Author : Arpan Tulsyan

Expert Speak Raisina Debates
Published on Sep 26, 2025 Updated 2 Days ago

भारत के पास अपने शिक्षा-संकट से उबरने का अवसर है- एआई इन चुनौतियों को दूर कर सकता है, शिक्षण को व्यक्तिगत, और शैक्षिक समानता को व्यापक बना सकता है.

AI कैसे बदल रहा है भारत की शिक्षा प्रणाली

भारत की शिक्षा व्यवस्था की बड़ी चुनौतियों में एक है- स्कूलों में पढ़ रहे 24.69 करोड़ बच्चों में बड़े पैमाने पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध करना, जो भाषाओं, भौगोलिक सीमाओं और भांति-भांति के संस्थानों से बंधी न हो. ‘परख’ (समग्र विकास के लिए प्रदर्शन, मूल्यांकन, समीक्षा और ज्ञान का विश्लेषण) जैसी मूल्यांकन-व्यवस्था से उन बुनियादी कमियों की जानकारी मिलती है, जो अब तक बनी हुई हैं. इसमें कक्षा 3 के केवल 55 प्रतिशत छात्र 99 तक की गिनती कर पा रहे थे और कक्षा 9 में सिर्फ़ 31 प्रतिशत छात्र संख्याओं, भिन्नों और दशमलवों से जुड़ी अवधारणों को समझ पा रहे थे.

इसीलिए, यह लेख इस बात की पड़ताल करता है कि भारत किस प्रकार कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का लाभ उठाकर शिक्षा व्यवस्था में सुधार ला सकता है, विशेष रूप से गांवों में रहने वाले बच्चों या सरकारी अथवा छोटे-छोटे निजी स्कूलों के छात्रों के पठन कौशल को बेहतर बना सकता है.

कोविड-शिक्षण प्रयोग

कोरोना महामारी अचानक ही डिजिटल शिक्षा का एक देशव्यापी प्रयोग बन गई, जिसने देश के डिजिटल बुनियादी ढांचे की कमज़ोरियों और इसकी छिपी हुई क्षमताओं, दोनों को उजागर किया. जब स्कूल बंद किए गए, तो सरकारों ने दीक्षा, व्हाट्सएप/गूगल क्लासरूम और वीडियो आधारित पाठयक्रम उपलब्ध कराने वाले कई डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म शुरू किए. झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान की राज्य सरकारों के साथ मिलकर तैयार की गई बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की 2021 की रिपोर्ट बताती है कि जब 2020 में नियमित या ऑफ़लाइन स्कूली शिक्षा रोक दी गई, तब आठ हफ़्तों के भीतर लगभग 20 लाख परिवार डिजिटल शिक्षा की ओर मुड़े. कई लोगों ने यू-ट्यूब और वाट्सएप जैसे एप के माध्यम से बेसिक मोबाइल फोन पर बच्चों की पढ़ाई शुरू करवाई, जिससे आर्थिक रूप से कमज़ोर तबकों में भी पठन-पाठन का काम सुलभ हो सका. राजस्थान के गांवों में 96 प्रतिशत शिक्षकों ने महामारी के दौरान दीक्षा प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करना सीखा और अपने पठन-पाठन और मूल्यांकन के कामों में इसकी मदद ली. इसी प्रकार, राज्य में कक्षा 9 से 12 तक के 95 प्रतिशत छात्रों ने इस मंच का उपयोग करते हुए डिजिटल पाठ्य-पुस्तक और इंटरैक्टिव वर्कशीट प्राप्त किए.

कक्षा 3 के केवल 55 प्रतिशत छात्र 99 तक की गिनती कर पा रहे थे और कक्षा 9 में सिर्फ़ 31 प्रतिशत छात्र संख्याओं, भिन्नों और दशमलवों से जुड़ी अवधारणों को समझ पा रहे थे.इसीलिए, यह लेख इस बात की पड़ताल करता है कि भारत किस प्रकार कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का लाभ उठाकर शिक्षा व्यवस्था में सुधार ला सकता है

निस्संदेह, महामारी के दौरान यह प्रयास पूरी तरह सफल नहीं हो सका, लेकिन इसने बता दिया कि यदि इरादे दिखाए जाएं और तालमेल बने, तो बड़े स्तर पर (वंचित समुदायों में भी) शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर बनाने में तकनीक मददगार हो सकती है. इन्हीं कोशिशों ने AI जैसी अत्यधिक उन्नत तकनीक की बुनियाद तैयार की, जिससे सीखने के तरीके को व्यक्तिगत बनाने, समानता को बढ़ावा देने और शासन-व्यवस्था को सूचनाएं उपलब्ध कराने जैसे काम तेज़ी से बढ़ सके. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने में ये ज़रूरी माने जाते हैं.

