Author : Prateek Tripathi

Published on Nov 29, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत जैसे विशाल क्षेत्रफल और जनसंख्या वाले देश में ब्लॉकचेन के पास शासन का पूरी तरह से कायापलट करने और उसमें क्रांति लाने की क्षमता है, बशर्ते उसे सावधानी के साथ अमल में लाया जाए.

‘भारत के शासन-प्रशासन में ब्लॉकचेन की बढ़ती भूमिका’

भले ही ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी की जड़ें अतीत में 1979 तक जाती हैं, लेकिन 2009 में क्रिप्टोकरेंसी के लॉन्च के साथ ये पहली बार सुर्ख़ियों में आई, क्योंकि इसने बिटकॉइन का आधार तैयार किया था. शुरुआत में इसको लेकर थोड़ी घबराहट के बाद सरकार और निजी क्षेत्र, दोनों ने इसमें समान रूप से दिलचस्पी दिखाई है. ब्लॉकचेन द्वारा प्रस्तुत व्यापक लाभ की वजह से ऐसा हुआ है. एक ख़ास दिलचस्पी शासन-प्रशासन में इस तकनीक के बढ़ते प्रयोग को लेकर है, जहां ये पारदर्शिता, सटीकता और सुरक्षा के अभूतपूर्व स्तर उपलब्ध कराने की संभावना जताती है.  

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The scale of the exercise is only marginally bigger than usual, with the People’s Liberation Army Navy deploying a Song-class submarine, a destroyer, two guided-missile frigates, and a supply ship—almost a similar-sized contingent as in earlier exercises with the Pakistan Navy, which sent nine warships, four fighter jets, and one maritime patrol aircraft for this exercise.

ब्लॉकचेन का संबंध अनिवार्य रूप से एक वितरित (डिस्ट्रिब्यूटेड) डिजिटल लेजर या डेटाबेस से है. यहां “डिस्ट्रिब्यूटेड” शब्द इस तथ्य से उभरता है कि लेजर को किसी केंद्रीय डेटाबेस में भंडारित नहीं किया जाता, बल्कि नेटवर्क पर मौजूद हरेक कंप्यूटर या नोड इसकी एक प्रति (कॉपी) संग्रहित करता है, जिन्हें बदले में पीयर-टू-पीयर (P2P) नेटवर्क द्वारा जोड़ा जाता है. जब दो नोड लेन-देन (जो एन्क्रिप्टेड होता है) करते हैं, तो उसका एक रिकॉर्ड लेजर या बहीखाते में भंडारित किया जाता है, जो आगे चलकर डेटा का “ब्लॉक” कहलाता है. हरेक ब्लॉक को एक अद्वितीय अल्फान्यूमेरिक स्ट्रिंग सुपुर्द की जाती है, जिसे उसके टाइमस्टैंप के आधार पर “हैश” कहा जाता है, और ऐसे सभी ब्लॉक्स उनके हैश के ज़रिए क्रम से जुड़े होते हैं, जिससे एक श्रृंखला का निर्माण होता है. हालांकि ब्लॉकचेन का सबसे महत्वपूर्ण कारक ये तथ्य है कि डेटा के हरेक नए ब्लॉक को श्रृंखला में पिछले ब्लॉक के साथ एकीकृत किए जाने के लिए नेटवर्क के सभी नोड्स के बीच सर्वसम्मति की दरकार होती है. यही ख़ासियत लेजर की पारदर्शिता और एकरूपता सुनिश्चित करती है, साथ ही ये भी सुनिश्चित करती है कि ये छेड़छाड़ से स्वतंत्र रहे. सेट-अप की कार्यकुशलता सुनिश्चित करने के लिए नोड्स को आमतौर पर आर्थिक प्रोत्साहन मुहैया कराया जाता है ताकि लेनदेन को वैधानिकता दी जा सके. ऐसा करने वाले पहले नोड को “माइनिंग” नाम की प्रक्रिया के तहत पुरस्कार की पेशकश की जाती है.  

ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी का उभार

वैसे तो शुरुआत में ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी को विशिष्ट रूप से केवल क्रिप्टोकरेंसी को लागू करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था, लेकिन 2014 में “इथेरियम” नाम के विकेंद्रीकृत प्लेटफॉर्म के लॉन्च होने के बाद हालात ने तेज़ मोड़ लिया, जिसने इनके प्रयोगों को अन्य डोमेन में स्थापित किया. इसने “स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स” का विचार पेश किया, जो ख़ुद को अमल में लाने वाले डिजिटल कॉन्ट्रैक्ट्स होते हैं. ये ज़रूरी शर्तों के पूरा होने पर स्वचालित रूप से पूरे हो जाते हैं, इस तरह उनको सत्यापित करने के लिए तीसरे पक्षों की आवश्यकता समाप्त हो जाती है.  

क्रिप्टोकरेंसियों के बढ़ते उपयोग ने विकेंद्रीकृत वित्त (DeFi) के विचार को बढ़ावा दिया है, जो ब्लॉकचेन पर आधारित ऐप्लिकेशंस के एक समूह को संदर्भित करता है, जिन्हें मौजूदा वित्तीय ढांचे का स्थान लेने के लिए तैयार किया गया है. स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स के उपयोग से बैंक जैसे तीसरे पक्ष के संस्थानों की ज़रूरत ख़त्म हो जाती है, जबकि प्लेटफॉर्म का विकेंद्रीकृत स्वभाव उपयोगकर्ताओं को उनके वित्त पर सीधा नियंत्रण देता है. 

उत्तर प्रदेश सरकार ने पॉलीगॉन के साथ साझेदारी में “फ़िरोज़ाबाद लोक शिकायत प्रबंधन प्रणाली” लॉन्च की है. ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी पर आधारित इस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को शिकायतें दर्ज करने और उनकी टोह लगाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम नॉन फंजिबल टोकन (NFTs) का उभार है. ये पेंटिंग या वीडियो जैसी अद्वितीय डिजिटल परिसंपत्तियां हैं, जिनका एक-से-एक (वन-टू-वन) के आधार पर आदान-प्रदान नहीं किया जा सकता. चूंकि NFTs ब्लॉकचेन पर आधारित हैं, लिहाज़ा उनकी अनूठी पहचान और स्वामित्व का डिजिटल बहीखाते पर तत्काल पता लगाया जा सकता है. इससे वास्तविक जीवन की परिसंपत्तियों के स्वामित्व की प्रॉसेसिंग के लिए भी इनके प्रयोग की शुरुआत हो गई हैं, जिनमें रियल एस्टेट या वाहनों के दस्तावेज़ शामिल हैं.

भारत सरकार द्वारा ब्लॉकचेन का प्रयोग

भारत सरकार ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी और सार्वजनिक दायरे में उसके ऐप्लिकेशन में गहरी दिलचस्पी ले रही है. दिसंबर 2021 में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) द्वारा “ब्लॉकचेन पर राष्ट्रीय रणनीति” जारी किए जाने से ये बात प्रमाणित हो जाती है. इसमें विभिन्न क्षेत्रों (जैसे स्वास्थ्य सेवा, कृषि, वित्त, वोटिंग और ई-गवर्नेंस) में ब्लॉकचेन अपनाने को लेकर सरकार का दृष्टिकोण स्पष्ट हो जाता है. साथ ही “राष्ट्रीय ब्लॉकचेन ढांचे” के लिए ज़मीन तैयार करने का काम भी शुरू होता है, जिसके तहत ये ब्लॉकचेन के लिए राष्ट्रीय स्तर के बुनियादी ढांचे के निर्माण की दिशा में काम करेगी. ये 2027 तक वैश्विक उपयोग के लिए “मेड इन इंडिया” ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी को सक्षम बनाने की उम्मीद करता है. साथ ही सामूहिक रूप से “BICA स्टैक” कहे जाने वाले ब्लॉकचेन, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, क्लाउड और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में भी संमिलन हासिल करना चाहता है.  

