) बढ़ाने और समुद्री जैव विविधता के संरक्षण में ब्लू इकॉनमी की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया है.
ब्लू इकॉनमी की रूप-रेखा, समुद्री प्रशासन के मामले में अधिक समावेशी समझौते की ज़रूरत को भी रेखांकित करती है. मिसाल के तौर पर भारत और सेशेल्स अपने अपने भौगोलिक आकार, आबादी और आर्थिक विकास के मामले में बहुत अलग अलग हैं. इसके बावजूद, दोनों देशों के संबंध सहयोग की भावना पर आधारित हैं और इनको समुद्री सुरक्षा को महफ़ूज़ बनाने और हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्र के टिकाऊ प्रबंधन को और ताक़तवर बनाने के रास्ते पर चलते हैं. भारत और सेशेल्स के बीच तकनीकी और वित्तीय सहयोग का इतिहास 1976 से चला आ रहा है. ऐसे में दोनों साझीदार देशों ने आपसी सहयोग को लेकर प्रतिबद्धता को लगातार बढ़ावा दिया है. ध्यान देने वाली बात ये है कि दोनों ही देशों ने संयुक्त राष्ट्र के स्थायी विकास के लक्ष्यों (SDGs) को अपनाया है और वो इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) सिक्योरिटी ऐंड ग्रोथ फॉर ऑल इन दि रीजन (SAGAR) जैसे क्षेत्रीय मंचों में भी भागीदारी करते हैं.
ब्लू इकॉनमी की रूप-रेखा, समुद्री प्रशासन के मामले में अधिक समावेशी समझौते की ज़रूरत को भी रेखांकित करती है. मिसाल के तौर पर भारत और सेशेल्स अपने अपने भौगोलिक आकार, आबादी और आर्थिक विकास के मामले में बहुत अलग अलग हैं.
हालांकि, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की बढ़ती हैसियत को देखते हुए उसके पास समुद्री प्रशासन के मामले में बड़ी भूमिका अदा करने का अवसर है. इस मामले में टिकाऊ तकनीक और इनोवेशन ब्लू इकॉनमी के कुछ पहलुओं को रोशन कर सकते हैं, जिन पर बहुत तवज्जो देने की ज़रूरत है. जैसे कि समुद्री लॉजिस्टिक, बंदरगाह और जहाज़ों की आवाजाही और मानवीय क्षमता का विकास.
जब बात तकनीक की आती है तो रोबोटिक्स, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) आपूर्ति श्रृंखलाों के प्रबंधन, समुद्री लॉजिस्टिक्स और जहाज़ों के उद्योग के मामले में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं. सुरक्षा और निजता को लेकर चिंताओं के बावजूद, तकनीकी मदद जैसे कि रिमोट सेंसिंग, जियोग्राफिक इंफॉर्मेशन सिस्टम (GIS) और बिग डेटा प्राकृतिक संसाधनों की निगरानी करने और उनके संरक्षण में भी मदद कर सकते हैं. पुरानी समस्याओं के लिए नए समाधान उपलब्ध कराकर ‘ब्लू टेक’ की मदद से ब्लू इकॉनमी का स्तर बढ़ाने की कोशिश की जा रही है; इनमें समुद्र तटों और समुद्र भीतर लगी टरबाइन की सफ़ाई के लिए रोबोट लगाने, समुद्र के भीतर खेती को बढ़ावा देने और स्वचालित जहाज़ों के इस्तेमाल जैसे क़दम शामिल हैं. ब्लू इकॉनमी के दूसरे सेक्टरों को भी ऐसे आविष्कारों से लाभ मिलेगा. मिसाल के तौर पर भारत के बारे में अनुमान लगाया गया है कि वो 2025 तक जैविक और जैव प्रौद्योगिकी से जुड़े औद्योगिक विकास से 10 करोड़ डॉलर की कमाई करेगा. अपनी ओर से सेशेल्स की सरकार ने भी टिकाऊ ब्लू इकॉनमी को बढ़ावा देने में तकनीक और आविष्कारों की महत्ता को स्वीकार किया है, और अबी हाल ही में सेशेल्स ने ब्लू टेक्नोलॉजी इनक्यूबेटर विकसित किया है, ताकि समुद्र से जुड़े उद्योगों के मामले में उद्यमिता को बढ़ावा दिया जा सके.
