संक्रमण को सीमित करने के लिए भले ही शुरुआत में आक्रामक ढंग से टेस्टिंग नहीं हुई लेकिन दिल्ली अब देश के उन राज्यों में शामिल है जहां प्रति 10 लाख आबादी पर सबसे ज़्यादा कोविड-19 टेस्ट हो रहे हैं. पिछले 10 दिनों में से सात दिन ऐसे हैं जब दिल्ली में 3,000 से ज़्यादा नये मामले सामने आए हैं. इसकी बड़ी वजह है ज़्यादा लोगों का टेस्ट करना. हालांकि, ज़्यादा लोगों को टेस्ट करने के बाद भी दिल्ली में अधिक पॉज़िटिविटी रेट होना बरकरार रहा (ग्राफ 1 देखें). वैसे पिछले एक हफ़्ते में पॉज़िटिविटी रेट में काफ़ी कमी आई है. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ कोविड-19 मरीज़ों के लिए आरक्षित आधे से ज़्यादा बिस्तर अभी भी खाली हैं- 13,990 में से 7,413 बिस्तर खाली हैं. लेकिन ICU बिस्तर के मामले में ये फर्क कम है. ICU के 893 में से 293 बेड खाली हैं जबकि वेंटिलेटर के साथ ICU के 747 में से सिर्फ़ 158 बेड ही खाली हैं.
जून की शुरुआत में दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा था कि शुरुआती अनुमानों के मुताबिक़ 15 जुलाई तक 2.25 लाख मामले होंगे और 33,000 बेड की ज़रूरत होगी. उनके मुताबिक़ जुलाई के आख़िर तक दिल्ली में 5.5 लाख केस होंगे और 80,000 बेड की ज़रूरत होगी. इस हालात को देखते हुए दिल्ली ने राज्य सरकार के अस्पतालों को पूरी तरह दिल्ली के लोगों के लिए आरक्षित करने पर भी विचार किया. मरीज़ों की संख्या में तेज़ी से बढ़ोतरी को देखते हुए ये उम्मीद लगाई गई कि बेड ख़ास तौर पर ICU बेड की ज़रूरत आने वाले हफ़्तों में तेज़ी से बढ़ेगी. इसे देखते हुए कोविड-19 संक्रमण पर काबू पाने के लिए स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और MCD साथ आई है. 27 जून को एक इंटरव्यू में गृह मंत्री अमित शाह ने इन पहल के बारे में व्यापक जानकारी दी.
हल्के-फुल्के लक्षण वाले मरीज़ों को सरकारी आइसोलेशन में भेजा जाए ताकि संक्रमण को फैलने से रोका जा सके. इन रणनीतियों को अंजाम देने के लिए नियमित कर्मचारियों के अलावा युवा संगठनों जैसे NCC, NSS और स्काउट/गाइड के 5,000 सदस्यों के विशाल स्वैच्छिक नेटवर्क को को-ऑर्डिनेशन टीम अपने साथ जोड़ रही है.
दिल्ली के हालात पर केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और MCD की एक को-ऑर्डिनेशन टीम की नज़र है और फ़ैसला लिया गया कि 30 जून तक शहर के क़रीब 400 कंटेनमेंट ज़ोन के आसपास के हर घर का सर्वेक्षण होगा और जिस किसी में लक्षण मिलेगा उसका टेस्ट किया जाएगा. दिल्ली के हर घर का इसी तरह का एक और सर्वेक्षण 21 जुलाई तक पूरा होगा. इससे बिना लक्षण वाले मरीज़ों के ज़रिए संक्रमण का फैलाव काबू में आएगा. रणनीति है कि हल्के-फुल्के लक्षण वाले मरीज़ों को सरकारी आइसोलेशन में भेजा जाए ताकि संक्रमण को फैलने से रोका जा सके. इन रणनीतियों को अंजाम देने के लिए नियमित कर्मचारियों के अलावा युवा संगठनों जैसे NCC, NSS और स्काउट/गाइड के 5,000 सदस्यों के विशाल स्वैच्छिक नेटवर्क को को-ऑर्डिनेशन टीम अपने साथ जोड़ रही है.
अमित शाह के मुताबिक़ को-ऑर्डिनेशन टीम की बैठक के बाद दिल्ली सरकार को क़रीब 500 ऑक्सीजन सिलेंडर, 10,000 ऑक्सीमीटर और 440 वेंटिलेटर मुहैया कराए गए और ज़रूरत के मुताबिक़ इसमें और बढ़ोतरी की जाएगी. शहर में एंबुलेंस की क्षमता बढ़ाने के लिए दिल्ली प्रशासन उबर और ओला जैसी कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रही है. पहले शवों के अंतिम संस्कार के लिए सुविधा में कमी दिल्ली में एक बड़ी समस्या थी. लेकिन को-ऑर्डिनेशन टीम इसके तौर-तरीक़ों और अभी तक के सभी शवों के अंतिम संस्कार में कामयाब हुई. 28 जून को MCD ने हाई कोर्ट को जानकारी दी कि कोविड और बिना कोविड वाले शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है और अब शव जमा नहीं हो रहे हैं.