बड़े पैमाने पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने में एआई के उपयोग के उदाहरण

भारत में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने में AI के उपयोग से जुड़े पांच सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण निम्नलिखित हैं –

  • छात्रों के लिए एआई- शिक्षण की निजी व्यवस्था और उपाय

शिक्षा में AI का एक प्रमुख लाभ यह है कि इसकी मदद से किसी एक छात्र के अनुरूप भी निर्देश तैयार किया जा सकता है. पारंपरिक तरीके जहां एकसमान गति से और पूर्व ज्ञान के आधार पर शिक्षण उपलब्ध कराते हैं, वहीं AI प्रणालियां उसके विपरीत वास्तविक समय में छात्र के स्तर का आकलन कर सकती हैं और उसी के अनुसार सामग्री की कठिनाई, रूप और गति को बदल सकती हैं. उदाहरण के लिए, ‘माइंडक्राफ्ट’ नामक एक प्लेटफ़ॉर्म है, जो ग्रामीण बच्चों के लिए बनाया गया है. यह गांवों के छात्रों के अनुरूप ही शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराता है, जिससे भाषा से जुड़ी मुश्किलों और भौगोलिक कठिनाइयों को दूर करने में मदद मिलती है. इसमें एक एआई-संचालित शिक्षक भी है, जो दृश्य संकेतों का उपयोग करके पढ़ाता है. वह तालमेल बनाते हुए समस्या के समाधान पर ज़ोर देता है और मूल्यांकन के आधार पर करियर का मार्गदर्शन व मेंटरशिप करता है.

इसके अलावा, पठन-पाठन के कामों में AI का इस्तेमाल बहुभाषी और सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक सामग्रियों को शामिल करने में भी किया जा सकता है, ताकि आदिवासी और पहली पीढ़ी के छात्रों को सहायता मिल सके. प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (NLP) प्रणालियां अब अंग्रेजी और अन्य भाषाओं की पाठ्य-पुस्तकों को स्थानीय भाषा में अनुवाद करने में सक्षम हैं. ध्वनि-सहायता वाली सामग्रियां तैयार करने की इसकी क्षमता भी हमारे लिए उपयोगी है, क्योंकि इससे सीखने के क्रम में आने वाली मुश्किलों को दूर करना आसान हो जाता है.

  • शिक्षकों के लिए एआई- योजना, विभेदीकरण और सहायता

UDISE+ (शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली+) के 2024-25 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में ऐसे स्कूलों की संख्या 1 लाख से अधिक है, जहां सिर्फ़ एक शिक्षक हैं. अगर छोटे-छोटे स्कूलों और विद्यालयों से गायब रहने वाले शिक्षकों की गिनती कर लें, तो यह संख्या और बढ़ जाएगी, क्योंकि इन स्कूलों में आमतौर पर एक ही शिक्षक कई कक्षाओं या विषयों को संभालते हैं. इसके अलावा, उनका ज़्यादातर समय गैर-शिक्षण या निर्देशात्मक कामों (जैसे- प्रशासनिक काम, रिकॉर्ड रखने का काम, रजिस्टर तैयार करना और सर्वेक्षण करने जैसे गैर-शैक्षणिक काम) में बीत जाता है.

पाठ योजनाएं तैयार करने, नियमित कामों को स्वचालित रूप से करने, असाइनमेंट का मूल्यांकन करने और छात्रों के शैक्षणिक-प्रदर्शन का विश्लेषण करने में AI उपकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. इससे गैर-शिक्षण कार्यों में लगने वाला समय बच सकता है और शिक्षकों की पढ़ाने की क्षमता बढ़ सकती है. मैकिन्से के अनुसार, शिक्षकों का 20-30 प्रतिशत वक़्त तकनीक बचा सकती है, जिनका उपयोग पढ़ाने के काम में हो सकता है.

