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अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा हाल ही में जो जलवायु लचीलापन ऋण पैकेज प्रस्तुत किए गए हैं, वे ज़रूरत के हिसाब से बहुत कम हैं
जलवायु परिवर्तन और महामारी के दुष्प्रभावों को लेकर तैयारी और मुस्तैदी कुछ ऐसी चुनौतियां हैं, जो कम आय वाले और मध्यम आय वाले कमज़ोर देशों के लिए गंभीर ख़तरा हैं. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने इन चुनौतियों का समाधान करने में मदद करने के लिए रेजिलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी ट्रस्ट (RST) नाम के एक लेंडिंग टूलकिट यानी ऋण देने की प्रक्रिया या संरचना की स्थापना की है. इसके द्वारा पांच देशों को ऋण की पहली किश्त दी गई है और ये देश हैं कोस्टा रिका, बारबाडोस, जमैका, बांग्लादेश एवं सेशेल्स. ये सभी देश जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से बेहद संवेदनशील हैं. लेकिन ऋण देने की इस प्रक्रिया के अंतर्गत जो नियम और शर्तें सुनिश्चित की गई हैं, उनके विश्लेषण से पता चलता है कि यह बड़े और उभरते मुद्दों का समाधान तलाशने के लिए एक प्रभावशाली उपकरण बनने के लिए पर्याप्त नहीं है.
जलवायु परिवर्तन और महामारी के दुष्प्रभावों को लेकर तैयारी और मुस्तैदी कुछ ऐसी चुनौतियां हैं, जो कम आय वाले और मध्यम आय वाले कमज़ोर देशों के लिए गंभीर ख़तरा हैं.
RST की भूमिका अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के ऋणों की मदद करने के लिए या उनके अनुपूरक के रूप में है, जो वर्तमान में जनरल रिसोर्सेज एकाउंट्स (GRA) स्रोतों के अंतर्गत सभी देशों और पॉवर्टी रिडक्शन एंड ग्रोथ ट्रस्ट (PRGT) के तहत कम आय वाले देशों के लिए सुलभ हैं. इन मौज़ूदा संसाधनों का उपयोग लघु और मध्यम अवधि की चुनौतियों का मुक़ाबला करने वाले सदस्यों द्वारा किया जाता है. RST का लक्ष्य आर्थिक लचीलापन और स्थिरता को बढ़ाने के लिए क़िफायती और लंबी अवधि का वित्तपोषण प्रदान करके ऋण सहायता को व्यापक बनाना है.
RST जलवायु परिवर्तन से पैदा होने वाले बड़े स्तर के वित्तीय ज़ोख़िमों को कम करने और उनका प्रबंधन करने में जलवायु से प्रभावित या जलवायु-संवेदनशील देशों का समर्थन करने की उम्मीद करता है. यह एक रियायती ऋण वित्तपोषण सुविधा है, जिसका भुगतान 20 वर्ष में करना होता है, साथ ही भुगतान के लिए 10.5 वर्ष का ग्रेस पीरियड भी है. तीन महीने के स्पेशल ड्रॉइंगि राइट्स यानी विशेष आहरण अधिकार (SDR) ब्याज दर पर 100 आधार अंकों (तीन स्तरों में) के मार्जिन के साथ RST फंडिंग की बेहद कम क़ीमत तय की जाएगी.
उपयुक्त सदस्य देशों के लिए एक्सेस कैप (access cap), कोटा के 150 प्रतिशत या SDR 1 बिलियन से कम है. एक्सेस निर्धारण का शुरुआती बिंदु 75 प्रतिशत कोटा का एक्सेस मानदंड है, यह वो अधिकतम राशि है, जो IMF द्वारा सदस्य देशों को ऋण के रूप में दी जाती है.
