Author : Manoj Joshi

Published on Feb 27, 2020 Updated 0 Hours ago

चीन की सरकार ने ऐसी परिस्थितियां बनने से रोकने के लिए कई सिलसिलेवार क़दम उठाने की घोषणा की है. और चीन की सरकार ने उन कंपनियों का दायरा भी बढ़ा दिया है, जो अपने यहां रोज़गार स्थिर रखने के लिए सब्सिडी ले सकती हैं.

कोविड-19 वायरस के निशाने पर आयी दुनिया के बड़े देशों की अर्थव्यवस्था

कोविड-19 या कोरोना वायरस 17 फ़रवरी तक 1775 लोगों की जान ले चुका है, और 71 हज़ार से ज़्यादा लोगों को संक्रमित कर चुका है. इनमें से 70 हज़ार 548 लोग केवल चीन में संक्रमण के शिकार हुए थे. और 454 लोग जापान के योकोहोमा शहर के पास समुद्र में खड़े क्रूज़ शिप डायमंड प्रिंसेज में वायरस से संक्रमित हो चुके हैं. इनके अतिरिक्त वायरस के संक्रमण के शिकार लोग पूरी दुनिया में फैले हुए हैं. जिनमें से अधिकतर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के नागरिक हैं. अच्छी ख़बर ये है कि आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, चीन के हूबे प्रांत के बाहर वायरस का संक्रमण तैयार पिछले 13 दिनों से लगातार घट रहा है.

अकेले चीन के हूबे प्रांत में संक्रमण रोकने के लिए और सख़्त पाबंदियां लगा दी गई हैं. नए नियमों के अनुसार हर तरह का व्यापार हूबे में बंद होगा. और हूबे के पांच करोड़ अस्सी लाख से ज़्यादा नागरिक अपने रिहायशी बस्तियों, गांवों और शहरों से बाहर नहीं निकल सकेंगे. इसके अतिरिक्त, जो अन्य कामकाजी लोग अपने गांवों या क़स्बों से लौट रहे हैं, उन्हें 14 दिनों तक अलग-थलग रखने का निर्देश दिया गया है.

चीन के अधिकारियों के सामने दोहरी चुनौती है. एक तरफ़ तो, उन्हें अपनी अर्थव्यवस्था की रफ़्तार बनाए रखनी है. वहीं, दूसरी ओर उन्हें इस बीमारी का और विस्तार रोकने के लिए सख़्त क़दम उठाने की आवश्यकता है.

इस बात की भविष्यवाणी की जा रही है कि वायरस कोविड-19 की वजह से आर्थिक क्षति बहुत सीमित होगी. पर सच्चाई ये है कि इस वायरस ने पहले ही चीन की अर्थव्यवस्था को तबाह करना आरंभ कर दिया है. और ये तब है, जब हमारे पास इस बात का कोई सटीक अनुमान नहीं है कि वायरस का ये क़हर कब ख़त्म होने जा रहा है.

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी की पत्रिका क़्युशी में लिखे एक लेख में, चीन के वित्त मंत्री लियु कुन ने माना है कि चीन को कोविड-19 वायरस के अटैक की वजह से राजस्व में कमी और ख़र्चों में वृद्धि का दोहरा बोझ उठाना होगा. हालांकि, चीन के वित्त मंत्री ने ये संकेत भी दिया कि चीन अपनी अर्थव्यवस्था को दोबारा तेज़ करने के लिए केवल आर्थिक स्टिमुलस पर निर्भर नहीं रहेगा. बल्कि,आर्थिक वृद्धि तेज़ करने के लिए नीतियों और पूंजी का असरदार, सटीक और लक्ष्यपूर्ण ढंग से प्रयोग करेगा.

