Author : Asoke Mukerji

Published on Feb 08, 2021 Updated 0 Hours ago

भारत, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के ऐसे देशों के साथ सहयोग करने की अच्छी स्थिति में हैं, जो उसकी विचारधारा से मेल खाते हैं. इन देशों के साथ भारत को आपसी सहयोग के मसलों, ख़ास तौर से सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र से जुड़े मुद्दों की पहचान करनी चाहिए.

भारत और शंघाई सहयोग संगठन

पिक्चर कैप्शन-जून 2017 में कज़ाख़िस्तान के अस्ताना में SCO के राष्ट्राध्यक्षों की परिषद में भाग लेते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फोटो: अलेक्सी निकोल्सकी-तास/गेटी

10 नवंबर 2020 को रूस के नेतृत्व में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का पंद्रहवां शिखर सम्मेलन वर्चुअल तरीक़े से आयोजित किया गया. इसके बाद 30 नवंबर को भारत की अध्यक्षता में SCO के शासनाध्यक्षों की बैठक हुई. इन दोनों ही बैठकों में तीन मसलों की अहमियत खुलकर सामने आई. ये मसले हैं…

(1)अपने सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र के दायरे में SCO सदस्यों के बीच सहयोग बढ़ाने में हुई प्रगति, जिसमें आपसी संपर्क बढ़ाने के प्रोजेक्ट और डिजिटल तकनीक शामिल हैं.

(2) भारत के ख़िलाफ़ सीमा पार आतंकवाद से निपटने में SCO की भूमिका का असरदार होना. और,

(3) एशिया में सुरक्षा और स्थिरता क़ायम करने में शंघाई सहयोग संगठन का योगदान.

ये तीनों मुद्दे ऐसे हैं, जो भारत के शंघाई सहयोग संगठन का सदस्य होने के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण हैं.

सामाजिक-आर्थिक सहयोग

2001 में अपने गठन के साथ ही शंघाई सहयोग संगठन अपने सदस्य देशों के बीच सामाजिक-आर्थिक सहयोग बढ़ाने की कोशिश करता रहा है. इस संगठन की भूमिका 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद बनी थी. लेकिन इस पर शुरुआत से ही चीन का सबसे ज़्यादा प्रभाव रहा था. चीन ने वर्ष 2001 से 2012 के दौरान रूस, कज़ाख़िस्तान, किर्गीज़िस्तान और ताजिकिस्तान के साथ सीमा समझौते किए थे. इसी दौरान, चीन को ये लगा कि वो इस क्षेत्र को क़ुदरती संसाधनों के स्थाई स्रोत और अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था के बाज़ार के रूप में विकसित करने के लिए शंघाई सहयोग संगठन के राजनीतिक ढांचे का उपयोग कर सकता है.

आपसी संपर्क बढ़ाने के प्रोजेक्ट और उच्च तकनीक (जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी भी शामिल है) के ज़रिए संपूर्ण डिजिटल अर्थव्यवस्था का विकास. इनके माध्यम से भारत SCO के साथी देशों के साथ टिकाऊ आर्थिक सहयोग को रफ़्तार दे सकता है.

शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन और शासनाध्यक्षों के प्रमुखों की बैठक के दौरान जो घोषणाएं जारी हुईं, उनमें सामाजिक आर्थिक सहयोग बढ़ाने के व्यापक बिंदुओं को शामिल किया गया है. इनमें से दो विषय ऐसे हैं, जो भारत के लिए काफ़ी प्रासंगिक हैं. ये विषय हैं, आपसी संपर्क बढ़ाने के प्रोजेक्ट और उच्च तकनीक (जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी भी शामिल है) के ज़रिए संपूर्ण डिजिटल अर्थव्यवस्था का विकास. इनके माध्यम से भारत SCO के साथी देशों के साथ टिकाऊ आर्थिक सहयोग को रफ़्तार दे सकता है.

