तुर्किये में अहम चुनावों से कुछ दिन पहले वहां के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने दावा किया कि देश के नेशनल इंटेलिजेंस ऑर्गेनाइजेशन (मिल्ली इस्तिहबारत टेस्कीलाति या MIT) ने इस्लामिक स्टेट अतंकी संगठन (जिसे ISIS, ISIL या अरबी में दाएश के रूप में भी जाना जाता है) के चीफ को उत्तरी सीरिया में एक ऑपरेशन के दौरान मौत के घाट उतार दिया है. हालांकि, एर्दोगन के इस दावे पर अभी तक अमेरिका (US) ने अपनी मुहर नहीं लगाई है.
ISIS के प्रमुख अबू हुसैन अल-कुरैशी ने नवंबर 2022 में अपने पूर्ववर्ती अबू हसन अल-हाशिमी अल-कुरैशी की जगह ली थी. फरवरी 2022 में हाशिमी अल-कुरैशी उत्तरी सीरिया में ही अमेरिकी नेतृत्व में हुई कार्रवाई में मारा गया था. राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उत्तरी सीरिया में एक आवासीय परिसर में तड़के की गई कार्रवाई में ISIS प्रमुख हाशिमी अल-कुरैशी के मारे जाने का ऐलान किया था. अक्टूबर 2019 में तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अगुवाई में अमेरिका ने ISIS के संस्थापक प्रमुख और अब तक के सबसे प्रभावशाली नेता अबू बकर अल-बग़दादी को मार गिराया था. उल्लेखनीय है कि एक समय ऐसा भी था, जब बग़दादी के आतंकवादी ग्रुप का सीरिया और इराक़ के बीच एक बहुत बड़े इलाक़े पर कब्ज़ा था, जो देखा जाए तो यूनाइटेड किंगडम के भूभाग से भी बड़ा क्षेत्र था. ISIS के तीनों सरगनाओं ने या तो जीवित पकड़े जाने से पहले खुद को विस्फोटकों का इस्तेमाल करते हुए समाप्त कर लिया, या फिर हमला करने वाले सुरक्षा बलों ने उन्हें मार दिया.
ISIS के प्रमुख अबू हुसैन अल-कुरैशी ने नवंबर 2022 में अपने पूर्ववर्ती अबू हसन अल-हाशिमी अल-कुरैशी की जगह ली थी. फरवरी 2022 में हाशिमी अल-कुरैशी उत्तरी सीरिया में ही अमेरिकी नेतृत्व में हुई कार्रवाई में मारा गया था.
देखा गया है कि अमेरिका के नेतृत्व में सीरिया में ISIS के विरुद्ध व्यापक स्तर पर चलाए गए आतंकवाद विरोधी अभियानों को हाल के दिनों में अभूतपूर्व सफलता मिली है. ISIS समूह के स्व-घोषित कब्ज़े वाले इस्लामिक क्षेत्र, जो कि इसकी भर्ती और कट्टरता का सबसे बड़ा स्रोत था, ने इसके नेतृत्व को इदलिब प्रांत जैसे क्षेत्रों में शरण लेने के लिए प्रेरित किया. ज़ाहिर है कि इस प्रांत पर विभिन्न सरकार विरोधी गुटों और इस्लामिक संगठनों का कब्ज़ा रहता है, जैसे कि अबू मोहम्मद अल-जोलानी के नेतृत्व वाले हयात तहरीर अल-शाम (HTS) जैसे समूह, जिन्होंने पहले खुद को अलकायदा और ISIS दोनों से जोड़ा था. अल-जोलानी, जिसने पश्चिमी प्रेस को साक्षात्कार दिया है और सीरिया के उन हिस्सों में अपना शासन चलाता है. अमेरिका ने अल-जोलानी को आतंकवादी घोषित किया है और उस पर 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर का इनाम भी घोषित किया है. ISIS के तीनों सरगना एक-दूसरे के 50 किलोमीटर के दायरे में संचालित किए गए ऑपरेशन में मारे गए थे. इनके बारे में कहा जाता था कि वे खुद को बाक़ी दुनिया से छिपाने के लिए सीरिया और तुर्की की सीमाओं के बीच सुरक्षित ठिकानों पर रह रहे थे.(नीचे चित्र 1 देखें).
