Author : Anirban Sarma

Published on Dec 29, 2023 Updated 12 Hours ago

2024 में DPI के मॉडल को अपनाने के वैश्विक प्रयासों में हम तेज़ी आते देखेंगे और संकेत तो इस बात के हैं कि DPI को लेकर जो उत्साह दिख रहा है उसका असर ब्राज़ील की G20 अध्यक्षता पर भी पड़ेगा.

डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के दुनिया में बढ़ते क़दम: 2024 में तस्वीर कैसी होगी?

ये लेखव्हाट टू एक्सपेक्ट इन 2024सीरीज़ का एक हिस्सा है.


क़रीब एक साल से ज़्यादा पुरानी बात है जब G20 की अध्यक्षता की शुरुआत के वक़्त भारत ने ऐलान किया था कि, ‘तकनीकी परिवर्तन और डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चरको बढ़ावा देना उसके कार्यकाल की प्राथमिकता होगा. ख़ास तौर से भारत ने ज़ोर देकर कहा था कि वो तकनीक को लेकर मानव केंद्रित नज़रिए की वकालत करेगा, और ‘DPI, वित्तीय समावेशन और तकनीक की मदद से होने वाले विकासजैसे आपस में जुड़े क्षेत्रों में जानकारी के आदान-प्रदान को और बढ़ाने का प्रयास करेगा.

2023 में G20 के अध्यक्ष के रूप में भारत, G20 डिजिटल इकॉनमी वर्किंग ग्रुप, आर्थिक परिवर्तन, वित्तीय समावेश और विकास के लिए DPI से जुड़े नए उच्च स्तरीय टास्क फोर्स और G20 के कई संपर्क समूहों के माध्यम से, डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI) को लेकर विकसित और विकासशील देशों के बीच जागरूकता को असाधारण स्तर तक बढ़ाने में कामयाब रहा है. आज DPI का मॉडल दुनिया के लिए भारत की प्रमुख पेशकश बनकर उभरा है. यही नहीं, विकास के अलग अलग स्तर पर खड़े देश इसे अपनाने, अपने हिसाब से ढालने या फिर इसको अपने यहां लागू करने के बारे में विचार कर रहे हैं.

भारत की बदलती तस्वीर

आबादी के व्यापक स्तर वाली बुनियादी तकनीकी व्यवस्था के तौर पर DPI ने व्यक्तियों (डिजिटल पहचान व्यवस्थाओं), पैसे (वास्तविक समय में तुरंत भुगतान व्यवस्थाओं के ज़रिए) और सूचना (सहमति आधारित, निजता की रक्षा के साथ डेटा शेयरिंग की व्यवस्थाओं) के प्रवाह को बढ़ावा दिया है. इंडिया स्टैक के अनूठे, एकीकृत ढांचे ने भारत को दुनिया पहला देश बना दिया है, जिसने सभी तीन बुनियादी DPIs- आधार की अनूठी पहचान, एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) और डेटा एम्पावरमेंट ऐंड प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर (DEPA) को विकसित किया है.

इन सबको आपस में मिला दें, तो इन तीनों परतों ने जनसेवाओं की उपलब्धता में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया है और इनोवेशन को इतने बड़े स्तर पर लोकतांत्रिक बना दिया है, जैसा पहले कभी देखा-सुना नहीं गया. आज जनसेवाओं का लाभ लेने के लिए भारत के 99.9 प्रतिशत वयस्क नागरिक आधार का इस्तेमाल करते हैं; भारत के लोग हर दिन तीन करोड़ से ज़्यादा लेन-देन करने के लिए UPI का प्रयोग करते हैं; और DEPA भारत में क़र्ज़ के लेन-देन की तस्वीर को पूरी तरह से बदल रहा है. अहम बात ये है कि DPIs से निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में ऐसे आविष्कारों को बढ़ावा मिल रहा है, जिससे सरकार और कारोबारियों को DPI पर आधारित नए ऐप की परतें बिछाने का मौक़ा मिल रहा है; और DPIs के खुलेपन के सिद्धांत, स्वास्थ्य, क़र्ज़ और कारोबार के क्षेत्र में खुले नेटवर्क के निर्माण में मदद कर रहे हैं.