शिखर सम्मेलन और शासनाध्यक्षों की बैठक में जारी किए गए घोषणापत्रों में चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत चलाए जा रहे संपर्क बढ़ाने के प्रोजेक्ट का समर्थन किया गया है. हालांकि, भारत ने इन दोनों फ़ैसलों से ख़ुद को अलग कर लिया था. क्योंकि भारत लगातार ये कहता रहा है कि चीन के BRI के तहत बनाया जा रहा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के (CPEC) प्रोजेक्ट उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करते हैं. क्योंकि ये आर्थिक गलियारा भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य से होकर गुज़रता है. दोनों ही बैठकों में रूस द्वारा शंघाई सहयोग संगठन के देशों को यूरेशियन आर्थिक संघ और आसियान (ASEAN) से जोड़ने के प्रस्ताव का भी समर्थन किया गया. इससे चीन के मुख्य तौर पर पूरब और पश्चिम को जोड़ने वाले BRI प्रोजेक्ट को रूस के उत्तर दक्षिण के बीच संपर्क बढ़ाने वाले प्रस्ताव से जोड़ दिया गया है.

संपर्क के दो अलग अलग दिशाओं वाले प्रोजेक्ट को एक दूसरे से जोड़ देने से संपर्क बढ़ाने के इन प्रोजेक्ट में शंघाई सहयोग संगठन देशों की भूमिका बढ़ गई है. इससे भारत को उत्तर दक्षिण के बीच संपर्क बढ़ाने के तीन प्रमुख प्रस्तावों को प्राथमिकता देने और उनमें सक्रिय रूप से भागीदार होने का मौक़ा मिल रहा है. कनेक्टिविटी के ये प्रोजेक्ट हैं-इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC), जिसके माध्यम से यूरोपीय संघ को रूस और ईरान से होते हुए भारत और आसियान से जोड़ने का प्रस्ताव है; दूसरा प्रोजेक्ट है, ईरान के चाबहार बंदरगाह और रेलवे लाइन, जिसके माध्यम से भारत, ईरान के ज़रिए ख़ुद को अफ़ग़ानिस्तान, मध्य एशिया और रूस से जोड़ सकेगा; और तीसरा प्रोजेक्ट है व्लादिवोस्टोक-चेन्नई सी लेन ऑफ कम्युनिकेशन. इसके ज़रिए रूस के सुदूर पूर्व के क्षेत्रों को उन देशों से जोड़ा जा सकेगा, जो भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के साझीदार हैं.

कज़ाख़िस्तान और उज़्बेकिस्तान जैसे सदस्य देशों के साथ अगर भारत SCO में सक्रिय भागीदारी बढ़ाता है, तो इससे भारत को SCO के डिजिटल क्षेत्र में अपनी पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी. 

इस समय रूस और ईरान पर पश्चिमी देशों द्वारा एकतरफ़ा तरीक़े से लगाए गए प्रतिबंध, इन प्रोजेक्ट को सफलतापूर्वक लागू करने की राह में बाधा बन रहे हैं. इससे भारत के हितों को नुक़सान पहुंच रहा है. SCO के शिखर सम्मेलन में इस बात पर भी सहमति बनी कि जो देश, आपस में राजकीय मुद्रा के माध्यम से भुगतान के इच्छुक हैं, वो  मिलकर एक वर्किंग ग्रुप बनाएं, जिससे पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों से पार पाने का एक विकल्प निकाला जा सके.

शंघाई सहयोग संगठन के दायरे में व्यापक सामाजिक आर्थिक सहयोग को बढ़ाने के लिए उभरती डिजिटल तकनीक की अग्रणी भूमिका को भी दोनों ही बैठकों में स्वीकार किया गया. भारत ने 20-21 अगस्त 2020 को SCO के आर्थिक और विश्लेषण केंद्रों के गठबंधन की पहली वर्चुअल बैठक का आयोजन किया था. इस बैठक का मक़सद SCO के अंदर आर्थिक सहयोग पर असर डालने वाले कारकों का विश्लेषण करना था. शासनाध्यक्षों की बैठक में भारत द्वारा प्रस्तावित SCO के इनोवेशन और स्टार्ट अप के स्पेशल वर्किंग ग्रुप को प्राथमिकता के आधार पर लागू करने पर भी सहमति बनी. इसके अलावा, भारत द्वारा SCO के युवा वैज्ञानिकों की पहली वर्चुअल बैठक 24-26 नवंबर के दौरान आयोजित करने की भी तारीफ़ की गई.