ऐसी साझेदारियों ने विकास के लिए दोनों देशों की राह को हमवार बनाया है और आख़िर में इनसे ये भी पता चलता है कि छोटे और बड़े दोनों की तरह के देश ब्लू इकॉनमी की चुनौतियों से निपटने के लिए साथ मिलकर काम कर सकते हैं.
समुद्र के किनारे अक्षय ऊर्जा के और आविष्कार, समुद्र के खारे पानी को साफ़ करने और समुद्र में टिकाऊ खेती और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी के मामले में नए नए आविष्कार नए रोज़गार और आर्थिक अवसर पैदा करके ब्लू इकॉनमी के विकास में योगदान दे रहे हैं. हाल ही में सेशेल्स ने सरकार की मदद से अक्वाकल्चर के एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट की शुरुआत की है, ताकि खाने में पोषण को सुरक्षित बनाने के साथ साथ उद्यमिता के अवसर तैया करने और मछली पकड़ने के उद्योग को और मूल्यवान बनाने के लक्ष्य हासिल किए जा सकें. जब बात दुनिया में टूना मछली के उत्पादन के दूसरे सबसे बड़े क्षेत्र यानी हिंद महासागर की आती है, तो अवैध, बिना जानकारी के और बिना किसी रोक-टोक और नियम क़ायदे के मछली पकड़ने का ख़तरा मछली पकड़ने के उद्योग को टिकाऊ बनाने की राह में सबसे बड़ी चुनौतियां हैं. इस मक़सद से हाल ही में बड़े पैमाने पर फोरेंसिक ग्रेड जीनोटाइपिंग के आविष्कार (जिसकी ज़रूरत टूना मछलियों की पहचान और उनकी वास्तविकता साबित करने में पड़ती है) की वजह से 13 लाख यूरो की परियोजना तैयार हुई है, ताकि हिंद महासागर के पूरे क्षेत्र में टुना, बिलफिश और शार्क मछलियों की उपलब्धता की एक रूप-रेखा बनाई जा सके. ऐसी पहलें ये दिखाती हैं कि ब्लू इकॉनमी लचीलेपन को बढ़ावा दे सकती है. समुद्र में ग़ैर स्थायी गतिविधियों को कम कर सकती हैं और देशों की आर्थिक समृद्धि में प्रमुख योगदान देने वाला सेक्टर हो सकती हैं.
सारांश
कुल मिलाकर नई औद्योगिक क्रांति (4.0) की तकनीकें उन देशों के लिए नए अवसर लेकर आ सकती है, जो ब्लू इकोनॉमी से जुड़े अपने एजेडों को तेज़ी और प्रभावशाली ढंग से लागू करना चाहते हैं. हालांकि, ब्लू इकॉनमी के स्थायी विकास के लिए आपसी सहयोग की ज़रूरत भी रेखांकित होती है जिसमें महासागरों के संरक्षण के प्रयास भी शामिल हैं. सेशेल्स और भारत ने अपनी अपनी ब्लू इकॉनमी की संभावनाओं को स्वीकार करते हुए इस मामले में दुनिया के लिए एक मिसाल क़ायम की है और वो साझा समुद्री अनुभवों का लाभ उठाकर रोज़ी-रोटी को बेहतर बनाने, पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने और आर्थिक लचीलापन निर्मित करने के लिए कर रहे हैं. ऐसी साझेदारियों ने विकास के लिए दोनों देशों की राह को हमवार बनाया है और आख़िर में इनसे ये भी पता चलता है कि छोटे और बड़े दोनों की तरह के देश ब्लू इकॉनमी की चुनौतियों से निपटने के लिए साथ मिलकर काम कर सकते हैं.
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