Published on Mar 02, 2024 Updated 1 Hours ago

अपने वित्तीय बाज़ार को सुधारने और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को आकर्षित करने के लिए अब ज्यादा से ज्यादा देश उन परियोजनाओं को प्रोत्साहित कर रहे हैं, जिनसे पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचता.

हरित विकास परियोजनाओं के वर्गीकरण की नीति : संभावनाएं और चुनौतियां

ये लेख हमारी- रायसीना एडिट 2024 सीरीज़ का एक भाग है


चीन ने साल 2015 से आर्थिक विकास परियोजनाओं का पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के हिसाब से वर्गीकरण (टैक्सोनॉमी) करना शुरू किया. तब से इस तरह के दस्तावेज़ों की बाढ़ गई है. क्लाइमेट बॉन्ड इनीशिएटिव संगठन के मुताबिक दुनिया भर में ऐसे 40 दस्तावेज़ बनाए जा चुके हैं और इनमें बढ़ोत्तरी होती जा रही है. टैक्सोनॉमी यानी विकास परियोजनाओं के वर्गीकरण को एक ऐसे आसान कदम के तौर पर देखा जा रहा है जिससे घरेलू वित्तीय बाज़ार में पारदर्शिता आती है और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का ध्यान भी आकर्षित किया जाता है. हालांकि इसमें कुछ अपवाद भी हैं. वर्गीकरण किसी भी देश की घरेलू नीति में अपनाया जाने वाले एक ऐसा तरीका है जिससे अर्थव्यवस्था के स्वरूप में काफी सुधार होता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि दूसरे देशों की सरकारें और बैंक इसका इस्तेमाल नहीं करती सिंगापुर और मैक्सिको में इसे लेकर जो दस्तावेज़ बनाए गए हैं, उसके प्रस्तावना में ही इसका जिक्र है.

यूरोपियन यूनियन के ज्यादातर देशों में किसी भी परियोजना को शुरू करने से पहले ये जानकारी देनी होती है कि पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के हिसाब से उसका वर्गीकरण किया गया है या नहीं.

हालांकि विकास परियोजनाओं के इस तरह के वर्गीकरण और इसे लेकर राष्ट्रीय नीति के पुनर्गठन में बड़ा अंतर है. यूरोपियन यूनियन उन दो क्षेत्रों में से एक है, जहां इस वर्गीकरण को राष्ट्रीय नीतियों के साथ पूरी तरह एकीकृत कर दिया गया है. 2018 में यूरोपियन यूनियन ने स्थायी विकास के लिए वित्त जुटाने की कार्ययोजना बनाई. इसके बाद से उसने ऐसी कई ऐसी नीतियां बनाई हैं, जिसमें किसी विकास परियोजना से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का ख्याल रखा जाता है.

यूरोपियन यूनियन के ज्यादातर देशों में किसी भी परियोजना को शुरू करने से पहले ये जानकारी देनी होती है कि पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के हिसाब से उसका वर्गीकरण किया गया है या नहीं. इसी के बाद उस परियोजना के लिए रकम जुटाई जाती है. ग्रीन डील इंवेस्टमेंट प्लान और इन्वेस्ट ईयू प्रोग्राम इसी से जुड़े हैं. हाल के वर्षों में ये देखा गया है कि यूरोपीयन यूनियन की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं उस तरह की परियोजना को समर्थन दे रही हैं, जिनसे कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी लाई जा सके

चीन भी काफी हद तक इसी नीति पर चल रहा है. हालांकि उसने अपनी सभी परियोजनाओं को इस नीति से नहीं जोड़ा है. चीन ने कार्बन उत्सर्जन में कमी को लेकर कोई संख्या या समयसीमा तय नहीं की है. ऐसे में फिलहाल चीन में एक साथ दोनों तरह की विकास परियोजनाएं चल रही हैं. यानी ऐसी परियोजनाएं जिनसे पर्यावरण का संरक्षण होता है और जिनसे पर्यावरण को नुकसान होता है. इसके बावजूद ये भी सच है कि चीन ने पिछले कुछ साल में अपनी विकास परियोजनाओं के वर्गीकरण में काफी सफलता हासिल की है. चीन में बैंक और बीमा क्षेत्र को अनिवार्य रूप से जानकारी देनी ज़रूरी है कि विकास परियोजना का वर्गीकरण किया गया है या नहीं. चीन के बैंकिंग और बीमा नियामक कमीशन (CBRIC) की तरफ से ऐसी वर्गीकरण वाली परियोजना को प्रोत्साहित भी किया जाता है. स्थानीय सरकारें भी उन विकास परियोजनाओं को विशेष सुविधाएं देती हैं जो पर्यावरण का ध्यान रखकर बनाई जाती हैं