विश्व अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 वायरस के कुप्रभाव का आकलन करने के लिए इसकी तुलना सार्स (SARS) वायरस हमले से की जा सकती है. क्योंकि वो वायरस ज़्यादा घातक था. हालांकि उसने कोविड-19 के मुक़ाबले काफ़ी कम यानी 800 से भी कम लोगों की जान ली थी. ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि, सार्स वायरस की वजह से दुनिया की अर्थव्यवस्था को क़रीब 50 अरब अमेरिकी डॉलर की क्षति हुई थी. जब सार्स वायरस का हमला हुआ था, तब के मुक़ाबले आज चीन की की अर्थव्यवस्था चार गुना बड़ी हो चुकी है. और इसीलिए, कोरोना वायरस का दुनिया की अर्थव्यवस्था पर ज़्यादा गहरा असर होगा. तो, सार्स के मुक़ाबले अगर हम मोटा अनुमान लगाएं, तो इस बार विश्व अर्थव्यवस्था को चार गुना ज़्यादा क्षति उठानी पड़ेगी. लेकिन, मशहूर पत्रिका, ‘द इकोनॉमिस्ट’ के अनुसार, कोविड-19 से विश्व अर्थव्यवस्था को होने वाली क्षति के आकलन के लिए सार्स से हुए नुक़सान को पैमाना बनाना ग़लत होगा. क्योंकि आज विश्व की कुल जीडीपी में चीन की अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी काफ़ी बढ़ गई है. और चीन की अर्थव्यवस्था दुनिया की सप्लाई चेन से अटूट रूप से जुड़ गई  है. इसमें इतनी पेचीदगियां हैं और आज का दौर तुरंत सामान की उपलब्धता का है. ऐसे में उत्पादन में ज़रा भी देरी क्षम्य नहीं है.

सार्स वायरस अटैक के बाद से चीन की अर्थव्यवस्था में कई संरचनात्मक परिवर्तन आए हैं. इस कारण से पहले जहां चीन की अर्थव्यवस्था उत्पादन और निर्यात पर आधारित थी, वो अब सेवाओं और खपत पर आधारित है. इसका मतलब ये है कि वायरस को फैलने से रोकने के लिए एक बड़ी आबादी को अलग-थलग रखने के जो क़दम देश के अलग-अलग क्षेत्रों में उठाए गए हैं, उनका अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव होगा. क्योंकि ग्राहक बाज़ारों, रेस्टोरेंट, हवाई यात्रा, परिवहन, मनोरंजन और पर्यटन से दूर रखे जा रहे हैं. हालांकि अलग-थलग रखने के ये उपाय हूबे प्रांत और ख़ास तौर से वुहान शहर में सबसे सख़्त हैं. लेकिन, अन्य सूबों में भी अलग-अलग हिस्सों में तालाबंदी की जा रही है. चीन के 31 में से तीन प्रांतों ने सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा की हुई है. इस वजह से बड़े शहर और आर्थिक केंद्र कई हफ़्तों के लिए बंद रखे जा रहे हैं. इस कारण से दसियों लाख नौकरियां अधर में हैं. ख़ास तौर से होटलों, रेस्टोरें, और ख़ुदरा कारोबार के क्षेत्र में.

पिछले सप्ताह जब चांद के नए साल की छुट्टियों के बाद लोग अपने काम पर लौटे, तो चीन की अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने का असर स्पष्ट रूप से दिख रहा था. एक टूरिज़्म और रिजॉर्ट कंपनी एलवीयू ग्रुप ने अपने कर्मचारियों के काम के घंटों और उनकी सैलरी में कटौती की घोषणा कर दी. कंपनी ने एलान किया कि कार्यकारी और उसके ऊपर के स्तर के कर्मचारियों का वेतन क़रीब तीस प्रतिशत तक कम किया जाएगा. ये कंपनी पूरी दुनिया में अपने 1900 होटलों और हॉस्टल चलाने के लिए हज़ारों कर्मचारियों की मदद लेती है.

