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अगर पारंपरिक दाता देश ऐतिहासिक रुझान का अनुसरण करते हैं और संकट के बाद की अवधि में अपनी ओडीए धनराशि में कटौती करते हैं, तो निकट भविष्य में दुनिया के सतत विकास लक्ष्य को हासिल करने की क्षमता के लिए गंभीर चुनौती होगी.
कोविड-19 वैश्विक महामारी संकट ने कई विकासशील देशों को गहरी चोट पहुंचाई है और अब उनके संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स– एसडीजी) को हासिल नहीं कर पाने का खतरा है. विश्व बैंक का अनुमान है कि महामारी के नतीजे में 2020 में 4 से 6 करोड़ लोग बेहद गरीबी में धकेले जा सकते हैं, जिससे 2030 तक ग़रीबी को ख़त्म करना मुश्किल हो जाएगा. विकसित देशों द्वारा प्रदान की जाने वाली सहायता कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं की ज़रूरतों और एसडीजी के फ़ाइनेंस का महत्वपूर्ण स्रोत है, ख़ासतौर से उन देशों के लिए, जिनकी अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजारों तक पहुंच नहीं है. हालांकि, ज़्यादातर दाताओं को आर्थिक विकास, प्रोडक्शन आउटपुट, रोज़गार दर, आउटपुट अंतर, राजकोषीय स्थिति और ऋण की राशि सहित समग्र आर्थिक स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है. साक्ष्य बताते हैं कि मौजूदा प्रतिकूल परिस्थितियों में, दाता देशों की सरकारों ने घरेलू समस्याओं के समाधान के लिए विकास सहायता के वास्ते आवंटित धन को पुनःनिर्दिष्ट किया है.
चित्र 1 में संकट के पहले साल की तुलना में दस साल पीछे और पांच साल बाद सहायता राशि की मात्रा को दर्शाया गया है. 2008-09 की मंदी के दौरान जिन देशों की विकास दर धीमी रही, उनकी तुलना उन देशों के औसत से की गई, जिन्होंने पिछले वित्तीय संकटों के दौरान धीमी विकास दर का प्रदर्शन किया था. संकट की सूची में 1974-2000 में विभिन्न देशों द्वारा अनुभव किए गए वित्तीय संकट के 30 मामले और 2008 का हालिया वित्तीय संकट शामिल है.
चित्र 1 यह दर्शाता है कि पहले की मंदी के दौरान, संकट के बाद वाले देशों द्वारा प्रदान की जाने वाली आधिकारिक विकास सहायता (ऑफिसियल डेवलपमेंट असिस्टेंस ODA) संकट के बाद के पहले वर्ष में औसतन आठ फ़ीसद और संकट के बाद के दूसरे वर्ष में संकट के पहले की अवधि की तुलना में दस फ़ीसद तक कम हो गई. इसके अलावा, संकट की शुरुआत के तीन साल बाद तक ओडीए आमतौर पर पूर्व स्थिति में नहीं आई. अगर यही तर्क मौजूदा दशा में लागू किया जाता है, तो 2021 में ओडीए घट जाएगी और कम से कम 2024 तक संकट-पूर्व स्तर पर नहीं लौटेगी. ख़ासकर चिंताजनक तथ्य यह है कि पहले के संकटों के दौरान, संकट के बाद के बदलाव में दाता देशों के व्यवहार को देखते हुए उच्च-मध्य आय वाले विकासशील देशों पर असर होने की संभावना कम है. दाताओं ने ज़्यादा ग़रीब देशों की कीमत पर सहायता राशि में कमी को प्राथमिकता दी.
संकट की शुरुआत के तीन साल बाद तक ओडीए आमतौर पर पूर्व स्थिति में नहीं आई. अगर यही तर्क मौजूदा दशा में लागू किया जाता है, तो 2021 में ओडीए घट जाएगी और कम से कम 2024 तक संकट-पूर्व स्तर पर नहीं लौटेगी.
यह देखते हुए कि 1930 की महामंदी के बाद कोविड-19 सबसे बड़ा वैश्विक संकट है, इससे पहले के संकटों के अध्ययन में संभावित रूप से दिखाई गई विकास सहायता राशि पर असर की तुलना में इसका कहीं अधिक गहरा असर होगा. दाता देशों की तरफ़ से इस बात की पुष्टि करने के बावजूद कि वे अपने ओडीए बजट को बनाए रखेंगे, इंटरनेशनल एड ट्रांसपिरेंसी इनिशिएटिव (आईएटीआई) को मुहैया की गई रिपोर्ट में 2020 के पहले पांच महीनों में द्विपक्षीय सहायता प्रतिबद्धताएं 2019 की इसी अवधि की तुलना में लगभग 30 फ़ीसद कम हैं. कुछ सबसे बड़े दाता देशों ने पहले ही कोविड से संबंधित संकट का सामना करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहायता उपायों की घोषणा की है, लेकिन यह कम आय वाले देशों को रिकवरी में मदद करने और संकट-पूर्व के ओडीए स्तर को बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं है. पहली बात, घोषित व्यय में से कुछ दाता देश द्वारा वैक्सीन के विकास मद में किए जाने वाले ख़र्च (उदाहरण के लिए यूरोपियन कमीशन के प्रोग्राम, होराइज़न 2020 का पुनःप्राथमिकता निर्धारण, कनाडाई शोधकर्ताओं और लाइफ़ साइंस कंपनियों के कोरोनोवायरस अनुसंधान के लिए धन आवंटन) असरदार तो हैं, लेकिन इसे ओडीए मानने की भूल नहीं करना चाहिए. दूसरी बात, अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लिए घोषित अधिकांश अंशदान दवाओं और वैक्सीन के विकास पर अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को फ़ाइनेंस करने के लिए दिया जा रहा है (उदाहरण के लिए, जापान द्वारा दवाओं और वैक्सीन के विकास में निवेश और ब्रिटेन द्वारा कोएलिशन फ़ॉर एपेडेमिक प्रीपेर्यडनेस इनोवेशन को अंशदान). तीसरी बात, कुछ परियोजनाएं मौजूदा संसाधनों का लक्ष्य-परिवर्तन करने का परिणाम हैं (उदाहरण के लिए कोविड-19 से संबंधित परियोजनाओं के लिए जर्मन ओडीए बजट का लक्ष्य-परिवर्तन,, और, फ्रांसीसी आपातकालीन प्रतिक्रिया परियोजना “कोविड-19– हेल्थ इन कॉमन”), जो संपूर्ण ओडीए स्तर में वृद्धि की दिशा में नहीं बढ़ता है, संसाधनों को आपातकालीन प्रतिक्रिया पर केंद्रित करता है और अन्य क्षेत्रों जैसे बुनियादी हेल्थ केयर और शिक्षा के लिए कम पैसा बचता है.
