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Published on Jul 21, 2025 Updated 0 Hours ago

माली में भारतीय नागरिकों के अपहरण से बढ़ते आतंकी ख़तरे का संकेत मिलता है. यह भारत की पश्चिम अफ्रीका रणनीति और कूटनीतिक रुख़ के लिए एक निर्णायक अवसर साबित हो सकता है.

माली का गहराता संकट: भारत के लिए कूटनीतिक चुनौती

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1 जुलाई, 2025 को पश्चिम अफ्रीकी देश माली में चल रहे संघर्ष के बीच एक चिंताजनक घटना देखी गई. वहां कायेस क्षेत्र में स्थित डायमंड सीमेंट फैक्टरी में काम करने वाले तीन भारतीय नागरिकों का उस वक़्त अपहरण कर लिया गया जब भारी शस्त्रों से लैस हमलावरों ने फैक्टरी पर हिंसक हमला किया था. हालांकि इस हमले की किसी भी आतंकी संगठन ने ज़िम्मेदारी स्वीकार नहीं की है. लेकिन संकेत मिले हैं कि जमात नुसरत अल-इस्लाम वल मुस्लिमीन (JNIM) ने यह हमला किया था. JNIM पश्चिमी माली में मौजूद एक आतंकी संगठन है, जिसके तार अल कायदा से जुड़े हुए हैं. यह संगठन इस तरह के हमले करने के लिए पहचाना जाता है.

इस हमले का प्रभाव अपहरण की त्रासदी तक सीमित नहीं है. यह भारत के लिए एक अहम कूटनीतिक चुनौती है. इसका कारण यह है कि भारत का पश्चिम अफ्रीका में उपस्थिति बढ़ता जा रहा है. उसे इस बढ़ते दख़ल के साथ ही अफ्रीका के एक सबसे ज़्यादा अस्थिर सुरक्षा संकटों का भी सामना करना है.

माली में भारत की बढ़ती हिस्सेदारी

पिछले एक दशक के दौरान फ्रेंकोफोन पश्चिम अफ्रीका में भारत एक सबसे बड़ा निवेशक बनकर उभरा है. वह अब माली का एक महत्वपूर्ण साझेदार है. भारतीय कंपनियां और विकास एजेंसियां वहां विकास की अनेक परियोजनाओं को साकार कर रही हैं. इसमें बमाको से सिकासो को जोड़ने वाली 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर वाली हाई-वोल्टेज कनेक्शन लाइन भी शामिल है. इसके अलावा विभिन्न विकास पहलों के लिए भी भारत ने 303.62 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लाइंस ऑफ क्रेडिट (LoC) भी उपलब्ध करवाई है. इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA) की पहली कॉन्फ्रेंस के दौरान भारत ने इस क्षेत्र में सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता मुहैया करवाने का वादा किया है.

इस हमले का प्रभाव अपहरण की त्रासदी तक सीमित नहीं है. यह भारत के लिए एक अहम कूटनीतिक चुनौती है. इसका कारण यह है कि भारत का पश्चिम अफ्रीका में उपस्थिति बढ़ता जा रहा है. उसे इस बढ़ते दख़ल के साथ ही अफ्रीका के एक सबसे ज़्यादा अस्थिर सुरक्षा संकटों का भी सामना करना है.

तकरीबन 600 भारतीय नागरिक माली में रहकर काम करते हैं. ये लोग मुख्यत: रिटेल, माइनिंग, एनर्जी, सीमेंट और फार्मास्यूटिकल सेक्टर में काम करते हैं. हाल में हुई अपहरण की घटना से एक मानवाधिकार संबंधी संकट पैदा हो गया है और यह इस क्षेत्र में भारत के लंबे समय तक भागीदारी और निवेश की रणनीति पर सवालिया निशान लगाता है.

माली में आतंक की बढ़ती लहर 

माली इस वक़्त एक गहन सुरक्षा संकट का सामना कर रहा है. इस संकट के पीछे मुख्यत: दो जिहादी संगठन हैं. इसमें से एक है जमात नुसरत अल-इस्लाम वल मुस्लिमीन (JNIM) तथा दूसरा है इस्लामिक स्टेट इन साहेल (ISIS-Sahel). इन दोनों ही संगठनों ने अपने-अपने दम पर अपने मजबूत इलाके स्थापित कर लिए हैं. इसी वजह से अब इन इलाकों पर वर्चस्व बनाए रखने के लिए रणनीतिक दांव-पेंच, स्थानीय आबादी के साथ उनके संबंध और व्यापक रूप से क्षेत्र पर वर्चस्व को लेकर लड़ाई भी तेज हो गई है.

