Author : Kolluru Krishnan

Published on May 18, 2019 Updated 0 Hours ago

भारत में साल 2030 तक 141 मिलियन हेक्टेयर ज़मीन की खेती पर 280 मिलियन टन वेस्ट तैयार हो जाएगा.

क्या भारत बेहतरीन बायो-वेस्ट सप्लाई चेन बना सकता है?

एरिक फ़्रोम ने कहा था, “हम उपभोग करते हैं, हम उत्पादन करते हैं, लेकिन जिस वस्तु के साथ काम कर होते हैं उसके साथ हमारा कोई ठोस रिश्ता नहीं होता; हम वस्तुओं के संसार में जीते हैं, और उनके साथ हमारा संबंध सिर्फ़ इतना होता है कि उनका कैसे उपयोग या उपभोग किया जाए.” इस प्रसिद्ध सामाजिक मनोवैज्ञानिक और मानवतावादी दार्शनिक ने कई दशक पहले ही संसाधनों के बेलगाम इस्तेमाल, पर्यावरण और उसके साथ इकोलॉजी (पारिस्थितिकी) के संतुलन में आने वाली गिरावट के बारे में मुख़र हो कर कहा था. आज यह हमारे रोज़ के जीवन में दिखाई देना शुरू हो गया है.

इसके अलावा, आज जलवायु परिवर्तन, रिन्यूएबल (नवीकरण योग्य) ऊर्जा, सर्कुलर अर्थव्यवस्था, संसाधनों की योग्यता और सस्टेनेबल विकास के लक्ष्य (एसडीजी) न सिर्फ सरकार, व्यापार और नागरिक समाज की बल्कि आम लोगों की शब्दावली में भी शामिल हो चुके हैं. यह उत्साहजनक है, लेकिन, एक ऐसे दौर में जब सोशल मीडिया सभी चर्चाओं पर कब्ज़ा जमाए बैठा है, ऐसे में एक ख़तरा यह है लोगों की चिंता व्हाट्सऐप फॉरवर्ड से नष्ट हो जाए और नीतियां सिर्फ लिप सर्विस बन कर रह जाएं.

आईटी और टेलीकम्यूनिकेशन उद्योग में देखा गया है कि, सेंट्रलाइज्ड एडमिनिस्ट्रेशन सिस्टम (केन्द्रीय प्रशासनिक प्रणाली) कार्बन में कमी, सस्टेनेबल (संवहनीय) और इंक्लूसिव (समावेशी) विकास के लिए उपयोगी नहीं है. विज्ञान को ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन, हवा और पानी की गुणवत्ता, ठोस वेस्ट (अवशेष) के निबटान वगैरह के लिए नियामक नियंत्रण की ओर जाना चाहिए. हालांकि, विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाओं के भीतर केवल मैंडेट (शासनादेश) पर आधारित इन समाधानों के विस्तृत रूप से लागू होने की संभावना ज़रा भी नहीं हैं, क्योंकि कई तरह के अभाव झेल रही जनता के लिए किफ़ायत और उपभोक्ता की सुविधा सबसे बड़ी जरूरतें हैं. इसलिए, व्यापार के क्षेत्र में नवीन प्रयोग उतना ही महत्वपूर्ण है जितना लोकल डायनामिक्स और बड़े पैमाने के लिए उपयुक्त कस्टम इंजीनियरिंग समाधान हैं, ताकि किफ़ायती कीमतों को पाया जा सके. इसके अलावा, एक समग्र, तकनीकी रूप से संशयवादी पहल आवश्यक है जो समुदाय की जरूरतों को सही ढंग से पूरा करे. वर्तमान में, नेशनल डेवलपमेंट कौंसिल (एनडीसी) और सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (एसडीजी) के होने पर भी, साफ़ दिखने लायक प्रगति सीमित क्षेत्रों में ही है, जैसे सौर और पवन, ईवी और स्टोरेज, जो की बड़े उद्योगों द्वारा चलाए जाते हैं. कूड़ा, जल, ग्रीन बिल्डिंग, सस्टेनेबल प्लास्टिक, जो घरों को सीधे प्रभावित करते हैं, उन पर नीति निर्माताओं का उतना ध्यान नहीं है और व्यवसायिक पूँजी की पहुँच भी सीमित है.

