Author : Mona

Published on Jul 29, 2023 Updated 0 Hours ago

कोविड के नए वेरिएंट के सामने के साथ, भारत को अपने बुजुर्ग जनसंख्या का भी ख्याल रखना चाहिए और उनकी सलामती के मद्देनज़र पॉलिसी में उचित बदलाव करने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए. 

भारत के बुज़ुर्ग: कोविड-19 के प्रभाव का आकलन और उससे आगे की सोच
भारत के बुज़ुर्ग: कोविड-19 के प्रभाव का आकलन और उससे आगे की सोच

भारत के कोविड-19 की पहली लहर में 60 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्गों, ख़ासकर जिन्हें पहले से स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें या बीमारी थीं उन्होंने कोविड के दूसरे लहर के दौरान बड़ी संख्या में मृत्यु का सामना किया. वैश्विक स्तर पर किए गए अध्ययन में, इस वायरस से जूझ रहे कई देशों के राष्ट्रीय स्तर के प्राप्त डेटा ने अस्पताल में दाखिल किए जाने के जोख़िम और इन मामलों में मृत्यु दरों में बढ़त दर्ज की है. कोलंबिया और चिली जैसे देशों में, 86 प्रतिशत से भी ज़्यादा मौतें, बुजुर्ग लोगों की हुई है. पेरु में हुए 70 प्रतिशत मौतें 60 से ज़्यादा वर्ष वालों की हुई है. 

कोविड 19 महामारी जैसे संकट के वक्त में, वे (वृद्धजन), ख़ासकर वो जिन्हें भारी देखभाल की ज़रूरत है, विशेष रूप से कई बार हर प्रकार के सामाजिक संपर्कों से कट से जाते है, जिनका उन्हें भी अधिकार है. उनका तनाव कई बार डिजिटल उपकरणों को लेकर उनकी सीमित जानकारी और प्रवाह के कारण बढ़ जाती है. 

हालांकि, बहुत ही कम राज्यों ने अलग-अलग आयु से संबंधित डेटा रिपोर्टिंग की है, उसके बावजूद, भारत अब भी उसी ट्रेंड का अनुसरण कर रहा है. उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल 31-45 वर्ष उम्रसीमा में, 0.32 प्रतिशत की तुलना में, 75+ वर्ष उम्र सीमा में, 7.45 प्रतिशत और 60-75 प्रतिशत उम्र सीमा में, 3.41 प्रतिशत के दर से विपत्ति दर्शा रही है. केरल में, कुल मौतों का 54 प्रतिशत सिर्फ़, 60+ उम्र के वरिष्ट नागरिकों की है. नागालैंड में होने वाली कुल 70 प्रतिशत मौतें भी 46+ की उम्र के इर्दगिर्द ही है. होने वाली मौतों के पीछे हाइपरटेंशन और डाइबीटीज़ कुछ प्रमुख वजहें रही है. 

भारत और राज्यों की आबादी के प्रोजेक्शन के लिए बनी तकनीकी ग्रुप द्वारा जारी किए गए एक रिपोर्ट में अनुमानित है कि भारत में,71 मिलियन महिलाओं और 67 मिलियन पुरुषों को मिलाकर लगभग 138 मिलियन (60+ वर्ष के) की आबादी बुजुर्गों की है. पिछले साठ सालों मे, ये उम्र सीमा की जनसंख्या बढ़कर दुगुनी हो चुकी है और, 2021 में कुल आबादी का 10.1 प्रतिशत हो चुकी है और भविष्य में ये सतत बढ़ते ही रहने की आशा है. सबसे ज़्यादा अनुपात इस वक्त केरल में (16,49 प्रतिशत), तमिल नाडु (13.04 प्रतिशत) और हिमाचल प्रदेश (13.04 प्रतिशत) के दर पर ही केंद्रित है. 

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोश (यूएनएफपीए) ये अनुमान करती है कि पोषक तत्वों की कमी, लैंगिक आधार पर होनेवाली हिंसा, कमजोर साक्षरता के अवसर, डिजिटल उपकरणों तक की पहुँच, और गरीबी के प्रति संवेदनशीलता, महिलाओं के लिए क्रमशः काफी जोख़िम उत्पन्न कर रही है

फ़ोटो 1 जोड़ें: भारतीय राज्यों में उम्र आधारित डेमोग्राफी: 2021 के  बाद के आंकड़े

केरल में सबसे ज़्यादा वरिष्ट नागरिकों (60+ वर्ष) की जनसंख्या है, वहीं मेघालय में 18 वर्ष से कम की सबसे ज़्यादा प्रतिशत आबादी है. 