DPI की दुनिया में बढ़ती मांग

अपनी कम लागत और विस्तार की अंतर्निहित संभावनाओं की वजह से दुनिया के बहुत से देश डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर की स्थापना की संभावनाएं तलाश रहे हैं. G20 में भारत ने अपनी अध्यक्षता का इस्तेमाल इस बढ़ती दिलचस्पी को मज़बूती देने और उसे ठोस नतीजों में तब्दील करने के लिए, या फिर कम से कम ऐसी कूटनीतिक घोषणाएं करने के लिए किया है, जो औपचारिक तौर पर DPI की शक्ति और संभावनाओं पर मुहर लगाती हैं.

मिसाल के तौर पर मई 2023 में, यूरोपीय संघ और भारत की व्यापार एवं तकनीकी परिषद नेखुली और समावेशी डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं के विकास में DPI की अहमियतको स्वीकार किया था. EU और भारत, अपने अपने यहां की DPI को सुधारने और एक दूसरे से हाथ मिलाकर चलने की संभावनाएं विकसित करने में सहयोग पर सहमत हुए थे, और इनको विकासशील देशों के लिए सुरक्षित एवं निजता की रक्षा करने वाले समाधान को बढ़ावा देने में प्रयोग करने पर रज़ामंदी जताई थी. उसी साल क्वाड लीडर्स स्टेटमेंट ने भीहिंद प्रशांत क्षेत्र में टिकाऊ विकास में मदद के लिए DPI की परिवर्तनकारी शक्ति […]’ की तरफ़ ध्यान आकर्षित किया था; और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सदस्यों ने भी SCO के सदस्य देशों द्वारा इंडिया स्टैक का मूल्यांकन करने और अपनाने के भारत के प्रस्ताव का आम सहमति से समर्थन किया था

DPI पर केंद्रित द्विपक्षीय संवादों के मामले में भी काफ़ी अच्छी प्रगति हुई है. मिसाल के तौर पर, जून में प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका की राजकीय यात्रा के बाद, अमेरिका और भारत के साझा बयान में घोषणा की गई कि दोनों देश ‘DPI को लागू करने के मामले में वैश्विक नेतृत्व देने के लिएमिलकर काम करने का इरादा रखते हैं. इसी तरह जुलाई में भारत और जापान के विदेश मंत्रियों की बैठक में, एक मज़बूत और खुले हिंद प्रशांत के निर्माण के लिए तकनीकी साझेदारी के तहत, DPI को मज़बूती देने के लिए आगे चलकर सहयोग करने पर ध्यान केंद्रित करने की बात कही थी. जुलाई में प्रधानमंत्री मोदी के फ्रांस दौरे के दौरान दोनों देश, UPI को फ्रांस में उपलब्ध कराने के समझौते सहमत हुए थे. इसका मक़सद सीमाओं के आर-पार अबाध लेन देन और अप्रवासियों द्वारा भुगतान और फंड ट्रांसफर की लागत कम करना था. इसकी वजह से फ्रांस उन देशों की फ़ेहरिस्त में शामिल होने वाला नया सदस्य बन गया था, जिनके साथ भारत ने UPI से संबंधित आपसी समझौते किए हैं. इनमें सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, हॉन्ग कॉन्ग, ओमान, क़तर, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), सऊदी अरब, नेपाल और भूटान शामिल हैं. 2023 के शुरुआती महीनों से ही जापान भी भारत की UPI व्यवस्था को अपनाने की संभावनाओं का मूल्यांकन कर रहा है.

