Author : Aditya Bhan

Expert Speak Raisina Debates
Published on Dec 27, 2022 Updated 0 Hours ago

अपने रक्षा संबंधों को और मज़बूत कर येरेवन के साथ अपनी साझेदारी को मज़बूत करना नई दिल्ली के हित में है.

India-Armenia Relations: उभरती साझेदारी से नई दिल्ली को फायदा

अगले तीन वर्षों तक 155 मिमी आर्टिलरी सिस्टम की आपूर्ति के लिए येरेवन और रक्षा उपकरण बनाने वाले एक भारतीय निर्माता के बीच हाल ही में 155 मिलियन अमेरिकी डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किया गया है, जो आर्मेनिया के साथ रक्षा सहयोग को और बढ़ाने की नई दिल्ली की घोषित नीति को जारी रखने का संकेत देता है. यह डील येरेवन के साथ आर्मेनियाई सशस्त्र बलों को पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर, एंटी-टैंक युद्ध सामग्री, और 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के गोला-बारूद और जंगी स्टोर की आपूर्ति करने के लिए सरकार-से-सरकार के बीच हुई डील का अनुसरण करता है, जो आर्मेनिया को स्वदेशी रूप से विकसित पिनाका प्रणाली के अंतर्राष्ट्रीय ग्राहक के रूप में पहले देश का दर्ज़ा दिलाता है. वास्तव में, आर्मेनिया और भारत के बीच संबंधों ने दोनों देशों के लिए एक रणनीतिक प्राथमिकता की पहल की है, जो पिछले साल भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर की येरेवन यात्रा से और ज़्यादा पुख़्ता हुआ. दोनों लोकतांत्रिक देश, संस्कृति और भाषा से परे ऐतिहासिक संबंधों को साझा करने वाली प्राचीन सभ्यताएं हैं और येरेवन के साथ अपनी साझेदारी को मज़बूत करना नई दिल्ली के हित में भी है.

नई दिल्ली के साथ अंकारा के संबंध के मुक़ाबले ज़्यादा हितकर आर्मेनिया के साथ गठजोड़ की कोशिश करना होगा. क्योंकि अंकारा ने जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की निंदा की थी, जबकि अलग-अलग अंतर्राष्ट्रीय मंचों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र में भी वह पाकिस्तान का खुलकर समर्थन करता रहा है.

सप्लाई चेन और अर्थव्यवस्था

आर्मेनिया के साथ गहरे सहयोग से भारत को आर्थिक रूप से लाभ होगा. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की प्रतिस्पर्द्धा में आर्मेनिया यूरेशियन कॉरिडोर में नई दिल्ली के लिए एक संभावित आउटपोस्ट प्रदान करता है जो फारस की खाड़ी से रूस और यूरोप तक फैली हुई है. आर्मेनिया कृषि, फार्मास्यूटिकल्स, मैन्युफैक्चरिंग और टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में भी भारत के लिए एक योग्य विकास साझेदार साबित हो सकता है. यह सहयोग कर्ज़ आधारित चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव मॉडल के लिए एक बेहतर विकल्प प्रदान कर सकता है. इसमें दो राय नहीं कि येरेवन द्वारा भारतीय रक्षा उपकरणों की बढ़ती हुई खरीददारी के चलते भारत में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के रक्षा निर्माण को नई गति मिलेगी.

पैन तुर्कीइज्म की चुनौती का सामना

तुर्की की महत्वाकांक्षा अंकारा से प्रशासित होने वाले एक ऐसे पैन तुर्किक साम्राज्य स्थापित करने की है, जो मौज़ूदा समय के काकेशस और यूरेशिया के अन्य हिस्सों की बराबरी करता है. नस्लवादी सिद्धांत एक ऐसे साम्राज्य की कल्पना करता है जिसमें सभी राष्ट्र और क्षेत्र शामिल हैं जो एक तुर्किक की तरह ही भाषा का प्रयोग करते हैं  और उन भाषाओं और तुर्की में बोली जाने वाली भाषाओं के बीच अंतर के साथ-साथ क्षेत्रों की संबंधित आबादी के प्रस्ताव को नज़रअंदाज़ करते हैं. यह विश्व दृष्टि अंकारा की विदेश नीति को निर्देशित करती थी और यह अभी भी जारी है.

अंकारा इस क्षेत्र पर अपने नियंत्रण को मज़बूत करने, ओटोमन साम्राज्य को फिर से स्थापित करने और मध्य एशिया के तुर्क देशों को कॉमन आर्म्ड फोर्सेज के साथ लॉजिस्टिक स्पेस तैयार करने के लिए बाकू के साथ अपने रिश्ते का लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है. साल 2020 में, तुर्की के निर्देश पर अजरबैजान ने आर्मेनिया के स्युनिक प्रांत के माध्यम से तुर्की को अजरबैजान से जोड़ने के लिए स्व-प्रशासित आर्ट्सख क्षेत्र के साथ-साथ आर्मेनिया पर भी हमला किया, जिसे ज़ंगेज़ुर क्षेत्र भी कहा जाता है. तुर्की ने इस आक्रमण के लिए प्रबंधन, हथियार, सेना, आईएसआईएस आतंकवादी और अन्य भाड़े के सैनिक मुहैया कराए थे.

