विकासशील देशों में नवीनीकरण योग्य ऊर्जा (RE) को बड़े पैमाने पर अपनाने की राह में जीवाश्म ईंधन पर लंबे समय से चली आ रही सब्सिडी, और कोयले से चलने वाली बिजली ग्रिड, पूंजी की लागत, कमज़ोर बिजली ग्रिड, नियामक बाधाओं और खनिजों एवं ज़मीन की उपलब्धता सीमित होने को प्रमुख बाधाएं कहा जाता है. लेकिन, विकसित देशों द्वारा ग्लोबल साउथ से हरित वस्तुओं के आयात पर इन दिनों जो टैरिफ बैरियर (TB) और नॉन टैरिफ बैरियर (NTB) की दीवारें खड़ी की जा रही हैं, वो विकासशील देशों द्वारा नवीनीकरण योग्य ऊर्जा को बड़े स्तर पर लागू करने की राह में बहुत बड़ी चुनौती बनती जा रही हैं.
विकसित देशों द्वारा ग्लोबल साउथ से हरित वस्तुओं के आयात पर इन दिनों जो टैरिफ बैरियर (TB) और नॉन टैरिफ बैरियर (NTB) की दीवारें खड़ी की जा रही हैं, वो विकासशील देशों द्वारा नवीनीकरण योग्य ऊर्जा को बड़े स्तर पर लागू करने की राह में बहुत बड़ी चुनौती बनती जा रही हैं.
पहले के दौर में ट्रेड बैरियर और नॉन ट्रेड बैरियर तो विकासशील देश लगाया करते थे, ताकि वो अपने यहां विकसित हो रहे नए नए उद्योगों को पोषित कर सकें. इसके जवाब में विकसित देशों ने नव-उदारवादी एजेंडे को आगे बढ़ाया, जिसे वो अक्सर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक (WB) और विश्व व्यापार संगठनों के ज़रिए लागू किया करते थे. IMF और वर्ल्ड बैंक, विकासशील देशों को जो क़र्ज़ देते थे, उसके साथ वो अक्सर कड़ी शर्तें लगा देते थे, जिससे लोन लेने वाले देश को मजबूरी में नव-उदारवादी नीतियों को अपनाना पड़ता था. इसमें विश्व व्यापार संगठन भी ऐसे नियम बनाकर योगदान देता था, जिससे उन क्षेत्रों में मुक्त व्यापार को बढ़ावा मिलता था, जिनमें विकसित देश मज़बूत स्थिति में होते थे. लेकिन, मुक्त व्यापार की ये उदारवादी नीतियां उन मामलों में लागू नहीं की जाती थीं, जहां विकसित देश मज़बूत स्थिति में नहीं होते थे, जैसे कि खेती और कपड़ा उद्योग.
आज के हालात इसके उलट हो गए हैं. अब विकसित देश अपने यहां के हरित उद्योगों को बचाने के लिए ग़रीब देशों की तुलना में कहीं ज़्यादा ट्रेड बैरियर और नॉन ट्रेड बैरियर लगाने लगे हैं. विकसित देशों द्वारा व्यापार की राह में खड़ी की जाने वाली बाधाओं का मक़सद वैसे तो अपने यहां हरित ऊर्जा के उद्योगों में निवेश को बढ़ावा देना है. पर, इनसे ग्लोबल साउथ के देशों में हरित वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन और उनके निर्यात में कमी आएगी. और फिर इसकी वजह से वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन कम करने की गति धीमी हो जाएगी.
