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साल 2025 की शुरुआत हो चुकी है. ये पीछे मुड़कर देखने और भारत की मौजूदा अफ्रीकी नीतियों का मूल्यांकन करने का सही समय है. इन नीतियों की समीक्षा और पिछले अनुभवों के आधार पर नई नीतियों के लिए बेहतर सुझाव दिए जा सकते हैं. पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नाइजीरिया की यात्रा की. मॉरीशस में नौसैनिक अड्डे का उद्घाटन किया. कई प्रमुख अफ्रीकी देशों में भारत ने डिफेंस अताशे तैनात किए. कुल मिलाकर देखा जाए तो 2024 भारत-अफ्रीका संबंधों के लिए एक महत्वपूर्ण साल रहा. भारत अगले कुछ साल के लिए अपनी नई अफ्रीकी नीति की योजना बना रहा है. ऐसे में हम एक ऐसे क्षेत्र की बात करेंगे, जिसे अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, जबकि ये अफ्रीकी महाद्वीप के साथ भारत के भविष्य के संबंधों की दिशा को नया आकार दे सकता है. भारत-अफ्रीका संबंधों का ये नया पहलू है AfCFTA यानी अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र. भारत के पास अफ्रीकन कॉन्टिनेंटल फ्री ट्रेड एरिया (AfCFTA) के कार्यान्वयन में अफ्रीका की मदद करने की क़ाफी क्षमता है.
भारत-अफ्रीका संबंधों का ये नया पहलू है AfCFTA यानी अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र. भारत के पास अफ्रीकन कॉन्टिनेंटल फ्री ट्रेड एरिया (AfCFTA) के कार्यान्वयन में अफ्रीका की मदद करने की क़ाफी क्षमता है.
व्यापार और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में इस तरह की चुनौतियों से निपटने का भारत को बहुत अनुभव है. ऐसे में AfCFTA को लागू करने और उसमें सुधार लाने के लिए अफ्रीकी देशों की सहायता करने के लिए भारत पूरी तरह से तैयार है. इसके अलावा, ये जुड़ाव दक्षिण-दक्षिण सहयोग (ग्लोबल साउथ के देशों के बीच)को भी बढ़ावा देगा. भारत को इससे काफ़ी आर्थिक लाभ मिल सकता है.
अफ्रीका का मुक्त व्यापार क्षेत्र
जनवरी 2021 में, AfCFTA को लागू किया गया. इसके लागू होने के साथ ही अफ्रीका दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र बन गया. करीब 1.2 अरब लोग इस क्षेत्र में रहते हैं. अफ्रीकी महाद्वीप में शामिल सभी देशों के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को मिला दिया जाए तो ये 3.4 अरब ट्रिलियन है. ये समझौता अफ्रीका के 55 में से 54 देशों को को एक साथ लाया है. 47 देशों ने पहले ही इसकी पुष्टि कर दी है. इस समझौते का मक़सद अफ्रीकी देशों के बीच व्यापार बाधाओं को ख़त्म करना है. इसका लक्ष्य सदस्य देशों के बीच वस्तुओं और उत्पादों के मुक्त प्रवाह को आसान बनाकर अफ्रीकी देशों के बीच आपसी व्यापार बढ़ाना है.
2022 में, अफ्रीकी देशों के बीच आपसी व्यापार सिर्फ 13.2 प्रतिशत था. AfCFTA लागू होने के साथ ही साल 2050 तक आपसी व्यापार बढ़कर 52.3 प्रतिशत तक होने की उम्मीद है. इससे अफ्रीकी महाद्वीप की अर्थव्यवस्था में 29 ट्रिलियन की डॉलर की बढ़ोतरी होगी. 29 ट्रिलियन की डॉलर की बढ़ोतरी का मतलब ये हुआ कि जीडीपी में 7 प्रतिशत की औसत वृद्धि होगी.
उम्मीद जताई जा रही है कि डीजीपी में इस बढ़ोतरी से 30 मिलियन अफ्रीकी नागरिक चरम गरीबी से बच जाएंगे, जबकि करीब 68 मिलियन लोगों की आय में वृद्धि होगी
आखिरकार ये अनुमान अफ्रीकी की सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को हर साल 7 प्रतिशत तक बढ़ाता है. उम्मीद जताई जा रही है कि डीजीपी में इस बढ़ोतरी से 30 मिलियन अफ्रीकी नागरिक चरम गरीबी से बच जाएंगे, जबकि करीब 68 मिलियन लोगों की आय में वृद्धि होगी. ये लोग फिलहाल रोज़ाना 5.50 डॉलर से कम कमाते हैं.
