Author : Ramanath Jha

Published on Oct 31, 2022 Updated 0 Hours ago

आपदा की घटनाओं को झेल रहे देशों की सूची में पहले से ही काफी ऊपर की रैंकिंग में शामिल भारत की मुश्किलों को शहरी बाढ़ ने और बढ़ा दिया है.

बेंगलुरु की बाढ़: भारत के शहरी इलाकों में बाढ़ की बढ़ती चुनौती!

‘सिलिकॉन वैली ऑफ इंडिया’ और भारत से सूचना प्रौद्योगिकी के सबसे बड़े निर्यातक के रूप में मशहूर बेंगलुरु में शहर का अधिकांश हिस्सा 29 और 30 अगस्त को पानी से सराबोर हो गया था. बेमौसम और ताबड़तोड़ बारिश को लेकर कहा गया कि बेंगलुरु शहर में अब तक दर्ज की गई यह तीसरी सर्वाधिक बारिश थी. इसने शहर को पानी-पानी कर दिया था. बेंगलुरु के तालाब लबालब थे. कुछ ने थोड़ी सी जगह मिलते ही अपनी सीमा को लांघ दिया. तो कुछ ने सुरक्षा दीवार को ढहाते हुए शहर की सड़कों या फिर पार्किंग क्षेत्र में डेरा जमा लिया. कुछ पानी लोगों के घरों में पहुंच गया. कुछ इलाकों से लोगों को ट्रैक्टर पर निकला गया. इसी तरह की कुछ और परेशानियां भी शहर को देखनी और सहनी पड़ी. यातायात व्यवस्था ठप हुई तो बिजली कटौती ने उत्पादकता को प्रभावित किया. कुछ हद तक शहर की सामान्य गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुई. पंप हाउस में पानी घुस जाने से लोगों को बोर वेल और टैंकर से होने वाली जलापूर्ति पर निर्भर होना पड़ा.   

बेंगलुरु को काफी पहले से झीलों के शहर के रूप में पहचाना जाता है. दुर्भाग्यवश शहर का वर्तमान प्रशासन, पूर्व में शहर को संभालने वाली जो विस्तृत पारिस्थितिकी व्यवस्था थी, उससे सामंजस्य नहीं बना पाया. कुछ झीलें भर गई हैं तो कुछ धीमे, लेकिन लगातार हो रहे अतिक्रमण और कांक्रीटीकरण की वजह से सिमट गई हैं.

इस संकट से जुड़े कुछ कारण तो शहर विशेष की वजह से संबंधित थे. बेंगलुरु को काफी पहले से झीलों के शहर के रूप में पहचाना जाता है. दुर्भाग्यवश शहर का वर्तमान प्रशासन, पूर्व में शहर को संभालने वाली जो विस्तृत पारिस्थितिकी व्यवस्था थी, उससे सामंजस्य नहीं बना पाया. कुछ झीलें भर गई हैं तो कुछ धीमे, लेकिन लगातार हो रहे अतिक्रमण और कांक्रीटीकरण की वजह से सिमट गई हैं. इसके साथ ही जल स्रोतों के बीच जो पानी के आवागमन की जो परस्पर व्यवस्था थी, वह अवरुद्ध हो गई है. बड़े पैमाने पर हुए अतिक्रमण की वजह से शहर की जल निकासी व्यवस्था यानि ड्रेनेज सिस्टम भी प्रभावित हुआ है. शहरी ढांचे की जो अन्य बातें बाढ़ को प्रभावित करती हैं वे भी कुप्रबंधन का शिकार है. जैसे बरसाती पानी की निकासी के लिए बनी नालियों की हालत काफी खराब है और घन कचरा प्रबंधन को लेकर तो काफी कुछ कहा जा सकता है.