अब ये बाद व्यापक तौर पर स्वीकार की जा रही है कि विकासशील देशों के लिए DPI की काफ़ी अहमियत है और इनसे स्थायी विकास के लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करने की रफ़्तार भी बढ़ती है. भारत के मॉड्यूलर ओपन सोर्स आइडेंटिटी प्लेटफॉर्म (MOSIP) की स्थापना 2018 में की गई थी, ताकि बुनियादी डिजिटल पहचान व्यवस्थाएं स्थापित करने में देशों की मदद की जा सके. आज नौ विकासशील देश, MOSIP के ज़रिए साझेदारी कर रहे हैं और भारत की विशेषज्ञता का इस्तेमाल अपनी राष्ट्रीय पहचान के मंच निर्मित करने के लिए कर रहे हैं. इससे वैश्विक जनहित की वस्तु के तौर पर DPI का दर्जा और मज़बूत हुआ है. आख़िर में, G20 अध्यक्षता के दौरान भारत ने आठ विकासशील देशों के साथ सहमति पत्रों (MoUs) पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनके तहत भारत उनको इंडिया स्टैक का ढांचा और DPI को बिना किसी लागत के उपलब्ध कराएगा.

संयुक्त राष्ट्र और अन्य बहुपक्षीय संगठन जैसे कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक ने बिना किसी लाग-लपेट के DPI के तरीक़े का समर्थन किया है. हाल ही में DPI पर हुए एक अंतरराष्ट्रीय सेमिना में IMF ने कहा कि भारत का DPI मॉडल दुनिया भर के देशों को मूल्यवान सबक़ सिखाता है. IMF ने कोविड-19 महामारी के दौरान डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर और भारत के 87 प्रतिशत ग़रीब परिवारों की सहायता में DPI के योगदान की भी सराहना की थी. इसी तरह, विश्व बैंक की एक रिपोर्ट इस तथ्य को रेखांकित करती है कि DPI ने पिछले छह वर्षों में भारत को 80 प्रतिशत वित्तीय समावेशन हासिल करने में मदद की है. ये ऐसी उपलब्धि है, जिसे अन्य परिस्थितियों में पूरा करने में 50 साल लग जाने थे.

2024 में हम क्या उम्मीद करें?

2024 में हम DPI के मॉडल का लाभ उठाने के वैश्विक प्रयासों में और तेज़ी आते देखेंगे. भारत की अध्यक्षता में मिली रफ़्तार को अंतरराष्ट्रीय समूहों से लेकर तमाम देशों द्वारा निजी स्तर पर बनाए रखने की उत्सुकता की वजह से ये उम्मीद है कि कई देश अपने अपने यहां DPI का निर्माण जारी रखेंगे. पूरी संभावना है कि 2023 में किए गए समझौतों को आगे बढ़ाते हुए भारत, यूरोपीय संघ और अमेरिका, अन्य देशों में क्षमता के निर्माण के लिए DPI से जुड़े सहयोग को और मज़बूती देते रहेंगे. निश्चित रूप से इस तरह का सहयोगात्मक कार्य, भारत और अमेरिका की वैश्विक डिजिटल विकास साझेदारी बढ़ाने में सहयोग का बहु-प्रतीक्षित तत्व होगा.

आज जब बहुत से देश अपने यहां DPI की योजनाओं का क्रियान्वयन कर रहे हैं, तो भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान अपनाए गए सिस्टम्स ऑफ DPI के लिए उच्च स्तरीय G20 फ्रेमवर्क के एक अपरिहार्य औज़ार के रूप में उभरने की संभावना है. इस फ्रेमवर्क में DPI को आकार देने और लागू करने के बुनियादी उसूल तय किए गए हैं. भारत इसके साथ साथ जानकारी के एक और मंच- एक वर्चुअल ग्लोबल DPI रिपॉज़िटरी- को भी स्थापित करेगा, ताकि DPI पर केंद्रित औज़ारों, संसाधनों, व्यवहारों और अनुभवों को एक जगह पर इकट्ठा किया जा सके. जैसे जैसे दुनिया 2030 के दशक की ओर बढ़ रही है, तो, समावेशी विकास, जनसेवाओं की अबाध उपलब्धता और डिजिटल अर्थव्यवस्था का रंग-रूप बदलने में DPI की साबित हो चुकी उपयोगिता इसको और विस्तार देने की वकालत की धुरी बनेगी.