RST ऋणों पर एक नज़र डालने पर इस प्रोग्राम के उपयोगी और वास्तविक पहलुओं की एक झलक देखने को मिलती है. विभिन्न देशों को दिए गए ऋणों पर एक नज़र डालें, तो बारबाडोस के लिए 183 मिलियन अमेरिकी डॉलर से लेकर बांग्लादेश के लिए 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक, अलग-अलग देशों के लिए ऋण का आंकड़ा व्यापक रूप से भिन्न है. साथ ही, विभिन्न देशों को जो ऋण प्रदान किया गया, उनके उपयोग का उद्देश्य भी निर्धारित किया गया था. उदाहरण के लिए, जमैका को जो ऋण दिया गया था, उसका उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में सुधारों को लाना था. जैसे कि इसका मक़सद नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना, ऊर्जा दक्षता बढ़ाना, हरित वित्तीय साधनों को विकसित करना और फाइनेंशियल सेक्टर में जलवायु से जुड़े ज़ोख़िमों का प्रबंधन करना था. इन सुधारों से जलवायु संबंधी निवेश के लिए प्राइवेट और ऑफिशियल वित्तपोषण को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है.
RST का उद्देश्य क्लाइमेट एक्शन की प्राथमिकताओं को वित्तपोषित करने और अतिरिक्त वित्तपोषण को बढ़ावा देने के साथ ही अर्थव्यवस्था को जलवायु के अनुकूल बनाने के लिए वित्तीय सेक्टर का विस्तार करके अन्य उपलब्ध ऋणों को पूरक बनाना है.
जहां तक बांग्लादेश की बात है, तो यहां के लिए RST ने अन्य IMF ऋणों का सहायक बनने का काम किया, जिनका उद्देश्य व्यापक स्तर पर आर्थिक स्थिरता का समर्थन करना और मज़बूत, समावेशी एवं पर्यावरण के लिहाज़ से टिकाऊ विकास की आधारशिला रखना है. RST का उद्देश्य क्लाइमेट एक्शन की प्राथमिकताओं को वित्तपोषित करने और अतिरिक्त वित्तपोषण को बढ़ावा देने के साथ ही अर्थव्यवस्था को जलवायु के अनुकूल बनाने के लिए वित्तीय सेक्टर का विस्तार करके अन्य उपलब्ध ऋणों को पूरक बनाना है.
आईएमएफ के अपने अनुमान के मुताबिक़, बांग्लादेश के वार्षिक 12 से 16 अरब अमेरिकी डॉलर के जलवायु-संबंधी निवेश की तुलना में एक बार दिया गया 1.4 अरब अमेरिकी डॉलर का ऋण बहुत ही कम है. इसके अतिरिक्त, बांग्लादेश अपनी खुद की आर्थिक नीतियों को बनाने में सक्षम नहीं है क्योंकि RST ऋण की कड़ी शर्तें पहले के ऋण पैकेजों से बहुत अलग नहीं हैं. उदाहरण के लिए, इसकी शर्तों के मुताबिक़ देश को सरकारी राजस्व बढ़ाने, ईंधन की क़ीमत बाज़ार के हिसाब से निर्धारित करने, घरेलू बिजली सेक्टर को उदार बनाने और सरकारी ख़र्च को सीमित करने की ज़रूरत होती है. ज़ाहिर है कि ये सभी ऐसे आर्थिक उपाय हैं, जिनका जलवायु कार्रवाई से ज़्यादा कुछ लेना-देना नहीं है.
इस ऋण सुविधा के प्रभाव की कुछ सीमाएं भी हैं, कमियां भी हैं. इसकी पहली कमी यह है कि छोटे और कमज़ोर देशों में RST ज़्यादा प्रभावशाली सिद्ध नहीं हो पाएगा, क्योंकि लोन का कोटा उनके SDR कोटे से जुड़ा हुआ है और यह GDP के आकार पर निर्भर है. ये छोटे ऋण छोटी अर्थव्यवस्थाओं वाले छोटे देशों की वित्तपोषण ज़रूरतों को संबोधित करने के लिए तो बहुत कुछ नहीं कर सकते हैं, लेकिन जलवायु से जुड़े वित्तपोषण के लिए ये काफ़ी मददगार साबित हो सकते हैं.
दूसरी कमी है, इन ऋणों की कड़ी शर्तें और सख्त़ पात्रता मानदंड, जो इनकी पहुंच को सीमित करने का काम करते हैं. ऋण की यह सुविधा इस बात पर निर्भर करती है कि क्या देशों के पास इसे लौटाने की क्षमता है. ज़ाहिर इस शर्त की वजह से कमज़ोर देशों के लिए इन ऋणों के लिए क्वॉलिफाइ करना मुश्किल हो सकता है. यहां तक कि अगर कोई देश इस ऋण को प्राप्त करने की योग्यता हासिल कर भी लेता है, तो फिर ऐसे देशों को अधिक ऋण प्रदान करना, जो कि पहले से ही अत्यधिक ऋण के बोझ तले दबे हुए हैं, हालात को और बदतर बना सकता है. बहुत अधिक ऋण जलवायु परिवर्तन की वजह से पैदा हुए हालातों को काबू पाने के लिए और अनुकूलन निवेश के लिए राजकोषीय स्थान को कम कर सकता है.