चीन की सरकार ने ऐसी परिस्थितियां बनने से रोकने के लिए कई सिलसिलेवार क़दम उठाने की घोषणा की है. और चीन की सरकार ने उन कंपनियों का दायरा भी बढ़ा दिया है, जो अपने यहां रोज़गार स्थिर रखने के लिए सब्सिडी ले सकती हैं. इसलिए जो छोटी कंपनियां अपने यहां 5.5 प्रतिशत से अधिक कर्मचारियों की छंटनी नहीं करेंगी, वो भी सरकार से सब्सिडी पाने की अधिकारी होंगी. जबकि 30 से कम कर्मचारियों वाली अत्यंत छोटी कंपनियों के लिए ये अनुपात 20 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया है. बीजिंग के टशिंघुआ और पेकिंग विश्वविद्यालयों द्वारा कराए गए एक सर्वे में पाया गया कि उन्होंने जिन 995 छोटी और मध्यम दर्जे वाली कंपनियों का सर्वे किया, उन्होंने कहा कि उनके पास जो रिज़र्व धन है, उससे अगर उन्हें कोई आमदनी नहीं होती, तो वो केवल दो महीने ही काम चला सकते हैं. वहीं 30 प्रतिशत कंपनियों का कहना था कि उनका राजस्व 2019 के आंकड़ों के अनुपात में घट कर आधा ही रह जाने के आसार हैं.

घरेलू खपत की ओर प्रतिस्थापित होने के बावजूद भी चीन, विश्व का प्रमुख निर्माता देश है. और यहां तालाबंदी का पूरी दुनिया पर असर हो रहा है.

जैसा कि पत्रिका ‘द इकोनॉमिस्ट’ ने लिखा है कि अमेरिकी कंपनी एप्पल इस क़दर चीन पर निर्भर है कि उसके कम से कम 50 अधिकारी प्रति दिन चीन से कैलिफ़ोर्निया के बीच यात्रा करते हैं. ये सिलसिला कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने तक चल रहा था. चीन को जाने वाली उड़ानों पर रोक लगने की वजह से ये सिलसिला पूरी तरह से ठप हो गया है. सोमवार को एप्पल ने अपनी आमदनी को लेकर बेहद दुर्लभ चेतावनी जारी की थी. इसमें कंपनी ने कहा था कि वो अपनी तिमाही के राजस्व की उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाएगी. ऐसा चीन में वायरस के हमले की वजह से उत्पादन की मांग पर बुरा असर पड़ने के कारण होगा.

हमें ये नहीं मालूम है कि आने वाले महीनों में कोरोना वायरस का असर कौन सा रुख़ लेगा. लेकिन, इसके कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियों की चीन पर अत्यधिक निर्भरता पर फिर से विचार की मांग उठेगी. क्योंकि ये कंपनियां अपने उत्पादों के संग्रहों को त्वरित उपलब्धता के नियमों के अनुसार चला रही हैं.

चीन के हूबे प्रांत और वुहान शहर का अपने आप में महत्वपूर्ण वैश्विक संबंध है. एक तरफ़ तो ये ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपनियों के कल-पुर्ज़ों का महत्वपूर्ण केंद्र है. वहीं दूसरी ओर, दुनिया की कम से कम 25 प्रतिशत ऑप्टिकल फ़ाइबर और यंत्र यहां बनाए जाते हैं.

इसी बीच, चीन में वायरस का संक्रमण फैलने का प्रभाव दक्षिणी-पूर्वी एशिया पर साफ़ रूप से परिलक्षित होने लगा है. पहली बात तो ये कि इस कारण से चीन से आने वाला पर्यटन का कारोबार ठहर गया है. दूसरी बात ये कि चीन के उत्पादन केंद्रों की सप्लाई चेन बंद हो गई है. और इसकी तीसरी वजह ये है कि चीन में यहां के उत्पादों की आर्थिक मांग कम हो गई है. वायरस के हमले का असर उत्तरी पूर्वी एशियाई देशों जैसे दक्षिण कोरिया और जापान पर भी पड़ रहा है. क्योंकि इन देशों ने चीन और दक्षिणी-पूर्वी एशिया में काफ़ी निवेश कर रखा है.

भारत जैसे देश भी अब वैश्विक सप्लाई चेन में इस ख़लल का सामना करने के लिए तैयार हो रहे हैं. क्योंकि, चीन दवाओं में इस्तेमाल होने वाले ख़ास तत्वों, जिन्हें एक्टिव फ़ार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट्स (API) कहते हैं, उनका निर्माण करता है.