यह समझौते में जो रूल ऑफ ओरिजिन (आरओओ) है, उसके ज़रिए सदस्य देशों के उत्पादों को अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र के बाज़ारों में प्राथमिकता दी जाती है. यानी इन देशों के बाज़ार में उनकी पहुंच आसान होती है. आरओओ (RoO) का उद्देश्य स्थानीय कृषि क्षेत्र और उसके उत्पादों को प्रोत्साहित करना है. कृषि क्षेत्र अफ्रीका में 240 मिलियन से ज़्यादा लोगों को रोजगार देता है. कृषि क्षेत्र के विकास से ही अफ्रीका में औद्योगिक क्षेत्र को मज़बूत करने के लिए कच्चे माल का उत्पादन होगा. ये इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में फिलहाल अफ्रीका की हिस्सेदारी महज 1.9 प्रतिशत की है.
भारत का योगदान
व्यापार लंबे समय से भारत-अफ्रीका संबंधों का आधार रहा है. पिछले दशक में द्विपक्षीय व्यापार 103 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. ये दिखाता है कि व्यावसायिक संबंधों में संतोषजनक वृद्धि हो रही है. वर्तमान में, यूरोपीय संघ (ईयू) और चीन के बाद अफ्रीका, भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. अफ्रीका को भारत जिन वस्तुओं का निर्यात करता है, उनमें मशीनरी और परिवहन उपकरण, फार्मास्यूटिकल्स, कपड़े, ऑटोमोबाइल, खनिज ईंधन, तेल और लकड़ी के उत्पाद हैं.
इसके विपरीत, अफ्रीका से भारत को मेटालर्जिकल गुड्स (जैसे कि एल्युमिनियम, मैग्नीशियम, ज़िंक, कॉपर), कच्चा कपास, फल, कच्चा तेल और कीमती पत्थर का निर्यात होता है. अफ्रीका के लिए, भारत का वैश्विक निर्यात और आयात में योगदान 6.0 और 5.6 प्रतिशत है, जबकि भारत के वैश्विक निर्यात और आयात में अफ्रीका का योगदान 9.6 प्रतिशत और 7.8 प्रतिशत है.
परिवहन का कमज़ोर बुनियादी ढांचा अफ्रीकी महाद्वीप के एकीकृत बाज़ार में सुचारू व्यापार की राह में सबसे बड़ी बाधा है. अफ्रीकी देश लंबे वक्त तक गुलाम रहे. औपनिवेशिक विरासतों ने ऐसा बुनियादी ढांचा बनाया, जहां संसाधनों से समृद्ध ज़्यादातर शहरों को बंदरगाहों से ही जोड़ा गया. इसका नतीजा ये हुआ कि अफ्रीकी देशों का इसी महाद्वीप के देशों की तुलना में उन विदेशी राष्ट्रों के साथ मज़बूत संबंध है, जहां बंदरगाह हैं. भारत और AfCFTA पर दस्तख़त करने वाले देश आपस में मिलकर परिवहन के बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ा सकते हैं. इसे विकसित कर सकते हैं.
सबसे खास बात ये है अफ्रीका के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि की हिस्सेदारी 35 प्रतिशत है. अफ्रीकी महाद्वीप की करीब आधी आबादी को ये क्षेत्र रोजगार देता है. कृषि और तकनीकी उद्योग का इतना बड़ा बाज़ार होने के बावजूद अफ्रीका खाद्य सुरक्षा की समस्या का सामना करता है. यानी कई बार अफ्रीकी देश भुखमरी का सामना करते हैं. हैरानी की बात ये है कि अफ्रीका में 80 प्रतिशत खाद्य उत्पादन छोटे किसान करते हैं.
भारत और AfCFTA पर दस्तख़त करने वाले देश आपस में मिलकर परिवहन के बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ा सकते हैं. इसे विकसित कर सकते हैं.
AfCFTA को अगर अपना उद्देश्य हासिल करना है तो उसे एक ऐसा कृषि क्षेत्र चाहिए, जो पूरी तरह से काम करता हो और जो अफ्रीकी अर्थव्यवस्था में केंद्रीय भूमिका निभाता हो. कुछ अनुमानों के मुताबिक, अगर आयात शुल्क ख़त्म कर दिए जाते हैं, तो 2030 तक अफ्रीकी देशों के आपसी कृषि व्यापार में 574 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है. फिलहाल अफ्रीकी महाद्वीप हर साल अनाज के आयात पर 75 अरब डॉलर खर्च करता है. अगर कृषि क्षेत्र मज़बूत होता है तो इतनी बड़ी राशि का इस्तेमाल विकास के दूसरे कामों में किया जा सकता है.