अनूठी ज़रूरतें और लैंगिक संवेदनशीलता 

एक तरफ जहां, अन्य विकसित राष्ट्रों की तुलना में, भारत में बुजुर्गों का अनुपात तुलनात्मक रूप से कम ही है, संस्थागत त्रुटियाँ और दयनीय सामाजिक सुरक्षा भी इन्हें प्रभावित कर रही है. सीमित वृद्ध स्वास्थ्य ढांचा, और उन तक पहुँच पाने के गतिविधियों की कमी जैसी सुविधाओं को क्रमशः काफी कम वित्तीय सहयोग मुहैया कराई जाती है. एनएसएस द्वारा 2017-18 के डेटा पर कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 70 प्रतिशत वृद्ध जनसंख्या अपने दिन प्रतिदिन की ज़रूरतों की पूर्ति के लिये दूसरों पर निर्भर करते है. कोविड 19 महामारी जैसे संकट के वक्त में, वे (वृद्धजन), ख़ासकर वो जिन्हें भारी देखभाल की ज़रूरत है, विशेष रूप से कई बार हर प्रकार के सामाजिक संपर्कों से कट से जाते है, जिनका उन्हें भी अधिकार है. उनका तनाव कई बार डिजिटल उपकरणों को लेकर उनकी सीमित जानकारी और प्रवाह के कारण बढ़ जाती है. लगातार गिरते प्रजनन दर के साथ-साथ, जिस तरह से मेडीसीन में नई टेक्नोलॉजी और उनमें होने वाली विकास नए तरीके से उभर कर आ रही है, वैश्विक स्तर पर वृद्ध आबादी में काफी बढ़ोत्तरी हो रही है. ये जनसांख्यिकी और महामारी विज्ञान में बदलाव, गतिशीलता में परिवर्तन लाती है. यह बदलाव देश के बीमारियों के बोझ को वृद्ध आबादी की ओर स्थानांतरित कर रहा है, जिसका आगे चलकर काफी प्रतिकूल असर भी देखने को मिल सकता है. महिलाओं की उम्र पुरुषों की तुलना में लंबी होती है और आर्थिक रूप से अनिश्चित आबादी की बड़ी और अंसगत मात्रा का हिस्सा बनती है. श्रमशक्ति के प्रतिनिधित्व में हुई ऐतिहासिक कमी और उनके कार्य के दिनों में अर्जित की हुई मौद्रिक संपत्तियों के ऊपर उनकी कमज़ोर पकड़, उन्हें दूसरों पर निर्भर बनाते हैं, पुरुषों की तुलना में कहीं ज़्यादा.  

ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 10 प्रतिशत बुज़ुर्ग महिलायें और शहरी क्षेत्र में 11 प्रतिशत वरिष्ठ महिलायें ही आर्थिक रूप से स्वतंत्र है. उसके विपरीत, शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में, लगभग 50-55 प्रतिशत वरिष्ठ/वृद्ध पुरुष आर्थिक रूप से स्वतंत्र है. समावधिक श्रम शक्ति सर्वे 2018-19, ने अपने सर्वेक्षण में ये पाया कि 60-64 वर्ष के उम्र की सीमा में, आर्थिक गतिविधिओं के क्षेत्र में, पुरुष और महिलाओं की सहभागिता में 47 प्रतिशत तक का फ़र्क है. लॉकडाउन (जून 2020) की शुरुआती दौर में, हेल्प एज इंडिया द्वारा कराए गए एक सर्वे में यह पाया गया कि पारिवारिक सपोर्ट सिस्टम के बुरी तरह से धराशायी या तनावपूर्ण होने अथवा प्रभावित हुए होने की वजह से भी लगभग 65 प्रतिशत वृद्धों की आबादी का जीवनयापन भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है और तो और, अवैतनिक घरेलू कार्य और देखभाल की ज़िम्मेदारी संभालने वाले लोगों के प्रति उनकी सहभागिता 60 वर्ष से अधिक की उम्र के पुरुषों से (245 के ऊपर 112 मिनट) दोगुनी रही है, वो भी विरोधस्वरूप काफी कम हो गई है. 