नई दिल्ली के साथ अंकारा के संबंध के मुक़ाबले ज़्यादा हितकर आर्मेनिया के साथ गठजोड़ की कोशिश करना होगा. क्योंकि अंकारा ने जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की निंदा की थी, जबकि अलग-अलग अंतर्राष्ट्रीय मंचों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र में भी वह पाकिस्तान का खुलकर समर्थन करता रहा है. कश्मीर पर नई दिल्ली के रुख़ के येरेवन के समर्थन के साथ यह अलग विचारनीय पहलू है जो पूरे क्षेत्र को भारत के अविभाज्य अंग के रूप में मानता है.

हाल में आर्मेनिया को सैन्य उपकरणों के निर्यात के साथ, नई दिल्ली ने खुले तौर पर नागोर्नो-काराबाख संघर्ष में येरेवन के पक्ष में ख़ुद को तैयार किया है और तुर्की और पाकिस्तान सहित अजरबैजान और उसके समर्थकों के साथ-साथ अंकारा की विस्तारवादी पैन-तुर्किक महत्वाकांक्षाओं का मुक़ाबला करने के लिए विकल्प तैयार किया है. ऐसे में,आर्मेनिया को भारत का रक्षा निर्यात अंकारा को कश्मीर सहित नई दिल्ली की आंतरिक नीति के मुद्दों पर अपना रुख़ बदलने के लिए मज़बूर कर सकता है, ख़ास कर तब जब विश्व स्तर पर अपने हितों को आगे बढ़ाते हुए गुटनिरपेक्ष दृष्टिकोण का पालन करने के बजाए भारत किसी का पक्ष लेने की नई-तैयारी कर रहा हो.

अन्य भू-रणनीतिक लाभ

अजरबैजान के सहयोगी के रूप में पाकिस्तान अपने जवान और सैन्य उपकरणों को भेजकर अजरबैजान की मदद कर रहा है. बदले में बाकू ने इस्लामाबाद में अपने साझेदारों को भू-राजनीतिक, भू-आर्थिक और भू-रणनीतिक लाभ देकर इस एहसान को चुकाया है. पिछले साल आयोजित, "थ्री ब्रदर्स" सैन्य अभ्यास जिसमें पाकिस्तान, तुर्की और अजरबैजान शामिल थे, इसका मक़सद ही अपने देशों की सशस्त्र बलों की अंतर-क्षमता को आगे बढ़ाना था.

यदि बाकू आर्मेनिया में अपने उद्देश्यों की पहचान करता है तो यह ख़तरनाक निहितार्थों के साथ पाकिस्तान को ही मज़बूत करेगा. आर्मेनियाई क्षेत्र को ताक़त के दम पर कब्ज़ा करके, बाकू, तुर्की, अजरबैजान और पाकिस्तान के साथ-साथ तुर्की-उन्मुख राष्ट्रों की महत्वपूर्ण धुरी बनने के अलावा अपनी पहुंच चीन तक बनाना चाहता है. लेकिन इसका ख़तरा यह है कि कश्मीर की दहलीज़ पर पहुंचने के लिए गोला-बारूद और सैन्य उपकरण भी इस रास्ते से आ सकते हैं. हालांकि, नई दिल्ली के पास इसे रोकने का बेहतर विकल्प मौज़ूद है. नई दिल्ली अजरबैजान के ऊर्जा संसाधनों से वित्तपोषित बेहतर सैन्य शक्ति के ख़िलाफ़ आर्मेनिया को सुरक्षित रखने में सहायता करने के लिए अपनी सैन्य जानकारी और क्षमताओं का लाभ दे सकता है, जिससे नई दिल्ली की एक अलग पहचान बन सकती है.

आर्मेनिया के साथ गहरे सहयोग से भारत को आर्थिक रूप से लाभ होगा. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की प्रतिस्पर्द्धा में आर्मेनिया यूरेशियन कॉरिडोर में नई दिल्ली के लिए एक संभावित आउटपोस्ट प्रदान करता है जो फारस की खाड़ी से रूस और यूरोप तक फैली हुई है.

निष्कर्ष

नई दिल्ली आमतौर पर अन्य देशों के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता है या दूर की शत्रुता में स्वेच्छा से शामिल भी नहीं होता है. हालांकि इस संघर्ष में गुटनिरपेक्षता भी आर्मेनिया के प्रतिद्वंद्वियों को भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने से नहीं रोक पाएगी. नई दिल्ली को याद रखना चाहिए कि आर्मेनिया की तबाही चाहने वाले देश भारत की प्रगति को भी बाधित करने का अवसर ढूंढ रहे हैं. यूरेशिया में उन्हें पूरी तरह कामयाब होने से रोक कर नई दिल्ली दक्षिण एशिया में उनकी योजनाओं को नाकाम कर सकता है.

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