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भारत के शहर महत्वपूर्ण दौर से गुज़र रहे हैं. देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 60 प्रतिशत से ज़्यादा योगदान देने वाले शहर 2047 तक 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के भारत के लक्ष्य, जहां ‘वोकल फॉर लोकल’ इनोवेशन को बढ़ावा देता है और एक आत्मनिर्भर भारत बनाता है जो 2070 तक अपनी शून्य उत्सर्जन की प्रतिबद्धता को पूरा करता है, और उसे हासिल करने के लिए अहम है. लेकिन पुरानी पड़ चुकी नीतियों, ढहते बुनियादी ढांचे और अपर्याप्त घरों से इस प्रगति की राह में बाधा पैदा होने का ख़तरा है. भारत के शहरों को नए युग में ले जाने के लिए मूलभूत बदलाव की ज़रूरत है जो उनकी क्षमताओं को उजागर करे और उनकी आवश्यकताओं को प्राथमिकता दे.
भारत के शहर महत्वपूर्ण दौर से गुज़र रहे हैं. देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 60 प्रतिशत से ज़्यादा योगदान देने वाले शहर 2047 तक 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के भारत के लक्ष्य, जहां ‘वोकल फॉर लोकल’ इनोवेशन को बढ़ावा देता है और एक आत्मनिर्भर भारत बनाता है
चुनौती
मौजूदा विशेषज्ञता और इनोवेशन के बावजूद सूचनाओं के अलग-अलग जगह होने की वजह से उन्हें साझा करने और शहरों की समस्या को दूर करने में परेशानी होती है. इसके कारण घरों एवं आवश्यक सेवाओं की कमी और पर्यावरण में गिरावट की बढ़ती शहरी चुनौतियों का समाधान करने की उनकी क्षमता सीमित होती है. मगर यही चुनौतियां अवसर भी पेश करती हैं. शहरी शासन व्यवस्था के निम्नलिखित दो क्षेत्रों की तरफ बदलाव से भारत को अपनी शहरी यात्रा को नया आकार देने और समावेशी, सतत एवं समृद्ध शहरों को तैयार करने में मदद मिल सकती है:
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नीतिगत रूप-रेखा: नीतियों में समावेशी विकास, पर्यावरण से जुड़ी ज़िम्मेदारियों और नागरिकों की सक्रिय भागीदारी को शामिल किया जाना चाहिए.
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संस्थान: शहरी संस्थानों को नैतिक नेतृत्व और सहयोग एवं इनोवेशन की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावास III के ‘नए शहरी एजेंडे’ और सतत विकास लक्ष्यों के बाद राष्ट्रीय शहरी नीतियों (NUP) को पूरी दुनिया में स्वीकार्यता मिली. NUP की परिकल्पना स्थानीय-राष्ट्रीय तालमेल के ज़रिए सतत शहरी बदलाव के लिए आधार के रूप में की गई थी और एक अच्छी तरह से तैयार NUP सकारात्मक परिवर्तन को प्रेरित कर सकती है. NUP के सख्त मूल्यांकन, सफलता से जुड़े महत्वपूर्ण कारकों की पहचान और इनोवेटिव समाधान पर अमल से NUP की क्षमता अधिकतम हो सकती है. निम्नलिखित पैराग्राफ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में सफल NUP से कीमती जानकारी पेश करते हैं:
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सिंगापुर: एकीकृत नियोजन एवं संसाधनों की दक्षता के साथ स्थिरता, सार्वजनिक आवास और सक्षम परिवहन ने पर्यावरण से जुड़ी व्यवस्था और सामाजिक समानता को सुनिश्चित करते हुए सिंगापुर के आर्थिक विकास को तेज़ किया. सिंगापुर की ज़मीन के इस्तेमाल से जुड़ी योजना जगह का सही उपयोग करते हुए बेतरतीब ढंग से शहर के फैले बिना सघन, मिले-जुले उपयोग के लिए विकास पर ज़ोर देती है. लोगों के अच्छी गुणवत्ता वाले घरों और अच्छी तरह से एकीकृत सार्वजनिक परिवहन के नेटवर्क ने भीड़-भाड़ और प्रदूषण को कम किया है.