 वैक्सीन को लेकर तमिलनाडु की असहजता तो अब इतिहास बन चुकी है. जुलाई 2021 में, पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट द्वारा वैक्सीन लिए जाने की स्वीकार्यता को लेकर करवाए गए सर्वेक्षण में, यह पाया गया की 60+ से ऊपर की आबादी के लगभग 27.6 प्रतिशत लोगों में वैक्सीन लिए जाने को लेकर काफी हिचक व्याप्त है. लैंगिक आधार पर, पुरुषों में यह सबसे अधिक था. 

ऐसी असमान, अनुचित संरचना, वृद्ध महिलाओं को कोविड-19 के परिणामस्वरूप होने वाले विपरीत नतीजों के प्रतिकूल परिणामों के प्रति और भी ज़्यादा संवेदनशील बनाती है. एक तरफ जहां वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों में, पुरुषों का मृत्यु दर घातक स्तर पर जाता हुआ दिखायी दे रहा है, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोश (यूएनएफपीए) ये अनुमान करती है कि पोषक तत्वों की कमी, लैंगिक आधार पर होनेवाली हिंसा, कमजोर साक्षरता के अवसर, डिजिटल उपकरणों तक की पहुँच, और गरीबी के प्रति संवेदनशीलता, महिलाओं के लिए क्रमशः काफी जोख़िम उत्पन्न कर रही है. क्रोनिक बीमारी जैसे हाइपरटेंशन, दिल और फेफड़े की बीमारी, संज्ञानात्मक गिरावट, आर्थराइटिस और डॉयबीटीज़, और उनमें से एक एनेमिया आदि महिलाओं में आजीवन जारी रहता है. एनएफएचएस=5 के अनुसार, 15-49 वर्ष के उम्र सीमा के मध्य, 25 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में 57 प्रतिशत महिलायें एनेमिक थी. जेंडर के मध्य प्रचलन का अंतर भी 60+ की उम्र के बीच लगातार दिखायी देता है, जबकी 3.1 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में, 5.9 प्रतीशत महिलायें एनेमिक है. मधुमेह मेलिट्स के संदर्भ में, विकसित राज्यों/केरल, गोवा, दिल्ली और तमिलनाडु सरीखे केंद्र शासित प्रदेश में इनका प्रचलन 14 प्रतिशत से भी ऊपर है.     

छायाचित्र 2: 60+ वर्ष ग्रुप के बीच कोविड-19 टीकाकरण के प्रक्षेपवक्र

Source: CoWIN Dashboard

 60+ के लोगों के बीच, एंजाइना पेकटोरिस (जो की दिल में ऑक्सिजन की ज़रूरत से कम आपूर्ति के वजह से होने वाली बीमारी है) पुरुषों (5 प्रतिशत) की तुलना में, महिलाओं (7 प्रतिशत) में ज़्यादा प्रचलित है. हालांकि, इस उम्र सीमा की महिलाओं में एंजाइना पेकटोरिस मुख्य रूप से बहुत ही आम बीमारी है, बजाय सामने या जानकारी में आये किसी बड़ी दिल की बीमारी के. लेकिन Longitudinal Ageing Study in India (LASI) के दिये इशारा के अनुसार, ये ट्रेंड पुरुषों और आम जनता दोनों ही में काफी विपरीत है. इसके साथ ही, इस सूची में पुरुषों (34 प्रतिशत) की तुलना में, उच्च रक्तचाप का प्रचलन भी महिलाओं में (38 प्रतिशत) सर्वाधिक है. अतः ये साफ़-साफ़ सलाह देता है कि अज्ञात हृदयरोग के बोझ का नेतृत्व भी भारत में अन्यायपूर्ण तरीके से महिलाओं द्वारा ही किया जाता है. सबसे महत्वपूर्ण होता है, बढ़ते उम्र के साथ रुग्णता और बहुरूग्णता की घटनाओं का भी बढ़ते जाना.   

