Author : Oommen C. Kurian

Published on Apr 03, 2021 Updated 0 Hours ago

हो सकता है कि कुछ लोग टीका लेने के बाद भी संक्रमित हो जाएं, लेकिन मरने का ख़तरा नहीं रहेगा. एक ख़ुराक के बाद प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत नहीं होती, उसमें समय लगता है. इस मामले में हमें कोई लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए.

अगर हमें कोविड-19 से जीतना है, तो टीका लेने पर ज़ोर देना होगा.

देश में टीकाकरण अभियान जनवरी में जब शुरू हुआ, तब संक्रमण के मामले और मौत की संख्या बहुत कम थी और उसका ग्राफ तेजी से नीचे की ओर जा रहा था. इस कारण टीकाकरण को लेकर लोगों में गंभीरता नहीं थी. जबकि बीते एक सप्ताह में संक्रमितों और मौत की संख्या तेजी से बढ़ी है़ सरकार ने एज कैटेगरी को बढ़ा दिया है. पहले 45 वर्ष से ऊपर के को-मॉर्बिडिटी वाले व्यक्तिों का ही टीकाकरण हो रहा था, लेकिन एक अप्रैल से 45 वर्ष से ऊपर का कोई भी व्यक्ति टीका लगवा सकता है. अभी भी दो कारक ऐसे हैं, जिससे टीकाकरण में कमी आ रही है.

पहला, टीकाकरण के लिए निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य केंद्र बहुत कम आगे आ रहे हैं, जिसे बढ़ाने की ज़रुरत है. दूसरा, टीकाकरण के लिए प्रतिदिन सुबह जितनी हम तैयारी करते हैं, उसका 60 प्रतिशत नतीजा ही हमें मिल पा रहा है.

हमारे टीकाकरण अभियान को काफी दिन हो गये हैं, लेकिन अभी भी बहुत से बुजुर्ग टीका लेने से बच रहे हैं. टीकाकरण के आंकड़े को बढ़ाने के लिए लोगों को केंद्र तक लाने की ज़रुरत है. इन बुजुर्गों के टीका केंद्र तक न पहुंचने का एक कारण वो खबरें हैं, जिनमें टीका लगाने के बाद लोगों के मरने की बात की गयी है. भारत एक बड़ा देश है और साढ़े पांच करोड़ से ज़्यादा लोगों को अभी तक टीका लग चुका है, जबकि एक करोड़ के करीब लोगों को टीके की दोनों ख़ुराक दी जा चुकी है.

टीका लगने के बाद यदि मामूली साइड इफेक्ट होता भी है, तो वह इस बात का संकेत है कि हमारा शरीर टीका लगने के बाद प्रतिक्रिया दे रहा है.

यह बहुत बड़ी संख्या है और इनमें अधिकतर साठ वर्ष से अधिक आयु के लोग शामिल हैं. ज़रुरी नहीं कि टीके की वजह से ही लोगों की मृत्यु हुई हो, जैसा खबरों में प्रचारित किया जा रहा है. मृत्यु का कारण दूसरा भी हो सकता है. यहां मीडिया को जिम्मेदार होने की ज़रुरत है. यूरोपीय यूनियन में टीके के बाद खून का थक्का जमने जैसी खबरें आयी थी, इससे भी लोग टीका लगाने से डर रहे हैं. जबकि ऐसी घटनाओं की संख्या बहुत कम है और अभी यह प्रमाणित नहीं हुआ है कि टीका लेने के कारण ही खून में थक्के जमे हैं.

दोनों ही वैक्सीन- कोवैक्सीन और कोविशील्ड- के मेजर साइड इफेक्ट्स नहीं हैं. संक्रमित होने पर वरिष्ठ नागरिक व बीमार लोगों के मरने का ख़तरा ज़्यादा है. लेकिन टीका लेने से मृत्यु का ख़तरा कम होगा, तो ऐसे लोगों को लाभ ज़्यादा है. जो लो रिस्क वाले हैं, उनके कोविड से मरने का ख़तरा कम है. ऐसे में उनको टीके का लाभ ज़्यादा नहीं मिलता है. हमारे देश में जिनको टीके का ज़्यादा लाभ मिलेगा उन्हें ही इसे लगाया जा रहा है.