How Ai Can Deliver Quality Learning At Scale

Source: McKinsey, 2020

NCERT (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) के सहयोग से एक अध्ययन साल 2024 में किया गया था, जिससे पता चलता है कि जो शिक्षक AI की मदद से पढ़ाई कराते हैं या योजना बनाते हैं, वे छात्रों की ज़रूरतों को बेहतर ढंग से समझने और उसी के अनुसार अध्यापन के अपने तरीके को बदलने में सफल होते हैं. एआई-सक्षम प्लेटफ़ॉर्म ने ऐसी मूल्यांकन-व्यवस्था बनाई है, जिसमें शिक्षकों को ज़्यादा तैयारी नहीं करनी पड़ती और प्रदर्शनों के आधार पर वह छात्रों को खुद-ब-खुद समूह में बांट देती है, जिससे शिक्षकों के बहुमूल्य समय बचते हैं.

  • मूल्यांकन में एआई- पूर्व चेतावनी और वास्तविक समय में उपाय

पारंपरिक शिक्षा प्रणालियों में, मूल्यांकन नियमित अंतराल पर किए जाते हैं और सारांशात्मक होते हैं. इस कारण उनमें उचित समय पर सुधार मुश्किल हो जाता है. इसके उलट, AI की मदद से किए जाने वाले मूल्यांकन रचनात्मक होते हैं और लगातार चलते रहते हैं, जिसमें छात्रों को वास्तविक समय में अपनी गुणवत्ता के बारे में पता चलता रहता है और शिक्षकों में भी उचित सुधार की समझ विकसित होती रहती है.

उदाहरण के लिए, IIT (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान), बॉम्बे का TARA (शिक्षक सहायता पठन मूल्यांकन) एप मौखिक पठन का स्वचालित मूल्यांकन के लिए स्पीच प्रोसेसिंग और मशीन लर्निंग का उपयोग करता है. यह बच्चों द्वारा उम्र के अनुसार पढ़े गए अंशों को रिकॉर्ड करता है, फिर ‘प्रति मिनट सही शब्द (WCPM)’ जैसे माप से गणना करता है. यह छात्रों में पठन कौशल का स्तर पता करने के लिए अभिव्यक्ति (वाक्यांश, स्वर, तनाव) का विश्लेषण करता है. यह प्रणाली हिंदी और अंग्रेजी, दोनों में काम करती है और किसी इंसान द्वारा दिए जाने वाले अंक की तरह मान्य है. इसे पहले ही बड़े पैमाने पर लागू किया जा चुका है, जैसे कक्षा 3 से 8 तक के 1,200 केंद्रीय विद्यालयों के 7 लाख से अधिक छात्रों के लिए.

एक अन्य ज़रूरी आंकड़ा ASER चिल्ड्रन्स स्पीच डेटासेट है, जिसमें 6 से 14 वर्ष की उम्र वाले बच्चों के विभिन्न स्तरों पर हिंदी, मराठी और अंग्रेजी पढ़ने के हजारों ऑडियो क्लिप सहेजे जाते हैं. इसमें ASR (ऑटोमैटिक स्पीच रिकॉग्निशन) के आधार पर एक क्लासिफायर बनाया गया है, जो पढ़ने के कौशल का 86 प्रतिशत तक (अंग्रेजी के लिए) सटीक अनुमान लगाता है. यह डेटासेट क्षेत्रीय भारतीय भाषाओं में बड़े पैमाने पर वाक्-आधारित पठन स्तर के मूल्यांकन में इस्तेमाल किया जा सकता है.

  • शासन और तंत्र की निगरानी के लिए एआई

कक्षाओं के अलावा, AI सरकारों और शिक्षा विभागों की प्रगति की निगरानी करने, संसाधनों के आवंटन और प्रभाव का अधिक कुशलता से मूल्यांकन करने में मदद कर सकता है. उदाहरण के लिए, पूर्वानुमानित विश्लेषण और एआई-संचालित डैशबोर्ड के माध्यम से, SDMS (छात्र डेटाबेस प्रबंधन प्रणाली)-UDISE+ और प्रधानमंत्री (पीएम) ई-विद्या जैसी व्यवस्थाएं ख़राब प्रदर्शन या कक्षा छोड़ने की ऊंची दर वाले स्कूलों अथवा क्षेत्रों की पहचान करने में प्रशासकों की मदद कर रही हैं. इससे सुधार से जुड़े कार्यक्रम, संसाधनों के आवंटन और शिक्षकों को मदद पहुंचाने जैसे उपायों को आसानी से अमल में लाया जाता है.