भारत को कृषि क्षेत्र के विकास का विशाल अनुभव है. भारत मॉडर्न टेक्नोलॉजी को मज़बूत बनाकर और डिजिटलीकरण को प्रोत्साहित करके अफ्रीका के छोटे किसानों की मदद कर सकता है. कृषि काम में तकनीक के इस्तेमाल की वकालत कर सकता है. चूंकि भारत ने अफ्रीका के फार्मास्यूटिकल और परिवहन क्षेत्रों में पहले ही निवेश किया है. ऐसे में वो चाहे तो कृषि क्षेत्र में भी निवेश कर सकता है. अफ्रीका के छोटे किसानों को ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी उन्नत प्रौद्योगिकी मुहैया करा सकता है. इससे स्थानीय किसानों को कृषि उत्पादन, फसल की भविष्यवाणी, मिट्टी और उपज के स्वास्थ्य पर नज़र रखने में मदद मिलेगी.
इसके अलावा, भारत ने अपने डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर में भी काफ़ी निवेश किया है. इससे डिजिटल पब्लिक सर्विसेज़ की एक पूरी श्रृंखला विकसित हुई है. डिजिलॉकर ऐप जैसी सेवा से अफ्रीकी देशों को आयात-निर्यात घोषणाओं जैसे ज़रूरी दस्तावेज़ों को एक ही प्लेटफार्म पर स्टोर करने में मदद मिलेगी. इससे ये पूरी प्रक्रिया व्यवस्थित होगी. कारोबारियों और नौकरशाही के बीच काम आसान होगा.
भारतीय राष्ट्रीय कृषि बाज़ार योजना (e-NAM) किसानों को सीधे बाज़ार से जोड़ने में सफल साबित हुई है. ऐसी पहलों के ज़रिए भारत, एकीकृत महाद्वीपीय कृषि बाज़ार बनाने के लिए अफ्रीका की मदद कर सकता है.
आगे क्या होना चाहिए?
भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने भारत की आगामी विदेश नीति को “बिग, लॉन्ग और स्मार्ट”बताया. उन्होंने कहा कि ये नीति “दुनिया के साथ गहरे जुड़ाव” की कोशिश है. भारत का ये एजेंडा सबसे बेहतर तरीके से अफ्रीका के साथ मेल खाती है.
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अफ्रीकी महाद्वीप कई कठिनाइयों से जूझ रहा है. वो कर्ज़ को बोझ तले दबा है. उसे आंतरिक कलह, राजनीतिक अस्थिरता और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से भी निपटना है.
हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अफ्रीकी महाद्वीप कई कठिनाइयों से जूझ रहा है. वो कर्ज़ को बोझ तले दबा है. उसे आंतरिक कलह, राजनीतिक अस्थिरता और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से भी निपटना है. इसके बावज़ूद उम्मीद बरकरार है. पिछले साल अफ्रीकी संघ शिखर सम्मेलन में, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने एकजुट, समृद्ध और शांतिपूर्ण अफ्रीकी महाद्वीप के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया. उन्होंने कहा था कि 21वीं सदी वास्तव में अफ्रीका की हो सकती है. अगर ऐसा होना है तो विकास के इस सफर में AfCFTA की सफलता बहुत महत्वपूर्ण होगी.
अफ्रीका महाद्वीप ने अपने लिए एक एजेंडा सेट किया. "एजेंडा 2063: द अफ्रीका वी वांट" के विज़न में जो लक्ष्य तय किए गए हैं, उन्हें हासिल करने में भारत अफ्रीका की काफ़ी मदद कर सकता है. भारत ने कहा है कि वो सभी अफ्रीकी देशों के साथ साझेदारी करने के लिए प्रतिबद्ध है. अफ्रीकी देश इसके लिए AfCFTA पर काम कर रहे हैं, जिससे इस महाद्वीप की प्रगति में बाधा डालने वाली चुनौतियों का समाधान किया जा सके. इस लिहाज़ से देखें तो भारत इस महाद्वीप के देशों को समृद्ध अफ्रीका के अपने विज़न को साकार करने में भी मदद कर सकता है. चूंकि इस लक्ष्य को हासिल करने में AfCFTA एक बड़ी भूमिका निभाएगा, इसलिए भारत को अपनी अफ्रीका नीति में AfCFTA के सफल कार्यान्वयन को शामिल करना चाहिए
समीर भट्टाचार्य ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.
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