स्वास्थ इंश्योरेंस स्कीम जैसे इंदिरा गांधी पेंशन योजना आदि के ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां इस योजना से लाभान्वित होने वाले ज़्यादा ज़रूरतमंद लोग उपस्थित है, वहाँ इन योजना के सफल पहुँच को सुनिश्चित करने हेतु उचित एक्शन लिए जाने की आवश्यकता है

वैज्ञानिक अध्ययन में यह पाया गया है कि युवा महिलाओं की तुलना में, मध्यम वर्षीय और वृद्ध महिलाओं में, हाइपरटेंशन का उच्च प्रसार है और उन्हें आक्रामक यांत्रिक वेनटीलेशन (IMV) की ज़रूरत पड़ती है. आगे जाकर इसकी वजह से मृत्यु के ख़तरे और भी बढ़ जाते है. पहले के चंद रिपोर्ट्स में ये सलाह दी गई थी कि कोविड के बाद के परिणामस्वरूप पुरुषों की तुलना में, प्रौढ़ महिलाओं में, दीर्घकालीन स्वास्थ्य समस्याएं और भी दयनीय होने वाली है, वहीं (50 वर्ष से अधिक) की महिलाओं में, दीर्घ कोविड के ख़तरनाक रूप से बढ़ने की संभावना है. इस वजह से बाद में, उनके जीवनशैली की गुणवत्ता प्रमुख रूप से बिगड़ सकती है.  

वरिष्ठ नागरिकों के लिए कोविड-19 टीकाकरण के लिए निर्धारित समय सीमा

मार्च 2021 के उत्तरार्ध में, एक राष्ट्रीय-स्तर का टीकाकरण प्रोग्राम शुरू किया गया. पहले दो महीनों में, ज्य़ादातर शहरी निवासियों में, ये काफी तेज़ी के साथ शुरू हुआ. परंतु, मई 2021 में- आपूर्ति में बाधाओं और सरकार का ध्यान 18 से 44 वर्ष के समूह के टीकाकरण की ओर शिफ्ट हो जाने की वजह से, उनमें काफी गिरावट आई. बड़े पैमाने पर शुरू किए गए इस उपक्रम में हुई जो गलतियां हुईं उनमें गलत सूचनाएं  का प्राप्त होना, साइड इफेक्ट्स का भय, दयनीय स्मार्टफोन – इंटरनेट सर्विस और मोबाइल फोन की मोबिलिटी रही है. इन सब व्यवधानों का प्रभाव तब सामने आया, जब अगस्त और सितंबर 2021 में, केंद्रित प्रयास के बावजूद भी इनकी संख्या कभी भी शुरुआती शिखर को छू नहीं सकी. (नीचे देखें)  

चित्र 3: भारत में उम्र अनुसार वरिष्ठ बुज़ुर्ग वयस्क जनों में 2017-18  के बीच स्वास्थ्य समस्या की रिपोर्ट 

सोर्स: भारत में, लान्जिटूडनल एजिंग स्टडी 

20 नवंबर 2021 तक, लगभग 125 मिलियन लोग टीके के दूसरी डोज़ को मिस कर चुके थे, जिनमें से ज्य़ादातर डिफॉल्टर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान से हैं. उच्च जोख़िम वर्ग और वरिष्ठ लोगों के लिए 9 महीनों तक विशेष तौर पर टीकाकरण ऑपरेशन चलाए जाने के बावजूद, भारत के 60+ वर्ष की जनसंख्या के मात्र 58 प्रतिशत लोगों को ही टीके की पूरी डोज़ दी जा सकी है. झारखंड और तमिल नाडू इस प्रसार कार्यक्रम में प्रति 1,000 वरिष्ट जनसंख्या पर, 1,049 और 1,054 डोज़ के साथ सबसे आखिरी पायदान पर आते है. इन राज्यों में, वरिष्ठ नागरिकों के विशाल अनुपात के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए, इससे संभावित खतरों को और भी बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. 