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कनाडा: कनाडा के शहरों को राजकोषीय स्वायत्तता हासिल है. इसकी वजह से वो राजस्व जुटा सकते हैं, स्थानीय आवश्यकता के मुताबिक खर्च की प्राथमिकता तय कर सकते हैं और स्थानीय सरकार के भीतर अधिक उत्तरदायित्व को बढ़ावा दे सकते हैं. कनाडा के कुछ शहरों ने भागीदारी वाले बजट की शुरुआत की है. इसके कारण वहां के लोग नगरपालिका के फंड के आवंटन के लिए क्षेत्रों को तय कर सकते हैं.
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नीदरलैंड्स: नीदरलैंड्स के शहर भागीदारी वाले शहरी डिज़ाइन को प्राथमिकता देते हैं जिसमें योजना के शुरुआती चरण से लेकर लागू होने और समीक्षा तक शहरी जगहों और पुनरोद्धार की परियोजनाओं को तय करने में स्थानीय लोगों, व्यवसायों और दूसरे हितधारकों को शामिल किया जाता है. ये समावेशी रणनीतियां सक्रिय रूप से वंचितों के समूहों, युवाओं, बुजुर्गों और पारंपरिक नियोजन में नज़रअंदाज़ किए गए लोगों से राय लेती हैं.
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कोलंबिया: कोलंबिया के मेडेलिन शहर को एक समय दुनिया का सबसे ख़तरनाक शहर बताया गया था. यहां के अमीरों और ग़रीबों के बीच हैरान करने वाली दूरी थी, सेवाओं तक पहुंच में बहुत अधिक अंतर था और दुनिया भर में सबसे ज़्यादा हत्या की दर थी. आख़िर में मेडेलिन ने अनौपचारिक बस्तियों में बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने, ज़रूरी सेवाओं तक पहुंच प्रदान करने और नागरिक के रूप में गर्व को बढ़ावा देने के लिए लाइब्रेरी, पार्क और सामुदायिक केंद्रों जैसी सार्वजनिक जगहों के निर्माण के लिए सामाजिक निवेश को आगे बढ़ाया. खड़ी पहाड़ियों पर रहने वाले कमज़ोर समुदायों को शहर के आर्थिक केंद्रों से जोड़ने वाला मेडेलिन का केबल कार सिस्टम किफायती और तेज़ परिवहन मुहैया कराता है. इस तरह ये नौकरी के अवसरों को खोलता है और लोगों का अलग-थलग रहना कम करता है.
अपनी तरफ से भारत सरकार ने राष्ट्रीय लक्ष्यों को हासिल करने में शहरों की भूमिका को स्वीकार करते हुए 2018 में राष्ट्रीय शहरी नीति की रूप-रेखा (NUPF) का प्रस्ताव दिया.
अपनी तरफ से भारत सरकार ने राष्ट्रीय लक्ष्यों को हासिल करने में शहरों की भूमिका को स्वीकार करते हुए 2018 में राष्ट्रीय शहरी नीति की रूप-रेखा (NUPF) का प्रस्ताव दिया. चूंकि शहरी विकास राज्यों का विषय है, ऐसे में NUPF ने राज्यों को अधिकार दिया कि वो संतुलित ‘टॉप-डाउन’ और ‘बॉटम-अप’ दृष्टिकोण अपनाकर अपनी विशेष आवश्यकताओं के अनुसार शहरी नीति तैयार करें. इस रूप-रेखा का उद्देश्य शहरों के निर्माण के लिए 10 मूल सिद्धांतों के आधार पर क्षमता निर्माण, वित्त और शासन व्यवस्था को एक सीध में रखना था जो लोगों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ावा देगी, जवाबदेह प्रबंधन एवं स्थिरता की देखभाल करेगी और समान अवसर को प्रोत्साहन देगी. हालांकि NUPF को पूरी तरह से अंतिम रूप नहीं दिया गया और इसे लागू नहीं किया गया.