AI शिक्षा को वास्तव में समावेशी बनाने की नई संभावनाएं प्रस्तुत करता है, जिस पर 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) ने भी विशेष बल दिया है. सहायक एआई उपकरणों के माध्यम से दिव्यांग छात्रों की मदद भी की जा सकती है और उनको बहुभाषी/विभिन्न बोलियों में मददगार (अनुवाद, स्थानीय भाषा की सामग्रियों द्वारा) तकनीक उपलब्ध कराई जा सकती है.

नागालैण्ड के स्कूली शिक्षा विभाग ने शिक्षकों की उपस्थिति की निगरानी करने के लिए जियो-पोजिशनिंग और एनालिटिक्स का उपयोग करके एआई-आधारित तंत्र लागू किया है, जिसका उद्देश्य स्कूल परिसर में शिक्षकों की उपस्थिति का वास्तविक समय का डेटा तैयार करना है, ताकि ब्लॉक या जिला के अधिकारी उसके अनुसार उचित कार्रवाई कर सकें. आपूर्ति शृंखला या संसाधनों की जवाबदेही तय करने के लिए AI का उपयोग कैसे किया जा सकता है, इसका एक उदाहरण उत्तर प्रदेश में ‘किताब वितरण’ एप भी है, जिसके माध्यम से शिक्षक कक्षा 3 की हिंदी और गणित की वैकल्पिक किताबों और पठन-सामग्री पा सकते हैं. इसके लिए उनको क्यूआर कोड का उपयोग करना पड़ता है. इस डेटा की अधिकारीगण वास्तविक समय में निगरानी करते हैं, जिससे पठन सामग्री में देरी या गुम होने की स्थिति में तुरंत कार्रवाई संभव हो पाती है.

इन उपकरणों में निस्संदेह बड़ी संभावनाएं हैं. हालांकि, इनका उपयोग अभी तक शिक्षकों की क्षमता के पूर्ण उपयोग या स्कूल की प्रभावशीलता की निगरानी करने या संसाधनों के बंटवारे में अनियमितताओं के अलावा प्रणाली से जुड़ी विफलताओं का पता करने के पूर्वानुमान मॉडल के रूप में नहीं किया जा सका है.

  • समावेशी शिक्षा के लिए एआई- सहायक प्रौद्योगिकियां और भाषायी समानता

AI शिक्षा को वास्तव में समावेशी बनाने की नई संभावनाएं प्रस्तुत करता है, जिस पर 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) ने भी विशेष बल दिया है. सहायक एआई उपकरणों के माध्यम से दिव्यांग छात्रों की मदद भी की जा सकती है और उनको बहुभाषी/विभिन्न बोलियों में मददगार (अनुवाद, स्थानीय भाषा की सामग्रियों द्वारा) तकनीक उपलब्ध कराई जा सकती है. यह सीखने की उनकी शैली और सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों के मुताबिक होती है.

ऑटिज़्म और कमज़ोर पठन कौशल वाले बच्चों की सहायता के लिए कई AI एप का भी इस्तेमाल किया जा रहा है, जैसे- स्क्रीनिंग टूल फॉर ऑटिज़्म रिस्क यूज़िंग टेक्नोलॉजी (START) ऐप, जिसके माध्यम से वे लोग भी ऑटिज़्म का पता कर सकते हैं, जो इसके विशेषज्ञ नहीं हैं. इसमें मोबाइल-आधारित बच्चों के कामों व माता-पिता के इनपुट का उपयोग किया जाता है. इसके अलावा, कॉग्निटिवबॉटिक्स जैसे प्लेटफ़ॉर्म विभिन्न खेलों और चैटबॉक्स के माध्यम से एआई-संचालित इलाज उपलब्ध कराते हैं, जिससे सामाजिक और संचार संबंधी कौशल में सुधार दिखता है.

शिक्षा में एक उत्तरदायी एआई भविष्य के लिए सुझाव

इन सबके बावजूद, सीखाने के कामों में एआई के उपयोग से समस्याओं का कोई रामबाण इलाज नहीं किया जा सकता. यह किसी शिक्षक के कौशल की जगह नहीं ले सकता और बुनियादी ढांचे की कमियों से जुड़ी चिंताएं भी झुठलाई नहीं जा सकतीं. इसलिए, एआई की सहायता से सुधार तभी संभव हैं, जब उसे सोच-समझकर तैयार किया जाए, नियंत्रित किया जाए और वास्तविक दुनिया की प्रणालियों से जोड़ा जाए. समय की यही मांग है कि एआई को पठन-पाठन के कामों में शामिल किया जाए, लेकिन सुरक्षा के उसमें पर्याप्त उपाय हों, वे शैक्षिक समानता के लक्ष्यों के अनुरूप हों और शिक्षकों की सोच पर आधारित हों.

