Author : Shoba Suri

Published on Aug 01, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत केवल एक समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण को अपना कर ही जनसांख्यकीय बदलाव का लाभ उठा सकता है और अपनी बढ़ती आबादी के लिए न्यायसंगत और सतत विकास हासिल कर सकता है.

भारत की बढ़ती आबादी का मानव विकास पर किस तरह का असर पड़ रहा है?

भारत चीन को पछाड़कर दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश बन चुका है और वह अपनी तेज़ी से बढ़ती आबादी के कारण कई चुनौतियों का सामना कर रहा है. भारत की आबादी 1.4 अरब हो चुकी है और हर साल इसमें लगभग 1 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि हो रही है. यह जनसांख्यकीय बदलाव जटिल है और भारत में मानव विकास पर इसका दूरगामी प्रभाव पड़ेगा. भारत की जनसंख्या में अनियंत्रित वृद्धि हो रही है, और ऐसा अनुमान है कि 2030 तक यह बढ़कर 1.5 अरब और 2050 तक 2 अरब के पार हो जाएगी.


चित्र संख्या 1:

स्रोत: रेबेका बुंधुन, द नेशनल

देश की जनसंख्या में हो रही तेज़ वृद्धि संसाधनों और सेवाओं पर दबाव डाल रही है, जिससे पर्यावरण का क्षरण हो रहा है, और ग़रीबी और असमानता बढ़ रही है. स्वास्थ्य व्यवस्था पर बोझ बढ़ जाता है, जिससे गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच एक चुनौती बन जाती है. शिक्षा का बुनियादी ढांचा बढ़ती आबादी की ज़रूरतों से जूझ रहा है, और शहरीकरण के कारण मूलभूत आवश्यकताओं और आधारभूत अवसंरचना पर दबाव बढ़ गया है. प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ती आबादी के बोझ ने पर्यावरणीय चिंताओं को बढ़ावा दिया है. इसके अतिरिक्त, जनसंख्या वृद्धि के कारण रोज़गार अवसरों में भी कमी आई है.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार, भारत में बेरोज़गारी अब तक उच्चतम स्तर (8.5 प्रतिशत) पर है. ग़रीबी दूसरी बड़ी चुनौती है, जहां लगभग 16.4 प्रतिशत आबादी ग़रीब हैं और लगभग 4.2 प्रतिशत लोग भीषण ग़रीबी का सामना कर रहे हैं.


आर्थिक दृष्टिकोण से देखें, तो बढ़ती जनसंख्या के कारण कार्यबल में भी वृद्धि हो रही है, जिसके लिए रोजगार के पर्याप्त अवसरों के सृजन की आवश्यकता है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार, भारत में बेरोज़गारी अब तक उच्चतम स्तर (8.5 प्रतिशत) पर है. ग़रीबी दूसरी बड़ी चुनौती है, जहां लगभग 16.4 प्रतिशत आबादी ग़रीब हैं और लगभग 4.2 प्रतिशत लोग भीषण ग़रीबी का सामना कर रहे हैं. चित्र संख्या 2 भारत में पिछले चार दशकों में आर्थिक असमानता में हुई भारी वृद्धि को दर्शाता है, जहां शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी देश के 60 फीसदी से भी ज्यादा संपत्ति पर मालिकाना हक़ रखती है. इससे आबादी के निचले 50 फीसदी लोगों की संपत्ति में गिरावट का भी पता चलता है.

चित्र संख्या 2:

स्रोत: मैत्रीश घटक एवं अन्य, इंडिया फोरम

जनसंख्या में वृद्धि के साथ ग़रीबी और आर्थिक असमानता जैसी समस्याओं से निपटना और मुश्किल हो जाएगा, जिसके लिए संसाधनों के न्यायपूर्ण बंटवारे और मूलभूत सुविधाओं तक पहुंच की आवश्यकता है. आबादी में वृद्धि के साथ आवास और परिवहन जैसी आधारभूत अवसंरचना पर दबाव बढ़ेगा और उसकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बड़े निवेश की आवश्यकता होगी. जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती जा रही है, सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समुदायों की कठिनाइयां बढ़ती जा रही हैं. तीव्र शहरीकरण के कारण शहरों में भीड़भाड़ और अव्यवस्थित शहरी नियोजन जैसी स्थितियां पैदा हुई हैं, जिससे मलिन बस्तियां, व्यस्त यातायात और बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच के अभाव जैसी समस्याएं पैदा होती हैं. सरकारों को ऐसी नीतियों को लागू करने पर ध्यान देने की ज़रूरत है, जिससे समावेशी विकास, उद्यमिता और कौशल विकास को बढ़ावा मिले और बेरोज़गारी जैसी समस्याओं से निपटने और सतत आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने में मदद मिले.