 

चीन और यूरोपियन यूनियन ने सबसे पहले इस तरह की वर्गीकरण की नीति शुरू की लेकिन अब दूसरे देश भी इसे लागू कर रहे हैं. दक्षिण अफ्रीका, कोलंबिया, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, सिंगापुर और मैक्सिको भी इस दिशा में काम कर रहे हैं. भारत समेत कई अन्य देशों में भी इसे लेकर नीतियां बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. हालांकि अगर इसे लेकर नीतियां तैयार भी हो जाती हैं तो भी उनका पालन करना स्वैच्छिक रखा जाएगा. इन्हें लागू करवाने के लिए नियामक संस्थाएं बनाने का अभी कोई प्रस्ताव नहीं है

विकास परियोजनाओं का वर्गीकरण अभी स्वैच्छिक है, फिर भी कंपनियों को चाहिए कि वो इसे लागू करने के लिए सरकार या फिर गैर सरकारी संस्थाओं की मदद लें. तभी इस नीति का पूरा फायदा उठाया जा सकता है

विकास परियोजनाओं के इस तरह के वर्गीकरण को अभी सिर्फ यूरोपियन यूनियन में ही अनिवार्य किया गया है. अगर ग्लोबल साउथ के देशों में भी इसे ज़रूरी किया जाता है कि इससे विकास परियोजनाओं की राह में अनावश्यक बाधाएं खड़ी होंगी. हालांकि वर्गीकरण अनिवार्य होने के बावजूद सरकारों को चाहिए कि वो अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण के लिए जितना संभव हो, उतना इस तरह के वर्गीकरण का पालन करवाएं. इससे जो अनुभव हासिल होगा, उससे वित्तीय बाज़ार के लिए सार्वजनिक नीतियां बनाने में काफी मदद मिलेगी. क्लाइमेट बॉन्ड इनीशिएटिव संगठन ने इसे लेकर विस्तृत अध्ययन करने के बाद स्थायी विकास के लिए 101 वित्त नीतियां नाम से एक दस्तावेज़ भी तैयार किया है. इससे भी इस बारे में नीतियां बनाने में मदद ली जा सकती है

इस नीति को लागू करने के प्रभावी तरीके

सबसे पहला और ज़रूरी कदम तो ये है कि इस तरह का वर्गीकरण करने वालों को कुछ अतिरिक्त सहायक दस्तावेज़ दिए जाएं. इससे अलग-अलग कंपनियां भी इसमें शामिल हो सकेंगी. इन दस्तावेज़ों में ग्रीन बॉन्ड और ऋण हासिल करने के कुछ मानक हो सकते हैं. वित्तीय और गैर वित्तीय कंपनियों के लिए बीमा कंपनियों में आवेदन करने से पहले इसकी जानकारी देना ज़रूरी किया जा सकता है. निवेशकों के लिए भी इसे लेकर दिशा-निर्देश जारी किए जा सकते हैं

वर्गीकरण की नीति ये नहीं बताती कि किस क्षेत्र में इसका किस तरह इस्तेमाल किया जाए. इस नीति से सिर्फ ये पता चलता है कि किस आर्थिक गतिविधि का उस देश द्वारा तय किए गए पर्यावरणीय लक्ष्य से सामंजस्य बैठ रहा है. विकास परियोजनाओं का वर्गीकरण अभी स्वैच्छिक है, फिर भी कंपनियों को चाहिए कि वो इसे लागू करने के लिए सरकार या फिर गैर सरकारी संस्थाओं की मदद लें. तभी इस नीति का पूरा फायदा उठाया जा सकता है

वर्गीकरण की नीति को लागू करने का एक और प्रभावी तरीका ये है कि उस देश की सरकार और केंद्रीय बैंक ऐसी परियोजनाओं को अतिरिक्त सुविधाएं दें. कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने वाली परियोजनाओं को प्रोत्साहित और प्रदूषण बढ़ाने वाली परियोजनाओं को हतोत्साहित करे.