हरित लालफीताशाही
जलवायु से जुड़ी रूपरेखा में मुक्त व्यापार के संरक्षण के प्रावधान स्पष्ट नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र की क्लाइमेट चेंज से जुड़ी फ्रेमवर्क संधि (UNFCCC) की धारा 3.5 और क्योटो प्रोटोकॉल की धारा 2.3 के मुताबिक़, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जो उपाय किए जाएं वो इकतरफ़ा और ग़ैरवाजिब भेदभाव न हों या फिर अंतरराष्ट्रीय व्यापार में छद्म बाधाएं न बनें और उन्हें विपरीत प्रभावों को कम से कम करने के लिए लागू किया जाना चाहिए, जिससे अन्य पक्षों के ऊपर अंतरराष्ट्रीय व्यापार, और सामाजिक, पर्यावरण संबंधी और आर्थिक प्रभाव न पड़ें. जलवायु और पर्यावरण के संदर्भ में विश्व व्यापार संगठन (WTO) अपने मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने की ज़िम्मेदारी के उलट ही ये कहते हुए काम करता है कि उसके सदस्य देश पर्यावरण की हिफ़ाज़त और टिकाऊ विकास सुनिश्चित करने के लिए व्यापार संबंधी क़दम उठा सकते हैं. इन प्रावधानों में निहित दुविधाएं विकसित देशों को, जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों के नाम पर घरेलू स्तर पर नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के संसाधनों (RE) और कम कार्बन वाली वस्तुओं के उत्पादन को संरक्षित करने और सब्सिडी देने का मौक़ा मुहैया कराते हैं.
जलवायु और पर्यावरण के संदर्भ में विश्व व्यापार संगठन (WTO) अपने मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने की ज़िम्मेदारी के उलट ही ये कहते हुए काम करता है कि उसके सदस्य देश पर्यावरण की हिफ़ाज़त और टिकाऊ विकास सुनिश्चित करने के लिए व्यापार संबंधी क़दम उठा सकते हैं.
विकसित देशों की तरफ़ से पहला और सबसे अहम संरक्षणवादी क़दम अमेरिका ने उठाया जब उसने इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट (IRA) पारित किया. इस क़ानून के तहत अमेरिका ने अपने यहां स्वच्छ ईंधन की तकनीकों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए टैक्स में रियायतों, मदद, सब्सिडी और क़र्ज़ के तौर पर 360 अरब डॉलर की रक़म देने का वादा किया है. ये क़ानून (IRA) असल में घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए, पिछले दरवाज़े से दी जाने वाली सब्सिडी या नॉन ट्रेड बैरियर ही है. IRA असल में अमेरिका की उस रणनीति का ही एक हिस्सा है, जिसके तहत वो हरित अर्थव्यवस्था में चीन के दबदबे को कम करना चाहता है. जो कंपनियां अपने उत्पादों के हिस्से और सामान अमेरिका या उसके व्यापारिक साझीदारों से ख़रीदते हैं, उन्हें इस क़ानून के तहत फ़ायदा मिल सकता है. इसमें यूरोपीय संघ (EU) और जापान शामिल नहीं हैं, क्योंकि अमेरिका के साथ उनके मुक्त व्यापार समझौते नहीं हैं.
इससे पहले भी अमेरिका ने मुक्त व्यापार में बाधाएं खड़ी करने वाले क़दम उठाए हैं. इनमें अगस्त 2022 में पारित किया गया चिप्स ऐंड साइंस एक्ट शामिल है, जिसका मक़सद अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग , आपूर्ति श्रृंखलाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाना है और रिसर्च एवं विकास, साइंस और तकनीक, और भविष्य के कामगारों में निवेश को बढ़ाना है ताकि भविष्य के उद्योगों में भी अमेरिका को विश्व का अगुवा बनाए रखा जा सके. इन तकनीकों में नैनो टेक्नोलॉजी, स्वच्छ ईंधन, क्वांटम कंप्यूटिंग और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस भी शामिल हैं. 2022 में अमेरिका ने डिफेंस प्रोडक्शन एक्ट (DPA) के इस्तेमाल को भी मंज़ूरी दी थी, ताकि स्वच्छ ईंधन की तकनीकों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सके. इस क़ानून के तहत जिन पांच अहम ऊर्जा तकनीकों को रखा गया है, उनमें (1) सौर ऊर्जा, (2) ट्रांसफॉर्मर और इलेक्ट्रिक ग्रिड के उपकरण, (3) हीट पंप, (4) इंसुलेशन और (5) इलेक्ट्रोलाइज़र, फ्यूल सेल और प्लेटिनम ग्रुप की धातुएं शामिल हैं. अमेरिकी सरकार के ये क़दम असल में, हरित वस्तुओं का आयात रोकने के लिए लगाए गए नॉन ट्रेड बैरियर ही हैं.