भारत को अपने शहरों की योजना और शासन व्यवस्था के तौर-तरीकों को ऐसे उपायों के माध्यम से बदलने की आवश्यकता है जो आर्थिक सक्षमता, स्थिरता और समावेशन में सामंजस्य स्थापित करेंगे. ये ऊपर बताए गए सफल शहरी पुनरोद्धार के हस्तक्षेपों से सबक सीखकर हासिल किया जा सकता है. निम्नलिखित हस्तक्षेप स्थानीय सरकारों की जवाबदेही भी बढ़ा सकते हैं, अधिक फंडिंग के स्तर पर निर्भरता को कम कर सकते हैं, डिज़ाइन से लेकर कार्यान्वयन और मूल्यांकन से लेकर निगरानी तक भागीदारी वाली प्रथाओं को सक्षम बना सकते हैं और समावेशी विकास को तेज़ कर सकते हैं:
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रणनीतिक ध्यान: लक्ष्य के अनुसार प्रभाव के लिए महत्वपूर्ण विषयों को प्राथमिकता दें और पहचान करें.
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बहुस्तरीय समन्वय: अधिकतम असर के लिए राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर की सरकार के बीच समन्वय पर ज़ोर दें.
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डेटा से प्रेरित शासन व्यवस्था: सोच-समझकर नीति बनाने, निगरानी और मूल्यांकन के लिए मज़बूत डेटा सिस्टम का इस्तेमाल करें.
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राजकोषीय सशक्तिकरण: वित्तीय अधिकार को विकेंद्रित करके शहरों को स्थानीय प्राथमिकताओं के अनुसार अपना खर्च करने के लिए अधिक लचीलापन दें.
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सहयोगात्मक और भागीदारी से पूर्ण: फीडबैक हासिल करने और आम राय बनाने के लिए वर्कशॉप, डिज़ाइन तैयार करने के मंथन, ऑनलाइन प्लैटफॉर्म, विज़ुअलाइज़ेशन टूल और पॉप-अप इवेंट समेत अलग-अलग पद्धतियों का इस्तेमाल करें.
2. संस्थानों का आधुनिकीकरण
भारत में शहरी शासन व्यवस्था की गुणवत्ता और प्रभावशीलता इस बात से तय होगी कि देश समावेशी शहरी नीतियों को तैयार करने के लिए शहरी स्थानीय निकायों (ULB) की काम-काजी और वित्तीय जटिलताओं का कैसे सामना करता है. अलग-अलग प्राधिकरण, अलग सोच-विचार और नौकरशाही की देरी ने शहरी सेवाओं को पहुंचाने, राजस्व उत्पन्न करने और इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में प्रगति को बाधा पहुंचाई है. तात्कालिक आवश्यकता शहरी शासन व्यवस्था के संस्थानों को मज़बूत करना है जिनमें अक्सर महत्वपूर्ण फैसला लेने के लिए एकल और सशक्त नेतृत्व की कमी होती है. इन संस्थानों की अलग-अलग क्षमताओं और मूल जवाबदेही के लिए राज्यों के कानून की आवश्यकता पैदा होती है जो ज़रूरी सेवाओं के लिए फंडिंग को सुनिश्चित करके, प्राथमिकता के क्षेत्रों के लिए राजस्व के स्रोतों का निर्धारण करके और आधुनिक, पारदर्शी एवं उत्तरदायी प्रणाली का उपयोग करके एक स्पष्ट रूप-रेखा के भीतर लचीलेपन की अनुमति देकर उनकी ज़रूरतों को हल कर सकते हैं. प्रदर्शन के आधार पर तैयार बजट, भागीदारी वाली पद्धतियां और सुव्यवस्थित मंज़ूरी के तौर-तरीके जैसे इनोवेशन इनका असर बढ़ा सकते हैं और खर्च को रणनीतिक प्राथमिकताओं के साथ जोड़ सकते हैं.