स्वास्थ्य सिस्टम की क्षमता को बढ़ाने के लिए दिल्ली में पिछले कुछ वर्षों के दौरान नौकरी से रिटायर स्वास्थ्यकर्मियों में से कई को फिर से काम पर बुलाया जा रहा है. अर्धसैनिक बलों को भी स्वास्थ्य सेवा के काम में मदद के लिए बुलाया जा रहा है. उदाहरण के तौर पर, दिल्ली में सरकारी और निजी भागीदारी के साथ 10,000 बेड का दुनिया का सबसे बड़ा फील्ड कोविड-19 अस्पताल बनाया जा रहा है जिसका संचालन भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के जवान करेंगे. इसके अलावा, भारतीय रेलवे ने जो 16,000 अतिरिक्त बेड बनाए हैं, उसमें मदद के लिए भारतीय सेना की मेडिकल टीम को तैनात किया जा रहा है.
अभी तक दिल्ली में हल्के-फुल्के लक्षण वाले मरीज़ों को होम आइसोलेशन में रखा जाता था लेकिन अस्पताल के बेड की क्षमता में बढ़ोतरी के बाद उन्हें वहां रखा जाएगा. कोविड-19 से मरीज़ों की मौत को लेकर को-ऑर्डिनेशन टीम के विश्लेषण में ये पाया गया है कि मौत के क़रीब आधे मामले अस्पताल में दाखिले के तीन दिन के भीतर सामने आए हैं. इससे इशारा मिलता है कि जब तक मरीज़ों की हालत काफ़ी बिगड़ नहीं जाती वो होम आइसोलेशन में ही रहते हैं.
अभी तक दिल्ली में हल्के-फुल्के लक्षण वाले मरीज़ों को होम आइसोलेशन में रखा जाता था लेकिन अस्पताल के बेड की क्षमता में बढ़ोतरी के बाद उन्हें वहां रखा जाएगा.
राजधानी में रैपिड टेस्ट की शुरुआत के बाद ये फ़ैसला लिया गया है कि जो लोग छोटे घरों में रहते हैं, जहां असरदार होम आइसोलेशन मुश्किल है, और दूसरी बीमारियों से पीड़ित ज़्यादा जोखिम वाले मरीज़ों को आगे से सरकारी आइसोलेशन सेंटर में रखा जाएगा ताकि समय पर उनकी देखभाल सुनिश्चित की जा सके. इसके अलावा दिल्ली के हर वार्ड में अस्पतालों का सर्वे भी किया गया ताकि रोज़ाना के काम-काज में समस्याओं की पहचान हो सके. साथ ही ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ (AIIMS) के विशेषज्ञों को जोड़कर एक टेली हेल्पलाइन भी बनाई गई है ताकि अस्पतालों से आने वाले सवालों का जवाब दिया जा सके.
14 जून तक दिल्ली में कोविड-19 के मरीज़ों के लिए 9,937 बेड का इंतज़ाम हो चुका है और 30 जून तक 30,000 बेड उपलब्ध होंगे. इसकी वजह बुनियादी ढांचे में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी है. 10,000 बेड के ITBP सेंटर के अलावा रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) टाटा ट्रस्ट के साथ साझेदारी के ज़रिए 1,000 बेड का कोविड अस्पताल बनाएगा जहां वेंटिलेटर के साथ 250 ICU बेड होंगे. इसके अलावा प्राइवेट अस्पतालों के चार्ज को नियंत्रण में लाया गया है. इन बातों को देखते हुए आने वाले हफ़्तों में दिल्ली के भीतर बेड और वेंटिलेटर मिलने में किसी तरह का डर ख़त्म हो जाएगा.
शुरुआत में जिस तरह के ख़राब हालात की आशंका दिल्ली में जताई जा रही थी, वैसा अब नहीं है. दूसरे शहरों के मुक़ाबले दिल्ली में कोरोना से मौत के मामले काफ़ी कम हैं.
शुरुआत में जिस तरह के ख़राब हालात की आशंका दिल्ली में जताई जा रही थी, वैसा अब नहीं है. दूसरे शहरों के मुक़ाबले दिल्ली में कोरोना से मौत के मामले काफ़ी कम हैं. टेस्टिंग में बढ़ोतरी, आक्रामक ढंग से कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और मरीज़ों के आइसोलेशन पर ज़्यादा ध्यान के साथ उम्मीद जताई जा रही है कि दिल्ली आने वाले हफ़्तों में संक्रमण का बेहतर ढंग से मुक़ाबला करेगी. ख़बरों से पता चलता है कि 27 जून को दिल्ली के कुछ हिस्सों में सिरोलॉजिकल सर्वे शुरू हुआ है जिसमें 20,000 लोगों के सैंपल के ज़रिए पता लगाया जाएगा कि कोविड-19 किस हद तक फैला है. कोलकाता में पहले हुए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के एक सिरोलॉजिकल सर्वे से पता चला कि मई तक शहर की 14.39% आबादी में कोविड-19 की एंटीबॉडी विकसित हो चुकी है. इसे देखते हुए दिल्ली में होने वाले सर्वे के नतीजों का उत्सुकता से इंतज़ार हो रहा है और इसी के आधार पर दिल्ली आगे की योजना तैयार करेगी.
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