ऐसे संकेत हैं कि DPI को लेकर जो उत्साह दिख रहा है, उसका असर ब्राज़ील की G20 अध्यक्षता पर भी पड़ेगा. ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुला ने एलान किया है कि उनके देश का कार्यकालटिकाऊ विकास के एजेंडे के लिए एक अनूठा अवसरपेश करने वाला है, औरभयंकर ग़रीबी और असमानता के ख़िलाफ़ जंगब्राज़ील की एक बड़ी प्राथमिकता होगी. ये वो चुनौतियां हैं, जिनसे निपटने में DPI ने दुनिया के कई हिस्सों में कामयाबी हासिल की है. इसके अलावा, ब्राज़ील ने ख़ुद भी अपनी विशाल आबादी के स्तर वाले डिजिटल मूलभूत ढांचे के क्षेत्र में काफ़ी कामयाबी हासिल की है; और, ब्राज़ील के भागीदारों ने अपनी डिजिटल व्यवस्थाओं का तालमेल भारत के DPI नज़रिये से करने, या फिर इंडिया स्टैक के कुछ तत्वों को घरेलू स्तर पर लागू करने में दिलचस्पी दिखाई है. मिसाल के तौर पर, ब्राज़ील का Pix, भारत के UPI जैसी व्यवस्था ही है; ब्राज़ील के जिस ओपेन फाइनेंस सिस्टम की बहुत तारीफ़ होती है, वो सहमति पर आधारित डेटा की व्यवस्था है, जो भारत के DEPA सरीखी है; और ये तर्क दिया जाता रहा है कि ब्राज़ील की सरकार द्वारा विवादों के समाधान के लिए लागू किया गया ऑनलाइन सिस्टम Consumidor, DPI के तौर पर अपनी अपार संभावनाओं को हासिल कर सकता है, अगर ये खुले मानक लागू करे या फिर ये मूल्य आधारित सेवाओं के लिए एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (APIs) को लागू करे.

मोटे तौर पर, 2024 में भारत द्वारा ये समझने की कोशिश की जाएगी कि DPI के मामले में, अन्य देश क्या करना चाहेंगे- और कई मामलों तो वो पहले से ही ऐसा कर रहा है और अन्य देशों को इस क्षेत्र में ज़रूरत की मदद करेगा. अपनी जानकारी और MOSIP के माध्यम से और हाल ही में साझीदार देशों के साथ सहमति पत्रों के ज़रिए अपनी सहयोग की भावना की वजह से भारत ऐसा करने के लिए अच्छी स्थिति में भी है.

आख़िर में 2024 को ऐसा साल बनना चाहिए जब विकास के प्रयासों और DPI और AI के बीच संबंध को लेकर दुनिया भर में जागरूकता बढ़ेगी. अगर डेटा की निजता और सुरक्षा के सिद्धांतों का बहुत सख़्ती से पालन हो, तो अधिक डेटा का प्रवाह DPI की अहम धुरी है, और वो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की ट्रेनिंग के मॉडल के लिए वो काफ़ी कारगर साबित हो सकते हैं. मिसाल के तौर पर, DEPA 2.0 के तहत भारत पहले से ही कॉन्फिडेंशियल क्लीन रूम्स नाम के एक समाधान के साथ प्रयोग कर रहा है. येहार्डवेयर से संरक्षित एक सुरक्षित कंप्यूटिंग के माहौल हैं, जहां मॉडल की ट्रेनिंग के लिए संवेदनशील डेटा को एल्गोरिद्म से नियंत्रित तरीक़े से हासिल किया जा सकताहै. जैसे जैसे और देश इन तरीक़ों को समझना और अपने यहां लागू करना शुरू करते हैं, वैसे ही DPIs, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित समाधानों की नई लहर पैदा कर सकते हैं.

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