शंघाई सहयोग संगठन के देशों के बीच स्थायी विकास के लिए सामाजिक आर्थिक सहयोग बढ़ाने में डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल करने में भारत की दिलचस्पी बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगी कि वो SCO की डिजिटल अर्थव्यवस्था पर अपनी दादागीरी जमाने में जुटे चीन के प्रयासों को लेकर कैसा रुख़ अपनाता है. इसमें चीन द्वारा प्रस्तावित ग्लोबल डेटा सिक्योरिटी का भी प्रस्ताव शामिल है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने शिखर सम्मेलन में भाग लेने के दौरान इसका ज़िक्र किया था. इसके अलावा शासनाध्यक्षों की बैठक के दौरान चीन ने SCO के सदस्य देशों के बीच तकनीक के आदान प्रदान के लिए अपने क़िंगडाओ शहर में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर सेंटर बनाने का भी प्रस्ताव दिया था, जिसका समर्थन भी किया गया था.

अफ़ग़ानिस्तान पाकिस्तान क्षेत्र से आतंकवादी ख़तरे को लेकर शंघाई सहयोग संगठन के ढुलमुल रवैये से मुश्किल तब और बढ़ जाती है जब, इसके दो प्रमुख देश (चीन और रूस) द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अलग ही रुख़ अपनाया जाता है. 

कज़ाख़िस्तान और उज़्बेकिस्तान जैसे सदस्य देशों के साथ अगर भारत SCO में सक्रिय भागीदारी बढ़ाता है, तो इससे भारत को SCO के डिजिटल क्षेत्र में अपनी पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी. कज़ाख़िस्तान ने इसके लिए SCO टेक्नोलॉजी पार्क के पूल का गठन करने का प्रस्ताव किया है; वहीं, उज़्बेकिस्तान ने SCO के सदस्य देशों की सूचना प्रौद्योगिकी एजेंसियों के बीच आपसी संवाद बढ़ाने के लिए एक मंच का गठन करने का प्रस्ताव रखा है. भारत द्वारा डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल करके जिन विशेष क्षेत्रों में सदस्य देशों से सहयोग बढ़ाया जा सकता है, वो-शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और लघु/मध्यम उद्योग (SMEs) के क्षेत्र हैं. ऐसे सहयोग बढ़ाकर भारत लचीले समाजों का निर्माण कर सकता है. इसमें महिलाओं और बच्चों का सशक्तिकरण करना और समाज में डिजिटल विभेद को पाटना, स्थायी विकास के एजेंडा 2030 को लागू करने में योगदान देने जैसे विषय शामिल हैं.

शिखर सम्मेलन और शासनाध्यक्षों की बैठक में नेताओं ने कोविड-19 के ख़तरे से निपटने के लिए SCO देशों के बीच सहयोग को मज़बूत बनाने पर भी ज़ोर दिया. क्योंकि इस महामारी के सामाजिक-आर्थिक परिणाम भी सामने आ रहे हैं. भारत और चीन दोनों ने ही SCO में ऐसी संरचना बनाने का प्रस्ताव दिया है, जो पारंपरिक दवाओं पर आधारित है. इनकी मदद से कोविड-19 से निपटने के मेडिकल विकल्पों का दायरा बढ़ेगा. शासनाध्यक्षों की बैठक में इन प्रस्तावों का समर्थन किया गया था.

शिखर सम्मेलन के बाद जारी बयान में कोविड-19 से निपटने के लिए साझा प्रयासों को भी शामिल किया गया था. इसमें SCO देशों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर महामारी से निपटने के लिए किए जा रहे प्रयास शामिल किए गए थे. नेताओं ने इस महामारी से निपटने के लिए ‘अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने और कोविड-19 के वैश्विक राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक दुष्परिणामों को भी दूर करने’ की बातें कही गईं. हालांकि, इन दोनों ही बैठकों के दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रमुख संरचनात्मक कमियों की अनदेखी कर दी गई. जबकि WHO को इस समय तुरंत सुधार की सख़्त ज़रूरत है, तभी वो भविष्य में ऐसी वैश्विक महामारियों का मुक़ाबला कर पाने में सक्षम हो सकेगा. मगर, न तो शिखर सम्मेलन और न ही शासनाध्यक्षों की बैठक में कोविड-19 से निपटने के लिए कल्याणकारी नीयत से आसान और कम क़ीमत पर वैक्सीन उपलब्ध कराने की चर्चा की गई.