वैसे तो क्रिप्टोकरेंसी को लेकर अतीत में भारतीय रिज़र्व बैंक का रुख़ प्रतिकार भरा रहा है, लेकिन वो अपनी ख़ुद की सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC)- डिजिटल रुपये- पर काम करता रहा है, जिसे वो निकट भविष्य में लॉन्च करने के लिए तैयार है. CBDC की शुरुआत से भौतिक नक़दी पर निर्भरता में कमी आएगी, जबकि भुगतान प्रणालियों की कार्यकुशलता में बढ़ोतरी होगी. साथ ही निजी वर्चुअल मुद्राओं से जुड़े जोख़िमों से भी जनता का बचाव हो सकेगा.

सरकार फ़िलहाल ज़मीन के रजिस्ट्रेशन, डिजिटल प्रमाणपत्र जारी करने और सीमा शुल्क भुगतान के लिए ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी की तैनाती की प्रक्रिया में है. भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) और भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) जैसे संगठन भी अपने-अपने क्षेत्रों में ब्लॉकचेन अपनाने की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं.

स्थानीय और राज्य सरकारों ने भी ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी अपनाए जाने की क़वायद स्वीकार की है, और वो इसे अपनी प्रशासनिक संरचनाओं में शामिल करने की प्रक्रिया में हैं. देश के तक़रीबन आधे राज्य फ़िलहाल ब्लॉकचेन से संबंधित पहलों पर काम कर रहे हैं. इस दिशा में सबसे उल्लेखनीय मामलों में से एक पश्चिम बंगाल में न्यू टाउन कोलकाता विकास प्राधिकरण द्वारा ज़मीन म्यूटेशन के लिए NFTs अपनाए जाने का है. 27,000 एकड़ के इलाक़े को कवर करते हुए कुल 50,000 NFTs लागू किए गए हैं, जो संपत्ति के 10 लाख रिकॉर्डों का प्रतिनिधित्व करते हैं. NFTs भूमि स्वामित्व के सबूत मुहैया कराते हैं और उनके साथ जुड़े सभी दस्तावेज़ छेड़छाड़ से मुक्त होते हैं, जिससे ज़मीन म्यूटेशन की प्रक्रिया पारदर्शी हो जाती है. साथ ही हाथ से काग़ज़ी कार्रवाई करने और रिकॉर्ड रखने की आवश्यकता भी ख़त्म हो जाती है. पश्चिम बंगाल में दुर्गापुर और बांकुरा ज़िले के नगर निगमों ने जन्म प्रमाणपत्र जैसे वैधानिक दस्तावेज़ जारी करने के लिए ब्लॉकचेन पर आधारित प्लेटफॉर्म भी तैयार किए हैं.

सेट-अप की कार्यकुशलता सुनिश्चित करने के लिए नोड्स को आमतौर पर आर्थिक प्रोत्साहन मुहैया कराया जाता है ताकि लेनदेन को वैधानिकता दी जा सके. ऐसा करने वाले पहले नोड को “माइनिंग” नाम की प्रक्रिया के तहत पुरस्कार की पेशकश की जाती है.  .

तमिलनाडु ब्लॉकचेन बैकबोन” या “नांबिक्कैई इनायम” का लक्ष्य तमिलनाडु के हरेक निवासी को राज्य की एक अद्वितीय आईडी उपलब्ध कराना है, जो उनके सभी ज़रूरी दस्तावेज़ों जैसे ई-सेवा, शैक्षणिक और जन्म प्रमाणपत्रों को एक सिंगल डिजिटल वॉलेट में संग्रहित कर देगा. इसके साथ ही ई-पेट्टागम ऐप भी लॉन्च किया जाएगा जो उपयोगकर्ताओं को नियोक्ताओं, सरकारी इकाइयों, शिक्षण संस्थानों, बैंकों आदि के साथ इन दस्तावेज़ों को सुरक्षित रूप से साझा करने की सुविधा देगा. कर्नाटक सरकार ने “एकीकृत भूमि प्रबंधन प्रणाली” के नाम से इस तरह की पहल की है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने पॉलीगॉन के साथ साझेदारी में “फ़िरोज़ाबाद लोक शिकायत प्रबंधन प्रणाली” लॉन्च की है. ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी पर आधारित इस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को शिकायतें दर्ज करने और उनकी टोह लगाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. ब्लॉकचेन का इस्तेमाल ये सुनिश्चित करता है कि ये प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी रहे और संभावित भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ ना की जा सके.