(चित्र 1: वर्ष 2019 और 2023 के बीच उत्तरी सीरिया में ISIS के तीन प्रमुखों को मारने वाले ऑपरेशन्स वाली जगहें)
ISIS के प्रमुख नेताओं को उनकी ही ज़मीन पर घेरने के साथ ही अमेरिका द्वारा केंद्रित और नए सिरे से अपनी कोशिशें की गई थी, जो यह स्पष्ट तौर पर दिखाती हैं कि वह आतंकवाद विरोधी रणनीतियों को आगे किस प्रकार से संचालित करने का इरादा रखता है. इसके लिए वाशिंगटन में बड़े पैमाने पर चोटी के आतंकी सरगनाओं को जान से मारने की रणनीति पर अमल करना शुरू किया. उसकी इस रणनीति का मकसद आतंकी समूह की लीडरशिप का खात्मा करना था, ताकि उनकी विचारधारा के स्रोतों को समाप्त किया जा सके. इसका उद्देश्य ऊपर से नीचे तक के आतंकी सरगनाओं के पूरे तंत्र को तहस-नहस करना था, ताकि ग्रुप के छोटे आतंकियों में भ्रम की स्थिति पैदा हो और जब उन पर संगठन की ज़िम्मेदारी आए तो यही पता नहीं चल पाए कि कौन उन्हें निर्देश देने वाला है और कौन उन्हें मानने वाला है. ऐसा होने पर इराक़ी सेना और कुर्द नेतृत्व वाले सिरियाई डेमोक्रेटिक फोर्स (SDF) जैसे गैर सरकारी समूहों जैसे भागीदारों द्वारा ज़मीनी स्तर पर स्थानीय आतंकवादी विरोधी अभियानों को नियंत्रित किया जा सकता है.
सीरिया का रुख
अमेरिका भी अब अपने आतंकवाद विरोधी अभियानों में सबसे बड़े हथियार के रूप में ड्रोन हमलों पर बहुत अधिक निर्भर नहीं है, यानी की ड्रोन हमलों को लेकर उसकी सोच परिवर्तित हो गई है. अमेरिका द्वारा बग़दादी और हाशिमी अल-कुरैशी को जिन दो ऑपरेशन्स में मार गिराया गया है, उन्हें अमेरिका के स्पेशल ऑपरेशन्स ट्रूप्स द्वारा अंज़ाम दिया गया था, जिसके अंतर्गत पारंपरिक छापामार अभियानों की भांति जवानों को उनके छिपने के ठिकानों पर उतारा गया और फिर ऑपरेशन को पूरा किया गया. इन ऑपरेशन से अलग, महीनों तक कई दूसरे ऑपरेशन भी पूर्वी सीरिया के इलाक़ों में संचालित किए गए, जिनमें ISIS के आतंकियों को ड्रोन का उपयोग करके मारने के बजाए, उन्हें उठाया गया था. ज़ाहिर है कि इस तरीक़े से ज़मीनी स्तर पर अमेरिकी सैनिकों के मारे जाने का बहुत ज़्यादा ख़तरा रहता है, लेकिन ऐसे ऑपरेशन से नागरिकों के हताहत होने की संभावना बेहद कम हो जाती है. ऐसे अभियानों में आम नागरिकों की मौत पूर्व में एक ऐसा मुद्दा रहा है, जिसने पिछले दो दशकों में सीरिया, इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में समान रूप से अमेरिका के आतंकवाद विरोधी अभियानों को बार-बार परेशानी में डाला है और कमज़ोर करने का काम किया है.
सीरिया में सैन्य तौर पर अमेरिका की बहुत ही कम मौज़ूदगी है और वह ज़मीनी सहयोग एवं ख़ुफ़िया जानकारी एकत्र करने के लिए SDF यानी सिरियाई डेमोक्रेटिक फोर्स पर भरोसा करता है. दूसरी तरफ तुर्किये, जो कि कुर्द समर्थक समूहों को अपनी सुरक्षा और अपने भू-राजनीतिक उद्देश्यों के लिए ख़तरनाक मानता है.