इस दिशा में पहला कदम ये हो सकता है कि परियोजनाओं को लेकर जो अहम दस्तावेज बनते हैं, उनमें शुरुआती दौर में ही इस नीति को शामिल किया जाए. इससे ये फायदा होगा कि सभी सरकारी संस्थाएं भी इस दिशा में काम करेंगी. इसे एक उदाहरण से समझिए. माना कोई कंपनी ये कहती है कि उसकी परिवहन की परियोजना से कार्बन उत्सर्जन में इतनी कमी आएगी तो इसका स्पष्ट उल्लेख परिवहन संबंधी वर्गीकरण की नीति में मिल सकता है. इस स्तर पर ये भी संभव है कि इसी सूचना के आधार पर उस परियोजना की लागत का हिसाब लगाया जा सके. इसी आधार पर सरकार ये तय कर सकती है कि उस परियोजना के लिए कितना अनुदान देना है

 अगर पर्यावरण के अनुकूल परियोजनाओं पर इनके निवेश के सकारात्मक नतीजे मिल रहे हैं तो फिर ये संस्थाएं इस नीति को आसानी से लागू करवाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं. 

केंद्रीय बैंक को भी चाहिए कि जो व्यावसायिक बैंक पर्यावरण का ध्यान रखने वाली कंपनियों को ऋण देते हैं, उन बैंकों का ज़ोखिम कम किया जाए. इस नीति का पालन करने वालों को फायदा पहुंचाए और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों पर जुर्माना लगाए. केंद्रीय बैंक अपनी तरफ से ये जांच भी कर सकता है कि किस परियोजना से पर्यावरण पर क्या दबाव पड़ रहा है. इससे उन विकास परियोजनाओं की पहचान हो सकेगी जिनकी वजह से जलवायु संकट पैदा हो सकता है. इसके बाद उसी हिसाब से इन्हें लेकर नीति बनाई जा सकती है.

वर्गीकरण की नीति को लागू करने का सबसे प्रभावी उपाय ये है कि स्वायत्त वित्त कोषों और राष्ट्रीय विकास के लिए बनी संस्थाओं को इसे अपनाने का आदेश दिया जाए. इन संस्थाओं के पास काफी पूंजी होती है. अगर पर्यावरण के अनुकूल परियोजनाओं पर इनके निवेश के सकारात्मक नतीजे मिल रहे हैं तो फिर ये संस्थाएं इस नीति को आसानी से लागू करवाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं. ये संस्था ऐसे सलाहकार बोर्ड भी बना सकती हैं जो इस तरह की परियोजनाओं की स्थापना करने वाली कंपनियों को सही सलाह दें और उन्हें टिकाऊ बना सकें

इस संबंध में बैंकों और देश के आर्थिक विकास के लिए बनी संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है. कंपनियों को ऋण देना इन्हीं का काम होता है. यही तय करती हैं कि कृषि सहकारी समितियों, लघु-मध्यम उद्योगों और बड़ी कंपनियों को ऋण देने का क्या तरीका हो.
हमारे पास अभी इस बात का आकलन करने के लिए ठोस आंकड़े नहीं हैं कि वर्गीकरण की नीति लागू करने से अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन में कितनी मदद मिलती है. इस नीति को लागू हुए अभी बहुत कम वक्त हुआ है. इतना ही नहीं इस बात का मूल्यांकन करना भी बहुत मुश्किल है कि इससे किस क्षेत्र में कितना असर पड़ा. लेकिन एक बात हम पूरे भरोसे के साथ कह सकते हैं कि वर्गीकरण की नीति को अपने यहां काफी हद तक लागू करने वाले यूरोपियन यूनियन और चीन को अपनी अर्थव्यवस्था को पर्यावरण के अनुकूल बनाने में बहुत सफलता मिली है. चीन में तो ये साफ दिखता है कि इस नीति का पालन करने के बावजूद उसने काफी तेज़ी से आर्थिक विकास किया है. जो देश अब इस नीति को लागू करने की सोच रहे हैं, उन्हें चीन की सफलता से काफी कुछ सीखने को मिल सकता है और वह इसका लाभ उठा सकती हैं.


इस लेख के लेखक मिखाइल कोरोस्तिकोव क्लाइमेट बॉन्ड इनीशिएटिव में सीनियर एनालिस्ट हैं

 

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