इंसानों की तरह देशों के बीच संबंध के मामले में भी मुश्किल वक़्त असली चरित्र की याद दिलाते हैं. कोविड-19 ने दुनिया भर में देशों के सामने कई तरह की चुनौतियां पेश की हैं और दूसरे देशों और दुनिया को लेकर उनका नज़रिया बदल दिया है. दक्षिण एशिया की तरह अस्थिर पड़ोस में नेपाल और बांग्लादेश के साथ भारत के संबंधों में पिछले एक वर्ष के दौरान काफ़ी उतार-चढ़ाव आए हैं.
भूटान के सम्राट की बुद्धिमानी, भारत की ‘पड़ोस सर्वप्रथम’ नीति और दोनों देशों के लिए फ़ायदेमंद साझेदारी, ख़ासतौर पर पनबिजली में, ने इस ‘विशेष संबंध’ को बनाए रखा है.
भारत के पड़ोस में भूटान उन दो देशों में शामिल है जो भारत के साथ मज़बूत रिश्ते का प्रदर्शन करता है, दूसरा देश मालदीव है. महामारी की मुसीबत और पूर्वी इलाक़े में चीन के नये प्रादेशिक दावों ने भारत के साथ भूटान की इस घनिष्ठता पर कोई असर नहीं डाला है. भूटान के सम्राट की बुद्धिमानी, भारत की ‘पड़ोस सर्वप्रथम’ नीति और दोनों देशों के लिए फ़ायदेमंद साझेदारी, ख़ासतौर पर पनबिजली में, ने इस ‘विशेष संबंध’ को बनाए रखा है.
‘पड़ोस सर्वप्रथम’
सहयोग पर केंद्रित, पड़ोस के देशों की ज़रूरत पर आधारित भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘पड़ोस सर्वप्रथम’ नीति ने भारत-भूटान के संबंधों को ताक़त दी है. महामारी की वजह से भूटान की परेशानियों को लेकर भारत संवेदनशील रहा है और अपने पड़ोसी दोस्त की मदद करने में आगे रहा है.
भारत ने पड़ोसी दोस्त के अनुरोध को लेकर बार-बार सहानुभूति दिखाई. भूटान ने वायरस को फैलने से रोकने के लिए मार्च में ही अपनी अंतर्राष्ट्रीय सीमा को सील करने का फ़ैसला लिया था. इसके बाद भी भारत ने भूटान तक उन ज़रूरी सामानों की सप्लाई सुनिश्चित की जो भूटान के हर नागरिक के लिए महत्वपूर्ण थे. भारत कोविड-19 वैक्सीन को विकसित करने में भी भूटान के साथ मिलकर काम कर रहा है. भूटान को भारत ने टेस्टिंग किट और दवाएं उपहार के रूप में दी हैं. भूटान के साथ व्यापार और संपर्क को सुनिश्चित करने के लिए भारत ने अहले के ज़रिए एक नया रास्ता खोला.
भारत कोविड-19 वैक्सीन को विकसित करने में भी भूटान के साथ मिलकर काम कर रहा है. भूटान को भारत ने टेस्टिंग किट और दवाएं उपहार के रूप में दी हैं.
भारत अपनी मदद के बदले मदद नहीं लेने के सिद्धांत का पालन करता है जो ‘पड़ोस सर्वप्रथम’ नीति की एक महत्वपूर्ण विशेषता है. हाल में भारत ने एक बेहद ज़रूरी अधिसूचना लाने में नियमों में छूट दी. इस अधिसूचना के ज़रिए भूटान से आलू और दूसरे कृषि उत्पादों के आयात को मंज़ूरी दी गई. ये फ़ैसला इसलिए लिया गया क्योंकि भूटान के किसान अपने उत्पादन की बिक्री को लेकर अनिश्चित थे क्योंकि प्रक्रियागत मुद्दों का हवाला देकर भारत के सीमा सुरक्षा कर्मियों ने भूटान के आलू को भारत आने से रोक दिया था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार जिस निश्चितता और गति से भूटान समेत पड़ोस के दोस्तों की ज़रूरत का ध्यान रखती है वो पहले की सरकारों से काफ़ी अलग है. 2013 में भूटान में चुनाव से कुछ दिन पहले पूर्व की भारत सरकार द्वारा भूटान को दी जाने वाली LPG सब्सिडी को रोकने के फ़ैसले को भूटान ने वहां के चुनाव में भारत के हस्तक्षेप की तरह बताया था.