कुछ सबसे बड़े दाता देशों ने पहले ही कोविड से संबंधित संकट का सामना करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहायता उपायों की घोषणा की है, लेकिन यह कम आय वाले देशों को रिकवरी में मदद करने और संकट-पूर्व के ओडीए स्तर को बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं है.
पारंपरिक दाताओं द्वारा कोविड-19 संकट पर धीमी और अपर्याप्त प्रतिक्रिया ब्रिक्स जैसी उभरती शक्तियों के लिए अंतरराष्ट्रीय विकास सहायता ढांचे में बड़ी भूमिका निभाने का एक मौका देती है. ब्रिक्स देशों, खासतौर से चीन और रूस ने पहले ही वैश्विक मुद्दों पर नेतृत्व प्रदान करने और समय पर लाभदायक अंतरराष्ट्रीय विकास सहायता प्रदान करने की इच्छाशक्ति दिखाई है. इस तरह न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) ने मार्च में कोविड-19 से मुकाबले के लिए पहले एनडीबी आपातकालीन सहायता प्रोग्राम को मंजूरी दे दी है, और अब तक ब्राज़ील, चीन, भारत और दक्षिण अफ्रीका को 10 अरब अमेरिकी डॉलर का कर्ज़ दे चुका है. चीन और रूस ने अन्य विकासशील देशों की मदद के मक़सद से कुछ द्विपक्षीय उपाय भी किए हैं. रूस ने दुनिया भर के 46 देशों को कोविड-19 टेस्ट, प्रोटेक्टिव और मेडिकल उपकरण, दवाएं, चिकित्सा कर्मियों के लिए धन बांटा है. रूस ने द्विपक्षीय मदद के अलावा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP), रेडक्रॉस और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों को ज़्यादा अंशदान दिया. मई 2020 में चीन ने अन्य विकासशील देशों के वास्ते 2020-2021 के लिए 2 अरब डॉलर सहायता पैकेज की घोषणा की. साथ ही चीनी अस्पतालों की 30 अफ़्रीकी देशों के साथ एक सहयोग व्यवस्था की स्थापना की, एक कर्ज़ राहत कार्यक्रम बनाया, और चीन द्वारा तैयार किसी भी वैक्सीन को दुनिया की भलाई के लिए इस्तेमाल किए जाने का वादा किया. ज़ाहिर है कि ये उपाय पारंपरिक दाता देशों द्वारा किए जाने वाले मानवीय सहायता कार्यों जैसे हैं, लेकिन ब्रिक्स को नेतृत्व हाथ में लेने के लिए अन्य देशों से बड़ा अंतर दिखाना होगा, जिसमें संसाधनों का पैमाना बढ़ाना, विकास सहायता की प्रभावशीलता बढ़ाना और इसकी पारदर्शिता शामिल है.
रूस ने दुनिया भर के 46 देशों को कोविड-19 टेस्ट, प्रोटेक्टिव और मेडिकल उपकरण, दवाएं, चिकित्सा कर्मियों के लिए धन बांटा है. रूस ने द्विपक्षीय मदद के अलावा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP), रेडक्रॉस और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों को ज़्यादा अंशदान दिया.
इस तरह, अगर पारंपरिक दाता देश ऐतिहासिक रुझान का अनुसरण करते हैं और संकट के बाद की अवधि में अपनी ओडीए धनराशि में कटौती करते हैं, तो निकट भविष्य में दुनिया के सतत विकास लक्ष्य को हासिल करने की क्षमता के लिए गंभीर चुनौती होगी. ऐसी स्थिति में ब्रिक्स राष्ट्रों को, जो अक्सर खुद को विकासशील देशों के प्रतिनिधि के रूप में पेश करते हैं, वैश्विक सरकार में अपनी भूमिका बढ़ाने का मौका मिलेगा, हालांकि, यह विकास सहायता क्षेत्र में एक महत्वाकांक्षी एजेंडा आगे बढ़ाने और संकट के बाद सहायता में लाभदायक और प्रभावी उदाहरण पेश करने की उनकी क्षमता पर निर्भर करेगा.
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Aleksandra Morozkina PhD lives in Moscow Russia. She is a head of the Structural Reforms Division at the Economic Expert Group and an associate professor ...
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