भारत में शहरी शासन व्यवस्था की गुणवत्ता और प्रभावशीलता इस बात से तय होगी कि देश समावेशी शहरी नीतियों को तैयार करने के लिए शहरी स्थानीय निकायों (ULB) की काम-काजी और वित्तीय जटिलताओं का कैसे सामना करता है.
भारतीय संविधान की 12वीं अनुसूची और 74वां संशोधन साफ-सफाई, कूड़े के निपटारे, शहरी वानिकी और पारिस्थितिक संरक्षण, जो कि जलवायु समर्थ शहरों को बनाने के लिए ज़रूरी हैं, में नगरपालिकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है. राज्य सरकारों को सावधानीपूर्वक पर्यावरण से जुड़े ऐसे कानून बनाने चाहिए जो संघीय और राज्य के पर्यावरण कानूनों के तहत नगरपालिकाओं को सशक्त बनाते हैं. पर्यावरण से जुड़ी एजेंसियों के साथ अधिकार क्षेत्र से जुड़े संभावित टकराव का समाधान करने के लिए दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं और तौर-तरीकों को लेकर जानकारी साझा करना सफलता के लिए सर्वोपरि है.
भारत की शहरी बदलाव से जुड़ी चुनौतियों से पार पाना
2015 से भारत ने स्वच्छ भारत मिशन (SBM), कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (AMRUT) और प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी (PMAY-U) समेत विभिन्न शहरी कार्यक्रमों के माध्यम से शहरी चुनौतियों का समाधान करने के लिए ठोस, नागरिक केंद्रित परिणामों पर ध्यान दिया है. लेकिन भारत को ये रफ्तार बनाए रखने और शहरी जीवन की गुणवत्ता को सीधे रूप से बढ़ाने वाले परिणामों को प्राथमिकता देने के उद्देश्य से शहरों को और सशक्त बनाने के लिए एकीकृत और नतीजों से प्रेरित इनोवेटिव मॉडल विकसित करने, संसाधनों को संगठित करने और प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित बनाने की आवश्यकता है. जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए फंडिंग को केवल प्रोजेक्ट को पूरा करने के बदले मापने योग्य परिणामों से सीधे जोड़ा जाना चाहिए. इनोवेशन के लिए प्रोत्साहन के साथ-साथ डेटा प्रेरित निर्णय लेने से संसाधनों का सही इस्तेमाल सुनिश्चित होगा. एक समावेशी, समृद्ध और सतत शहरी भविष्य बनाने के लिए भारत को एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए जिसमें निम्नलिखित तत्व शामिल हों:
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लोगों पर केंद्रित विकास- लोगों, विशेष रूप से वंचितों, को सभी शहरी हस्तक्षेपों के केंद्र में रखना चाहिए. ये सुनिश्चित करना चाहिए कि नीतियां सीधे तौर पर अलग-अलग समुदायों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं का समाधान करती हों.
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सहयोग के माध्यम से शहरी शासन व्यवस्था में मज़बूती
- शहरों को स्वायत्तता, संसाधन और स्थानीय संदर्भों के साथ तालमेल बिठाने की क्षमता प्रदान करके उन्हें विकास का प्राथमिक संचालक बनने के लिए सशक्त कीजिए.
- नगरपालिकाओं को सशक्त बनाने के लिए कानून बनाइए जिससे ये स्पष्ट समझ सुनिश्चित हो सके कि नगरपालिका कानून मौजूदा संघीय और राज्यों के पर्यावरण नियमों से कैसे जुड़ते हैं.
- संतुलित विकास, संसाधन प्रबंधन और खाद्य सुरक्षा के लिए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की अंतर-निर्भरता को स्वीकार कीजिए.