समीक्षकों ने इस फ़ैसले की कड़ी आलोचना की थी. भारत-भूटान के संबंधों में इस गिरावट को दूर करते हुए नरेंद्र मोदी ने 2014 और 2019 में भूटान का सरकारी दौरा किया. इसके अलावा भूटान के नेतृत्व से वो लगातार टेलीफ़ोन पर बात करते रहे और भूटान को भरोसा दिलाते रहे कि महामारी से निपटने में भारत उसके साथ है. महामारी की वजह से भूटान के प्रधानमंत्री के अनुरोध पर भारत भूटान की 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए 4500 करोड़ भारतीय रुपये नये सिरे से प्राथमिकता के आधार पर आवंटित करने पर विचार कर रहा है.
संयुक्त उपक्रम परियोजनाएं
दोनों देशों के बीच फ़ायदेमंद साझेदारी बनाने के लिए पनबिजली से ज़्यादा किसी और क्षेत्र में संभावना नहीं है. कोविड महामारी के बीच दोनों देशों ने पहले संयुक्त उपक्रम परियोजना के निर्माण के लिए साझेदारी पर हस्ताक्षर किए. ये परियोजना है 600 मेगावॉट की खोलोंगछू पनबिजली परियोजना. ये परियोजना भारत को भूटान की तरफ़ से बिजली के निर्यात के अलावा होगी और इससे वहां के लोगों को रोज़गार तो मिलेगा ही, साथ ही किफ़ायती दर पर भारत की बिजली की ज़रूरत भी पूरी होगी.
हिमालय में बसे भूटान ने इस साल अच्छे मॉनसून की वजह से सबसे ज़्यादा 2,400 मेगावॉट बिजली का उत्पादन किया. इस तरह उसने पिछले साल 2,336 मेगावॉट की उत्पादन क्षमता को पीछे छोड़ दिया जो 720 मेगावॉट की मांगदेछू पनबिजली परियोजना की शुरुआत की वजह से हुआ था. मांगदेछू परियोजना का उद्घाटन पिछले साल अगस्त में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने साझा तौर पर किया था. इस परियोजना को यूके के इंस्टीट्यूट ऑफ सिविल इंजीनियर्स की तरफ़ से सिविल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए ब्रूनेल मेडल से नवाज़ा गया था.
इस साल की शुरुआत में भूटान के पॉवर सिस्टम मास्टर प्लान 2040 ने देश की पनबिजली संभावना का अनुमान लगाया जिसके मुताबिक़ मौजूदा पॉवर प्लांट को मिलाकर 155 निर्धारित साइट से 37,000 मेगावॉट की उपलब्धता होगी. ये पहले की 30,000 मेगावॉट बिजली की संभावना और उपलब्धता के अनुमान से काफ़ी ज़्यादा है. बिजली की बढ़ी हुई उपलब्धता दोनों देशों के लिए साझा तौर पर 10,000 मेगावॉट, जिसका निर्धारण 2009 में सरकारी स्तर पर समझौते में हुआ था, से ज़्यादा पनबिजली परियोजना पर काम करने की संभावना रखती है.
बिजली की बढ़ी हुई उपलब्धता दोनों देशों के लिए साझा तौर पर 10,000 मेगावॉट, जिसका निर्धारण 2009 में सरकारी स्तर पर समझौते में हुआ था, से ज़्यादा पनबिजली परियोजना पर काम करने की संभावना रखती है.
पनबिजली में जहां दोनों देशों के बीच मज़बूत संबंध जारी रखने की अपार संभावनाएं हैं, वहीं इसमें भरपूर चुनौतियां भी हैं. मार्च में जब दोनों देशों में महामारी ने पैर पसारे, तब से दोनों देशों के बीच की संयुक्त पनबिजली परियोजना पुनातसंगछू-I और II का काम मशीनों और निर्माण सामग्री की कमी की वजह से ठप पड़ा है. दोनों परियोजनाएं भूराजनीतिक चुनौतियों की वजह से पहले ही काम ख़त्म होने के तय समय से पीछे चल रही है.
लेकिन भूटान और भारत को उम्मीद है कि एक साथ रहकर और एक-दूसरे की मदद करके दोनों देश महामारी की लहर और उसके विनाशकारी असर से उबर जाएंगे. प्रधानमंत्री मोदी के “भारत से भूटान” दृष्टिकोण ने फिर से याद दिलाया है कि भारत और भूटान हमेशा एक-दूसरे के साथ हैं. ये ऐसा संबंध है जो 1949 से टिका हुआ है जब भारत-भूटान मैत्री संधि पर हस्ताक्षर हुए थे जिसने दोनों देशों के बीच क़रीबी राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों की नींव रखी.
ये लेख मूल रूप से साउथ एशिया वीकली में प्रकाशित हुआ था
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