भारत में फार्म वेस्ट एक सटीक उदाहरण है. भारत में कुल 141 मिलियन हेक्टेअर जमीन पर फसल उगायी जाती है, जिससे बड़ी मात्रा में कृषि/बागवानी/जानवर पालने द्वारा वेस्ट (अवशिष्ट) निकलते हैं. यह अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक खेती के वेस्ट, वैकल्पिक इस्तेमाल न होने के कारण, बढ़ कर 280 मिलियन टन (सूखा), पशुओं की खाद 370 मिलियन टन (सूखा) और मुर्गी पालन से होने वाली खाद 30 मिलियन टन (सूखा) हो जाएगी. भारत बायोमास फायर्ड बॉयलर का अग्रणी निर्माता है. उन्नत जैव-तकनीकी फार्म वेस्ट को कई तरह के जैव ईंधन में बदल देती है, जिसमें किफ़ायती ढंग से जीवाश्म ईंधन का विकल्प बनने की क्षमता है. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) ने भविष्यवाणी की है कि, 2035 तक ‘आधुनिक’ बायोमास दुनिया की 10% प्राथमिक ऊर्जा की जरूरतों में योगदान दे सकता है. भारत की बायो ईधन पर राष्ट्रीय नीति को 2018 में जारी किया गया और पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने 15 मिलियन टन बायो सीएनजी की क्षमता की भविष्यवाणी की है. सौर और जैव ऊर्जा के हाइब्रिड अनेक सस्टेनेबल लक्ष्य प्राप्त कर सके, क्योंकि उनका नौकरियों, स्वास्थ्य और अनेक सामाजिक-आर्थिक पैरामीटर पर प्रभाव है.

फिर भी, कार्यक्रमों को लागू करने की प्रगति दुख़द रूप से धीमी है. जैव-संसाधन आपूर्ति श्रंखला (बायो रिसोर्स सप्लाई चेन) से संबंधित ख़तरे सबसे बड़ा मामला है. इस बात को अपूर्ण तरीके से सराहा जा रहा है कि दहन (कम्बशन), जैव-रसायन और थर्मो-रसायन तकनीकों में विकास होने पर बायो-वेस्ट ईंधन बहुत ज्यादा बढ़ेगा. इन बायो-वेस्ट का इंसानों की ख़पत से सीधा संबंध है, जैसे-जैसे ज्य़ादा से ज्यादा लोग गरीबी से बाहर आएंगे और मध्य वर्ग में प्रवेश करेंगे इनका तार्किक दृष्टि से बढ़ना लाजिमी है. बिना ट्रीट किया हुआ बायो-वेस्ट पर्यावरण के लिए उतना ही बड़ा ख़तरा है जितना आईसी इंजन से होने वाला उत्सर्जन, इसलिए, इसके प्रबंधन को समान प्राथमिकता देनी चाहिए. बायो-वेस्ट को जैव-ईंधन और कम्पोस्ट/ बायो-चार में प्रोसेस करना स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देता है और मिट्टी का उपजाऊपन बेहतर करता है. इस कारण से ऐसी नीतियों और आर्थिक उपकरणों की ज़रूरत है, जो जैव अवशिष्ट आपूर्ति श्रंखला (बायो-वेस्ट सप्लाई चेन) से जुड़े हुए ख़तरों को कम कर सके. इसके लिए ज़रूरत है कि बायो-वेस्ट को जमा करना और संग्रह को एक ग्रीन बिज़नस के तरह प्रबंधित किया जाए, जिसमें मैंडेट का सहयोग हो और आर्थिक पहल जुड़ा हुआ हो, बिलकुल वैसे ही जैसे ईवी को सहयोग दिया जा रहा है. दूसरा मामला यह है कि बैंकेबल भविष्य के समझौते किए जाएं, जैसे कि मानक 20 साल पीपीए जो सौर ऊर्जा के क्षेत्र में उपलब्ध हैं; अनुमान है कि जब कर्ज देने वाले बोर्ड में होंगे तब इसको देखा जाएगा.

फार्म वेस्ट का उदाहरण जल संरक्षण और उपचार, ग्रीन बिल्डिंग, सस्टेनेबल प्लास्टिक मैनेजमेंट सबके लिए महत्वपूर्ण है, इन सबके लिए मैंडेट है. हमारे लिए सस्टेनेबल ऊर्जा, सर्कुलर इकॉनमी और रिसोर्स एफिसिएंसी (संसाधन प्रवीणता) तभी एक आम बात बनेंगे जब उत्पादक और उपभोक्ता उनको अपने ख़ुद के चुनाव की तरह स्वीकार करेंगे. बिलकुल वैसे है — जैसे ऑटोमोबाइल ने घोड़े के रथ को बदल दिया, पीसी ने मेनफ्रेम को बदल दिया और मोबाइल फ़ोन ने लैंडलाइन फ़ोन को बदल दिया है. इस बदलाव के लिए, यह ज़रूरी है कि एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया हो जिसमें सभी भागीदारों को संवेदनशील बनाया जाए और विस्तृत रूप से क्षमता का निर्माण किया जाए. इसके समानांतर, समुदाय द्वारा ‘ग्रीन प्रैक्टिस’ को बेहतर ढंग से अपनाने वाली नीतियों और आर्थिक उपकरणों और ‘ग्रीन बिज़नस’ के प्रोत्साहन के साथ प्रगति का मेल बैठाया जाए और परिवर्तन को मैंडेट और उचित नियामक फ्रेमवर्क से बढ़ावा दिया जाए.

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