बेंगलुरु में प्रशासनिक व्यवस्था भी बेहद खंडित है. वहां स्थानीय निकाय के पास सीमित अधिकार है और अलग-अलग सेवाओं के लिए अलग-अलग संस्थाएं भी बनाई गई हैं. बेंगलुरु जलापूर्ति और मल बोर्ड यानी बेंगलुरु वाटर सप्लाई  एंड सीवेरज बोर्ड के पास जल और दूषित जल का प्रबंधन है, बेंगलुरु मेट्रोपोलिटन ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन शहर के परिवहन को देखता है, जबकि दमकल विभाग की जिम्मेदारी कर्नाटक फायर एंड इमरजेंसी सर्विसेस को सौंपी गई हैं. शहर के नियोजन का काम बेंगलुरु डेवलपमेंट अथॉरिटी संभालती है. इसी प्रकार बेंगलुरु मेट्रोपोलिटन मैनेजमेंट अथॉरिटी के पास बेंगलुरु मेट्रोपोलिटन रीजन के देखरेख और नियोजन का काम है. ऐसे में साफ है कि संकट के समय में इन एजेंसियों के बीच समन्वय को लेकर काफी चुनौतियां पेश आती होंगी.

बाढ़ बना शहरी आपदा

इस बात को भी स्वीकार करना होगा कि अब भारत के बड़े और मेट्रोपॉलिटन शहर में आने वाली शहरी बाढ़ नियमित और वार्षिक होने लगी है. हमें अब इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि यह अब एक राष्ट्रीय समस्या बन गई है. उदाहरण के तौर पर जुलाई 2022 में अहमदाबाद में आई भीषण बाढ़ को देखा जा सकता है. शहर के अनेक इलाकों में पानी भर गया था और शहर की अनेक सोसाइटी की कई मंजिलों और बंगलों में पानी घुसने की वजह से लोगों को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा था. कुछ बंगले तो पानी में डूब ही गए थे. नवंबर 2021 में चेन्नई का भी यही हाल हुआ था. वहां पर भी पानी की वजह से शहर का सिस्टम ठप्प हो गया था. अनेक स्थानों में पानी भर गया था. शहर में 17 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी और बिजली कटौती के कारण लोग परेशान हो गए थे. अनेक इलाकों में जल जमाव देखा गया था. अक्टूबर 2020 में  हैदराबाद में हुई भीषण वर्षा के कारण 50 लोगों की जान गई थी और 5000 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति को नुकसान  पहुंचा था. दिल्ली, मुंबई, पटना, पुणे जैसे महानगरों में भी भीषण वर्षा की वजह से अलग-अलग वक्त पर बाढ़ जैसे हालात उत्पन्न हो गए थे और इसने अनेक दिनों की लिए जनजीवन ठप कर दिया था.

इस तरह की अनेक घटनाओं को लेकर हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन से जुड़े कारकों ने शहरी वर्षा की समस्या से जुड़ी तीव्रता को तेजी से बढ़ाया है. ऐसे में कहा जा सकता है कि वर्तमान शहरी ड्रेनेज सिस्टम की जिस प्रकार की व्यवस्था है वह इस तरह की भारी वर्षा को झेलने में सक्षम नहीं है और इसी कारण शहरों में बाढ़ जैसी स्थिति बन जाती है. आपदा की घटनाओं, इससे होने वाली मौत और संपत्ति को होने वाले नुकसान को झेलने वाले देशों की लिस्ट में भारत की रैंकिंग पहले से ही काफी ऊपर है. अब इस सूची में शहरी बाढ़ की समस्या जुड़ जाने से यह समस्या एक राष्ट्रीय चुनौती बनकर हमारे सामने आ खड़ी हुई है. 

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) हमेशा से ही नदियों से होने वाली बाढ़ के कारण ग्रामीण इलाके में होने वाले नुकसान को ध्यान में रखकर काम करता आया है. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की इस सोच में परिवर्तन जुलाई 2005 में  मुंबई में बादल फटने की वजह से हुई भारी बारिश के कारण आया, जब पूरा शहर पानी में डूब गया था. वह शहर इस विशाल आपदा को झेलने के लिए तैयार नहीं था.