तीसरी कमी यह है कि इन ऋणों के लिए जो ब्याज दर लगाई जाती है, वह IMF द्वारा मध्य-आय वाले देशों (MICs) पर लगाई जाने वाली ब्याज दर से बहुत अलग नहीं हैं. यही वजह है कि छोटे देशों द्वारा इसे रियायत के तौर पर नहीं देखा जाता है। इसके साथ ही उन देशों पर 50 बेसिस प्वाइंट्स तक का अतिरिक्त सेवा शुल्क भी लगता है.
इस ऋण की चौथी कमी यह है कि देश भले ही इस सुविधा का लाभ उठाते हैं, लेकिन यह उनकी ज़रूरत की तुलना में बहुत कम है. विकासशील देशों के लिए वार्षिक जलवायु अनुकूलन लागत वर्ष 2030 तक 140-300 अरब अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2050 तक 280-500 अरब अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है. ज़ाहिर है कि इस ऋण सुविधा के तहत IMF के प्रबंध निदेशक द्वारा 50 अरब अमेरिकी डॉलर सुझाए गए हैं। स्पष्ट है कि भविष्य की ज़रूरत के तुलना में ऋण का यह आंकड़ा कहीं नहीं ठहरता है.
पांचवी कमी यह है कि ये पूरा तंत्र विकासशील देशों द्वारा ग्रीन ट्रांज़ीशन के लिए सामना की जा रही न्यायोचित एवं समावेशी होने की आवश्यकता जैसी गंभीर चुनौती का समाधान नहीं करता है. ज़ाहिर है कि ज़बरदस्ती ग्रीन ट्रांज़ीशन किया जाना किसी भी लिहाज़ से संक्रमण के सिद्धांत के मुताबिक़ नहीं है और ऐसा करना सुविधाजनक होने के स्थान पर बेहद हानिकारक सिद्ध होगा.
उल्लेखनीय है कि वर्तमान में RST का आकार और भूमिका अनिश्चित है और यह अपने SDRs को आयोजित करने के लिए देशों की दिलचस्पी पर निर्भर करेगा. यही वजह है कि RST के लिए यह साबित करना बेहद अहम है कि यह IMF के वर्तमान ऋण संसाधनों को अतिरिक्त लाभ प्रदान करता है, इन्हें हटाने का काम नहीं करता है.
RST को सही मायने में उत्प्रेरक अर्थात बढ़ावा देने वाला और वास्तविकता में रियायती बनाने के लिए, इस फंड का आकार और कोटा न केवल हर साल बढ़ाया जाना चाहिए, बल्कि इसे पॉवर्टी रिडक्शन एंड ग्रोथ ट्रस्ट (PRGT) की तरह शून्य-ब्याज वाला ऋण भी बनाना चाहिए.
इसके अतिरिक्त, जलवायु वित्तपोषण का समर्थन करने के लिए RST को वर्ल्ड बैंक और दूसरे अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए. देखा जाए, तो ऐतिहासिक रूप से विश्व बैंक उनमें से जलवायु वित्तपोषण का प्रमुख स्रोत रहा है. इसलिए, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को एकजुट होकर प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए इन संस्थानों के बीच एकीकृत और साझा रणनीति का होना बेहद अहम है.
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लबन्या प्रकाश जेना कॉमनवेल्थ सेक्रेट्रिएट में रीजनल क्लाइमेट फाइनेंस एडवाइज़र इंडो-पैसिफिक रीजन हैं.
मीरा सिवा एक इम्पैक्ट इन्वेस्टर हैं और वर्तमान में किफ़ायती आवास पर केंद्रित एक वैश्विक इक्विटी फंड का प्रबंधन करती है.
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Labanya Prakash Jena is working as a sustainable finance specialist at the Institute for Energy Economics and Financial Analysis (IEEFA) and is an advisor at the ...
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