ऐसे वक़्त में, जब मोबाइल की पहुंच बढ़ी है, ग्रामीण, आदिवासी और कम संसाधन वाले तबकों में एआई-संचालित शिक्षा के लिए स्कूली बुनियादी ढांचे का अभाव और घरों पर एकसमान सुविधाएं न होने संबंधी चुनौतियां भी बनी हुई हैं. इन कमियों का मतलब है कि एआई को शिक्षा व्यवस्था में शामिल करना (ख़ासकर छात्रों के लिए) केवल स्कूली ढांचे पर निर्भर नहीं रह सकता, घरों में मौजूद मोबाइल फोन का लाभ उठाकर इसे अधिक व्यापक बनाया जा सकता है. हालांकि, इससे जुड़ी चुनौतियां भी हैं, जैसे डिवाइस शेयरिंग, संसाधनों की पहुंच में लैंगिक विभाजन, डिजिटल निरक्षरता, बिजली या इंटरनेट को लेकर अनिश्चितता, और निजता संबंधी चिंताएं.

इन चुनौतियों से पार पाने और भारत के सभी बच्चों को एआई-संचालित गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए आठ सुझाव दिए जा सकते हैं. पहला, एआई नवाचारों को पहले ऑफलाइन उपयोग करना चाहिए, उनको कम बैंडविड्थ के साथ तैयार किया जाना चाहिए, ताकि इंटरनेट, कैशिंग कॉन्टेंट और जहां तक संभव हो सिंकिंग के बिना भी एआई उपकरण अच्छे से काम कर सकें. दूसरा, एप कमज़ोर गुणवत्तावाले वाले फोन पर भी काम करने चाहिए और इनपुट के रूप में आवाज, तस्वीर और छोटे आकार के फाइलों का प्रयोग किया जाना चाहिए. तीसरा, उन ग्राम केंद्रों, ग्राम पंचायत भवनों या स्थानीय स्कूलों में साझा सामुदायिक तंत्र बनाना चाहिए, जहां चार्जिंग स्टेशन हों और जिन घरों में इसकी कमी है, वहां ज़रूरी उपकरण लगाए जाने चाहिए. चौथा, लड़कियों और वंचित समूहों को प्राथमिकता देनी चाहिए, साथ ही उन्हें और उनके अभिभावकों को उपकरणों के इस्तेमाल का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि वे भरोसे के साथ उसका प्रयोग कर सकें.

पांचवां, वंचित गांवों तक मोबाइल नेटवर्क (4G/5G) बढ़ाने और बिजली लगातार उपलब्ध कराने के लिए स्कूलों में सौर ऊर्जा और बैटरी बैकअप की सुविधा लगानी चाहिए. छठा, स्कूलों में, शिक्षकों को ऐसे उपकरण देने चाहिए, जिनकी मदद से वे पाठ योजनाएं तैयार कर सकें, स्वचालित ग्रेडिंग मूल्यांकन कर सकें और समूह में गतिविधियां करा सकें. सांतवां, शिक्षकों की क्षमताएं भी सुधारनी होंगी, जिसके लिए ऐसे एआई उपकरण बनाने होंगे, जो उनके लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चला सकें. IIT, मद्रास का ‘शिक्षकों के लिए एआई’ इसी तरह का एक प्रयास है. और आखिरी, नैतिक रूप से उत्तरदायी एआई ढांचा अनिवार्य है, जिसके लिए नीति आयोग के ‘जिम्मेदार एआई सिद्धांत’ के अनुसार ही गुमनाम डेटा, पूर्वाग्रह ऑडिट और ओपेन सोर्स का इस्तेमाल करना चाहिए.

जैसे-जैसे भारत NEP 2020 को लागू करने और बुनियादी शिक्षण सुधारों को बेहतर बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, AI एक अभूतपूर्व अवसर हमें मुहैया करता है. इससे न केवल विषय-वस्तु को सुधारने में, बल्कि हर बच्चे के सीखने के तरीके को पूरी तरह बदलने में हमें सफलता मिल सकेगी.


(अर्पण तुलस्यान ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में वरिष्ठ फेलो हैं)

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