मामूली साइड इफ़ेक्ट का संकेत

मामूली साइड इफेक्ट्स के डर से टीका नहीं लेना गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार है. भारत में बेनिफिट-रिस्क रेशियो में लाभ बहुत ज़्यादा और ख़तरा बहुत कम है. सच तो यह है कि टीकाकरण से अभी तक लोग मरे नहीं हैं, टीका लगने के बाद किन्हीं और कारणों से उनकी मृत्यु हुई है. सरकार हर मृत्यु की जांच कर रही है. टीका लगने के बाद यदि मामूली साइड इफेक्ट होता भी है, तो वह इस बात का संकेत है कि हमारा शरीर टीका लगने के बाद प्रतिक्रिया दे रहा है.

हर टीकाकरण अभियान में 10 से 15 प्रतिशत तक टीका बर्बाद होता है, यह सामान्य-सी बात है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि टीके के हर वॉयल यानी कंटेनर में केवल एक डोज नहीं होता है

इसे नकारात्मक नहीं मानना चाहिए. भले ही टीकाकरण अभी स्वैच्छिक है, पर लोगों को जोर देकर टीका केंद्र लाने की ज़रुरत है. लोगों को समझाने के लिए फिल्मी सितारे, स्थानीय नेता, धार्मिक नेता आदि को बाहर आना होगा. लोगों को टीके का लाभ बताना बहुत ज़रुरी है, नहीं तो एक बार फिर प्रतिदिन मौत के आंकड़े हजार पहुंच सकते हैं. ऐसा न हो इसके लिए टीका लगाने वालों की संख्या में इजाफा होना बहुत ज़रुरी है.

वैक्सीन को कैसे बर्बाद होने से बचाएं?

हर टीकाकरण अभियान में 10 से 15 प्रतिशत तक टीका बर्बाद होता है, यह सामान्य-सी बात है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि टीके के हर वॉयल यानी कंटेनर में केवल एक डोज नहीं होता है. मान लीजिए कि एक वॉयल में 10 डोज है, तो उसे खोलने के बाद निर्धारित घंटे के भीतर उसे खत्म कर देना होता है, नहीं तो उसका प्रभाव खत्म हो जाता है. जब एक कंटेनर खुलता है तो टीका लेने के लिए वहां 10 लाेगों का रहना ज़रुरी होता है, तभी एक कंटेनर पूरी तरह इस्तेमाल हो पायेगा.

कई बार ऐसा भी होता है कि एक कंटेनर की अंतिम ख़ुराक का इस्तेमाल नहीं होता, क्योंकि इस बात का डर होता है कि वह ख़ुराक पूरी है या नहीं. कभी-कभी शक होता है कि निर्धारित समय से ज़्यादा समय तक टीका खुला तो नहीं रह गया. ऐसे कंटेनर में बचे टीके को फेंककर नये कंटेनर से टीका लगाया जाता है.

हो सकता है कि कुछ लोग टीका लेने के बाद भी संक्रमित हो जाएं, लेकिन मरने का ख़तरा नहीं रहेगा. एक ख़ुराक के बाद प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत नहीं होती, उसमें समय लगता है. इस मामले में हमें कोई लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए. 

कोराना ज़्यादातर स्वस्थ युवाओं में एक सेल्फ लिमिटिंग डिजीज है, जो अपने आप आयेगा और जायेगा. दूसरी लहर में मौत की संख्या पहली लहर से कम है. यदि हम 45 वर्ष से ऊपर के अधिकांश लोगों को टीका लगा देते हैं, तो मृत्यु की संख्या सौ से कम हो सकती है, चाहे संक्रमण की संख्या कितनी भी ज़्यादा क्यों न हो़ हमें बुजुर्गों को पूरी तरह सुरक्षित रखने की ज़रुरत है, जब तक उन्हें टीके की दोनों ख़ुराक न मिले.

हो सकता है कि कुछ लोग टीका लेने के बाद भी संक्रमित हो जाएं, लेकिन मरने का ख़तरा नहीं रहेगा. एक ख़ुराक के बाद प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत नहीं होती, उसमें समय लगता है. इस मामले में हमें कोई लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए. वायरस के न्यू वैरिएंट भी आ रहे हैं, तो इससे बचकर रहने की ज़रुरत है. यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम लोगों को जागरूक करें.

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