यूरोपीय संघ का ग्रीन डील इंडस्ट्रियल प्लान, अमेरिका के IRA को जवाब देने की रणनीति का ही हिस्सा है. इसका लक्ष्य यूरोप के नेट-ज़ीरो उद्योग की मुक़ाबला कर पाने की क्षमता को बढ़ावा देना ही है, ताकि ज़ीरो कार्बन की ओर तेज़ी से परिवर्तन करने को गति दी जा सके. इस डील में नेट-ज़ीरो इंडस्ट्री एक्ट बनाने का भी प्रस्ताव है, ताकि नेट ज़ीरो की औद्योगिक क्षमता को लागू करना आसान बनानेके लिए एक नियामक व्यवस्था को फ़ौरन स्थापित किया जा सके. इससे यूरोप की सामरिक परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए इनको मंज़ूरी देना आसान बनाना और तुरंत इजाज़त देने के साथ साथ पूरे यूरोपीय संघ के बाज़ार में तकनीकों को व्यापक स्तर पर लागू करने में मदद के लिए मानक विकसित करना भी शामिल है. EU की ग्रीन डील में क्रिटिकल रॉ मैटेरियलस एक्ट लागू करने और बिजली के बाज़ार में सुधार करने का भी ऐलान किया गया है.
विकसित देशों द्वारा सौर ऊर्जा पैनलों और अन्य हरित तकनीकों के संबंध में अपने उद्योगों के संरक्षण के लिए उठाए गए क़दम से स्वच्छ तकनीक और उत्पादन के लिए निवेश आकर्षित के लिए वैश्विक स्तर पर सब्सिडी देने की होड़ लग जाएगी.
यूरोपीय संघ की कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट व्यवस्था (CBAM), आयातित वस्तुओं पर EU ETS से संबंधित कार्बन क़ीमत के बराबर टैक्स लगाती है, जिससे EU में बने सामान और बाहर से आयात की गई वस्तुएं कार्बन की बराबर की क़ीमत का बोझ उठाएं. हालांकि, सेक्टरों को CBAM को धीरे धीरे लागू करने के समय के दौरान, कार्बन उत्सर्जन कम करने के क़दम उठाने होंगे. CBAM, विकासशील देशों से ऊर्जा की तकनीकों और औद्योगिक उत्पादों के आयात की राह में बड़ी ग़ैर व्यापारिक बाधाएं खड़ी करते हैं.
दिक़्क़तें
इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि IRA और CBAM के अलावा अन्य उपायों से अमेरिका और यूरोप के हरित क्षेत्र के उद्योगों को फ़ायदा मिलेगा. लेकिन, अन्य देशों के उत्पादकों को इतना नुक़सान होगा कि वो वैश्विक स्तर पर हरित परिवर्तन की गति धीमी कर सकते हैं. IRA और CBAM जैसे क़ानूनों से कम कार्बन की वस्तुओं के 80 से 90 प्रतिशत व्यापार पर असर पड़ेगा. ये विडम्बना ही है कि TB और NTB, ज़्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाली वस्तुओं के लिए कम हैं, और कम कार्बन उत्सर्जन करने वाले सामानों के लिए जीवाश्म ईंधन की खपत बढ़ाने वाली सब्सिडी से अधिक हैं. व्यापार घटाने और उत्सर्जन बढ़ाने के मामले में विकासशील देशों द्वारा खड़ी की गई गैर व्यापारिक बाधाओं (NTB) का, ट्रेड बैरियर की तुलना में कहीं ज़्यादा असर पड़ता है. सोलर पैनल (PV) पर लगाई गई व्यापारिक बाधाएं और ग़ैर व्यापारिक बाधाएं कार्बन उत्सर्जन घटाने पर नकारात्मक प्रभाव दिखाती हैं.
