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भारत के परमाणु प्रतिष्ठान ने हमेशा एक मोटे पर्दे के पीछे काम करना पसंद किया है. वैसे तो उसके सहयोगियों का नेटवर्क सबको मालूम है लेकिन प्रतिष्ठान की आंतरिक कार्यप्रणाली अक्सर कम पारदर्शी होती है. पारदर्शिता में कमी के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करने को कारण बताया जाता है. लेकिन इस अपारदर्शिता में बहुत ज़्यादा खामी है. सप्लाई चेन, वेंडर की प्रक्रियाओं और सर्टिफिकेशन (प्रमाणन) में पारदर्शिता की कमी का नतीजा नकली सामानों में बढ़ोतरी के रूप में निकल सकता है जो इन केंद्रों के काम-काज में रुकावट पैदा कर सकती है. इन सामानों को अक्सर काउंटरफिट या फ्रॉडुलेंट सब्सीट्यूशन आइटम (CFSI) कहा जाता है और ये परमाणु प्रणालियों, संरचनाओं, घटकों और उपकरणों की सुरक्षा के लिए काफी ख़तरनाक हैं. भले ही उनकी मौजूदगी पुराने सर्टिफिकेशन सिस्टम की लापरवाही या दुर्भावनापूर्ण घुसपैठ के कारण हो लेकिन नतीजे विनाशकारी हो सकते हैं.
अभी तक भारत में ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है जहां परमाणु सप्लाई चेन में CFSI को ज़िम्मेदार ठहराया गया हो. लेकिन कुछ ऐसे मामले में जिनसे भारत ने सबक सीखा है. 2020 में भारत ने अपने सबसे पुराने परमाणु ऊर्जा प्लांट तारापुर एटॉमिक पावर स्टेशन (TAPS) के बॉयलिंग वॉटर रिएक्टर (BWR) में विस्फोट देखा था. इस विस्फोट के लिए BWR में दरार को ज़िम्मेदार ठहराया गया जिसे 1969 में स्थापित किया गया था. रिएक्टर की उम्र के साथ-साथ उसके रख-रखाव में कमी ने इस हादसे में योगदान दिया. नई सामग्री, जो इटली से हासिल की जानी है, अभी तक नहीं मिली हैं जिसकी वजह से TAPS का काम-काज फिलहाल रुका हुआ है. इस घटना ने न केवल बेहतर रख-रखाव की ज़रूरत बल्कि स्वदेशी निर्भरता बढ़ाने और परमाणु सप्लाई चेन में सामग्री के लंबे समय तक टिकने को सुनिश्चित करने को भी उजागर किया.
सप्लाई चेन, वेंडर की प्रक्रियाओं और सर्टिफिकेशन (प्रमाणन) में पारदर्शिता की कमी का नतीजा नकली सामानों में बढ़ोतरी के रूप में निकल सकता है जो इन केंद्रों के काम-काज में रुकावट पैदा कर सकती है.
दुनिया के दूसरे देशों में भी ऐसे मामले सामने आए हैं जहां निगरानी में ज़्यादा सख्ती और CSFI की रोकथाम की आवश्यकता पर प्रकाश डाले गए हैं. इनमें से कई मामलों का उल्लेख क्रिस्टोफर हॉब्स और अन्य की तरफ से CFSI पर अपनी रिपोर्ट में किया गया है. 2006 और 2007 के बीच अमेरिका की सरकार ने तीन मौकों पर अपनी परमाणु सप्लाई चेन में नकली स्विच ब्रेकर को वापस लिया. वैसे तो इससे कुछ हुआ नहीं लेकिन कई नकली सामानों का उत्पादन हो रहा है जिससे CSFI का समाधान करने के लिए नीतियों को बेहतर बनाने की ज़रूरत उजागर होती है.
भारतीय रेगुलेशन और सुधार की गुंजाइश
परमाणु सप्लाई चेन की निगरानी और रेगुलेशन को लेकर भारत का दृष्टिकोण अच्छी तरह से तैयार है. भारत में एक केंद्रीय संस्था है परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB). परमाणु ऊर्जा प्लांट में सेफ्टी कोड लागू करके AERB उत्पादन से लेकर स्थापना तक गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित करता है. AERB दूसरे सरकारी निकायों जैसे कि ब्यूरो ऑफ इंडस्ट्री स्टैंडर्ड (BIS) के साथ भी चर्चा करता है ताकि गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके. एक और महत्वपूर्ण सरकारी संस्था न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) है जो CFSI की रोकथाम की निगरानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और केंद्रों की निगरानी का उसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वो नियमों, दिशा निर्देशों और मानकों के तहत सुरक्षा मानकों का पालन करें ताकि परमाणु सामग्री, प्रणाली और घटक गुणवत्ता की सर्वोच्च आवश्यकताओं को पूरा करें.