जो पैरासीटामॉल, अस्थमा निवारक दवाओं, एंटीबायोटिक, स्टैटिन, हॉरमोन और स्टेराइड बनाने में इस्तेमाल होता है. इसके अलावा इन्हें महत्वपूर्ण विटामिन बनाने में भी प्रयोग किया जाता है.

हालांकि, बहुत सी कंपनियों ने जानकारी दी है कि वो 14 फ़रवरी तक दोबारा उत्पादन शुरू कर देंगी. लेकिन अभी भी सबसे बड़ा मसला कर्मचारियों का है. अमेरिकी चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स (AMCHAM) द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार केवल शंघाई शहर की 109 में मात्र 21.8 प्रतिशत कंपनियों ने कहा कि उनके पास अपनी पूरी उत्पादन क्षमता के अनुसार उत्पाद बनाने के लिए ज़रूरी कर्मचारी हैं.

यहां एक बात स्पष्ट है. जब आप वायरस के संक्रमण के फैलने की प्रक्रिया देखते हैं, तो इनकी जानकारी देने में देर और जिस तरह से चीन की सरकार इस चुनौती से निपट रही है, उससे ये स्पष्ट हो जाता है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने जो व्यवस्था निर्मित की है, जो सामाजिक स्थिरता और देश पर पार्टी के नियंत्रण को बढ़ावा देती है. उस का वायरस के अनगिनत दिनों तक बेरोक-टोक विस्तार में ख़तरनाक रूप से महत्वपूर्ण रोल रहा है. 4 फ़रवरी को एक आलोचनात्मक लेख में टिसिंघुआ यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर चू झैंग्रुन ने वायरस संक्रमण की चुनौती से निपटने में नाकामी के लिए देश की तानाशाही व्यवस्था को उत्तरदायी बताया था. प्रोफ़ेसर चू ने लिखा कि, ‘आज चीन की सरकारी व्यवस्था और इसके सर्वोच्च नेता का एकमेव ध्येय’ हर क़ीमत पर अपना और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का कुलीन दर्जा और सत्ता पर अपना नियंत्रण पूरी निष्ठुरता से बनाए रखना है.’

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी की पत्रिका क़ियुशी के सबसे ताज़ा प्रकाशन में, राष्ट्रपति शी जिनपिंग के एक भाषण को प्रकाशित किया गया है. जो उन्होंने तीन फ़रवरी को पार्टी की पोलित ब्यूरो स्टैंडिंग कमेटी (PBSC) के सामने दिया था. इसमें शी के बयान ये ज़ाहिर करते हैं कि शी जिनपिंग को कोरोना वायरस के बारे में 7 जनवरी या इससे भी पहले से पता था. साफ़ है कि उनके निर्देशों के बाद भी हूबे प्रांत के अधिकारियों ने वायरस से निपटने में लापरवाही का प्रदर्शन किया. ये तो 20 जनवरी को जाकर वुहान के अधिकारियों ने माना था कि ये वायरस इंसानों से इंसानों में फैल सकता है.

अब तक इस बात के कोई संकेत नहीं मिले हैं कि वायरस का संक्रमण अपने शिखर तक पहुंच चुका है. जहां से रोज़ संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या में नियमित रूप से गिरावट आने लगती है. लेकिन, एक बात तय है. कोविड-19 वायरस की वजह से चीन की अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंची है. जिससे उबरने में उसे कुछ वक़्त लगेगा. ये भी तय है कि किसी महामारी के विस्तार को रोकने और उस पर नियंत्रण स्थापित करने की अपनी व्यवस्था को चीन को नए सिरे से निर्मित करने की आवश्यकता है. जहां विश्व की अर्थव्यवस्था और ख़ास तौर से एशिया की इकॉनमी, चीन की मांग पर बहुत अधिक निर्भर है. ऐसे में हम सबके लिए ये आवश्यक है कि हम कोविड-19 वायरस अटैक से अपने-अपने लिए सही सबक़ सीख लें.

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