आतंकवाद का मुक़ाबला

शंघाई सहयोग संगठन द्वारा आपसी सहयोग से आतंकवाद का मुक़ाबला करने में अब तक सीमित रूप से ही सफलता मिल सकी है. 2004 में ताशकंद में SCO के क्षेत्रीय आतंकवाद-निरोधक स्ट्रक्चर (RATS) की स्थापना से शंघाई सहयोग संगठन को आतंकवाद से निपटने में कुछ सफलता तो मिली है. 2017 में SCO के पूर्व महासचिव राशिद अलीमोव ने इन उपलब्धियों का बखान ये कहकर किया था कि इससे सदस्य देशों पर आतंकवादी हमले रोकने, आतंकवाद निरोधक साझा अभ्यासों, आतंकवाद निरोधक अभियानों का डेटाबेस तैयार करना और आतंकवादी व उग्रवादी संगठनों से जुड़े 213 लोगों के प्रत्यर्पण में मदद मिली है.

SCO के आतंकवाद निरोधक फ्रेमवर्क पर चीन की आतंकवाद से जुड़ी तीन शैतानी गतिविधियों यानी दहशतगर्दी, अलगाववाद और धार्मिक उग्रवाद की परिकल्पना हावी रही है. अब तक इस संगठन द्वारा ऐसे आतंकवाद निरोधक क़दम उठाते नहीं देखा गया है, जिनका मुख्य रूप से ताल्लुक़ सदस्य देशों पर आतंकवादी हमलों से रहा हो. जबकि, ये ख़तरा मोटे तौर पर अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादियों और दहशतगर्द संगठनों से है.

अफ़ग़ानिस्तान पाकिस्तान क्षेत्र से आतंकवादी ख़तरे को लेकर शंघाई सहयोग संगठन के ढुलमुल रवैये से मुश्किल तब और बढ़ जाती है जब, इसके दो प्रमुख देश (चीन और रूस) द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अलग ही रुख़ अपनाया जाता है. 17 जून 2011 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा ने एक सुर से प्रस्ताव 1988 पारित करके सुरक्षा परिषद की आतंकी संगठनों वाली सूची से तालिबान को हटाकर उस पर से प्रतिबंध हटाने का फ़ैसला किया था. इसका मक़सद, अमेरिका के सेना हटा लेने के बाद अफ़ग़ानिस्तान की घरेलू राजनीति में तालिबान के लिए जगह बनाना था. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों के बीच बनी इस सामरिक सहमति का साया आज भी शंघाई सहयोग संगठन की संपूर्ण आतंकवाद निरोधक नीति पर पड़ रहा है. जबकि इस क्षेत्र में आतंकवादी लगातार हिंसा और तबाही मचा रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत द्वारा लाया गया कोई भी प्रस्ताव, जिससे पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगाया जाए और जिसमें FATF के नियमों को भी लागू किया जाए, चीन के लिए एक इम्तिहान होगा कि वो SCO को अपनी जियोपॉलिटिकल प्राथमिकताओं में कितनी अहमियत देता है.

SCO को आतंकवाद से निपटने में ‘संयुक्त राष्ट्र द्वारा केंद्रीय और आपसी समन्वय बढ़ाने वाली भूमिका निभाने की बात भी शिखर सम्मेलन में कही गई. इसके अलावा, ‘संयुक्त राष्ट्र के दायरे में रहकर SCO के मंच पर विदेश नीति संबंधी सहयोग बढ़ाने’ का प्रस्ताव भी रखा गया. भारत, एक जनवरी 2021 से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का चुना हुआ अस्थायी सदस्य बन गया है. भारत की घोषित प्राथमिकताओं में से एक ये भी है कि आतंकवाद का मुक़ाबला करने में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की भूमिका को और असरदार बनाया जाए. इसमें ग़ैर संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं जैसे कि FATF (फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स) के ज़रिए सहयोग बढ़ाना शामिल है. सुरक्षा परिषद में भारत के दो वर्ष के कार्यकाल के दौरान, SCO के तीन सदस्य देश (रूस, चीन और भारत) एक ही वक़्त में सुरक्षा परिषद के साथ-साथ FATF के भी सदस्य रहेंगे. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत द्वारा लाया गया कोई भी प्रस्ताव, जिससे पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगाया जाए और जिसमें FATF के नियमों को भी लागू किया जाए, चीन के लिए एक इम्तिहान होगा कि वो SCO को अपनी जियोपॉलिटिकल प्राथमिकताओं में कितनी अहमियत देता है.