आगे की राह

ऊपर जिन पहलों की चर्चा की गई है वो संपूर्ण लग सकती हैं, लेकिन वो ऊंट के मुंह में जीरे के समान हैं. ब्लॉकचेन द्वारा प्रस्तुत अनगिनत ऐप्लिकेशंस के बावजूद ये टेक्नोलॉजी अब भी बेहद शुरुआती अवस्था में है. ये जिस अभूतपूर्व स्तर की पारदर्शिता और कार्यकुशलता की संभावना पेश करती है वो दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश के लिए पूरी तरह उपयुक्त और सटीक है. कृषि, बैंकिंग, क़ानून-व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में इसकी तैनाती से बिचौलियों को ख़त्म करके देश के वित्तीय और सामाजिक समावेशन के लंबे समय से अपेक्षित लक्ष्य को हासिल करने की प्रक्रिया में तेज़ी आएगी. इससे आम जनता द्वारा इन आवश्यक सेवाओं को हासिल करने में लगने वाले समय और प्रयास में भारी कमी आ जाएगी.

वैसे तो क्रिप्टोकरेंसी को लेकर अतीत में भारतीय रिज़र्व बैंक का रुख़ प्रतिकार भरा रहा है, लेकिन वो अपनी ख़ुद की सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC)- डिजिटल रुपये- पर काम करता रहा है, जिसे वो निकट भविष्य में लॉन्च करने के लिए तैयार है..

हालांकि, इस पूरी क़वायद में सावधानी की शर्त जुड़ी है. सबसे पहले, ये तकनीक भले ही क्रांतिकारी लगे लेकिन संशयवादी इसे उस रूप में नहीं देखते. एक प्रमुख अर्थशास्त्री ने इसे “एक्सेल स्प्रेडशीट से बेहतर नहीं” बताया है. दूसरा, अभेद्य रहने के बड़े-बड़े दावों के बावजूद ब्लॉकचेन साइबर हमलों से उतना मुक्त नहीं है जितना बताया गया है. मिसाल के तौर पर ये “51 प्रतिशत हमले” के प्रति अति-संवेदनशील है, जिसमें क्रिप्टोकरेंसी वॉलेट ख़ासतौर से जाना-माना निशाना है. 2022 में तक़रीबन 200 क्रिप्टोकरेंसी या ब्लॉकचेन हैक की पहचान की गई थी, जिसके नतीजतन 3.8 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का नुक़सान हुआ था. भारत जैसे देश में विशाल पैमाने पर प्रशासनिक मंचों के रूप में अमल में लाए जाने से पहले इस टेक्नोलॉजी में और ज़्यादा विकास की आवश्यकता है.

बहरहाल, भारत के पास एस्टोनिया जैसे देशों की कामयाबी की कहानियों से सीखने का मौक़ा है, जिसने अपनी कीलेस सिग्नेचर इंफ्रास्ट्रक्चर पहल के ज़रिए ब्लॉकचेन को अपनी शासन प्रक्रिया में पूरी तरह से एकीकृत कर लिया है. भारत जैसे विशाल क्षेत्रफल और जनसंख्या वाले देश में ब्लॉकचेन के पास शासन का पूरी तरह से कायापलट करने और उसमें क्रांति लाने की क्षमता है, ज़रूरत बस उसे सतर्कता के साथ अमल में लाने की है.


प्रतीक त्रिपाठी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी एंड टेक्नोलॉजी में रिसर्च असिस्टेंट हैं.

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