भारत में, वैक्सीन को लेकर लोगों के ख़ासकर वरिष्ठ नागरिकों के मन में पनप रही हिचक, एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है, वैक्सीन को लेकर तमिलनाडु की असहजता तो अब इतिहास बन चुकी है. जुलाई 2021 में, पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट द्वारा वैक्सीन लिए जाने की स्वीकार्यता को लेकर करवाए गए सर्वेक्षण में, यह पाया गया की 60+ से ऊपर की आबादी के लगभग 27.6 प्रतिशत लोगों में वैक्सीन लिए जाने को लेकर काफी हिचक व्याप्त है. लैंगिक आधार पर, पुरुषों में यह सबसे अधिक था. ऐसी ही वैक्सीन लेने को लेकर झिझक, और ग़लत ख़बरों से दुविधापूर्ण स्थिति से जूझनेवाला दूसरा अन्य राज्य है नागालैंड, जहां देश में अब तक टीके की पहली डोज़ का सबसे न्यूनतम विस्तार (3 दिसम्बर 2021 तक मात्र 56 प्रतिशत) रिकार्ड किया गया है. उच्च गैर साक्षर जिलों, और युवा आबादी की तुलना में, 45+ वर्ष की उम्र के दायरे में, टीके की स्वीकार्यता अपेक्षाकृत काफी दयनीय है. इसलिए, जब सबसे ज़्यादा कमजोर तबका असुरक्षित ही रह जाएगा तो, तीसरी लहर की आशंका कभी ख़त्म नहीं होगी. जिस तरह से वैक्सीन की पहुंच का दायरा या विस्तार काफी हद तक सीमित और धीमा पाया गया, उसे ध्यान में रखते हुए भारत सरकार नें, हर घर दस्तक अभियान और घर के नजदीक  टीकाकारण शिविर लगाने की योजना की शुरुआत की है. हालांकि, कई अन्य संभावित व्यवधानों को ध्यान में रखते हुए, ये कहना अभी मुश्किल होगा कि ये अभियान कितना सफल साबित होता है. 

सारांश

डेल्टा और ओमिक्रोन जैसे संक्रामक वेरिएंट के पता चलने के बाद इन बीमारियों की ओर सबसे ज़्यादा उजागर वृद्ध आबादी की सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद किए जाने की आवश्यकता है. नीतियों में, वरिष्ठ नागरिकों को वरीयता दिए जाने की परंपरा से देश में संभावित मौतों को टाला जा सकता है. इस तरह के बदलाव को सुविधाजनक बनाए जानें का एक तरीका ये भी है कि हम समूह विविधता को स्वीकार करने वाले विभिन्न हस्तक्षेप कार्यक्रमों और डेटा सिस्टम की मज़बूतीकरण द्वारा आयु उत्तरदायी डिज़ाइन को आत्मसात कर सकें. अबतक, विश्व में 75 प्रतिशत से भी ज़्यादा देशों में स्वास्थ्यवर्धक बढ़ते उम्र संबंधी पर्याप्त डेटा या तो कम अथवा नहीं के बराबर है, दूसरी, स्वास्थ इंश्योरेंस स्कीम जैसे इंदिरा गांधी पेंशन योजना आदि के ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां इस योजना से लाभान्वित होने वाले ज़्यादा ज़रूरतमंद लोग उपस्थित है, वहाँ इन योजना के सफल पहुँच को सुनिश्चित करने हेतु उचित एक्शन लिए जाने की आवश्यकता है. कोविड – 19 उन नए संक्रामक बीमारियों में से एक है जो वृद्ध जनों को सबसे ज़्यादा प्रभावित कर सकती है. पर ये निश्चित तौर पर अंत नहीं है. इस महामारी ने, तब जब की मेडिकल रिसोर्सेज की कमी हो गई तब लोकप्रिय रूप से क्रूर उम्रवाद को उजागर कर दिया. वरिष्ठ नागरिकों की ज़रूरतों को तुच्छ और कम करके आँका जाना अब भी जारी है. एक युवा से कम महत्वपूर्ण जीवन के रूप में किये जाने वाले भेदभाव, किसी मानवाधिकार उल्लंघन  से कम नहीं है. अंतर पीढ़ी समर्थन और सामाजिक सुरक्षा के और भी विस्तारण की ज़रूरत है और वैश्विक तौर पर असमान उम्र वृद्धि चलन को आत्मसात किये जाने की ज़रूरत है ताकि वरिष्ठ नागरिकों को समाज में प्रेम एवं स्वीकृति प्राप्त हो सके और युवा नागरिक एक आशावादी उम्र की ओर बढ़ सके. 

ओआरएफ हिन्दी के साथ अब आप FacebookTwitter के माध्यम से भी जुड़ सकते हैं. नए अपडेट के लिए ट्विटर और फेसबुक पर हमें फॉलो करें और हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें. हमारी आधिकारिक मेल आईडी [email protected] के माध्यम से आप संपर्क कर सकते हैं.


The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.