JNIM की स्थापना 2017 में अमीर इयाद अग घाली की अगुवाई में की गई थी. इस संगठन के छत्र के नीचे चार जिहादी धड़े एकजुट हुए हैं : इसमें AQIM (अल-क़ायदा इन इस्लामिक मग्रेब/मगरीब), अंसार दीन, कटिबा मसीना और अल-मौराबितून का समावेश है. JNIM मुख़्य रूप से मध्य माली में काम कर रहा है. वह इस क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार करने में जुटा हुआ है. इसके लिए वह कट्टरपंथी इस्लामी विचारधारा के साथ-साथ स्थानीय जातीय समुदायों की सामाजिक-राजनीतिक समस्याओं के मिश्रण का उपयोग कर रहा है. इस संगठन ने ‘देहाती लोकलुभावनवाद’ के रूप में पहचाने जाने वाले दृष्टिकोण को अपनाकर रणनीतिक रूप से अंतरजातीय तनावों का दोहन करते हुए क्षेत्र पर अपनी पकड़ को बेहद मजबूत बना लिया है. 

हाल में हुई अपहरण की घटना से एक मानवाधिकार संबंधी संकट पैदा हो गया है और यह इस क्षेत्र में भारत के लंबे समय तक भागीदारी और निवेश की रणनीति पर सवालिया निशान लगाता है.

दूसरी ओर ISIS-Sahel में ढांचागत बदलाव की श्रृंखला देखी गई है. आरंभ में 2015 से 2019 के बीच यह ISGS (इस्लामिक स्टेट इन द ग्रेटर साहेल) के नाम से काम करता था और बाद में यह इस्लामिक स्टेट वेस्ट अफ्रीका प्रोविंस (ISWAP) में एकीकृत हो गया. 2022 में इसका एक स्वायत्त इकाई में पुनर्गठन किया गया और इसे ‘इस्लामिक स्टेट ऑफ द साहेल प्रोविंस’ का नाम दिया गया. ISIS-Sahel को ज़्यादा क्रूर रवैया अपनाने के लिए पहचाना जाता है. यह मुख्यत: उस लिप्टाको-गौरमा क्षेत्र में सक्रिय है जहां माली, नाइजर और बुर्किना फासो की सीमाएं मिलती हैं.

फिलहाल अपहरण के लिए ज़िम्मेदार संगठन की पुख़्ता तरीके से पहचान नहीं की जा सकी है. ISIS को अपनी आतंकी गतिविधियां संचालित करने के लिए नागरिकों के अपहरण करके उगाही करते हुए वित्तीय पोषण का माध्यम बनाने के लिए जाना जाता है. इस क्षेत्र में सेनेगल की सीमा पर JNIM अधिक मजबूत उपस्थिति रखता है.

इन अपहरणों के लिए कौन ज़िम्मेदार है उसे छोड़ भी दिया जाए तब भी इस अपहरण को हाल के महीनों में माली में बढ़ती जा रही हिंसा की एक व्यापक स्वरूप का हिस्सा ही माना जाएगा. 1 जून 2025 को मध्य माली में एक प्रमुख सैन्य ठिकाने को निशाना बनाया गया था. इस हमले में दर्जनों लोगों की मौत हुई थी. कालांतर में JNIM ने देश के सात विभिन्न शहरों पर किए गए हमलों की ज़िम्मेदारी ली थी. हमलों की यह श्रृंखला इस संगठन की संचालन क्षमता और माली को अस्थिर करने की उसकी संभावना का संकेत देती है.