- सरकार, व्यवसाय, यूनिवर्सिटी और सिविल सोसायटी के बीच मज़बूत साझेदारी तैयार कीजिए जिससे उनकी सामूहिक जानकारी और समस्या को सुलझाने की क्षमताओं का इस्तेमाल करने के लिए औपचारिक संरचना तैयार हो.
- अलग-अलग सरकारी विभागों के बीच क्षैतिज (हॉरिजोंटल) समन्वय और राष्ट्रीय, राज्य एवं स्थानीय स्तर पर सीधे (वर्टिकल) समन्वय को बढ़ावा देना चाहिए.
- इनोवेटिव, स्थानीय स्तर पर उपयुक्त समाधान का पता लगाना चाहिए जो वंचित क्षेत्रों के लिए समावेशिता को बढ़ाते हैं.
- सफलतापूर्वक परियोजना को लागू करने के लिए पर्यावरण से जुड़ी एजेंसियों और नगरपालिकाओं के बीच अधिकार क्षेत्र से जुड़े विवाद का समाधान करें.
- परियोजना को पूरा करने की जगह परिणामों को मापने और सफलता को प्रोत्साहन देने की तरफ बढ़ना चाहिए.
- सोच-समझकर फैसला लेने और लगातार सुधार को बढ़ावा देने के लिए विश्वसनीय शहरी डेटा को जमा करने, विश्लेषण करने और साझा करने का मज़बूत सिस्टम विकसित करना चाहिए.
- भारत के लिए विशेष डिजिटल टूल और प्लैटफॉर्म के विकास को बढ़ावा दीजिए जो बड़े स्तर के इनपुट फीडबैक लूप की अनुमति दे और अलग-अलग डिज़ाइन के विकल्पों की कल्पना करे.
- माइग्रेशन पैटर्न, डेमोग्राफिक्स (जनसांख्यिकी) और बदलती सामाजिक संरचना को समझिए और निर्देशित कीजिए. ये रहने योग्य शहरों की योजना बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं.
- महानगरों, मध्यम आकार के शहरों और छोटे शहरों की अनूठी आवश्यकताओं, क्षमताओं और कनेक्टिविटी की रणनीति बनाइए.
- एक मज़बूत इंफ्रास्ट्रक्चर रोडमैप सुनिश्चित कीजिए जिसमें भविष्य की ज़रूरतों का अनुमान लगाकर घरों, सार्वजनिक जगहों, परिवहन, पानी, स्वच्छता और ऊर्जा को प्राथमिकता मिले.
- पर्यावरण और प्राकृतिक शक्तियों का ऐसी नीतियों के साथ सामंजस्य स्थापित कीजिए जो नवीकरणीय ऊर्जा, हरित क्षेत्रों, कम कार्बन समाधान और आपदा तैयारी को बढ़ावा देते हैं. साथ ही शहर के नेतृत्व में प्रकृति आधारित समाधानों के साथ जलवायु कार्रवाई को मुख्यधारा में लाइए.
- विशेष शहरी नवीनीकरण फंड के माध्यम से आस-पड़ोस में एकीकृत समाधान पर ध्यान दीजिए.
भारत के लिए विशेष डिजिटल टूल और प्लैटफॉर्म के विकास को बढ़ावा दीजिए जो बड़े स्तर के इनपुट फीडबैक लूप की अनुमति दे और अलग-अलग डिज़ाइन के विकल्पों की कल्पना करे.
- राजस्व इकट्ठा करने, इनोवेटिव वित्त के मॉडल का पता लगाने और समावेशी योजना की प्रक्रियाओं के ज़रिए निर्धारित प्राथमिकताओं के साथ खर्च को जोड़ने के लिए शहरों को सशक्त बनाइए.
- फंडिंग के अलग-अलग मॉडल का पता लगाइए. इनमें प्रदर्शन से जुड़ा अनुदान, अधिक वित्तीय स्वायत्तता, इंपैक्ट इन्वेस्टमेंट, नगरपालिका बॉन्ड, हरित वित्त, ज़मीन का मुद्रीकरण, वैल्यू-कैप्चर मैकेनिज़्म और सावधानपूर्वक तैयार सार्वजनिक-निजी साझेदारी शामिल हैं.