2021 में दुनिया में जितने सोलर पैनल (PV) बनाए गए, उनमें से आधे का व्यापार हुआ, जो 2010 की तुलना में चार गुना अधिक है. 2011 के बाद से सोलर पैनलों पर एंटी डंपिंग टैक्स, जवाब और आयात पर लगाए गए कर, 2021 में एक प्रतिशत आयात कर से बढ़कर 16 फ़ीसद के स्तर पर पहुंच गए. 2021 में वैश्विक स्तर पर सोलर पैनल से संबंधित व्यापार 2020 के 40 अरब डॉलर की तुलना में 70 प्रतिशत बढ़ गया. मोटे तौर पर 0.13 GtCO2e (कार्बन डाई ऑक्साइड के गीगाटन के बराबर) सोलर पैनल में शामिल होती है. सोलर बैटरियों और मॉड्यूल के व्यापार से 30 साल के बराबर या 1.6 GtCO2e कार्बन उत्सर्जन कम होता है. सौर ऊर्जा से बिजली बनाने में वृद्धि से ये उम्मीद की जा रही है कि अगर इन्हें अपनाने की यही दर रही, तो 2017 से 2060 के बीच 50 से 180 GtCO2e कार्बन उत्सर्जन कम होगा. यथास्थिति बनाए रखने वाली व्यापारिक बाधाएं हटाने से सोलर पैनल का इस्तेमाल क़रीब 7 प्रतिशत बढ़ जाएगा और इससे सामूहिक रूप से 4-12 GtCO2e नेट कार्बन उत्सर्जन में कमी आने की उम्मीद है. लेकिन, इनके व्यापार में और बाधाएं खड़ी करने से दुनिया के स्तर पर सौर ऊर्जा के इस्तेमाल में 1.6 से 3.5 प्रतिशत की कमी आएगी, और कार्बन उत्सर्जन घटाने के ठोस सामूहिक उपायों की संभावनाएं 2060 तक 3 से 4 GtCO2e कम हो जाएंगी.
विकसित देशों द्वारा सौर ऊर्जा पैनलों और अन्य हरित तकनीकों के संबंध में अपने उद्योगों के संरक्षण के लिए उठाए गए क़दम से स्वच्छ तकनीक और उत्पादन के लिए निवेश आकर्षित के लिए वैश्विक स्तर पर सब्सिडी देने की होड़ लग जाएगी. आज की दुनिया में जहां विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों के पास, कार्बन उत्सर्जन कम करने के राष्ट्रीय प्रयासों में निवेश के लिए सीमित मात्रा में ही सार्वजनिक पूंजी उपलब्ध है. स्वच्छ तकनीक के लिए सब्सिडी देने की इस होड़ का सबसे बुरा असर ग्लोबल साउथ में संसाधनों की कमी वाली अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ेगा.वहां आविष्कार कम होंगे और औद्योगिक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन कम नहीं किया जा सकेगा. CBAM और किसी खास देश के उत्पादन वाले आयात को सीमा के अंदर प्रवेश करने को बंद करने के अन्य उपायों की वजह से व्यापार और निवेश पर नकारात्मक असर पड़ेगा. जिससे बाज़ार में और भी वर्गीकरण हो जाएगा. विकासशील देशों ने, 1850 से दुनिया के लगभग 90 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार रहे हैं. मगर अब अमीर देश ये संकेत दे रहे हैं कि वो, कार्बन उत्सर्जन को जल्दी से जल्दी कम करने के बजाय, हर संभव तरीक़े से घरेलू उद्योग के निर्माण को अधिक से अधिक बढ़ावा देंगे. विकसित देशों द्वारा (विकासशील देशों से) कारोबार में ऐसे ट्रेड और नॉन ट्रेड बैरियर लगाना जिससे हरित तकनीक को बाहर से ख़रीदने के बजाय स्थानीय स्तर पर ही ख़रीदने को ज़ोर दिया जाए, से विकासशील देशों में उत्सर्जन कम करने की रफ़्तार धीमी हो जाएगी. इसका मतलब वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन को कम करना होगा, क्योंकि आज दुनिया के 60 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिए विकासशील देश ही ज़िम्मेदार हैं.
Source: Brugal
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