माली का नाजुक राजनीतिक और सुरक्षा परिदृश्य

माली में चल रहा जिहादी विद्रोह माली में चली आ रहे लंबे राजनीतिक अस्थिरता के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. 2020 से देश में दो सैन्य तख़्तापलट को देखा है. पहला तख़्तापलट अगस्त 2020 में हुआ था, जब सेना के भीतर ही सुरक्षा की चिंताजनक स्थिति को लेकर मतभेद उभरे थे. उस वक़्त भ्रष्टाचार में जड़ जमा चुके राजनीतिक गतिरोध को लेकर भी नाराज़गी थी. मई 2021 में एक वर्ष के भीतर ही माली में दूसरा तख़्तापलट देखा गया. उसके बाद से ही सैन्य नेता कर्नल असिमी गोइता अंतरिम राष्ट्रपति बने हुए हैं और फिलहाल लोकतांत्रिक शासन की ओर लौटने की कोई समयसीमा निर्धारित नहीं की गई है. हाल ही में माली के सैन्य अधिकारियों ने एक नए बिल का अनुमोदन किया है जो गोइता को बगैर कोई चुनाव जीते उनकी इच्छा तक या अनिश्चितकाल तक सत्ता में बने रहने की अनुमति देता है. 

माली में चल रहा जिहादी विद्रोह माली में चली आ रहे लंबे राजनीतिक अस्थिरता के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. 2020 से देश में दो सैन्य तख़्तापलट को देखा है.

दो सैन्य तख़्तापलट के बाद से ही माली के अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा खिलाड़ियों के साथ समन्वय ख़राब होने लगे. माली में मौजूद संयुक्त राष्ट्र (UN) शांति सेना मिशन (MINUSMA) ने 2023 में अपनी वापसी पूर्ण कर ली. यह वापसी क्षेत्रीय गठबंधनों में एक नए संतुलन से मेल खाता है. माली ने बुर्किना फासो और नाइजर के साथ समन्वय साधते हुए अलायंस ऑफ साहेल स्टेट्‌स (AES) की स्थापना की. यह एक संयुक्त सुरक्षा समझौता है, जिसका उद्देश्य अंदरुनी और बाहरी दोनों ही सुरक्षा के समक्ष मौजूद ख़तरों से निपटना है. यह गठबंधन अब सुरक्षा ऑपरेशंस के लिए रूसी निजी सैन्य ऑपरेटर्स, विशेषत: वैग्नर समूह के उत्तराधिकारी द अफ्रीका कोर, पर बहुत अधिक आश्रित है. 

विदेशी शांति सेना की वापसी के साथ ही देश में राजधानी से दूर-दराज के क्षेत्रों में प्रशासनिक हालात में गिरावट के कारण पैदा हुए सिक्योरिटी वैक्यूम अर्थात सुरक्षा शुन्य का फ़ायदा उठाते हुए जिहादी संगठनों ने अपने संचालन के दायरे में विस्तार कर लिया. अब यह ख़तरा मध्य माली से दूर आने वाले कायेस जैसे क्षेत्रों, जहां अपहरण हुआ था, तक फैल गया है. इस ख़तरे ने पड़ोसी देशों जिसमें कोत दिव्वार/आइवरी कोस्ट भी शामिल हैं, को अपनी चपेट में ले लिया है. इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोजिव डिवाजइसेस (IEDs), घात लगाकर किए गए अपहरण और ब्लॉकेड्‌स यानी नाकेबंदी का उपयोग करते हुए इन समूहों ने माली को ट्रांसनेशनल टेररिज्म का तेजी से बढ़ता केंद्र बना दिया है.

माली में भारत की कूटनीतिक परीक्षा

भारतीय नागरिकों का अपहरण भारत की कूटनीति और उसके विदेश नीति दृष्टिकोण के लिए एक अहम क्षण है. भारत ने परंपरागत रूप से नॉन-इंटरवेंशन यानी गैर-हस्तक्षेप की नीति अपनाया है. वह विदेशी संघर्षों में उस वक़्त तक सीधे शामिल नहीं होता जब तक मामला उसके नज़दीकी पड़ोस से जुड़ा हुआ न हो और उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरा पहुंचाने वाला नहीं होता. इस नीति या दृष्टिकोण को त्यागने का कोई कारण भी नहीं है. लेकिन वर्तमान संकट को देखते हुए एक अधिक सक्रिय और रणनीतिक रूप से परखा हुआ कूटनीतिक रवैया अपनाना या प्रतिक्रिया देना ज़रूरी है. भारत खुद को वैश्विक दक्षिण की अग्रणी आवाज के रूप में पेश करता है. वह अफ्रीका की ग्रोथ स्टोरी अर्थात विकास की कहानी में समान साझेदार भी है. ऐसे में इस संकट को लेकर भारत की प्रतिक्रिया पर काफ़ी बारीक निगाह रखी जाएगी.


समीर भट्टाचार्य, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

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