भले ही आज एक आतंकी समूह के रूप में आईएसआईएस बुरी तरह से कमज़ोर हो गया है, लेकिन ख़तरे की संभावना निरंतर बनी हुई है. सार्वजनिक रूप से अबू हुसैन अल-कुरैशी के बारे में किसी को भी कोई जानकारी नहीं थी और न ही उसके उत्तराधिकारी के बारे में किसी को कुछ पता है. किसी ख़लीफ़ा के मारे जाने के बाद, जब समूह उत्तराधिकारी के रूप में किसी की घोषणा करने का विकल्प चुनता है, तो समूह की विचारधार को आगे बढ़ाने एवं ग्रुप का कामकाज संभालने के लिए वह ग्रुप में से ही कोई मध्य-स्तर का व्यक्ति हो सकता है. ISIS के ख़लीफ़ा को चुनने के लिए एक लंबी चेकलिस्ट की ज़रूरत होती है, हालांकि, इसमें संदेह है कि संगठन में ऊपर से नीचे के क्रम में जो आतंकी होते हैं वो इस ज़िम्मेदारी को समान रूप से उठाने के क़ाबिल होते हैं. उदाहरण के लिए, बग़दादी ने वर्ष 2014 में इराक़ के मोसुल में अल-नूरी मस्जिद से ख़िलाफ़त का ऐलान करने के बाद के वर्षों में किया था. वर्ष 2014 की बात करें, तो सामरिक और रणनीतिक तौर पर ISIS एक समय जिस प्रकार का ख़तरनाक आतंकी संगठन था, उसकी तुलना में आज कुछ भी नहीं है, लेकिन वैचारिक नज़रिए से यह आज भी एक प्रभावशाली ताक़त बना हुआ है. ISIS के पक्ष में ऑनलाइन प्रचार व्यापक स्तर पर जारी है, इतना ही नहीं कई अन्य आतंकी समूह ऐसे हैं, जो खुद को इससे जोड़ते हैं. जैसे कि अफ्रीका के कुछ हिस्सों में और अफ़ग़ानिस्तान में इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (ISKP) में कई आतंकी संगठन ध्यान आकर्षित करने, युवाओं की भर्ती और रकम जुटाने के लिए अपना दबदबा स्थापित करने हेतु ISIS के नाम का इस्तेमाल करके स्थानीय उग्रवाद और आतंकवादी इकोसिस्टम के रूप में काम करना जारी रखे हुए हैं. आख़िर में, ISIS के विरुद्ध लड़ाई में भू-राजनीतिक दरार भी बनी हुई है, जो इसके शीर्ष नेतृत्व को लक्षित करने से अलग है. सीरिया में सैन्य तौर पर अमेरिका की बहुत ही कम मौज़ूदगी है और वह ज़मीनी सहयोग एवं ख़ुफ़िया जानकारी एकत्र करने के लिए SDF यानी सिरियाई डेमोक्रेटिक फोर्स पर भरोसा करता है. दूसरी तरफ तुर्किये, जो कि कुर्द समर्थक समूहों को अपनी सुरक्षा और अपने भू-राजनीतिक उद्देश्यों के लिए ख़तरनाक मानता है. तुर्किये ने SDF को उत्तरी सीरिया में पीछे हटने का अल्टीमेटम दे दिया है, ऐसा नहीं करने पर उसे सैन्य कार्रवाई का सामना करने की चेतावनी दी है. सीरिया और इराक़ दोनों देशों में मौज़ूद डिटेंशन सेंटर्स यानी बंदी गृहों में 30,000 से अधिक ISIS नेता और लड़ाके हैं, जिनमें से कई विदेशी हैं. सीरिया में, अधिकांश ISIS लड़ाके SDF जैसों द्वारा संचालित अस्थायी जेलों में बंद हैं, जिनके पास सीमित संसाधन हैं. सीरिया-इराक़ सीमा के पास अल-होल जैसे शिविरों में भी हज़ारों महिलाओं और बच्चों को रखा जाता है, जो कि एक समय में ख़िलाफ़त का हिस्सा थे. अन्य देश इन लोगों को वापस लौटने की अनुमति देने में बेहद सुस्त हैं या फिर उन्होंने इसके लिए साफ इनकार कर दिया है. इस वजह से ये लोग ऐसे हैं, जो आज किसी भी देश के नहीं हैं, यानी स्टेटलैस हैं.
निष्कर्ष
ISIS के लड़ाकों ने जनवरी 2022 में अपने साथियों को छुड़ाने के लिए पूर्वोत्तर सीरिया के हसाका में एक जेल पर एक बहुत ही बड़ा हमला किया था. इस हमले में कथित तौर पर सैकड़ों बंदी भाग निकले थे, जबकि SDF के जवानों समेत 500 से ज़्यादा लोग मारे गए थे. हालांकि बाद में SDF ने उस जेल पर अपना नियंत्रण हासिल कर लिया था. SDF ने एक बार फिर इन अस्थाई जेलों में ज़मीनी स्तर पर उपलब्ध कम संसाधनों को लेकर चेतावनी दी है. ज़ाहिर है कि इन जेलों में हज़ारों की संख्या में ISIS समर्थक क़ैदियों को रखा गया है और यदि SDF को इसके लिए समुचित संसाधन मुहैया नहीं कराए गए, तो उसके पास इन क़ैदियों को छोड़ने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं बचेगा. उल्लेखनीय है कि इसने ISIS के बड़े नेताओं को मारने वाले प्रभावी ऑपरेशन के बारे में सामने आने वाली प्रमुख ख़बरों की तुलना में एक बड़े संकट के प्रति सभी का ध्यान खींचा है, साथ ही इसके लिए कुछ समाधानों का प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया है.
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कबीर तनेजा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम में फेलो हैं.
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