लंबे समय से शहरी बाढ़ की ओर किसी ने विशेष ध्यान नहीं दिया था. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) हमेशा से ही नदियों से होने वाली बाढ़ के कारण ग्रामीण इलाके में होने वाले नुकसान को ध्यान में रखकर काम करता आया है. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की इस सोच में परिवर्तन जुलाई 2005 में  मुंबई में बादल फटने की वजह से हुई भारी बारिश के कारण आया, जब पूरा शहर पानी में डूब गया था. वह शहर इस विशाल आपदा को झेलने के लिए तैयार नहीं था. इसके बाद ही एनडीएमए ने शहरी बाढ़ की समस्या को एक अलग आपदा मानकर उसे अन्य बाढ़ की तरह देखना बंद किया और उससे निपटने के उपाय खोजना शुरू किया.


शहरी बाढ़ के कारणों का पता लगाने के लिए की गई स्टडी से पता चला है कि यह कारण भारत में शहरी नियोजन और उससे जुड़े शहरी प्रशासन की आम समस्याओं से जुड़ा हैं. इसके लिए जिन दस मुख्य कारणों को सूचीबद्ध किया जा सकता है वे इस प्रकार हैं : शहर के अनेक इलाकों  में बरसाती नाली की अनुपलब्धता; अनेक मौजूदा बरसाती नालियों की साफ-सफाई का अभाव और उनकी व्यवस्था को लेकर  होने वाली बदइंतजामी के कारण उनमें मिट्टी और कचरा जमा होकर उनका भर जाना; जल स्त्रोतों और नालियों का भर जाना; जल निकासी व्यवस्था के आसपास होने वाला अतिक्रमण और उसके आसपास साफ-सफाई का अभाव के कारण उनकी क्षमता प्रभावित होना; शहर में खुली जगह को निरंतर सीमित करते हुए उसके आसपास कंक्रीटीकरण कर देना; नालियों में पानी के प्रवेश की जगह सीमित होना; शहर का अनियोजित विकास और इसकी वजह से शहर की बुनियादी ढांचागत सुविधाओं के बढ़ने वाला बोझ; शहर में होने वाले अवैध निर्माण पर रोक लगाने में विफलता; निचले इलाकों में बगैर किसी व्यवस्था के लगातार निर्माण कार्यों को मंजूरी देना; घन कचरा प्रबंधन का अभाव; निर्माण कार्य से निकलने वाले मलबे को अवैध रूप से संग्रहित करना और शहर के समग्र बुनियादी ढांचे के रख रखाव की उपेक्षा करना, विशेष रूप से जल निकासी व्यवस्था की अनदेखी करते रहना.

शहरों की खस्ता हालत

शहरी बाढ़ के कारणों का पता लगाने के लिए अनेक समितियों का गठन किया गया है. इन समितियों ने कुछ सुझाव भी दिए हैं. पहले समूह ने कुछ सिफारिशे करते हुए कुछ कार्य बिंदु सुझाए हैं. उसमें इससे निपटने की रूपरेखा बनाने, मौजूदा जल निकासी व्यवस्था को मजबूत करने, क्रॉस ड्रेनेज कार्य करने और पंपिंग क्षमता में वृद्धि करना शामिल हैं. दूसरे चरण में जल निकासी नालियों की सफाई के साथ पानी के साथ बहते हुए आने वाले मलबे की वजह से रुकने वाले पानी के निकासी की व्यवस्था, अतिक्रमण के कारण अवरुद्ध  हुए नालों की मौजूदा व्यवस्था को पुनः बहाल करना, कचरे के बेहतर प्रबंधन, गाद निकालना और जल जमाव तालाबों का संरक्षण करना शामिल हैं. इसी प्रकार विनियमन उपायों में प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाना और अतिरिक्त अतिक्रमण को रोकना शामिल है.