इन सरकारी संगठनों के प्रभाव के बावजूद परमाणु सप्लाई चेन की व्यवस्था पर नज़र रखने वाली नीतियों में अभी भी कुछ खामियां और चुनौतियां हैं. ऐसी ही एक चुनौती है अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर निर्भरता. वैसे तो भारत महत्वपूर्ण सामानों के उत्पादन का स्वदेशीकरण करने में दिलचस्पी रखता है लेकिन वैश्विक सप्लाई चेन पर निर्भरता को रातों-रात ख़त्म नहीं किया जा सकता है. विदेशों से हासिल की जाने वाली सामग्रियों और कल-पुर्जों के मामले में घटिया उत्पादन और जालसाजी से तैयार करने का ख़तरा हो सकता है. आयातित पुर्जों की प्रामाणिकता को सुनिश्चित करना मुश्किल है, विशेष रूप से तब जब वो कई वेंडर और मध्यस्थों से होकर गुज़रते हैं. ये दूसरी महत्वपूर्ण खामी यानी प्रामाणिकता की कमी और नियमित ऑडिट को उजागर करता है. वैसे तो ऊपर बताए गए सरकारी संस्थान विश्वसनीय बोली लगाने वालों को ही ठेके की पेशकश करते हैं लेकिन सप्लाई करने वालों के ऑडिट, तीसरे पक्ष के ऑडिट और नियमित प्रमाणीकरण की प्रक्रियाओं में कमी से हासिल की गई सामग्रियों की विश्वसनीयता और उनके लंबे समय तक टिकने का भरोसा कम हो जाता है. इसके अलावा भारत ने अभी तक अपने परमाणु फॉरेंसिक एवं जालसाजी का पता लगाने की तकनीकों और साइबर सुरक्षा के उपायों को नहीं बढ़ाया है. इसकी वजह से सप्लाई चेन की असुरक्षा और बढ़ जाती है.
एक चुनौती है अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर निर्भरता. वैसे तो भारत महत्वपूर्ण सामानों के उत्पादन का स्वदेशीकरण करने में दिलचस्पी रखता है लेकिन वैश्विक सप्लाई चेन पर निर्भरता को रातों-रात ख़त्म नहीं किया जा सकता है.
आगे का रास्ता: अधिक परमाणु सुरक्षा गाइडलाइन की आवश्यकता
भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) के माध्यम से जवाबदेह अधिग्रहण के लिए अपने प्रोटोकॉल पर प्रकाश डालता है. इसे नियमित रूप से अपडेट किया जाता है ताकि बदलती रक्षा आवश्यकताओं, तकनीकी प्रगति और सामरिक प्राथमिकताओं को दर्शाया जा सके. हालांकि DAP सीधे तौर पर परमाणु केंद्रों से संबंधित नहीं है. गुणवत्ता आश्वासन और CFSI मुख्य रूप से NPCIL के अधिकार क्षेत्र में आते हैं जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है. इस तरह NPCIL सुधार की ज़रूरत के लिए प्रमुख संस्था है. NPCIL को DAP के समान CFSI के लिए स्पष्ट ढंग से निम्नलिखित सिफारिशों को शामिल करना चाहिए:
वेंडर सर्टिफिकेशन: पहली चुनौती का समाधान वेंडर सर्टिफिकेशन को ज़रूरी बनाकर करना चाहिए. इस तरह का सर्टिफिकेशन परमाणु केंद्रों के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष वेंडर के लिए आवश्यक होना चाहिए. उन्हें सामान्य ऑडिट के माध्यम से नियमित रूप से अपडेट किया जाना चाहिए ताकि जर्जर सामग्रियों के कारण 2020 की TAPS जैसी घटनाओं से परहेज किया जा सके. DAP का प्राथमिक लक्ष्य स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देना, आयात पर निर्भरता कम करना और ये सुनिश्चित करना है कि रक्षा ख़रीद किफायती दर पर और तुरंत हो. लेकिन इस तरह का बदलाव कम समय में करना मुश्किल है. NPCIL उन आयातित सामग्रियों के प्रमाणन को शामिल कर सकता है जिन्हें नियमित रूप से ऑडिट और फिर से सर्टिफिकेशन की आवश्यकता होती है.