- ग़रीबी, अपराध और ख़राब इंफ्रास्ट्रक्चर से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों की पहचान कीजिए.
- झुग्गियों को अपग्रेड करने के सफल मॉडल से सीखिए जहां परिवहन, स्वच्छता, पानी, स्कूल और सार्वजनिक जगहों की बेहतर उपलब्धता है.
- समुदाय के नेतृत्व में योजना बनाने के लिए औपचारिक व्यवस्था बनाइए. इसके लिए आस-पड़ोस का डिज़ाइन बनाने में लोगों को शामिल कीजिए और गैर-सरकारी संगठनों एवं स्थानीय समूहों के साथ साझेदारी कीजिए.
- इनोवेटिव सार्वजनिक परिवहन के समाधान को प्राथमिकता दीजिए, वंचित समुदायों के लिए कनेक्टिविटी बढ़ाइए, आर्थिक अवसरों का निर्माण कीजिए और सामाजिक समावेशन को बढ़ावा दीजिए.
- शहरों में रहने वाले पेशेवर लोगों को हुनरमंद बनाने और पढ़ाई का पाठ्यक्रम आधुनिक बनाने में भारी निवेश कीजिए ताकि रिसर्च और नीति को लागू करने के बीच की दूरी को भरा जा सके.
- कानूनों में संशोधन कीजिए और भागीदारी वाली योजना को सुनिश्चित बनाइए. इसकी शुरुआत बड़े पैमाने का प्रमाण तैयार करने के लिए चुनिंदा शहरों से की जा सकती है.
- नगरपालिका कर्मचारियों और सिविल सोसायटी के संगठनों की लक्ष्य आधारित ट्रेनिंग में निवेश कीजिए ताकि प्रभावी हिस्सेदारी को सुविधाजनक बनाया जा सके और सार्थक जुड़ाव सुनिश्चित किया जा सके.
- भारत के हिसाब से विशेष डिजिटल टूल के ज़रिए बड़े पैमाने पर नागरिकों की राय, प्रतिक्रिया और अलग-अलग डिज़ाइन की कल्पना की सुविधा दीजिए.
- प्रोजेक्ट की फंडिंग में समावेशिता को बढ़ावा दीजिए और स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए भागीदारी वाले शहरी डिज़ाइन के सफल उदाहरणों को दिखाइए.
- औपचारिक सरकार, व्यवसाय, यूनिवर्सिटी और सिविल सोसायटी साझेदारी बनाइए ताकि उनकी विशेषज्ञता का इस्तेमाल किया जा सके और समस्या के समाधान के इनोवेशन की संस्कृति पैदा की जा सके.
कदम उठाने की अपील
भारत का भविष्य निर्धारित करने में शहर मदद करेंगे. इसलिए न्यायसंगत, स्थिर और समृद्ध शहरों का निर्माण मौजूदा युग की एक निर्णायक चुनौती है. शहरी विकास केवल इंफ्रास्ट्रक्चर या आर्थिक विकास से जुड़ा मामला नहीं है; ये एक गंभीर सामाजिक परिवर्तन को उजागर करता है जो शहरों को विकास के केंद्र में रखता है. इनोवेशन के ज़रिए और दुनिया भर से सबक लेकर भारत के शहर सामर्थ्य और आर्थिक अवसरों के प्रतीक के रूप में उभर सकते हैं.
ये लेख एक व्यापक संग्रह “भारत के शहरी पुनर्जागरण के लिए नीतिगत और संस्थागत अनिवार्यताएं” का हिस्सा है.
हितेश वैद्य दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स के पूर्व निदेशक हैं.
चेतन वैद्य दिल्ली स्थित स्कूल ऑफ प्लानिंग एंट आर्किटेक्चर के पूर्व निदेशक हैं.
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