उपरोक्त सुझाए गए कुछ उपायों को शहर के स्तर पर लागू करना संभव है. कुछ मामलों में समस्या का समाधान राज्य सरकार के हाथ में है. अगर यह मान भी लिया जाए कि शहरी विकास व्यवस्था राज्य सरकार का विषय है, तो भी केंद्र सरकार भी इस विषय से खुद को अलग नहीं रख सकती. वह यह देखती नहीं रह सकती कि शहर की वह बुनियादी व्यवस्था चरमरा जाए, जो भारतीय शहरी क्षेत्रों के लोगों के जीवन को आसान बनाती है. इस तरह के शहर राष्ट्रीय संपत्ति बन चुके हैं, जो देश की अर्थव्यवस्था में अपनी तरह से योगदान देते हैं. इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि केंद्र सरकार ने इन शहरों में बुनियादी ढांचा व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई है. केंद्र सरकार ने भी इन शहरों की खस्ता वित्तीय व्यवस्था करते हुए इन्हें सहायता देकर इन्हें वित्तीय रूप से मजबूत करने का काम किया है. सरकारी स्तर पर दिखाई देने वाली सुस्ती के कारण भारतीय शहरों की हालत खस्ता हो सकती है. इसका सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा और दुनिया में भारतीय शहरों की छवि खराब हो जाएगी. 

इसके साथ ही राज्यों को भी इस नई आपदा को पर्याप्त रूप से आत्मसात करने की तैयारी करनी होगी. सबसे पहली बात तो यह है कि भारतीय शहरों में देखी जाने वाली खंडित प्रशासनिक व्यवस्था इस तरह की आपदाओं से निपटने को ध्यान में रखकर बनाई ही नहीं गई है. विकास कार्यों को लेकर विभिन्न संस्थाओं की व्यवस्था को दरकिनार किया जाना चाहिए. इसकी जगह स्थानीय निकाय संस्थाओं को ही शहर विकास की जिम्मेदारी देने की नई व्यवस्था को अपनाया जाना चाहिए. दूसरे, सभी संवेदनशील राज्यों द्वारा जलवायु परिवर्तन और शहरी बाढ़ को आपदा प्रबंधन में समाहित करने से आपदा पूर्व नीतियों और योजना पर अधिक ध्यान देने में मदद मिलेगी. इसके चलते जलवायु परिवर्तन की गंभीरता कम होगी और यह आपदा जोखिम प्रबंधन का एक अनिवार्य घटक बन जाएगा. शहरों को स्वयं शहरी बाढ़ को बार-बार होने वाली घटना मानते हुए बाढ़ और इसके प्रभाव को कम करने वाली रणनीतियों पर समान जोर देकर राज्यों का साथ देना होगा. इसमें स्थानीय निकाय संस्थाओं की विकास नीति और योजनाओं में आपदा जोखिम को घटाने के उपायों को समायोजित करना शामिल हैं.   

राज्यों के अलावा सामजिक स्तर पर भी हमें बार-बार उपजने वाली इस समस्या और उसके प्रबंधन के लिए उपयुक्त दृष्टिकोण अपनाना होगा. इसमें शहरी स्थानीय निकायों की विकास नीतियों और योजनाओं में आपदा जोखिम में कमी का एकीकरण शामिल होगा। इतना ही नहीं विभिन्न शहरों के नागरिकों के लिए जोखिम के प्रभाव को कम करने की क्षमता को विकसित करने के कार्यक्रम भी शुरू करने होंगे. ऐसा व्यापक शैक्षणिक प्रयास के माध्यम से किया जाए ताकि जोखिम को कम करने का बरताव उनकी रोज की जिंदगी का हिस्सा बन सके.

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Dr. Ramanath Jha is Distinguished Fellow at Observer Research Foundation, Mumbai. He works on urbanisation — urban sustainability, urban governance and urban planning. Dr. Jha belongs ...

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