पता लगाना और डेटा बेस तैयार करना: गैर-विनाशकारी परीक्षण (NDT) की पद्धतियों जैसे एक्स-रे निरीक्षण, अल्ट्रासोनिक टेस्टिंग और आधुनिक रासायनिक विश्लेषण का इस्तेमाल करने से छेड़छाड़ किए गए पुर्जों को महत्वपूर्ण प्रणालियों में जोड़ने से पहले पहचानने में मदद मिल सकती है. अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने पहले ही इसकी सिफारिश की है. ये तालमेल करने वाले संगठनों को किसी घटना की रिपोर्ट करने के लिए आवश्यक न्यूनतम ख़तरे का स्तर स्थापित करने में भी सहायता कर सकती है.
साइबर सुरक्षा: अंत में, साइबर सुरक्षा न केवल सप्लाई चेन मैनेजमेंट के लिए अनिवार्य है बल्कि परमाणु केंद्रों की सुरक्षा के लिए भी. कुडनकुलम की घटना के बाद भारत ने अलग-अलग आपूर्तिकर्ताओं के प्रमाणन और सप्लाई चेन को स्थानीय बनाने के लिए उपाय किए हैं, विशेष रूप से राष्ट्रीय महत्वपूर्ण सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र (NCIIPC) और AERB के तहत गाइडलाइन के ज़रिए. हालांकि NPCIL की नीतियों के अंतर्गत इस तरह की गाइडलाइन तैयार करने के लिए उन्हें स्वतंत्र बनाना भी महत्वपूर्ण है. इस तरह एक तीसरे पक्ष के द्वारा प्रमाणित सुरक्षा संगठन को शामिल किया जा सकता है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि वेंडर का डेटा, स्टोरेज सूचना और मटेरियल डेटाबेस को सुरक्षित रखा जा सके.
सूचना पारदर्शिता: वैसे तो भारत राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में वैश्विक तालमेल से दूर रहता है लेकिन परमाणु सप्लाई चेन में इस तरह का सहयोग महत्वपूर्ण है. भारत को एक न्यूनतम ख़तरे और जोखिम का स्तर स्थापित करना चाहिए जिसके लिए परमाणु केंद्रों में CSFI के आने की स्थिति में IAEA और सहयोगी देशों के साथ बातचीत की ज़रूरत होगी. राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकरण अधिनियम (NDAA) के तहत अमेरिका के साथ तालमेल करके भारत पहले ही इस दिशा में संकेत दे चुका है.
नकली सामान का पता लगाने को आसान बनाने के लिए भारत CFSI को लेकर अपने दृष्टिकोण का विस्तार करके और DAP के समान दिशा निर्देश, जिनमें सर्टिफिकेशन पर लागू करने योग्य गाइडलाइन, रिपोर्टिंग की पद्धति एवं सहयोग शामिल हैं, अपनाकर लाभ हासिल करेगा.
सार्वजनिक-निजी चर्चाएं: पहले से पता नकली पुर्जों या दुर्भावनापूर्ण तत्वों के बारे में जानकारी साझा करने के लिए परमाणु प्रतिष्ठान को न केवल नियामक एजेंसियों बल्कि प्राइवेट क्षेत्र के आपूर्तिकर्ताओं और उद्योग के हितधारकों के साथ भी नज़दीकी तौर पर काम करना चाहिए. इसके अलावा DAP के द्वारा स्वदेशी उत्पादन पर ध्यान से भारतीय सरकार, रक्षा ठेकेदारों और उद्योग संस्थानों, जिसे सरकार ने इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (iDEX) जैसे कार्यक्रमों के ज़रिए खोला है, के बीच सहयोग को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है.
वैश्विक रक्षा उद्योग नकली उत्पादों के ख़तरों से अछूता नहीं है और भारत की रक्षा ख़रीद प्रणाली को इस कमज़ोरी का समाधान करने के लिए ख़ुद को बदलना चाहिए. DAP जहां उचित और पारदर्शी ख़रीद की पद्धति को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है, वहीं इसमें उन विशेष प्रावधानों की कमी है जो नकली सामानों को परमाणु सप्लाई चेन में प्रवेश होने से रोक सकते हैं. नकली सामान का पता लगाने को आसान बनाने के लिए भारत CFSI को लेकर अपने दृष्टिकोण का विस्तार करके और DAP के समान दिशा निर्देश, जिनमें सर्टिफिकेशन पर लागू करने योग्य गाइडलाइन, रिपोर्टिंग की पद्धति एवं सहयोग शामिल हैं, अपनाकर लाभ हासिल करेगा.
श्राविष्ठा अजय कुमार ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्योरिटी, स्ट्रेटजी एंड टेक्नोलॉजी में एसोसिएट फेलो हैं.
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