संसाधनों की सीमितता और बुनियादी ढांचे की अपर्याप्तता को देखते हुए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना बहुत कठिन है. सामुदायिक संघर्ष को रोकने और सामाजिक उन्नति के लिए विभिन्न समूहों के बीच सामुदायिक एकजुटता और सद्भाव को बनाए रखने की ज़रूरत है. ग़रीबी और असमानता को दूर करने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं और बुनियादी सेवाओं तक पहुंच और संसाधनों की उपलब्धता को सुनिश्चित करने की ज़रूरत है. 2022-23 में 12 लाख बच्चे स्कूली व्यवस्था से बाहर हैं, ऐसे में शिक्षा, कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए देश की शिक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाने की ज़रूरत है. 2021-22 में, स्वास्थ्य देखभाल पर भारत का सार्वजनिक व्यय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.1 प्रतिशत था, जबकि 2020-21 में यह 1.8 प्रतिशत और 2019-20 में 1.3 प्रतिशत था. इससे यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं और सामाजिक सुरक्षा के बढ़ते महत्त्व का पता चलता है. सार्वजनिक अस्पतालों में बेड की कमी है, जहां प्रति प्रति 1000 व्यक्तियों पर केवल 0.5 बेड उपलब्ध हैं, जबकि WHO के मानकों के अनुसार प्रति 1000 लोगों पर 1 बेड होना चाहिए. प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य देखभाल और विशेष उपचारों के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण सहित समूची स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर बनाने की तत्काल आवश्यकता है.

2022-23 में 12 लाख बच्चे स्कूली व्यवस्था से बाहर हैं, ऐसे में शिक्षा, कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए देश की शिक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाने की ज़रूरत है.


पारिस्थितिक तंत्र के दृष्टिकोण से देखें, तो जनसंख्या वृद्धि प्राकृतिक संसाधनों पर भारी दबाव डालती है, जिससे संसाधनों के अंधाधुन दोहन, वनों की कटाई, जल के अभाव और प्रदूषण जैसी समस्याएं जन्म लेती हैं. ग्लोबल कार्बन बजट रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत के कोयला, तेल और गैस उत्सर्जन के 6 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है. इन चुनौतियों का सामना करने और दीर्घकालिक विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों और संरक्षण परंपराओं का उचित प्रबंधन करना होगा. जनसंख्या वृद्धि से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता है और जलवायु परिवर्तन में तेजी आती है. भारत को जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के लिए हरित नीतियों को लागू करने, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने और टिकाऊ अभ्यासों को अपनाने की आवश्यकता है. हरित भविष्य के लिए पर्यावरण के लिहाज़ से अनुकूल जीवनशैली को बढ़ावा देने और पर्यावरण संरक्षण के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने जैसे महत्त्वपूर्ण कदम उठाने होंगे.

भारत केवल एक समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण को अपना कर ही जनसांख्यकीय बदलाव का लाभ उठा सकता है और अपनी बढ़ती आबादी के लिए न्यायसंगत और सतत विकास हासिल कर सकता है.



भारत की बढ़ती जनसंख्या मानव विकास पर बहुआयामी प्रभाव डालती है, जो अर्थव्यवस्था, समाज और पर्यावरण जैसे विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित कर रही है. तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या के कारण पैदा होने वाली चुनौतियों और उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाने के लिए समावेशी नीतियों को लागू करने, समतामूलक विकास को बढ़ावा देने, लचीले बुनियादी ढांचे का निर्माण, शिक्षा एवं स्वास्थ्य प्रणाली को बेहतर बनाने और टिकाऊ अभ्यासों को अपनाने की आवश्यकता है. जबकि जनसंख्या वृद्धि के कारण बहुत सारी चुनौतियां पैदा होती हैं, लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि बढ़ती आबादी नवाचार, उद्यमशीलता और सामाजिक-आर्थिक प्रगति के अवसर भी प्रदान करती है. इन चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना करने के लिए, सरकारों को नागरिक समूहों और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के साथ मिलकर ऐसी व्यापक और टिकाऊ नीतियां तैयार करनी होंगी जो मानव विकास के लिए समतापूर्ण विकास, मज़बूत सामाजिक ढांचे और पर्यावरणीय सुरक्षा को बढ़ावा दें. भारत केवल एक समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण को अपना कर ही जनसांख्यकीय बदलाव का लाभ उठा सकता है और अपनी बढ़ती आबादी के लिए न्यायसंगत और सतत विकास हासिल कर सकता है.

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