एशिया की स्थिरता

मार्च-अप्रैल 1947 में एशियन रिलेशंस कांफ्रेंस  की मेज़बानी के बाद से ही भारत, एशियाई देशों के बीच एकजुटता को बढ़ावा देने के लिए एक सकारात्मक, समावेशी और भागीदारी वाला माहौल बनाने में जुटा रहा है. इसके ज़रिए भारत अपनी राष्ट्रीय सामाजिक-आर्थिक विकास संबंधी प्राथमिकताओं के लिए भी मदद जुटाता है. 1999 में भारत, पंद्रह देशों के उस समूह में शामिल हुआ था, जिसने मिलकर कॉंफ्रेंस ऑन इंटरएक्शन ऐंड कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेज़र्स इन एशिया (CICA) की स्थापना की थी. कज़ाख़िस्तान की पहल पर बनाई गई इस व्यवस्था के माध्यम से एशिया में शांति, सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था. CICA ने भारत, रूस और कज़ाख़िस्तान के विशेषज्ञों को अपने सचिवालय में शामिल किया है. इसकी दो आधिकारिक भाषाएं अंग्रेज़ी और रूसी हैं. इस संगठन में भारत के सक्रिय सामरिक भागीदारों में बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान, श्रीलंका, ईरान, दक्षिण कोरिया, संयुक्त अरब अमीरात और वियतनाम जैसे सदस्य देश हैं.

इस पृष्ठभूमि और भारत द्वारा बहुपक्षीयवाद में सुधार की मांग के ज़रिए बहुपक्षीय निर्णय व्यवस्था में बराबर की भागीदारी पर ज़ोर देना तब और प्रासंगिक हो जाता है, जब हम ये देखते हैं कि SCO के शिखर सम्मेलन में बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था के प्रस्ताव पर सहमति जताई गई. सम्मेलन में कहा गया कि इससे SCO के सदस्य देशों को ‘मानवता की साझा नियति के समुदाय’ का निर्माण करने में मदद मिलेगी. SCO शिखर सम्मेलन में ‘अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के आधार पर,  एक दूसरे के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न करने की नीति और शांतिपूर्ण तरीक़ों से विवाद हल करने की कोशिश करके यूरेशिया में समान और अविभाजित सुरक्षा को मज़बूत करने’ पर भी ज़ोर दिया गया. महत्वपूर्ण बात ये है कि शिखर सम्मेलन में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि ‘SCO और CICA के सदस्य देशों के बीच’ आपसी संवाद और विश्वास बहाली के उपायों के माध्यम से रिश्तों का दायरा और बढ़ाया जाए.

आज SCO अमेरिका, चीन और रूस के बीच मौजूदा ध्रुवीकरण के संकट का सामना कर रहा है. ऐसे में शंघाई सहयोग संगठन और CICA (जिसमें SCO के 8 देशों समेत कुल 27 सदस्य हैं) के बीच समन्वय बढ़ाने से एशिया में स्थिरता और सुरक्षा को मज़बूत करने का फ्रेमवर्क तैयार करने में मदद मिलेगी. 

आज SCO अमेरिका, चीन और रूस के बीच मौजूदा ध्रुवीकरण के संकट का सामना कर रहा है. ऐसे में शंघाई सहयोग संगठन और CICA (जिसमें SCO के 8 देशों समेत कुल 27 सदस्य हैं) के बीच समन्वय बढ़ाने से एशिया में स्थिरता और सुरक्षा को मज़बूत करने का फ्रेमवर्क तैयार करने में मदद मिलेगी. इस लक्ष्य को प्राप्त करने में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है. भारत को चाहिए कि वो समान विचारधारा वाले देशों के बीच ख़ास तौर से सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में आपसी सहयोग के विषयों की पहचान करे, जिससे इस लक्ष्य को हासिल करने की मज़बूत बुनियादें रखी जा सकें.

यूरेशिया में आपसी लाभ के सहयोग की संरचना बनाने में शंघाई सहयोग संगठन (और भारत) की कोशिशों का आकलन और समर्थन इस आधार पर होगा कि वो इस क्षेत्र के लोगों के उन साझा मूल्यों और पुराने संपर्कों का कैसे इस्तेमाल करते हैं, जिनका ज़िक्र SCO चार्टर के सिद्धांतों में किया गया है. इस संदर्भ में 30 नवंबर 2020 को नई दिल्ली में साझा बौद्ध विरासत को समर्पित SCO डिजिटल प्रदर्शनी को एक मिसाल के तौर पर देखा जा सकता है. ये प्रदर्शनी इस बात का उदाहरण है कि भारत इस क्षेत्र की एकता और स्थिरता को बनाए रखने में किस तरह की भूमिका निभा सकता है.

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